ग्राउंड रिपोर्ट: फरीदाबाद में ईंट-भट्टों पर बंधुआ मजदूरी, छत्तीसगढ़ से आए मजदूर कर रहे न्याय की मांग !

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फरीदाबाद। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बड़े पैमाने पर मजदूर काम की तलाश में आते हैं। देश के विभिन्न राज्यों से दिल्ली आए मजदूरों में बेलदार, सफाई कर्मी, फैक्ट्री और ईंट-भट्टा मजदूर जैसे अन्य मजदूर शामिल होते हैं। इन मजदूरों को दिल्ली जैसे महानगर और उसके आस-पास में रहने, खाने और काम करने की गंभीर चुनौतियों से गुजरना पड़ता है।

लेकिन, इन मजदूरों के जीवन पर संकट, अत्याचार, परिवार से दूरी का दर्द और बुनियादी जरूरतों की तंगी तब और‌ अत्यधिक बढ़‌ जाती है, जब इन मजदूरों को बंधुआ मजदूर बनाया जाता है। दिल्ली से सटे हरियाणा के फरीदाबाद में बंधुआ मजदूरी का ऐसा ही एक मामला सामने आया है। मामला यह है कि, छत्तीसगढ़ से फरीदाबाद ईंट-भट्टा का काम करने के लिए 53 दलित मजदूरों को‌ लाया गया था। फिर, रफ्ता-रफ्ता इन मजदूरों को बंधुआ बना लिया गया। इसके बाद महीनों से लेकर साल तक बंधुआ मजदूरी करवायी गयी।

 एकजुट हुए बंधुआ मजदूर

जबरन बंधुआ बनाने का यह आरोप छत्तीसगढ़ के मजदूरों ने फरीदाबाद में ईट-भट्ठा मालिकों पर लगाया है। इन तथाकथित 53 बंधुआ मजदूरों को अधिकारियों, कर्मचारियों और नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बोंडेड लेबर के संयोजक निर्मल गौराना की मदद से रेस्क्यू करवाया गया। लेकिन, इन‌ तथाकथित बंधुआ मजदूरों को न्याय नहीं मिल‌ पाया। जिससे उनकी स्थिति काफी दयनीय होती जा रही है। बंधुआ मजदूरों को रेस्क्यू कराने में मुख्य भूमिका निभाने वाले निर्मल गौराना से भी हमने इस मामले को जानने-समझने की कोशिश की।

निर्मल गौराना बताते हैं कि, यह मामला फरीदाबाद का है। जहां ईंट-भट्ठे का काम बड़े पैमाने पर होता है। यहां के क्षेत्र में…छत्तीसगढ़ के मजदूरों को एडवांस पैसा देकर लाया गया और मजदूरों के मानवाधिकारों का हनन किया गया। मजदूरों से कम पैसे में काम करवाया जा रहा था। मजदूरों को अपना भट्टा छोड़, दूसरे भट्टे पर या घर जाने की स्वतंत्रता तक नहीं दी गयी। मजदूरों ने काम इतना कर लिया था कि, उधारी का पैसा चुका दिया और इतना काम किया कि, उन्हें मासिक आय मिलने लगे। लेकिन, मजदूरों को काम का कोई पैसा नहीं दिया गया। तब हमने डिप्टी कमिश्नर फरीदाबाद में मजदूरों को लेकर शिकायत दर्ज कराई। लेकिन, मजदूरों को कोई मदद नहीं मिली। फिर, मजदूरों ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया और शिकायत दर्ज की। तब मानवाधिकार आयोग ने डिप्टी कमिश्नर फरीदाबाद को एक पत्र भेजा और मजदूरों के मामले‌ को गंभीरता से संज्ञान में लेने के लिए कहा और जानकारी मांगी।

