पथरदेवा, देवरिया। देश में राजनीति की चर्चा जब भी होती है,यूपी का नाम अवश्य लिया जाता है। यह माना जाता है कि उत्तर प्रदेश के सत्ता के रास्ते ही केंद्र की भी हुकूमत का भविष्य तय होता है। जिसके पीछे तमाम कारणों के साथ ही यहां सर्वाधिक लोक सभा व विधान सभा की सीटों का होना भी माना जाता है। यूपी विधान सभा चुनाव के प्रथम चरण का यहां मतदान संपन्न हो चुका है। सात चरणों में हो रहे मतदान को लेकर राजनीतिक दल भी अधिकांश सीटों पर अपना उम्मीदवार उतार चुके हैं। ऐसे में अब समीकरणों पर चर्चा शुरू हो गई है। उधर टीवी पर प्रमुख चैनलों के चुनाव से संबंधित चर्चाओं में हर चैनल भी अपने मिजाज के साथ चीजें परोस रहा है। इनमें सबसे खास बात यह है कि सरकार के पांच साल के कार्यकाल के कार्यों पर चर्चा के बजाए आरोप प्रत्यारोप व धर्म व जाति पर ही चर्चाएं सिमटती जा रही हैं।
ऐसे में धरातल पर क्या तस्वीर बन रही है। इसका आकलन करने के लिए मैं पहुंचा यूपी के विधान सभा क्षेत्र पथरदेवा। जिला मुख्यालय देवरिया से बारह किलामीटर का सफर पूरा करने के बाद एक प्रमुख बाजार आता है कंचनपुर। यहीं से चंद किलोमीटर के फासले के बाद विधान सभा क्षेत्र की सीमा शुरू हो जाती है। इस रास्ते आगे बढ़ते हुए तकरीबन सात किलोमीटर का सफर तय कर मैं पहुंचता हूं देवरिया धूस गांव के तिराहे पर। यहां मौजूद चाय व आवश्यक सामानों की चंद दुकानें एक छोटे बाजार की तस्वीर बयां कर रही हैं। यहां एक दुकान में अपने कार्य में तल्लीन एक कारीगर पर नजर दौड़ाता हूं। दुकान के अंदर डा. भीमराव अंबेडकर व मां दुर्गा की तस्वीर टंगी हुई नजर आती है। साथ ही दुकान के अंदर कुछ ढोल व जूते चप्पल रखे हैं। जिसे देख स्वाभाविक तौर पर हमें जवाब मिल जाता है कि इन्हीं सब सामानों का यहां निर्माण होता है।
बातचीत के दौरान दुकानदार गंगा शरण प्रसाद से पहले परिचय होता है। गांव के चौराहे पर लोगों के नजर में मैं अजनबी दिखने पर उत्सुकतावश अन्य कई लोग भी वहां पास में आ जाते हैं। मैं अपना परिचय दिए बिना गंगा शरण से लोगों के राजनीतिक मिजाज के बारे में पूछ पड़ता हूं। इसके बाद जब बात शुरू होती है,तो कुछ देर तक गंगा शरण खुद सवालिया अंदाज में बहुत सारी बातें कह देते हैं। कहते हैं, “हमारे यहां से सूर्य प्रताप शाही विधायक हैं और सरकार में कृषि मंत्री भी। लेकिन विकास के नाम पर देवरिया धूस से बंजरिया तक निर्माणाधीन सड़क के अलावा कुछ भी गिनाने को नहीं है। कृषि मंत्री के क्षेत्र में भी धान क्रय की स्थिति काफी खराब रही। लिहाजा हर वर्ष बिचौलियों के हाथों धान बेचना मजबूरी बन गई है। किसान सम्मान निधि का सरकार की तरफ से खूब प्रचार किया जा रहा है। लेकिन हमें शुरू में एक बार धनराशि मिली, पर इसके बाद नसीब नहीं हुआ। इसके लिए ब्लाक का कई बाद चक्कर लगाया। इसके बाद भी कोई लाभ नहीं मिला”।

