कांग्रेस महासचिव ने उत्तर प्रदेश में 125 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। प्रियंका गांधी ने गुरुवार को उम्मीदवारों की सूची का एलान करते हुए बताया कि पार्टी ने इनमें 50 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को उतारा है।
प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि – “सूची नया संदेश दे रही है कि यदि आपके पास अत्याचार हुआ तो आपके पास यह शक्ति है कि आप अपने हक के लिए लड़ो। आपकी लड़ाई में कांग्रेस पार्टी आपका साथ देगी। सत्ता अपने हाथ में लें। प्रियंका गांधी ने कहा, ”इस लिस्ट में कुछ महिला पत्रकार हैं। एक अभिनेत्री हैं और बाकी संघर्षशील महिलाएं हैं, जिन्होंने कांग्रेस में रहते हुए कई साल संघर्ष किया है।
उन्होंने कहा, ‘’पार्टी ने जीतने और लड़ने की क्षमता देखकर महिला उम्मीदवारों को चुना है। आज यूपी में तानाशाह सरकार है हमारी कोशिश मुद्दों को केंद्र में लाने की है। ”

फर्रुखाबाद से पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद को उम्मीदवार बनाया गया है। प्रतापगढ़ जिले की रामपुर खास सीट से अराधना मिश्रा मोना को टिकट दिया गया है। मोना कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी की बेटी हैं। वहीं शाहजहांपुर से आशा वर्कर पूनम पांडेय को मौका दिया गया है। नोएडा से पंखुड़ी पाठक को उतारा गया है। कांग्रेस से जुड़ी नई टीम में संगठन सचिव अनिल यादव को नजीमाबाद से प्रत्याशी बनाया गया है।
प्रियंका गांधी ने कहा, ”हमारी उन्नाव की प्रत्याशी उन्नाव गैंगरेप पीड़िता की मां हैं। हमने उनको मौका दिया है कि वे अपना संघर्ष जारी रखें। जिस सत्ता के जरिए उनकी बेटी के साथ अत्याचार हुआ, उनके परिवार को बर्बाद किया गया, वही सत्ता वे हासिल करें। हमने सोनभद्र नरसंहार के पीड़ितों में से एक रामराज गोंड को भी टिकट दिया है। इसी तरह आशा बहनों ने कोरोना में बहुत काम किया, लेकिन उन्हें पीटा गया। उन्हीं में से एक पूनम पांडेय को भी हमने टिकट दिया है। सदफ़ जाफ़र ने सीएए-एनआरसी के समय बहुत संघर्ष किया था। सरकार ने उनका फोटो पोस्टर में छपवाकर उन्हें प्रताड़ित किया। मेरा संदेश है कि अगर आपके साथ अत्याचार हुआ तो आप अपने हक़ के लिए लड़ें। कांग्रेस ऐसी महिलाओं के साथ है।”

नेताओं के कांग्रेस छोड़ने के सवाल पर प्रियंका गांधी ने कहा, ‘’ये हर चुनाव में होता है। कुछ लोग आते हैं, कुछ लोग जाते हैं। कुछ घबरा जाते हैं। हमारे संघर्ष के लिए हिम्मत की जरूरत है। किसी के जाने से दुख तो होता ही है। ’’
उन्होंने कहा कि नई ऊर्जा, युवा ऊर्जा, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय की बुलंद आवाज़ के प्रतीक हैं हमारे प्रत्याशी। शाहजहाँपुर की वो आशा बहन हमारी प्रत्याशी है जो मुख्यमंत्री की सभा में अपना हक़ माँगने पहुँची तो उसको पीट-पीट कर उसका हाथ तोड़ दिया गया, लेकिन उनकी आवाज़ नहीं दबा सके
लखीमपुर की वो जनप्रतिनिधि हमारी प्रत्याशी हैं जिसने भाजपा के ख़िलाफ़ ब्लॉक प्रमुख का चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटाई तो भाजपा वालों ने उसका चीरहरण किया, लेकिन उसका मनोबल नहीं गिरा पाए। लखनऊ की वो महिला हमारी प्रत्याशी हैं जिनको नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज कराने के चलते प्रताड़ित किया गया, लेकिन वो फिर भी सच्चाई के साथ डटी रहीं।
उन्होंने कहा कि हमारी लिस्ट में 40% महिलाएँ (125 में से 50 महिलाओं को टिकट) युवाओं की संख्या भी लगभग 40% है।

प्रत्याशियों की संघर्ष की कहानियाँ:
आशा सिंह
उन्नाव में अपनी बेटी के बलात्कार के बाद सत्ताधारी भाजपा के विधायक के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी, उनके पति की हत्या तक कर दी गई
रितु सिंह
ब्लॉक प्रमुख चुनावों में भाजपा की हिंसा
रितु सिंह को कैसे चुनाव लड़ने से रोका गया
उनके कपड़े फाड़े गए
रामराज गोंड
उम्भा में दबंगों द्वारा आदिवासियों का नरसंहार पूरे देश ने देखा
योगी सरकार ने न्याय देने के लिए कुछ नहीं किया
आदिवासियों के संघर्ष की मज़बूत आवाज़ बनकर उभरे
पूनम पांडेय
आशा बहनें कोरोना के समय उत्तरप्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की जान थीं। उन्होंने अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना लगकर अपनी ड्यूटी दी। जब आशा बहनें मुख्यमंत्री की शाहजहाँपुर में अपना मानदेय बढ़ाने की माँग लेकर पहुँची उसमें पूनम पांडेय समेत सभी आशा बहनों को निर्ममता से पीटा गया। पूनम पांडेय न्याय की वो आवाज़ हैं जिन्होंने सम्मानजनक मानदेय की लड़ाई छोड़ी नहीं।
पूरे प्रदेश की आशा बहनों की आवाज़

सदफ जफ़र
नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों के दौरान सदफ पर झूठे मुक़दमे लगाए गए
पुरुष पुलिस ने उन्हें पीटा
उनके बच्चों से अलग करके उनको जेल में डाला गया
सदफ सच्चाई के साथ डटी रहीं
अल्पना निषाद
नदियाँ निषादों की जीवनरेखा हैं। नदियों और उनके संसाधन पर निषादों का हक़ होता है।
बसवार, प्रयागराज में बड़े खनन मफ़ियाओं के दबाव के चलते निषादों को नदियों से बालू निकालने के लिए भाजपा सरकार की पुलिस ने पीटा
निषादों की नावें जलाई गईं
अल्पना निषाद निषादों के हक़ों के संघर्ष की आवाज़ बनीं
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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