केंद्र की नीतियों के खिलाफ कारपोरेट में उभरा विक्षोभ, गोदरेज ने कहा-असहिष्णुता और नफरती हिंसा से प्रभावित हो रही है अर्थव्यवस्था

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नई दिल्ली। गोदरेज समूह के चेयरमैन और प्रमुख उद्योगपित आदि गोदरोज ने कहा है कि बढ़ती असहिष्णुता, नफरती हिंसा और मोरल पुलिसिंग देश की आर्थिक प्रगति को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती हैं। उन्होंने ये बातें सेंट जेवियर्स कालेज की 150वीं वार्षिक जयंती के मौके पर आयोजित लीडरशिप समिट में कही।

भारत को दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था और पीएम मोदी के हाल में इसे 5 ट्रिलियन इकोनामी में तब्दील करने के लक्ष्य के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि “लेकिन ग्रोथ विजन और सपनों को अलग कर दिया जाए तो अभी तक कोई खूबसूरत तस्वीर नहीं उभरी है। किसी को देश में भीषण रूप से फैली विपन्नता की तरफ से अभी भी अपनी नजर नहीं हटानी चाहिए। जो शांतिपूर्ण तरीके से आगे की दिशा में बढ़ने वाले रास्ते को गहरी चोट पहुंचा सकता है।”

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक उन्होंने कहा कि “पिछले चार दशकों के मुकाबले इस साल सबसे ज्यादा 6.1 फीसदी की बेरोजगारी की वृद्धि दर रही है। यह न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। बढ़ती असहिष्णुता, सामाजिक अस्थिरता, नफरती हिंसा, महिलाओं के विरुद्ध अपराध, मोरल पुलिसिंग, जाति और धर्म आधारित हिंसा और बहुत सारी दूसरी किस्म की असहिष्णुताओं की बाढ़ आ गयी है।”

हालांकि इस मौके पर गोदरेज ने मोदी को एक शानदार विजन देने के लिए धन्यवाद भी दिया। जिसमें मोदी का अगले पांच सालों में अर्थव्यवस्था को दुगुना कर उसे 5 ट्रिलियन करने का सपना शामिल है।

इसी तरह से गोदरेज पहले कारपोरेट थे जिन्होंने मोदी के पहले कार्यकाल में अपनी जुबान खोली थी। जब उन्होंने 2016 में कहा था कि कुछ राज्यों में बीफ पर पाबंदी अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा रही है। उन्होंने कहा था कि “कुछ चीजें विकास को प्रभावित कर रही हैं उदाहरण के लिए कुछ राज्यों में बीफ पर पाबंदी। आप इन गैरजरूरी गायों का क्या कर रहे हैं? यह भी व्यवसाय को प्रभावित कर रहा है। क्योंकि यह बहुत सारे किसानों के लिए आय का अच्छा स्रोत था। इसलिए यह नकारात्मक है।”

उन्होंने कहा था कि “पाबंदी अर्थव्यवस्था के लिए बुरी बात है। यह सामाजिक ढांचे और शराब के लिहाज से भी बुरा है। यह बुरी शराब को बढ़ाता है और फिर माफिया को आगे बढ़ाने का काम करता है। पूरी दुनिया में यह नाकाम रहा है। अमेरिका में यह असफल रहा है। भारत में हमने पाबंदी लगाने की कोशिश की लेकिन हम नाकाम रहे।”

शनिवार को गोदरेज ने कहा कि भीषण स्तर पर पानी और हवा का प्रदूषण, अंधाधुंध औद्योगीकरण, जल संकट, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल और उभरती अर्थव्यवस्था के विरादराना क्षेत्रों के बीच स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे कम खर्च होने के चलते चरमराती मेडिकल सुविधाएं आदि दूसरे कई सवाल हैं जिनको युद्ध स्तर पर हल किए जाने की जरूरत है।

इस मौके पर इंफोसिस के चेयरमैन नरायन मूर्ति, उनकी पत्नी सुधा मूर्ति, आर्चिड होटल फाउंडर विट्ठल कामत, थर्मैक्स की पूर्व चेयरपर्सन अनु आगा, टेक फार इंडिया के सीईओ शाहीन मिस्त्री, टाइटेनियम इंडस्ट्री के एमडी वसंत कीनी आदि लोग मौजूद थे।

इस मौके पर योजना आयोग के पूर्व डिप्टी चेयरमैन मानटेक सिंह अहलूवालिया ने सरकार के स्तर पर डाटा के साथ होने वाले छेड़छाड़ का सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि आधिकारिक डाटा की गुणवत्ता के सवाल को सरकार को हल करना होगा। और सरकार द्वारा इसका विश्सनीय जवाब देने के जरिये ही इसे हल किया जा सकता है। वह पिछले महीने पूर्व सीईए अरविंद सुब्रमण्यम के रिसर्च पेपर में भारत की जीडीपी के आंकड़ों को लेकर उठाए गए सवालों का हवाला दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि समावेशी होने का मतलब है कि उसका लाभ भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को मिले। अहलूवालिया ने कहा कि “यूपीए के शासन के दौरान पहले सात सालों के दौरान औसत वृद्धि दर 8.5 फीसदी थी….आखिरी तीन सालों में इसमें गिरावट दर्ज की गयी। दुनिया में मंदी आयी थी लेकिन हमने दुनिया के मुकाबले अच्छा किया। लेकिन कभी भी अर्थव्यवस्था 7.5 से नीचे नहीं आयी। इसी दौरान ऐसा देखा गया कि डाटा की गुणवत्ता में नाटकीय रूप से गिरावट दर्ज की गयी। हम उस तरह से आगे नहीं बढ़ सके जिससे गुणवत्ता परक बुनियादी सुविधाओं को मुहैया कराया जा सके। बच्चों की स्कूलों में संख्या बढ़ी। स्कूलों में उनकी मौजूदगी का अंतराल बढ़ा। लेकिन उनके सीखने के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ।”

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