नई दिल्ली। सीपीआई एमएल ने बजट पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा है कि कोविड महामारी के बाद आये मोदी सरकार के पहले बजट में खतरनाक रूप से नीचे गिर रही अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में कोई कोशिश नहीं की गई है। न ही इसमें नौकरियां खो चुके और आय व जीवनयापन के स्तर में भारी गिरावट से परेशान लोगों के लिए कोई तात्कालिक राहत दी गई है। उल्टे इसमें संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के बोझ को जनता के कंधों पर डाल बड़े कॉरपोरेटों के लिए अकूत सम्पत्ति जमा करने के और अवसर बना दिये गये हैं।
पार्टी के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने एक बयान में कहा कि अर्थव्यवस्था में सरकारी निवेश और खर्च बढ़ाने की सख्त जरूरत है लेकिन यह बजट थोक के भाव में विनिवेश और निजीकरण की दिशा में केन्द्रित है।
उन्होंने कहा कि रोजगार सृजन, आय में बढ़ोत्तरी और आम आदमी की क्रय शक्ति में इजाफा करने की दिशा में इस बजट को केन्द्रित होना चाहिये था लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया गया है।
भारत के 100 सर्वाधिक धनी अरबपतियों की सम्पत्तियों में महामारी और लॉकडाउन के दौरान भारी बढ़ोत्तरी हो गई (लगभग 13 लाख करोड़)! लेकिन बजट इस सम्पत्ति को वैसे ही छोड़ दे रहा है, इस पर वेल्थ टैक्स या ट्रांजेक्शन टैक्स क्यों नहीं लगाया जा सकता था?
राजस्व नीति में सुधार कर अति धनाड्यों से राजस्व वसूली बढ़ाने और मध्य वर्ग को जीएसटी और आय कर में राहत देने की जगह बजट पहले की तरह ही अत्यधिक अमीरपरस्त राजस्व नीति पर चल रहा है।
उनका कहना है कि सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की किसानों की लम्बे समय से चली आ रही मांग को सरकार ने एक बार फिर खारिज कर दिया है। भारत के छोटे किसान और माइक्रोफाइनेंस कम्पनियों के कर्ज तले लोग परेशान हैं। पूरे देश में छोटे कर्जदारों के कर्जे माफ करने की मांग लगातार उठ रही है, लेकिन बजट 2021 ने इस महत्वपूर्ण मांग को नहीं माना है।
माले महासचिव ने कहा कि अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में यह बजट पूरी तरह से विफल है। इसलिए हम सरकार से मांग करते हैं कि इस बजट पर पूरे विस्तार में पुनर्विचार किया जाए। भारत की मेहनतकश जनता का हम इस बजट के विरोध में आवाज उठाने का आह्वान करते हैं।
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