पंजाब की राजनीति एक अहम मोड़ पर खड़ी है। पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेसी नेता मनप्रीत सिंह बादल के भाजपा में शामिल होने के बाद तमाम गैर भाजपाई दलों में खासी बेचैनी का आलम है। वैसे खुद पंजाब भाजपा के कुछ नेता भी मनप्रीत के पार्टी में आने से असहज हैं। पहले कांग्रेस की बात करते हैं, जहां से अलविदा कहकर मनप्रीत सिंह बादल ने अचानक भाजपा का भगवा पहन लिया। उनसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़, केवल सिंह ढिल्लों, राणा गुरमीत सोढ़ी, अरविंद खन्ना, सुंदर शाम अरोड़ा, जयवीर शेरगिल, बलवीर सिंह सिद्धू, गुरप्रीत सिंह कांगड़ और राजकुमार वेरका सरीखे कई दिग्गज कमल थाम चुके हैं।
अचानक मनप्रीत सिंह बादल भी भाजपाई हो गए। मनप्रीत का मामला कांग्रेस के लिए इसलिए भी चिंता का बड़ा सबब है कि पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं से उनके गहरे रिश्ते हैं। रिश्ते तो उनके तमाम पार्टियों के नेताओं से हैं।
मनप्रीत सिंह बादल पहले खांटी ‘अकाली’ थे। सुखबीर सिंह बादल से भी पहले उन्होंने पंथक सियासत में प्रकाश सिंह बादल के दिशा निर्देश में कदम रखा था। 1995 को बड़े बादल ने उन्हें अपनी परंपरागत विधानसभा सीट गिद्दड़बाहा से उपचुनाव लड़वाया था। जिसमें वह भारी अंतर से जीत कर विधानसभा पहुंचे। सुखबीर के उभार के साथ मनप्रीत शिरोमणि अकाली दल में हाशिए पर आते गए। जबकि प्रकाश सिंह बादल के मंत्रिमंडल में उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया था और मुख्यमंत्री के बाद वह दूसरे नंबर पर थे।
आखिरकार एक दिन उन्हें अकाली दल छोड़ने को मजबूर कर दिया गया और उन्होंने पीपीपी (पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब) बनाई। मौजूदा मुख्यमंत्री और राज्य में आम आदमी पार्टी को सशक्त करने वाले भगवंत सिंह मान भी उनके साथ थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में मनप्रीत ने अपनी पार्टी का सीपीआई, सीपीएम और अकाली दल लोगोवाल के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाए। बाद में मनप्रीत सिंह बादल और भगवंत सिंह मान के रास्ते जुदा हो गए। एक कांग्रेसी बन गया तो दूसरा आम आदमी पार्टी से जुड़ गया।
तीन अलग-अलग मुख्यमंत्रियों की वजारत में वित्त मंत्री रहे मनप्रीत के रिश्ते हर पार्टी के नेताओं के साथ रहे और अब यही वजह है कि तमाम पार्टियों में खलबली है।
कभी पंजाब में शिरोमणि अकाली दल की बैसाखियों के सहारे चलने वाली भारतीय जनता पार्टी अब सूबे में चौतरफा अपना फैलाव कर रही है। अवसरवादी नेताओं के जरिए वह मिशन पंजाब फतेह करने की कवायद में है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ‘पंजाब प्रोजेक्ट’ के सर्वेसर्वा हैं। उनकी अपनी टीम बहुत पहले से (बड़ी-बड़ी थैलियां) लेकर पंजाब में सक्रिय है। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बखूबी जानते हैं कि पंजाब की राजनीति की मुख्यधारा में आने के लिए उसे नामवर सियासी सिख चेहरों का सहारा लेना ही होगा। इसीलिए राज्य में (दलबदलू) सिख चेहरों को तरजीह दी जा रही है और भाजपा के परंपरागत पुराने वरिष्ठ नेता खुद को हाशिए पर जाता देख रहे हैं।
बातचीत में भाजपा के पूर्व विधायक ने इस पत्रकार से कहा कि हमें विश्वास में लिए बगैर दूसरी पार्टियों, खासकर कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं को भाजपा में लाकर आगे किया जा रहा है। बता दें कि दिल्ली जाकर जब मनप्रीत सिंह बादल ने बुधवार को भाजपा में शामिल होने का खेल खेला तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अश्वनी शर्मा भी दिल्ली में थे लेकिन या तो उन्हें भनक नहीं थी और या वह खुद ही मनप्रीत के भाजपा में शामिल होने के वक्त मौके पर नहीं आए। पंजाब के अधिकांश भाजपा नेताओं का मानना है कि अश्वनी जानबूझकर नहीं गए।
सरगोशियां हैं कि आने वाले दिनों में राज्य भाजपा में बड़ा बदलाव होगा और शायद किसी सिख नेता को प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त कर दिया जाए। दो नाम खुलकर लिए जा रहे हैं। एक, कैप्टन अमरिंदर सिंह और दूसरे मनप्रीत सिंह बादल। दोनों कभी सूबे की पंथक सियासत का अहम हिस्सा भी रहे हैं। बाद में कांग्रेसी और अब भाजपाई हो गए हैं।
इसी महीने के आखिर में अमित शाह पटियाला आ रहे हैं। तय है कि उस दिन ‘मिशन पंजाब’ के तहत राज्य में बहुत कुछ ऐसा होगा जो तमाम राजनीतिक समीकरण सिरे से बदल देगा। इसी दिन कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर भाजपाा में शामिल होंगीं। फिलवक्त वह पटियाला से कांग्रेस सांसद हैं। कांग्रेस के लिए यह महीने में दूसराा बड़ा झटका होगा। परनीत कौर लोकसभा से इस्तीफे की घोषणा भी करेंगी। इसका एक मतलब यह भी है कि संसद में कांग्रेस के दो सांसद कम हो जाएंगे। पिछले हफ्ते जालंधर से लोकसभा सदस्य चौधरी संतोख सिंह का निधन हो गया था।