इसके बाद आगे मैं कुछ पूछता उसके पहले ही गंगा शरण बात और आगे बढ़ाते हैं। ऐसा लगता है कि इनके मन में सरकार व व्यवस्था को लेकर गहरी नाराजगी है,जिसे अगर कोई सुनना चाहता है तो अपनी भावनाओं को उड़ेल देना चाहते हैं। बकौल गंगा शरण, ”श्रमिक कार्ड बनवाया हूं, सुना था प्रत्येक माह पांच सौ रूपये मिलेंगे। लेकिन हमें एक भी धनराशि नहीं मिली। प्रत्येक दिन की कमाई किसी तरह पचास से सौ रूपये हो पाते हैं। जिससे किसी तरह घर का खर्च चलता है। चुनाव की बात पर कहते हैं कि यहां सपा व भाजपा का सीधा मुकाबला है। बसपा का अभी उम्मीदवार नजर तक नहीं आया। सुनने में अया है कि पूर्व मंत्री शाकिर अली के लड़के परवेज आलम सपा छोड़कर बसपा में आ गए हैं,उन्हें ही टिकट मिला है”।
पास खड़े गंगा सागर कहते हैं कि “मैं चमार बिरादरी से आता हूं। सपा को अगर वोट भी करूंगा तो उनके लोग मानने को तैयार नहीं होंगे। ऐसे में मतदान अगर जरूरी है,तो बसपा को ही वोट देंगे। पिछले चुनाव में भाजपा को वोट दिया था,पर धोखा मिला”।
अब हमारी बात यहां शुरू होती है, मो़. सईद से। वे कहते हैं कि “मजदूरी करके खर्च चलाता हूं। इसमें भी कई कई दिन काम नहीं मिलता है। सरकार की तरफ कोई मदद नहीं मिलती। श्रमिक कार्ड हमने कर्ज लेकर बनवाया, पर अब तक कोई धनराशि बैंक खाते में नहीं आयी। यह जानने के लिए कई बार बैंक का चक्कर लगा चुका हूं। इस सरकार में काम कम जुमलेबाजी अधिक है। अब इससे मुक्ति चाहते हैं”।

फिर मैं बंजरिया मार्ग की तरफ बढ़ जाता हूं। पांच किलोमीटर बाद हम बंजरिया बाजार पहुंच जाते हैं। बाजार की तस्वीरें अपनी समृद्धि की कहानी खुद बयां कर रही हैं। दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र होने के बाद भी बाजार में कमोबेश सभी समानों की दुकानें मौजूद हैं। फर्नीचर दुकानदार रमेश विश्वकर्मा यहां के स्थानीय निवासी हैं। वे कहते हैं कि “यह क्षेत्र का काफी पुराना बाजार है। लेकिन पहले की तरह अब रौनक नहीं रही। नोट बंदी के बाद से स्थिति में सुधार नहीं हुआ। बीच में कुछ हालात बदल रहे थे कि पिछले दो वर्ष से कोरोना ने सब कुछ चौपट कर दिया अभी लगन का समय चल रहा है। इस लिए कुछ काम मिला हुआ है। इसके बाद माह भर में कुछ काम ही मिल पाता है। जिससे घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है”।
यहां किसी कार्य से आए कुर्मी पट्टी निवासी मुकेश खरवार हमसे परिचय पूछते हैं। हमें पत्रकार जानकर अचानक काफी खुल पड़ते हैं। कहते हैं कि “पत्रकार लोगों को तो सरकार के गुणगान करने से फुर्सत नहीं है। चुनाव चल रहा है,पर इसमें भी सरकार की चाटुकारिता करने में लगे हैं। फिर अपनी बात को बदलते हुए कहते हैं, हमें आपसे नहीं अखबार व चैनल मालिकों से शिकायत है। विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं,पर यहां तो हम लोग दो वक्त की रोटी के लिए परेशान हैं”।
वे खुद ही सवाल करते हुए कहते हैं कि “बंजरिया-देवरिया धूस मार्ग से होकर तो यहां आए होंगे। अभी यह सड़क का निर्माण पूरा भी नहीं हुआ कि टूटने लगी। कोरोना काल में सरकार के स्वास्थ्य इंतजाम के सभी दावे झूठे साबित हो गए। मौतों की बढ़ती संख्या से परेशान सरकार राहत उपाय पर जोर देने के बजाए मौत के आंकड़ों को झुठलाने में लगी रही”।
