झारखंड। सरकार द्वारा भुइंहर मुंडा को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की अनुशंसा को केंद्र सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने खारिज कर आदिवासियों (अनुसूचित जनजाति) की सूची में शामिल करने से इनकार कर दिया है। इतना ही नहीं, मंत्रालय ने झारखंड की इस आदिवासी ‘भुइंहर मुंडा’ को ‘बाभन’ मानते हुए भूमिहार जाति का अपभ्रंश माना है।
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने राज्य सरकार की अनुशंसा को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया है कि इसमें भुइंहर मुंडा जाति के मूल और समकालीन जनजातीय विशेषताओं के साथ अन्य बिंदुओं का उल्लेख नहीं किया गया है। इससे संबंधित सूचना भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने 20 मार्च 2023 को राज्य सरकार को भेज दी है।
अक्टूबर 2022 में झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं झारखंड सरकार समन्वय समिति के सदस्य बंधु तिर्की ने अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा को पत्र लिखकर राज्य के गुमला, लातेहार, पलामू तथा गढ़वा जिले के भुइंहर मुंडा समुदाय को अनुसूचित जनजाति में अधिसूचित करने की मांग की थी।
उन्होंने इसके साथ ही पत्र में कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग के पत्रांक-6846, दिनांक-29.12.2020 के आलोक में डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान द्वारा दिए गए पत्रांक-237, दिनांक- 25.08.2021 के प्रतिवेदन का भी उल्लेख किया था।

संस्थान के निदेशक डा.रणेन्द्र कुमार के द्वारा मामले पर स्पष्ट लघु प्रतिवेदन कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग, झारखंड सरकार के अवर सचिव को अग्रेत्तर कार्रवाई हेतु भेजकर उनके द्वारा जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार को अंतिम कार्रवाई हेतु प्रेषित किया गया था।
भुइंहर मुंडा समुदाय को झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से ही अंचल कार्यालयों से अत्यंत पिछड़ी जाति का जाति प्रमाण-पत्र निर्गत किया जाता है, जबकि अविभाजित बिहार में अनुसूचित जनजाति का प्रमाण-पत्र निर्गत किया जाता था।
SC और ST मॉडिफिकेशन लिस्ट 1956 के तहत जाति ‘मुंडा’ अनुसूचित जनजाति में अधिसूचित है और भुइंहर मुंडा उसी की उपजाति (शाखा) के रूप में अपना स्थायित्व कायम रखती है।
झारखंड सरकार ने भुइंहर मुंडा जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की अनुशंसा जनजातीय मामलों के मंत्रालय से की थी। राज्य सरकार की ओर से भेजे गये प्रस्ताव में भुइंहर मुंडा को मुंडा जनजाति की उपजाति बताया गया था। राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव के पक्ष में कई पुस्तकों सहित अन्य दस्तावेज का हवाला दिया था।

सरकार ने वर्ष 1926 में प्रकाशित बिहार और ओड़िशा जिला गजेटियर का भी हवाला दिया था। इसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि मुंडा जाति के कुछ लोग लातेहार जिले में रहते हैं। इन्हें भुइंहर मुंडा के नाम से जाना जाता है। सरकार ने गजेटियर के अलावा छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) में वर्णित तथ्यों का हवाला दिया था।
इसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि होरो जनजाति छोटानागपुर की मूल निवासी है। इस जनजाति की तीन शाखाएं हैं, जिन्हें मुंडा, संथाल और हो के नाम से जाना जाता है। इस जनजाति की भी कई उपजातियां है। इसमें बिरहोर, भुइंहर, नगेशिया, भूमिज, कोरबा इत्यादि शामिल हैं।

इसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि होरो जनजाति छोटानागपुर की मूल निवासी है। इस जनजाति की तीन शाखाएं हैं, जिन्हें मुंडा, संथाल और हो के नाम से जाना जाता है। इस जनजाति की भी कई उपजातियां है। इसमें बिरहोर, भुइंहर, नगेशिया, भूमिज, कोरबा इत्यादि शामिल हैं।
इनके कुछ वंशज दूसरे गांव में बसे हुए हैं। इन लोगों ने जंगल को काट कर जमीन तैयार कर खेती की। ऐसे गांवों को खुंटकटी या भुइंहर गांव कहा जाता है। इन तथ्यों के आधार पर राज्य सरकार ने यह कहा था कि मुंडा जाति की एक उपजाति भुइंहर मुंडा है। इसलिए इस उपजाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाना चाहिए।

जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने राज्य सरकार के इस प्रस्ताव को मंतव्य के लिए रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजेआइ) को भेजा। रजिस्ट्रार जनरल ने पूरे मामले पर विचार करने के बाद अपनी राय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेजी। जिसमें यह कहा गया कि भुइंहर व भुइंहार केंद्रीय सूची में अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) के रूप में शमिल है। मुंडा जाति अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल है। लेकिन भुइंहर मुंडा किसी सूची में शामिल नहीं है।
रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमिहार (भूइंहार) शब्द का उल्लेख पहली बार 19वीं सदी में आगरा व अवध के दस्तावेज में किया गया। भूमिहार शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है। पहला शब्द भूमि (लैंड) और दूसरा शब्द हारा (जो जमीन जब्त करता हो) है।
19 वीं सदी के अंत में भूमिहार ब्राह्मण शब्द का इस्तेमाल पुरोहित ब्राह्मण वर्ग में होने के दावे के लिए किया गया। भूमिहार शब्द का अपभ्रंश ‘बाभन’ है। रजिस्ट्रार जनरल ने राज्य सरकार के प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया।
सरकार ने भुइंहर मुंडा उप जाति के मूल (ओरिजिन), समकालीन जनजातीय विशेषताओं और एससी, एसटी, ओबीसी के मुकाबले सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का उल्लेख नहीं किया है, जबकि किसी जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए इन बिंदुओं का उल्लेख होना जरूरी है।
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजेआइ) की टिप्पणी पर भुइंहर मुंडा समुदाय के लोगों का कहना है कि भुइंहर मुण्डा झारखण्ड की किसी भी सूची में सूचीबद्ध इसलिए नहीं हैं क्योंकि यह जनजाति “मुंडा” की उपजाति है। यह मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य के अनुसूचित जनजाति की सूची में सूचीबद्ध है।