बंधुआ मजदूरी करने वाला परिवार 

लेकिन, अभी तक मजदूरों को इंसाफ नहीं मिल पाया है। ऐसे में बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 का उल्लंघन हो रहा है। अगर, मजदूरों को न्याय नहीं मिलेगा, तब मजदूर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। निर्मल गौराना ने‌ बंधुआ मजदूरों को न्याय दिलाने के लिए 29 अप्रैल 2024 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को एक पत्र भी लिखा। इस पत्र के साथ 53 बंधुआ मजदूरों की लिस्ट भी शामिल है। पत्र में बताया गया कि, 53 प्रवासी श्रमिक छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जाति से हैं। और उन्हें सितंबर 2022 से बंधुआ परिस्थितियों में ईंट भट्टे पर काम करने के लिए फरीदाबाद (हरियाणा) में तस्करी कर लाया गया था। मजदूर भूमिया भट्टा कंपनी, फरीदाबाद, हरियाणा में बंधुआ मजदूर के रूप में काम कर रहे थे। ये बंधुआ मजदूर गुलाब सिंह की भूमिया भट्टा कंपनी में काम कर रहे हैं। कंपनी में मजदूरों को काम के बदले कम मजदूरी राशि दी गयी। बंधुआ मजदूरों को प्रति 1000 ईंटों के लिए 560 रुपये का भुगतान करने का वादा किया था, लेकिन बंधुआ मजदूरों को नियोक्ता से कोई मजदूरी नहीं मिली।

मानवाधिकार आयोग को भेजा गया पत्र

पत्र में आगे उल्लेख किया गया कि, मजदूर-चंद्रवीर महेश के अनुसार, उनके परिवार ने कुल 10,10,000 ईंटें बनाई हैं। मजदूर खोलबेहरा के अनुसार, उनके परिवार ने कुल 18,00,000 ईंटें बनाई हैं। मजदूर तिहारू के अनुसार, उनके परिवार ने कुल 20,00,000 ईंटें बनाई हैं। मजदूर राजकुमार के अनुसार, उनके परिवार ने कुल 12,25,000 ईंटें बनाई हैं। लेकिन बंधुआ मजदूरों के कार्य की ऐसी कोई गणना नहीं की गयी। ना ही मजदूरी दी गयी।

दरअसल, मुख्य नियोक्ता परिवार के मुखिया को भोजन के खर्च के लिए हर 15 दिन में बमुश्किल से 3000 रुपये दिया जा रहा था। लेकिन, पूरी मजदूरी राशि नहीं दी गयी। पत्र में आगे अनुरोध किया गया है कि, कृपया इस मामले पर समय रहते कार्रवाई करें और निम्नलिखित राहत प्रदान करें:-

  1. डीसी फरीदाबाद को निर्देश दें कि वे सुरक्षित और भयमुक्त वातावरण में उनके बयान दर्ज करें। यह बयान भारत सरकार द्वारा प्रकाशित बंधुआ मजदूरों की पहचान, रिहाई और पुनर्वास पर एसओपी और बंधुआ मजदूर (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 और भारतीय दंड संहिता और भारत के संविधान के अनुसार अस्थायी आश्रय गृह में दर्ज किया जाना चाहिए, जहां वे रह रहे हैं।
  2. अर्जित मजदूरी की वसूली, मुख्य नियोक्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और श्रम निरीक्षक श्री धनराज और श्री रामफल की जांच कर कानूनी कार्रवाई की जाए।
  3. कोई अन्य राहत जो 53 बचाए गए बंधुआ मजदूरों की सुरक्षा, सम्मान और जीवन के अधिकार को बनाए रखने के लिए उपयुक्त और आवश्यक हो।

बंधुआ मजदूरों को न्याय मिल सके इसलिए नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बोंडेड लेबर के संयोजक निर्मल गौराना द्वारा एक और पत्र राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को लिखा गया। इस पत्र में 17/05/2024 तारीख अंकित है। पत्र में उल्लेख किया गया है कि, इस आयोग (मानवाधिकार आयोग) द्वारा दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश के बावजूद केस संख्या 690/7/3/2024-बीएल में कोई कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है। इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। मैं आपको बहुत तनाव और चिंता में लिख रहा हूं क्योंकि 58 मज़दूर अपने नाबालिग बच्चों सहित परिवारों के साथ दिल्ली में बिना किसी उचित आश्रय के रह रहे हैं। इस आयोग के आदेशों के बावजूद, आज तक कोई कार्रवाई, रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है और मज़दूरों से उनके बयानों को फिर से दर्ज करने के लिए संपर्क भी नहीं किया गया है।