आपसी चर्चाओं को सुनकर पास में बंजरिया निवासी बृजेश शुक्ल आ जाते हैं। बातचीत को आगे बढ़ाते हुए वे खुद सरकार की दुहाई देने लगते हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि भाजपा के समर्थक ही नहीं उसके कार्यकर्ता भी हैं। कहते हैं कि भाजपा की जीत तय है। इसके पीछे उनकी दलील है कि हिंदुत्व व माफियागिरी व गुंडागर्दी को रोकने के लिए हम भाजपा की एक बार फिर सरकार चाहते हैं। विकास के सवाल पर चर्चा करते ही बृजेश का कहना है कि सड़कों का निर्माण व बंजरिया में आईटीआई की स्थापना प्रमुख उपलब्धि है। निर्माणाधीन सड़क के छतिग्रस्त होने के सवाल पर कहते हैं कि भ्रष्ट अधिकारियों व ठेकेदारों की मिलीभगत से यह होता है। सरकार इन पर कितना नकेल कसेगी। इसमें काफी कमी आई है। आगे सरकार बनी तो और सुधार होगा।
हालांकि बसडीला मैनुद्दीन गांव के श्रीप्रसाद गुप्ता चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहते हैं कि भाजपा सरकार के पांच वर्ष के कार्यकाल में विकास के दावे गलत हैं। उनका कहना है कि कोई विकास कार्य यहां धरातल पर नहीं दिखा। अधिकांश सड़कें जर्जर हैं। कोरोना काल में गांव के एक युवक की मौत के बाद भी परिजनों को कोई मुआवजा न मिलने की बात उन्होंने कही।
बंजरिया बाजार से मैं आगे दो किलोमीटर बढ़कर पहुंचता हूं, सीतापट्टी गांव में। गांव के नाम में सीता का भले ही उल्लेख है पर यहां अधिकांश आबादी मुसलमानों की है। बदरे आलम कहते हैं कि हम लोग सौहार्दपूर्ण माहौल में रहते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में बदली राजनीति ने माहौल को खराब करने की कोशिश की है। रोजगार का बड़ा संकट है। गांव के अधिकांश नौजवान काम की तलाश में बड़े शहरों में जाते हैं। कोरोना काल के चलते काम मिलना भी कम हो गया है। साथ ही मजदूरी भी अब कम मिल रही है। कोई भी सरकार रोजगार के अवसर बढ़ाने की बात नहीं करती है। वे राजनीतिक चर्चा से परहेज करते हैं। कहते हैं कि चुनाव आने पर जिसको देखा जाएगा,वोट किया जाएगा। इस पर चर्चा करके माहौल खराब ही होगा।
इसके बाद मैं बढ़ चलता हूं कृषि मंत्री व भाजपा से उम्मीदवार सूर्य प्रताप शाही के गांव पकहां की तरफ। तकरीबन दस किलोमीटर की दूरी तय कर यहां पहुंचते ही मेरी पहली मुलाकात होती है, राजीव शर्मा से। हमारा परिचय होते ही वे, राजनीतिक चर्चा शुरू कर देते हैं, कहते हैं कि अपेक्षित विकास पांच वर्षों में नहीं हुआ। धान क्रय केंद्र के नाम पर मात्र दिखावा होता रहा। समय से तौल व भुगतान न होने से धान लोगों ने बिचौलियों के हाथों बेचना ही बेहतर समझा। स्वास्थ्य इंतजाम के अभाव में कोरोना की दूसरी लहर में पांच लोगों ने आक्सीजन के अभाव में दम तोड़ दिया। इसके बाद भी वे गांव का प्रत्याशी होने के चलते भाजपा के प्रति ही अपना समर्थन जताने की बात करते हैं।

मुख्य मुकाबले के सवाल पर राजीव कहते हैं कि भाजपा व सपा का आमने-सामने के मुकाबले को बसपा से आफताब आलम के मैदान में आ जाने से त्रिकोणीय हो सकता है। यहां मौजूद अमवा दूबे निवासी उग्रसेन दूबे भी राजनीतिक बहस में कूद पड़ते हैं। कहते हैं कि सपा व भाजपा की सीधी लड़ाई है। भाजपा सरकार के विकास करने की बात पूछने पर वे कह पड़े, अगर विकास हुआ होता तो लड़ाई ही क्यों होती। निर्णय भाजपा के पक्ष में एकतरफा होता। कृषि मंत्री के क्षेत्र में धान क्रय की स्थिति पर पूछने पर कहा कि, इस बार खरीददारी बेहतर रही। हालांकि पूर्व के चार वर्षों में इंतजाम बदहाल रहा। चुनावी वर्ष होने के कारण सुधार दिखा। मेंहदीपट्टी के सुभाष यादव ने कहा कि हम लोग कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं हैं। मतदान के दिन अपने मत का प्रयोग कर देंगे।