दूसरी तरफ झारखंड के ओबीसी सूची में भूमिहार सूचीबद्ध नहीं है और उसका भुइंहर या मुंडा से कोई संबंध नहीं है।
झारखंड सरकार की जाति सूची पुस्तिका में ‘भुइयार’ शब्द है जो ‘मुसहर’ जाति की उपजाति है। ठीक इसी प्रकार मुंडा की उपजाति भुइंहर मुंडा है।
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजेआइ) की टिप्पणी पर ‘केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति’ के सचिव, जेरोम जेराल्ड कुजूर एक प्रेस बयान जारी कर कहा है कि रजिस्ट्रार जेनरल ऑफ इंडिया द्वारा ‘भुइंहर मुंडा’ समुदाय को ‘बाभन’ मानते हुए अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने से इनकार करने को केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति, लातेहार-गुमला, दुर्भाग्य पूर्ण कदम मानती है।
जैसा कि सभी को मालूम है कि एकीकृत बिहार के समय में भुइंहर मुंडा अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल था। झारखंड के गठन के बाद भुइंहर मुंडा को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटा देने के बाद से भुइंहर मुंडा को अनुसूची जन जाति की सूची में शामिल कराना प्रमुख मुद्दा रहा है और इसके साथ ही भुइंहर समुदाय के आंदोलन का समर्थन करते हुए 4 मई 2017 को महामहिम राज्यपाल, झारखंड को समिति ने ज्ञापन दिया था।
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा उठाए गए सवाल पर अपना तर्क रखते हुए केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति, लातेहार-गुमला, झारखंड सरकार से अनुरोध करती है निम्न बिंदुओं पर जवाब देते हुए पुनः भुइंहर मुंडा को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का आग्रह अविलंब केंद्र सरकार से करे।
माना जाता है कि ‘भुइंहर’ शब्द की उत्पत्ति संभवत: भूमि-जोत या भूमि-स्वामित्व की विशेषता से हुई है। यह जनजाति और जाति दोनों मूल के कई अलग-अलग समुदायों द्वारा उपयोग किया जाता है। मुंडा के एक वर्ग ने जमीन-जायदाद के कब्जे के कारण उसे अपने नाम के आगे उपसर्ग के रूप में अपनाया जो अन्य जातियों से सर्वथा भिन्न है।
सर एच.एच रिजले ने अपनी किताब द ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ बंगाल, एथनोग्राफिक ग्लोसरी खंड 1 पृष्ठ 105 में उल्लेख किया है कि भुइंहर मुंडा छोटानागपुर में मुंडाओं का एक उपसमूह है। जिसका भूमिहार या बाभन से कोई संबंध नहीं है।
भुइंहर मुंडा समुदाय विकसित वर्ग नहीं है, क्योंकि उनकी वर्तमान स्थिति अत्यन्त दयनीय है। ये अपनी परंपरा के आधार पर अपने आदिवासी संबंधों को बरकरार रखे हुए हैं। अपने व अन्य जनजातीय समुदाय में विवाह संबंध जारी है।
यह जरूर है कि ये अपनी भाषा ‘मुंडारी’ नहीं बोल पाते हैं, जिसका मूल कारण बहु स्थान परिवर्तन व अन्य जनजातियों और जातियों की भाषा का प्रभाव रहा है। जबकि ये अन्य जनजातीय भाषा और स्थानीय बोली को बोल व समझ सकते हैं।

राज्य के खूंटी जिला से पूरब मुंडा की जोत-कोड़ यानी जमीन पर अधिकार को खुंटकट्टी क्षेत्र और पश्चिम के क्षेत्र भुइंहरी क्षेत्र कहलाता हैं। जिसके तहत जमीन-जायदाद पर संयुक्त स्वामित्व प्राप्त है।
खुंटकट्टी’ प्रणाली आदिवासी वंश द्वारा संयुक्त स्वामित्व या भूमि का स्वामित्व है। मुंडा आदिवासी आमतौर पर जंगलों को साफ करते थे और भूमि को खेती के लिए उपयुक्त बनाते थे, जो तब पूरे कबीले के स्वामित्व में होता था, न कि किसी विशेष व्यक्ति का। जैसा कि आज भी लगभग प्रचलन में है।
भुइंहरी मुंडा भी जब वर्तमान पलामू प्रमंडल में जाकर बसे तो उन्होंने जंगलों की कटाई-सफाई कर खेती शुरू की जो सामूहिक होती थी।
भुइंहरी मुंडा समुदाय के इन लोगों की अपनी विशिष्ट संस्कृति है। राति-रिवाज, भाषा, गोत्र चिह्न, जन्म-मरण संस्कार, विवाह संस्कार, पर्व-त्योहार, पूजा-पाठ व रस्म आदयगी जनजातीय समुदाय से मिलता-जुलता है।
किन्तु गैर जनजातीय समुदायों से सर्वथा पृथक रहा है। इनमें छुआ-छूत, ऊंच-नीच की भावना नहीं है। उनका अन्य समुदाय (गैर आदिवासियों) के साथ सम्पर्क में संकोच साफ दिखता है, किन्तु उनका आचार-व्यवहार सरल, शर्मिला ईमानदारी एवं सत्यवादिता से पूर्ण है।
इस समुदाय का मुख्य पेशा कृषि है, जिसपर उनका जीवन पूर्णतः आश्रित है। किन्तु मानसून आधारित अनियमित वर्षा या जलवायु परिवर्तन से वर्षा की अनिश्चिता के कारण खेती या फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ता रहा है। जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है। कृषि के अलावे पशु-पालन में भी पीछे नहीं हैं।
कृषि कार्य के लिए आज भी ये लोग बैलों का सहयोग लेते हैं। क्योंकि इनकी आर्थिक स्थिति की कमजोरी और कृषि तकनीक की अज्ञानता के कारण कृषि कार्य में भी काफी पीछे हैं। ये लोग बकरी, सुअर, मुर्गी आदि का पालन करते हैं, जिनकी बिक्री के साथ साथ उनके मांस प्रयोग खुद के लिए भी करते हैं।
वहीं उन्नत कृषि साधन, बीज, उर्वरक आदि के प्रयोग में अनभिज्ञता के कारण ये कृषि में भी पिछड़े हैं। सही रख-रखाव व दवाइयों के प्रयोग में कमी के कारण अन्य पशु-पक्षी भी मर जाते हैं। इन्हीं सब कारणों से ये आर्थिक रूप से आज भी काफी विपन्न हैं।