जिला मजिस्ट्रेट/उपायुक्त, फरीदाबाद, हरियाणा ने भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय की मानक संचालन प्रक्रिया के अनुसार इस मामले में इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत शिकायत की जांच नहीं की है। पत्र में आगे उल्लेख किया गया कि, प्रवासी मजदूरों को अभी तक अपना सामान नहीं मिला है और वे दिल्ली के निजामुद्दीन शेल्टर होम के बाहर रह रहे हैं। उनके भोजन और राशन की व्यवस्था विभिन्न गैर सरकारी संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा योगदान के रूप में की जा रही है। वर्तमान में उनके पास भोजन और आश्रय की सुविधा नहीं है। ये मजदूर अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं, जिनमें गरीब और कुपोषित शिशु और नाबालिग शामिल हैं। मजदूर काम की तलाश में हैं। लेकिन अभी तक उन्हें ऐसा कुछ नहीं मिला है जो उनके लिए पर्याप्त हो। इसके आलावा श्रमिक पूरी तरह से खुले में रह रहे हैं। उन्हें मच्छरों के काटने, खुले मे घूमने से अपहरण, यौन उत्पीड़न का खतरा है।

आगे पत्र में प्रार्थना सहित कुछ मांगे लिखी गयी। जो‌ मांगें क्रमशः इस प्रकार हैं:-

  1. कृपया बंधुआ मजदूरों के बयान दर्ज करने के लिए तुरंत एक टीम का गठन करें और समयबद्ध तरीके से मामले की जांच करें।
  2. बंधुआ मजदूरों को अस्थायी आश्रय, भोजन, सुरक्षा प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दें।
  3. डीसी को तुरंत कार्रवाई करने के लिए अनुस्मारक नोटिस जारी करें।
  4. बर्तन, बिस्तर, उपकरण आदि की तत्काल आधार पर वसूली करें।

हमने बंधुआ बनाये गये पीड़ित मजदूरों की स्थिति का जायजा लिया और मजदूरों से उनकी आप बीती पर संवाद भी किया। इस बातचीत में बंधुआ मजदूर रहे चंद्रवीर बताते हैं कि, हम छत्तीसगढ़ राज्य के निवासी हैं। हम ईट बनाने का काम करते हैं। दो साल ईट बनवाने के लिए हमें दिल्ली से सटे फरीदाबाद लाया गया गया। तब से हम पति- पत्नी ईंट बनाने का काम कर रहे थे। हम दोनों को माह में केवल 5000 रुपए दिया जाता था। हमारे साथ काम में पैसे का सही हिसाब-किताब नहीं किया गया। हमसे और हमारे बच्चों तक से जबरन ईट का काम कराया जाता था। ईट बनवाने के काम में 13 परिवारों का पैसा फंसा है।

चंद्रवीर आगे आपना‌ दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि, जब से हमें रेस्क्यू कराया गया है, तब से हम हजरत निजामुद्दीन स्टेशन के पास एक रैनबसेरा में रह रहे हैं। जहां ढंग की कोई व्यवस्था नहीं हैं। अब हमारी हालात भीख मांगने जैसी हो गई है। रैनबसेरा के पास से गुजरने वाले लोगों से हम खाना मांगते हैं। कोई हमें खाना दे देता है तो कोई नहीं भी देता। आगे चंद्रवीर कहते हैं कि, हमारे काम का पैसा ना मिलने से हमें बहुत परेशानी हो रही है। हम दूसरे व्यक्ति से थोड़ा-बहुत कर्ज भी लिए हैं। सोच रहे थे यहां से काम का पैसा लेकर जाएंगें तब कर्ज चुकता कर देंगें। हमे उम्मीद थी कि, काम का पैसा मिलेगा तब परिवार वालों के लिए कपड़े और समान लेकर जाएंगे। लेकिन, हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया।

चंद्रवीर यह दावा भी करते हैं कि, पहले छत्तीसगढ़ से 200 ईंट मजदूरों को फरीदाबाद लाया गया था, जिसमें से 20 प्रतिशत मजदूर वापिस चले गए थे। आगे हम बात करते हैं मजदूर मनोहर लाल से। वह कहते हैं कि, हमारे परिवार में पति-पत्नी और एक बच्चा है। हमें हमारे गांव में फोन-पे के माध्यम से पैसा दिया गया था। तब हम ईंट का काम करने फरीदाबाद आये। यहां कुछ दिन काम किया। उसके बाद हमें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया गया।

हालत यह थी कि, जब हम बीमार होते थे, तब भी हमे काम के लिए कहा जाता था। बाजार जाते वक्त हम काम छोड़ कर भाग ना जाएं इसलिए हमारे पीछे आदमी लगाए जाते थे। मनोहर लाल कहते हैं कि, ईट का काम करने के दौरान हमें कोई सुविधा नहीं दी जाती थी। पीने के लिए साफ पानी भी नहीं दिया जाता है। हमारे साथ मार-पीट भी की जाती थी।