पकहां के निवासी व पेशे से अधिवक्ता रूद्र प्रताप शाही से मुलाकात हुई। वे चुनावी चर्चा करते हुए कहते हैं कि भाजपा की लहर चल रही है। सड़क निर्माण,कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर है। किसानों के प्रति कृषि मंत्री का सद्भाव दिखता है। चुनावी समीकरण के सवाल पर कहते हैं कि मुख्य मुकाबला सपा से है। 40 प्रतिशत मुसलमान मतदाता हैं। बसपा से मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। लेकिन उनकी इलाके में पहचान कम है। हालांकि वे स्वीकार करते हैं कि कृषि मंत्री के इलाके में धान खरीद की व्यवस्था काफी खराब रही। लोगों के चुनावी मिजाज को जानने के लिए मैं बढ़ चलता हूं बघौचघाट। यह बिहार की सीमा से कुछ ही दूरी पर है। अर्थात विधान सभा क्षेत्र का अंतिम बाजार।
बघौचघाट बाजार निवासी रामपति प्रसाद यहां बातचीत के दौरान कहते हैं कि चुनाव में यहां कोई मुद्दा नहीं है। दलों के परंपरागत जातीय ध्रुवीकरण के आधार पर मतदान होगा। सपा व भाजपा के बीच में नतीजा किसी के भी पक्ष में जा सकता है। विकास के सवाल पर सड़क निर्माण व कानून व्यवस्था की बात कहते हुए संतुष्टि जताते हैं। बघौचघाट के ही रामविलास यादव कहते हैं कि “इस बार लोगों ने सपा को जिताने का मन बना लिया है। कृषि मंत्री के क्षेत्र में पांच वर्ष में कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। मंहगाई व बेरोजगारी से लोग तंग आ चुके हैं। जिससे निजात के लिए भाजपा से मुक्ति चाहते हैं”। इस बाजार में ही स्थानीय निवासी संदीप राय से मुलाकात होती है। वे कहते हैं कि “क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों में विकास नहीं हुआ। इसके बाद भी मैं वोट भाजपा को ही दूंगा। इसके पीछे उनका कहना है कि भाजपा प्रत्याशी मेरे बिरादरी के हैं, इसलिए मेरा वोट उन्हीं को जाएगा”।
मौसम के साथ राजनीति का भी बदल रहा मिजाज
कड़ाके की ठंड अब खत्म हो चुकी है। दिन भर तेज धूप व सुबह-शाम गुलाबी ठंड लोगों को थोड़ा कंपा रही है। मौसम के इस मिजाज के साथ अब राजनीति का मिजाज भी बदल रहा है। पहले चरण का मतदान समाप्त होने के बाद अब चुनावी मौसम की गर्मी बढ़ती जा रही है। लोगों के आपसी राजनीतिक चर्चाओं में अचानक तेजी आते दिख रही है। कल तक जहां सन्नाटा था,वहां अब हर तरफ राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश के योगी सरकार के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही एक बार फिर चुनावी मैदान में है। जिनको चुनौती दे रहे हैं अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे ब्रम्हाशंकर त्रिपाठी। आमने-सामने के इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश सपा सरकार में ही मंत्री रहे मरहूम शाकिर अली के बेटे आफताब आलम, जो बसपा के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में मुकाबला रोचक होना स्वाभाविक है।