लातेहार जिला अंतर्गत महुआडांड़ प्रखंड के चम्पा गांव निवासी भुइंहर मुंडा समुदाय के सामाजिक कार्यकर्त्ता सोहराई मुंडा और ग्राम सोहर निवासी धन कुंवर मुंडा कहते हैं कि केंद्र सरकार के इस रवैए से हमलोगों के बीच आज एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। एक तो हमारा समाज पहले से ही बहुत पीछे है और आज की स्थिति में हमारे पिछड़ापन को और भी मजबूत कर दिया गया है।
वे कहते हैं कि झारखंड राज्य बनने से पहले हमलोगों के जाति प्रमाण पत्र में आदिवासी दर्ज होता था। लेकिन जैसे ही झारखंड का गठन हुआ हमलोगों को आदिवासी सूची से हटा दिया गया। जबकि मुंडा जाति के 13 उपजाति हैं, 13 उपजाति में भुइंहर पहली उपजाति है। लेकिन राज्य गठन के बाद आदिवासी सूची से भुइंहर जाति को हटा दिया गया और हमलोगों को पिछड़ा वर्ग में रख दिया गया।
क्योंकि पिछड़ा वर्ग में एक भूइहार जाति है जो मुसहर वर्ग से आता है। जबकि छत्तीसगढ़ में भुइंहर मुंडा आदिवासी सूची में शामिल है। जबकि हमलोग का धर्म सरना है। हमलोग प्रकृति की पूजा करते हैं। हमलोगों का सबसे बड़ा त्योहार सरहुल है, जो तमाम आदिवासियों का त्योहार है।
हम हरियरी मानते हैं, करम पूजा करते हैं। सोहराय मुंडा कहते हैं कि हमलोग ब्राह्मणों से कोई भी पूजा अन्य सामाजिक संस्कार नहीं कराते हैं। हम लोग तो शादी विवाह भी ‘बैगा पाहन’ से करते हैं और जन्म से लेकर मरण तक जो भी क्रिया कर्म होता है ‘बैगा पाहन’ से होता है।
(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)
FIRST OF ALL CASTE DISCRIMINATION NEVER HAPPENED, MULTIPLE FOREIGN HISTORIANS WHO VISITED INDIA IN ANCIENT TIME ACCEPTED THIS FACT SECOND THESE TRIBES GET FREE RATION, GOVT SCHEMES, FREE ELECTRICITY, FOOD GRAINS FROM THE TAXPAYERS MONEY FROM NON TRIBAL COMMUNITIES WHO EARN MONEY UNLIKE THESE TRIBES WHO’VE NO CONTRIBUTION IN ECONOMY, ILLITERATES AND DON’T ADD ANY KINDA VALUES FOR THE DEVELOPMENT OF INDIA , WHAT A STUPIDITY & NONSENSE ARGUMENTS YOU’RE GIVIN’