हमारी जाति पर भी उंगली उठाई जाती थी, यह कहा जाता था कि, तुम दलित हो इसलिए तुम्हें कोई सुविधा नहीं दी जाएगी। इसके बाद मनोहर लाल कहते हैं कि, हमारा सामान भी मालिक के पास ही है। गुंडागर्दी के चलते हमारी इतनी हिम्मत नहीं थी कि कपड़े, बर्तन जैसा अन्य सामान साथ ला पाएं। बड़ी मुश्किल से हमें अधिकारियों और कर्मचारियों ने बंधुआ मजदूरी से छुड़वाया। छुड़वाए गए मजदूर में से कुछ मजदूर अपने घर चले गए हैं और 27 मजदूर रैनबसेरा में दयनीय हालात में रह रहे हैं। रैनबसेरा में खाना भी हमें ढंग का और भरपेट नहीं मिल पाता है। मनोहर लाल का दावा है कि, हम कुल 53 मजदूर हैं। जिनके काम का पैसा नहीं दिया और हमें प्रताड़ित किया गया।

मजदूर खोलबहेरा कहते हैं कि, हम जहां ईट बनाने का काम कर रहे थे वहां के हालात इतने खराब थे कि, बिजली तक की व्यवस्था तक नहीं थी। हमारे साथ बहुत ज़्यादती की गयी। हमें रैनबसेरा में रहते हुए एक माह तीन दिन हो चुका हैं। मगर, हमें न्याय नहीं मिला। हमारी आंखे न्याय का इंतजार कर रही हैं।

अमरबाई बताती हैं कि, हमने 2 साल ईंट बनाने का काम किया है। हर दिन हम 2000 से लेकर 2500 तक ईट बनाते थे। जब हम बोलते थे कि, हमें घर जाना है। अपने परिवार के पास जाना है। तब हमें जाने नहीं दिया जाता था।

अमरबाई आगे बताती हैं कि, हमारे ससुर ने 15000 रुपए कर्ज लिया था मालिक से। तब हम पति-पत्नी कर्ज चुकाने के लिए आए और ईंट का काम करने लगे। दो वर्ष काम करने के बाद भी हमें बताया गया कि, आपका कर्ज नहीं चुका है। हमें छत्तीसगढ़ से 560 रुपये दैनिक मजदूरी बोलकर लाया गया था। मगर, इतना पैसा दिया गया, जितने में खाना खाकर जिन्दा रह‌ सकें। पैसे की कमी से हमारी हालत यह है कि, हम बच्चों को भी स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं।

सोनी‌ बाई कहती हैं कि, हमारी मेहनत की कमाई नहीं मिलने से हम सब चिंता में हैं। चिंता यह भी है कि, खाली हाथ घर चले गये, तब घर वालों को क्या बताएंगे? जब हम मालिक से पैसा मांगते हैं, तब हमें मार-पीट की धमकियां मिलती हैं। अगर, हमारा सामान और पैसा मिल जाये। तब हमें न्याय मिल पायेगा और‌ हम सुकून से घर चले जायेंगे।

चैतराम, मजदूर

प्रेम बाई काम के वक्त का अपना दुख सुनाते हुए कहतीं हैं कि, सुबह तीन बजे हम उठते थे और काम पर जाते थे। काम करते-करते शाम के आठ बज जाते थे। आज तक जिंदगी में ऐसा दिन नहीं देखा कि, हमसे काम लिया गया और पैसा भी नहीं दिया गया। साथ में हमें प्रताड़ित किया गया। जब हमें सामाजिक कार्यकर्ताओं ने छुड़वाया। तब राहत की सांस मिली‌। मगर, काम का पैसा ना मिलने का दर्द हमारा घाव बढ़ाता जा रहा है। काम का पैसा कब मिलेगा?