अफवाहनुमा चर्चा यह भी है कि कांग्रेस के 12 विधायक अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा में जा सकते हैं। राज्य विधानसभा में फिलहाल कांग्रेस के 18 विधायक हैं और सब अलग-अलग खेमों से वाबस्ता हैं। सूत्रों के मुताबिक 12 विधायक खुद को उपेक्षित भी मानकर चल रहे हैं। इनमें से कई कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और मनप्रीत सिंह बादल के करीबी रहे हैं। यहां ‘थैली’ भी काम कर सकती है और आपसी रिश्ते भी! बताया तो यह भी जाता है कि ईडी और सीबीआई के कसते शिकंजे के मद्देनजर पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी ‘मिशन पंजाब’ चलाने वाले दिग्गजों के संपर्क में हैं। नहीं मालूम कि यह ‘संपर्क’ आगे जाकर क्या गुल खिलाएगा।
इसी तरह शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार में रहे कुछ पूर्व अकाली मंत्री और वरिष्ठ नेता भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। उन्हें सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई और शैली सिरे से नामंजूर है। बताते हैं कि अब बड़े और छोटे बादल, भाजपा में जाने को तैयार बैठे नेताओं को मनाने-रिझाने की कवायद कर रहे हैं। राज्य में फिलहाल अकाली दल और बसपा में गठबंधन है लेकिन मायावती का रुख बदल रहा है। भाजपा भी दोबारा शिरोमणि अकाली दल से किसी भी सूरत में गठबंधन नहीं करना चाहती। ऐसे में अगर कोई न्यूनतम जनाधार वाला नेता भी भाजपा में शामिल होता है तो शिरोमणि अकाली दल के लिए यह बड़ा नुकसान होगा।
खलबली तो आम आदमी पार्टी (आप) में भी है। सत्तारूढ़ इस पार्टी के कई विधायक और वरिष्ठ नेता भीतर ही भीतर मुख्यमंत्री और आप सुप्रीमो से बेतहाशा नाराज हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जिन्हें बार-बार वादे किए जाने के बावजूद मंत्री नहीं बनाया गया। कुंवर विजय प्रताप सिंह का उदाहरण सामने है। पूर्व पुलिस अधिकारी कुंवर विजय प्रताप सिंह जब आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे, तब अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान लगभग हर मंच से कहा करते थे कि इस्तीफा देकर आप में आए कुंवर को सरकार बनने की सूरत में सूबे का गृहमंत्री बनाया जाएगा। अब आलम यह है कि उन्हें विधानसभा में बोलने के लिए पांच मिनट का वक्त भी बमुश्किल दिया जाता है। पार्टी अपने इस वफादार विधायक की जबरदस्त और खुलेआम अनदेखी कर रही है।
कई अन्य उपेक्षित किए जा रहे विधायकों में गहरा असंतोष पनप चुका है। दूसरे, मुख्यमंत्री दरबार से तो उनकी दूरियां बढ़ ही रही हैं- स्थानीय अफसरशाही भी उनके प्रति बेपरवाह है। ऐसे असंतुष्ट विधायकों का धीरे-धीरे ‘कॉकस’ बन रहा है और भाजपा की निगाह इस पर है। कुछ महीने पहले आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर बाकायदा आरोप लगाए थे कि उसके विधायकों को ‘खरीदने’ की कोशिश के लिए ऑपरेशन किया गया लेकिन वह नाकामयाब रहा। हालांकि इसका कोई प्रमाण सार्वजनिक तौर पर नहीं रखा गया लेकिन भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार, इतना जरूर है कि आप के कुछ विधायक भाजपा के संपर्क में जरूर हैं। इनमें से चार ‘बड़े नाम’ हैं। जो केजरीवाल और मान की वादाखिलाफी से खफा हैं। घोर उपेक्षा से नाराज तो खैर हैं ही।
फिर दोहराना होगा कि मुख्यमंत्री भगवंत मान को राजनीति में लाने वाले मनप्रीत सिंह बादल थे। आज बेशक दोनों की राहें एकदम जुदा हैं लेकिन भगवंत के कुछ पुराने साथी मनप्रीत से अब भी अच्छे रिश्ते रखते हैं। बाजरूर मनप्रीत सिंह बादल की कोशिश होगी कि वे भी उन्हीं की मानिंद भाजपा का चोला पहन लें। मनप्रीत ने बीते कल यह तो बखूबी साबित कर ही दिया है कि राजनीति में सब संभव और ‘जायज’ है!
प्रसंगवश, पंजाब में आम आदमी पार्टी के संस्थापकों में पटियाला से पार्टी टिकट पर सांसद बने डॉ धर्मवीर गांधी का राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के साथ कदमताल करना कोई आम बात नहीं है। धर्मवीर गांधी बेशक आप से किसी हद तक अलहदा हो चुके हैं लेकिन उनके पुराने साथी जरूर उनकी पुरानी पार्टी में बने हुए हैं। डॉक्टर गांधी पर भी भाजपा की निगाह है।
तो पंजाब के हर सियासी दल में फिलहाल भाजपा के ‘मिशन पंजाब’ को लेकर भारी खलबली है।
(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)
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