एवरम नोम चोम्स्की एक प्रमुख भाषा वैज्ञानिक, दार्शनिक, राजनीतिक, एक्टिविस्ट लेखक एवं व्याख्याता हैं। सम्प्रति वे अमेरिका में मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर हैं। वे अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान के मुखर विरोधी रहे हैं, उन्होंने वियतनाम और खाड़ी युद्ध का भी विरोध किया था। कोरोना काल में उन्होंने दुनिया भर की सरकारों द्वारा इससे सही ढंग से न निपटने के लिए और इससे निपटने के तौर-तरीकों की भी आलोचना की थी, इस सबके बावज़ूद उन्हें कभी भी अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा दमन का शिकार नहीं होना पड़ा, लेकिन भारत की वर्तमान सरकार को लगता है कि नोम चोम्स्की का भूत भी सताने लगा है।
नयी दिल्ली स्थित साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र विभाग के एक छात्र के शोध प्रस्ताव में नोम चोम्स्की द्वारा नरेन्द्र मोदी की आलोचना का ज़िक्र था, इसे लेकर छात्र को नोटिस दी गई और उनके शोध गाइड के ख़िलाफ़ जांच शुरू कर दी गई, जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया गया। यह शोध प्रस्ताव कश्मीर के नृवंशविज्ञान (ethgraphy) पर था। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार इस मामले को लेकर छात्र के गाइड के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक जांच की गई। बताया जा रहा है कि उस शोध प्रस्ताव में नोम चोम्स्की द्वारा एनडीए सरकार की आलोचना का ज़िक्र किया गया था।
पीएचडी छात्र के गाइड शशांक परेरा ने अनुशासनात्मक जांच शुरू होने के बाद विश्वविद्यालय को अपना इस्तीफा सौंपा है। परेरा एसएयू के समाजशास्त्र विभाग के संस्थापक सदस्य हैं। अख़बार के अनुसार इस बीच पीएचडी छात्र ने विश्वविद्यालय प्रशासन से माफी मांग ली है और इस बारे में कोई टिप्पणी करने से इनकार किया है। परेरा ने भी अनुशासनात्मक जांच और उसके बाद दिए गए इस्तीफे को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है। शशांक परेरा एक सांस्कृतिक नृविज्ञानी (cultural anthropologist) हैं, जिन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से मास्टर्स और पीएचडी की डिग्री हासिल की है। वे एसएयू के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष (2011-2014), सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन (2011-2018) और एसएयू के उपाध्यक्ष (2016-2019) रहे हैं। एसएयू आने से पहले वह 20 वर्षों तक श्रीलंका के कोलंबो विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग में कार्यरत थे। वे कोलंबो इंस्टिट्यूट फॉर द एडवांस्ड स्टडी ऑफ सोसाइटी एण्ड कल्चर (2003-2010) के संस्थापक अध्यक्ष भी थे।
परेरा के इस्तीफे को लेकर एसएयू ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान यह स्वीकार किया कि उनके ख़िलाफ़ एक जांच शुरू की गई थी, लेकिन किसी शोध प्रस्ताव के कारण किसी प्रोफेसर को इस्तीफा देना पड़ा, इस बात से विश्वविद्यालय ने इनकार किया है। हालांकि विश्वविद्यालय ने यह नहीं बताया कि प्रस्ताव में उसे क्या आपत्तिजनक लगा, जिसके कारण छात्र को नोटिस दिया गया तथा गाइड के ख़िलाफ़ जांच की गई। बताया गया है कि छात्र ने उक्त पीएचडी प्रस्ताव पिछले साल नवंबर में पेश किया था और इसे सामाजिक विज्ञान के डीन को भेजे जाने से पहले परेरा द्वारा हरी झंडी दी गई थी।
एसएयू की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद पीएचडी दिशानिर्देशों के अनुसार, पीएचडी छात्र को फील्डवर्क शुरू करने से पहले अपने गाइड, डीन या डिपार्टमेंट ऑफ स्टडीज बोर्ड से अनुमति लेनी होती है। इस मामले में पीएचडी छात्र के प्रस्ताव को सुपरवाइजर द्वारा अनुमोदित किया गया और फील्डवर्क शुरू करने की अनुमति के लिए डीन के पास भेजा गया, जिसके बाद इस साल 9 मई को छात्र को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। बताया गया है कि छात्र को दिए गए नोटिस में चॉम्स्की के साथ एक साक्षात्कार को लेकर आपत्ति उठाई गई थी, जिसे उन्होंने 2021 में रिकॉर्ड किया था और 2022 में अपने निजी यूट्यूब चैनल पर अपलोड किया था। छात्र के पीएचडी प्रस्ताव में शामिल इस वीडियो में चॉम्स्की को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ‘कट्टरपंथी हिंदुत्व परंपरा’ से आते हैं और ‘धर्मनिरपेक्ष भारतीय लोकतंत्र को खत्म करने’ तथा ‘हिंदू केंद्रित लोकतंत्र को थोपने’ का प्रयास कर रहे हैं।
यूनिवर्सिटी के नोटिस में शोध के विषय के चयन के संबंध में छात्र और उनके सुपरवाइजर से स्पष्टीकरण भी मांगा गया था। इस नोटिस का जवाब 15 मई को दिया गया जिसमें उक्त इंटरव्यू को अकादमिक रिसर्च का हिस्सा बताया गया और माफी मांगी गई थी, इसके बाद साक्षात्कार के कथित वीडियो को हटा दिया गया। विश्वविद्यालय ने विवादित शोध प्रस्ताव में सुपरवाइजर की भूमिका और प्रस्ताव के पीछे उनकी प्रेरणा की जांच करने के लिए एक समिति भी गठित की, इसी बीच यह सूचना सामने आई कि परेरा ने इस्तीफ़ा दे दिया। बता दें कि एसएयू आठ सार्क देशों द्वारा प्रायोजित एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है, जो विदेश मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
देखने में यह घटना जितनी साधारण लगती है, उतनी यह है नहीं। निश्चित रूप से यह ऊपर से आए दबाव का ही परिणाम है। मोदी सरकार में लगातार अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बढ़ रहा है। जनपक्षधर लेखकों, पत्रकारों तथा यूट्यूबर्स पर लगातार हमले हो रहे हैं। यह कार्यवाही भी इसी की एक कड़ी है तथा यह एक ख़तरनाक भविष्य की ओर भी संकेत करती है।
(स्वदेश कुमार सिन्हा लेखक और टिप्पणीकार हैं)