योगी सरकार आ गई अपनी असलियत पर, हाथरस कांड को सांप्रदायिक रंग देने की कवायद शुरू

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हाथरस गैंगरेप मामले में यूएनओ ने भी चिंता व्यक्त की है। मीडिया की खबरों के अनुसार, यूएनओ की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि भारत में महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ लगातार हो रही यौन हिंसा को लेकर संयुक्त राष्ट्र दुखी और चिंतित है। यह बयान, संयुक्त राष्ट्र की स्थायी समन्वयक रेनाटा डेसालिएन द्वारा दिया गया है। उन्होंने कहा कि हाथरस और बलरामपुर में हुई कथित सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटनाएं यह बताती हैं कि समाज के वंचित तबके के लोगों को लिंग आधारित हिंसा/अपराध का खतरा ज्यादा है।

संयुक्त राष्ट्र की स्थायी समन्वयक की ‘गैरजरूरी’ टिप्पणी पर भारत ने कहा कि ‘किसी भी बाहरी एजेंसी की टिप्पणी को नजरअंदाज करना उचित होगा’, क्योंकि मामलों में जांच अभी जारी है। मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, “महिलाओं के खिलाफ हिंसा की कुछ हालिया घटनाओं को लेकर संयुक्त राष्ट्र की स्थायी समन्वयक द्वारा कुछ ‘गैरजरूरी’ टिप्पणियां की गई हैं। भारत में संयुक्त राष्ट्र की स्थायी समन्वयक को यह ज्ञात होना चाहिए कि सरकार ने इन मामलों को बहुत गंभीरता से लिया है।”

उत्तर प्रदेश में दंगे भड़काने और सरकार को अस्थिर करने की साज़िश के बारे में सरकार ने मुकदमे दर्ज किए हैं और आज की खबर है कि कुछ लोग गिरफ्तार भी हुए हैं। साज़िश का पर्दाफाश होना और उन तत्वों का पता लगाकर उनके खिलाफ कार्रवाई करना ज़रूरी है।

वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने इस साजिश पर अपनी फेसबुक वाल पर एक सारगर्भित लेख लिखा है जिसमें वे कहते हैं, “उत्तर प्रदेश पुलिस ने जिस वेबसाइट की सामग्री को राज्य में सांप्रदायिक दंगा फैलाने की अंतरराष्ट्रीय साजिश कहा है उसकी पूरी सामग्री अंग्रेजी में एक दूसरे (विरोध करने वाले) वेबसाइट से लेकर पेस्ट की गई है। अव्वल तो उत्तर प्रदेश और हाथरस में अंग्रेजी पढ़ने वाले दंगाई तथा प्रदर्शनकारी होने का ख्वाब ही विकास की पराकाष्ठा है, पर कॉपी पेस्ट करने वाला इतना ‘मूर्ख’ है कि उसने अंग्रेजी में ही पूरे मामले को उत्तर प्रदेश का बनाने के लिए आवश्यक संशोधन भी नहीं किया है।”

इसमें सबसे दिलचस्प है कि भावी प्रदर्शनकारियों से कहा गया है कि न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टमेंट (एनवाईपीडी) प्रदर्शन की फिल्मिंग यानी रिकार्डिंग कर रही होगी (इसलिए संभल कर रहना)। द वायर ने लिखा है कि यह द ब्लैक लाइव्ज मैटर की साइट से लेकर (जस का तस) पेस्ट कर दिया गया लगता है और न्यूयॉर्क पुलिस को उत्तर प्रदेश पुलिस तक करने की जहमत नहीं उठाई गई है।”