प्रेमाबाई, मजदूर

बंधुआ मजदूरों से संबंधित जब हम आंकड़ों की तरफ रुख करते हैं तब हमें ज्ञात होता है कि, हिंदू बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1978 से 31 जनवरी 2023 तक कुल 2,96,305 बंधुआ मजदूरों का पुनर्वास किया गया है। जबकि, 3,15,302 बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया गया है। वहीं, वॉक फ्री के वैश्विक गुलामी सूचकांक के मुताबिक, भारत में 11,050,000 करोड़ लोग‌ आधुनिक गुलामी, बंधुआ अन्य की स्थिति में जीवन जी रहे हैं।

जुलाई 2016 में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा संसद में बताया गया कि, वर्ष 2030 तक 1.84 करोड़ बंधुआ मजदूरों की पहचान और उनका पुनर्वास करेंगे। कम से कम 12 लाख बंधुआ मजदूरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वार्षिक बजट में वृद्धि करेंगे। नए बंधुआ मजदूरों के निर्माण को रोकने के लिए अभियोजन तंत्र को मजबूत करगें। जैसे कई महत्वपूर्ण बिंदु शामिल थे। आगे उल्लेख किया गया कि, 2,82,429 बंधुआ मजदूर रिहा और पुनर्वासित किये गये हैं। इन बंधुआ मजदूरों में ज्यादातर तमिलनाडु के 65,573, कर्नाटक के 58,348, उड़ीसा के 47,313,‌ उत्तर प्रदेश के 37,788, आंध्रप्रदेश के 31,687, बिहार के 14,577 और मध्यप्रदेश के 14,577 बंधुआ मजदूर शामिल थे।

बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 के अधिनियमन के साथ 25.10.1975 से पूरे देश में बंधुआ मजदूरी प्रणाली समाप्त हो गई है। इसने एकतरफा रूप से सभी बंधुआ मजदूरों को बंधन से मुक्त कर दिया और साथ ही उनके कर्जों का परिसमापन भी कर दिया। इसने बंधुआ मजदूरी की प्रथा को कानून द्वारा दंडनीय संज्ञेय अपराध बना दिया।

सन् 1978 में बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना शुरू की। बंधुआ मजदूर के पुनर्वास हेतु 4000/- रुपये की सहायता का प्रावधान था। वहीं, बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना-2021 को लागू किया गया। इस योजना के तहत मुक्त कराए गए बंधुआ मजदूर के पुनर्वास के लिए वित्तीय सहायता प्रति वयस्क पुरुष लाभार्थी एक लाख रुपये है।

विशेष श्रेणी के तहत दो‌ लाख रुपए और बंधुआ या बालात् के मामले में तीन‌ लाख रुपए का प्रावधान है। इस योजना में संवेदनशील जिलों के लिए प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार बंधुआ मजदूरों का सर्वेक्षण करने के लिए प्रति जिला 4.50 लाख रुपये का प्रावधान है। वहीं, मूल्यांकन अध्ययनों के लिए 1.50 लाख रुपये (प्रति वर्ष अधिकतम पांच मूल्यांकन अध्ययन) तथा जागरूकता सृजन के लिए प्रति राज्य 10 लाख रुपये प्रति वर्ष की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

जिला प्रशासन द्वारा बचाए गए बंधुआ मजदूर को 30,000/- रुपये तक की तत्काल नकद सहायता प्रदान की जा सकती है। इस योजना में प्रत्येक राज्य द्वारा जिला स्तर पर एक बंधुआ मजदूर पुनर्वास कोष के निर्माण का प्रावधान है। जिसमें जिला मजिस्ट्रेट के पास कम से कम 10 लाख रुपए की स्थायी निधि होगी। जिसे मुक्त कराए गए बंधुआ मजदूरों को तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए नवीनीकृत किया जा सकेगा। लेकिन, आपको आगाह कर दें कि, फरीदाबाद से रेस्क्यू कराये गये बंधुआ मजदूर अब भी रैन-बसेरा में रह रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि, हमें किसी तरह का कोई आर्थिक सहयोग, सुरक्षा प्रदान नहीं की गयी है। हम न्याय की उम्मीद लगाये रैन-बसेरा में पड़े हुए हैं।

चिंतनीय है कि, बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गये मजदूरों को कब उनके काम का पैसा मिलेगा? कब उनके साथ न्याय होगा? मजदूरों की स्थिति शासन-प्रशासन के सामने है। यदि मजदूरों के साथ न्याय नहीं हुआ, तब उनकी हाल‌त और भी दयनीय हो जायेगी। जिससे मजदूर न्याय की गुहार लगाते रहेंगे।

(सतीश भारतीय स्वतंत्र पत्रकार है।)

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