इस विधान सभा क्षेत्र के इतिहास की बात करें तो साल 2012 के परिसीमन से पहले पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र को कसया के नाम से जाना जाता था, जिसमें कुशीनगर जिले के भी कुछ गांव शामिल थे। कसया विधानसभा क्षेत्र ब्रह्माशंकर त्रिपाठी और सूर्य प्रताप शाही की पुरानी सीट रही है। दोनों नेताओं ने अपनी राजनीतिक शुरुआत इसी क्षेत्र से की थी। अब तक के चुनावों में कई बार ब्रम्हाशंकर और सूर्य प्रताप शाही की टक्कर हुई है, जिसमें दोनों ने बारी-बारी से एक दूसरे को हराया है। परिसीमन के बाद कसया विधानसभा सीट कुशीनगर जिले में शामिल हो गई और देवरिया जिले में पथरदेवा के नाम से नया विधानसभा क्षेत्र बन गया। वर्तमान में पथरदेवा सीट पर भाजपा का कब्जा है और प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही इस क्षेत्र से विधायक हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में सपा ने ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को कुशीनगर जिले की कसया विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा था। जहां त्रिपाठी भाजपा उम्मीदवार से चुनाव हार गए थे। साल 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए ब्रह्माशंकर त्रिपाठी रणनीति बनाकर कसया विधानसभा क्षेत्र से अपनी तैयारी में जुटे थे लेकिन पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र में सूर्य प्रताप शाही के मुकाबले कोई कद्दावर नेता न मिलने के चलते सपा ने ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को कसया से हटाकर पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र की राह पकड़ा दी है।
शाही और त्रिपाठी दोनों एक ही कद के नेता हैं और दोनों की गिनती अपने-अपने दल में पूर्वांचल के कद्दावर नेताओं में होती है। पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र के हर गांव में दोनों नेताओं का अपना-अपना संगठन भी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे सूर्य प्रताप शाही वर्तमान में कैबिनेट मंत्री हैं और पूर्व की भाजपा सरकारों में आबकारी समेत कई प्रमुख विभागों के मंत्री रह चुके हैं। जबकि ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी भी पांच बार विधायक रहे हैं और सपा की सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं।
ऐसे में इन दोनों कद्दावर नेताओं की टक्कर से इस बार पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र का चुनाव काफी रोमांचक होगा। वैसे इस विधानसभा क्षेत्र को देवरिया जिले में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है। यादव वोटरों की भी ठीक ठाक संख्या है। ऐसे में अब देखना है कि 2022 के चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र में सपा यादव, मुस्लिम और ब्राह्मण गठजोड़ करने में कामयाब हो जाती है या भाजपा पुनः अपना कब्जा बरकरार रखती है।
(देवरिया से पत्रकार जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)
+ There are no comments
Add yours