उन्होंने द वायर की इसी प्रकरण की खबर के कुछ संबंधित हिस्से का अनुवाद भी दिया है। इसे ज़रूर पढ़ा जाना चाहिए।
1. अगर आप विरोध प्रदर्शन में भाग लेने का विचार बना रहे हैं तो पहले आवश्यक अनुसंधान कर लें और सुनिश्चित कीजिए ऐसी व्यवस्था (सेटअप) न हो जहां ‘गोरे सर्वोच्च लोगों को आकर्षित करने की कोशिश करें’ और उत्तर प्रदेश के लोगों को सलाह दी गई है कि वे सैन डेइगो और फीनिक्स के लोगों से स्मार्ट बनें।
2. जिस वेबसाइट के बारे में पुलिस ने कहा है कि वह ग्रामीणों और शहरी लोगों से उत्तर प्रदेश में दंगे कराने की कोशिश कर रहा है, उसने यह सलाह भी दी है कि अगर वे काले लोगों को भागते देखें तो उनके साथ भाग लें। यह स्पष्ट नहीं है कि उत्तर प्रदेश पुलिस को अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत काले अफ्रीकियों द्वारा हाथरस में दंगा करने की उम्मीद थी।
3. एक सेक्शन में बताया गया है कि विरोध करने जाएं तो क्या नहीं पहनें। इसके अनुसार, उत्तर प्रदेश के ग्रामीणों से कहा गया है कि वे वेसलिन, मिनरल ऑयल या तेल आधारित सनस्क्रीन न लगाएं। इसमें रसायन फंस सकता है। उनसे यह भी कहा गया है कि (आंखों में) कांटैक्ट लेंस न लगाएं, टाई या जेवर अथवा ब्रांडेड कपड़े न पहनें।
4. दंगे की तैयारी करने वाली वेबसाइट ने उत्तर प्रदेश के गांवों तथा शहरों के प्रदर्शनकारियों को निर्देश दिया है कि ढीले कपड़े और स्विमिंग गॉगल्स पहनें।
5. लोगों से कहा गया है कि वे स्निकर्स पहनें जो भागने के लिए सुविधाजनक हो और हैट लगाएं (टोपी नहीं) ताकि उसका निकला हुआ हिस्सा चेहरे को ढंग सके और वे पहचाने न जाएं। साथ ही धूप और रसायन के प्रभाव से बच सकें।
साइकिल चलाते वक्त पहनने वाली हैट (मैं पहली बार पढ़/सुन रहा हूं, हिंदी पट्टी में कितने लोग जानते होंगे पता नहीं) और दस्ताने लगाने की भी सलाह दी गई है।
6. प्रदर्शनकारियों से यह भी कहा गया है कि विरोध करने के बाद वे संभवतः हाथरस में उबर (टैक्सी) का इंतजार न करें और  बेहतर हो कि बाइक का उपयोग करें। (क्योंकि ऐसा करने में ही बुद्धिमानी है!!)
7. प्रदर्शनकारियों से यह भी कहा गया है कि वे अपने साथ बैकपैक लाएं जिसमें खाने की चीजें, पानी, चार्जर और कपड़े हों, ताकि पुलिस पानी की बौछार छोड़े और गीले हो जाएं तो बदल सकें।

हाथरस और बलरामपुर दोनों ही जगहों पर रेप की घटनाएं हुईं पर बलरामपुर की घटना के बारे में जहां कोई बड़ा राजनीतिक बवाल नहीं हुआ, वहीं हाथरस में ऐसा बवाल हो गया कि उसकी चर्चा देश-विदेश तक मे होने लगी। इसका जो कारण मुझे समझ मे आता है वह इस प्रकार है।
● बलरामपुर में तुरंत मुकदमा लिखा गया और मुल्जिमान की गिरफ्तारी तुरंत कर ली गई।
● हाथरस में भी मुकदमा लिखा गया और इस मामले में भी मुल्जिमान की गिरफ्तारी की गई।
● बलरामपुर में हिंसक बलात्कार से पीड़िता की मृत्यु हो गई।
● हाथरस में भी बलात्कार पीड़िता की मृत्यु हो गई। हाथरस मामले में पीड़िता को घातक चोटें आई थीं।
● बलरामपुर में पीड़िता के शव के पोस्टमार्टम के बाद उसका शव उसके घर वालों को सौंप दिया गया और उसके अंतिम संस्कार पर कोई भी विवाद नहीं हुआ।
● हाथरस में पीड़िता का शव पोस्टमार्टम के बाद उसके घर वालों को न सौंप कर रात में गुपचुप रूप से उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
● बलरामपुर में जो अभियुक्त हैं वे अभी भी जेल में हैं और उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून एनएसए में निरूद्ध करने की कार्रवाई चल रही है। यह एक उचित निर्णय है। ऐसी जघन्य हत्या और बलात्कार के मामले में ऐसी कार्रवाई की जानी चाहिए।
● हाथरस के मामले में एनएसए जैसी किसी कार्रवाई का संकेत जिला प्रशासन ने नहीं दिया। इसके विपरीत कुछ लोगों ने पूरी घटना को ही संदिग्ध लगा और उसके लिए पीड़िता के घर वालों को ही जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की।
● बलरामपुर मामले में जहां पुलिस और जिला प्रशासन की कार्रवाई सधी हुई और नियमानुकूल की गई, संदेह का कोई स्कोप नहीं छोड़ा गया, न तो मीडिया के वहां जाने पर कोई प्रतिबंध लगाया गया और न ही उसे लेकर डीएम का कोई अनावश्यक बयान या वीडियो ही वायरल हुआ।
● इसके विपरीत, हाथरस में चुपके से शवदाह कर देने के पहले और बाद में न तो घर वालों को विश्वास में लिया गया और न ही इन सब में उनकी सहमति ली गई। अनावश्यक रूप से मीडिया पर प्रतिबंध लगाया गया।
विपक्ष के नेताओं को हाथरस जाने से पहले तो रोका गया, उनसे बदसलूकी की गई और जब अनुमति दी गई तब भी अनावश्यक रूप से बदतमीजी की गई।
● बलरामपुर की घटना में बलात्कार पर हुआ है या नहीं हुआ है इस पर उच्च स्तर पर कोई टिप्पणी नहीं की गई।
● हाथरस की घटना में बलात्कार की घटना को एक जजमेंटल तरह से नकार दिया गया, जबकि यह काम विवेचक का था। वह सुबूतों से यह तय करता रहता कि बलात्कार हुआ है या नहीं। अगर यह सवाल पूछा भी गया था कि क्या बलात्कार हुआ है तो इसका जवाब विवेचनाधीन कह के दिया जा सकता था। बलात्कार के नकारने और वह भी एडीजी स्तर पर यह संदेश गया कि सरकार कुछ न कुछ लीपापोती करना चाहती है। इससे आक्रोश भड़का, विपक्ष को मुद्दा मिला और फिर जो हुआ, और हो रहा है, उसे हम सब देख ही रहे हैं।
● बलरामपुर में न तो एसआईटी गठित हुई और न ही किसी पुलिस अफसर का तबादला या निलंबन हुआ। ज़ाहिर है वहां की गई कार्रवाई को लेकर कोई संदेह नहीं था और न ही विवाद हुआ।
● हाथरस में स्थानीय पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई से सरकार संतुष्ट नहीं थी, और तब एसआइटी गठित हुई और फिर उसकी रिपोर्ट पर एसपी सहित अनेक पुलिस अफसरों का निलंबन हुआ और अब यह जांच सीबीआई को सौंप दी गई।

