तमिलनाडु के पीयूष मानुष किसान हैं। पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी हमारे सामने रखी है। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में ज़रूरी कागजात भी पेश किए हैं।
पीयूष मानुष कहते हैं कि रिलायंस की कंपनी किसानों के कर्ज खरीद रही है। इसे ठीक से समझ लीजिए। किसानों ने बैंकों से कर्ज लिया। रिलायंस ने उन बैंकों को पैसा देकर किसानों का वह कर्ज़ खरीद लिया। अब किसान रिलायंस के कर्जदार हो गए! अगर रिलायंस चाहे तो उनकी ज़मीनों पर कब्जा कर सकती है। यही तो पूरा खेल है।
किसान यही तो कह रहा है कि मोदी सरकार जो कान्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट लाई है, वह किसानों की ज़मीनों पर कब्जा करने का इन बड़ी कंपनियों का षड्यंत्र है। हम वर्षों से इस खेल को समझ रहे हैं और बोल रहे हैं, चाहे वह बस्तर की ज़मीन हो, चाहे हरियाणा, पंजाब, यूपी या मध्य प्रदेश की।
जमीन के एक-एक इंच पर पूंजीपति की नज़र है। मैं 20 साल से यह बात हर जगह जाकर बोल रहा हूं। लोग मेरी हंसी उड़ाते थे और कहते थे बस्तर के अनुभव को हर जगह थोपना चाहता है।
मैं फिर कह रहा हूं…..अगर आज आप नहीं लड़े तो आप की ज़मीन, आपका खेत, आपकी नदी, आपका पहाड़, आपका जंगल, आपका घर, आपका पानी, आप की बिजली, आपकी सरकार, आपका स्कूल, आपका अस्पताल, आप की सड़क हर चीज़ पूंजीपति हड़प लेगा।
आप सड़क पर चलने का पूंजीपति को टोल देंगे। आपका बच्चा पढ़ेगा तो उसमें से पूंजीपति मुनाफा कमाएगा। आप बल्ब जलाएंगे पूंजीपति को पैसा जाएगा। आप पानी लेंगे उसमें पूंजीपति को मुनाफा मिलेगा।
भारत के राजनेता पूरी तरह बिके हुए, गिरे हुए, भ्रष्ट, चरित्रहीन, बेईमान और दुष्ट हैं। ये लोग पूंजीपतियों के नौकर हैं। आप यह बिल्कुल उम्मीद मत करिए कि ये आपके बारे में एक पल भी सोचेंगे।
आपके लिए चिंता की खबर यह है कि अब आप को बचाने वाला कोई नहीं बचा है। न सुप्रीम कोर्ट, न संसद, न पुलिस। अब अगर आपको कोई बचा सकता है तो खुद आप। जो लड़ेगा वह बचेगा।

आपका जीवन एक बहुत बड़ी मुसीबत में है और आपके बच्चों की जिन्दगी और भी ज्यादा बदतर होगी। आप लड़ेंगे तो आपकी भी जिन्दगी बदलेगी। बच्चों का भविष्य भी बच सकता है।
पीयूष मानुष की पोस्ट का एक अंश:
दिसंबर, 2015 में सत्यमंगलम के एक किसान थिरू मूर्ति को करूर वैश्य बैंक की तरफ से एक नोटिस आया जिसमें लिखा गया था कि उनको दिए गए ऋण को मुंबई के चर्चगेट में स्थित रिलायंस असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड को ट्रांसफर कर दिया गया है।
निश्चित तौर पर इससे अफतातफरी मच गयी और इससे संबंधित जो भी मामला था उन्होंने उसे फेसबुक पर पोस्ट किया। किसानों और ग्रामीण भारत की संपत्ति पर कब्जे की कारपोरेट की मंशा बिल्कुल स्थापित सच है। और इसके लिए वह कई तरीके से कोशिशें करता रहा है। जिसमें औद्योगीकरण के नाम पर भूमि अधिग्रहण जैसे कई तरीके अपनाए जाते रहे हैं। उद्योगों की स्थापना और रोजगार पैदा करने की आड़ में पिछले कुछ दशकों में टीएन सिपकाट ने भारी मात्रा में जमीन का बैंक इकट्ठा किया है। बगैर इस्तेमाल की हुई उसके पास लाखों-करोड़ों रुपये की जमीन है। सरकारों द्वारा देश के पैमाने पर खड़ी की गयी इस तरह की सैकड़ों कंपनियों में यह सिर्फ एक है।
ग्रामीण संपत्तियों के सीधे अधिग्रहण की भी कई सामुदायिक योजनाएं बेहद सफलतापूर्वक संचालित की जा रही हैं। ओडिशा में पास्को खेती वाली 12 हजार एकड़ भूमि पर स्टील प्लांट बैठाने का असफल प्रयास कर ही चुकी है। धनकिया पंचायत ने एक पूरे द्शक के लिए प्रशासन को लगभग बाहर कर दिया था। तब के कलेक्टर ने अब जिंदल स्टील में सीईओ के तौर पर ज्वाइन किया है। और तब का भूमि अधिग्रहण अफसर इस समय वहां का जिला मजिस्ट्रेट बन गया है। और अब सभी मिलकर जिंदल के लिए उसी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में लग गए हैं।
कारपोरेट की सेवा की राज्य की मंशा को और साफ करने के लिए अब किसी व्याख्या की जरूरत नहीं है। अगर आप आज भी विश्वास करते हैं कि सरकारें जनता की सेवा करने की कोशिश कर रही हैं और कारपोरेट की नहीं तब कोई भी आपकी मदद नहीं कर सकता है।
नया कृषि कानून कैसे कारपोरेट के हाथ में शिकार का एक पुख्ता हथियार बन गया है। आवश्यक वस्तु सुरक्षा चली गयी, एमएसपी चली गयी। यही दोनों पहले किसानों के वित्त और बाजार के लिए बेंचमार्क स्थापित करने का काम करते थे।
कांट्रैक्ट खेती विधेयक बिचौलिये को प्रायोजक के तौर पर पेश करता है। प्रायोजक कोई भी हो सकता है वह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हो सकती है या फिर पार्टनरशिप फर्म। यहां तक कि कोई अकेला मालिक भी हो सकता है।
निश्चित तौर पर कोई भी किसान पूरा कानून नहीं लिखने जा रहा है। और न ही विस्तार से उसे कोई पढ़ने जा रहा है। जैसा कि आमतौर पर लोन लेते वक्त, इंश्योरेंस, म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय, बैंक एकाउंट खोलते समय आदि-आदि में होता है।
(हिमांशु कुमार गांधीवादी कार्यकर्ता हैं और आजकल हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।)
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