इस प्रकार अगर दोनों घटनाओं में की गई पुलिस कार्रवाई की तुलना करेंगे तो यह साफ-साफ दिखेगा कि बलरामपुर पुलिस ने जहां इस मामले को प्रोफेशनल तरह से सुलझाया वहीं हाथरस में रात में चुपके से शव दाह कर के और पीड़िता के परिवार को विश्वास में न लेकर इस घटना पर इतना विवाद खड़ा कर दिया कि उसकी आंच सरकार तक पहुंच गई।

हाथरस में एक और बेहद अपत्तिजनक घटना यह हुई कि सवर्ण परिषद के नाम से एक संगठन सक्रिय हो गया, जिसकी बारह गांवों में पंचायत हुई और बेहद आपत्तिजनक वीडियो सोशल मीडिया पर फैलने लगे। अपराध की एक घटना जो कहीं भी कभी भी घट सकती है, को जब जातिगत रंग दिया जा रहा था, तब सवर्ण परिषद द्वारा की जा रही गतिविधियों को रोकने की कोई कोशिश नहीं की गई, जबकि धारा 144 सीआरपीसी के अंतर्गत जारी निषेधाज्ञा के कारण वहां मीडिया और विपक्षी दलों को रोका गया।

अगर यह साज़िश है कि यूपी में दंगे भड़कें और सरकार अस्थिर हो जाए तो हाथरस की घटना में रात में गुपचुप किए गए पीड़िता के शवदाह के कारणों को भी जांच के घेरे में लेना चाहिए। आज भी यह सवाल अनुत्तरित हैं कि,
● रात में पीड़िता के शव का अंतिम संस्कार करने का निर्णय किसका था?
● डीएम एसपी का या सरकार के किसी अफसर का?
● हालांकि आज ही यूपी के डीजीपी का यह बयान आया है कि अंतिम संस्कार का निर्णय स्थानीय था।
● अगर डीएम-एसपी का था तो, एसपी तो निलंबित हो गए हैं, डीएम को किन कारणों से अब तक निलंबित नहीं किया गया है?
● 14 सितंबर को हाथरस की घटना हुई और तब से खुफिया एजेंसियां क्या कर रही थीं?
● क्या उन्होंने इस घटना में कोई जातिगत एंगल भी ढूंढा था या नहीं?

एक बात अंत मे कहना चाहूंगा कि अपराध हो या कानून व्यवस्था, प्रोफेशनल, विधि सम्मत और पक्षपात रहित पुलिस और प्रशासनिक कार्रवाई का कोई विकल्प नहीं है। रहा सवाल जनता, मीडिया और विपक्ष द्वारा इन सब मामलों पर चर्चा करने का तो हर व्यक्ति चाहे वह जनता का हो या मीडिया या विपक्ष का,  पुलिस और प्रशासन की कमी ढूंढता ही है और जहां भी कुछ विपरीत मिलता है वहीं से वह निंदा आलोचना या विरोध करने लगता है। इसे साज़िश नहीं बल्कि एक सामान्य प्रतिक्रिया समझी जानी चाहिए। यह आज से नहीं है यह बहुत पहले से है।

( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं। आजकल आप कानपुर में रहते हैं।)

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