पटना। भाकपा-माले के राज्यव्यापी आह्वान पर आज बिहार के विभिन्न जिलों और प्रखंडों में विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान के खिलाफ विरोध दिवस आयोजित किया गया। राजधानी पटना सहित राज्य के 100 से अधिक प्रखंड मुख्यालयों पर धरना, प्रदर्शन और प्रतिवाद मार्च का आयोजन किया गया। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि इस विशेष अभियान की आड़ में गरीब, मजदूर, युवा, महिलाएं और अल्पसंख्यकों को मतदाता सूची से बाहर करने की सुनियोजित साजिश की जा रही है।
विरोध प्रदर्शन के प्रमुख केंद्र
विरोध प्रदर्शन पटना के अलावा सासाराम, समस्तीपुर (पूसा, ताजपुर, विभूतिपुर), वैशाली (लालगंज, भगवानपुर), भोजपुर (आरा शहर, पूर्वी नवादा, तरारी), नवादा जिले के पांच ब्लॉक, सिवान, नालंदा, पूर्वी चंपारण, दाउदनगर, दरभंगा (हायघाट, बहेरी, हनुमाननगर, बहादुरपुर), बिहारशरीफ, रूपौली, पूर्णिया, बेगूसराय, गया, सिरदला और फुलवारीशरीफ समेत अनेक स्थानों पर आयोजित किए गए। इन सभी जगहों पर भारी संख्या में आम जनता और माले कार्यकर्ता शामिल हुए।
पटना में प्रतिरोध सभा
राजधानी पटना में जीपीओ गोलंबर से निकला गया आक्रोश मार्च, स्टेशन रोड होते हुए बुद्ध स्मृति पार्क पर पहुंचा, जहां एक विशाल प्रतिरोध सभा का आयोजन किया गया। इस सभा को माले पोलित ब्यूरो सदस्य का. मीना तिवारी, विधान पार्षद शशि यादव, विधायक दल के नेता का. महबूब आलम, फुलवारी विधायक गोपाल रविदास, वरिष्ठ नेता सरोज चौबे, एआइपीएफ संयोजक कमलेश शर्मा, समता राय, वंदना प्रभा आदि नेताओं ने संबोधित किया। सभा का संचालन का. रणविजय कुमार ने किया।
सभा में वक्ताओं ने कहा कि “यह विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान वास्तव में गरीबों की वोटबंदी है। जिन कागज़ातों की मांग की जा रही है, वे राज्य के अधिकांश गरीबों, मजदूरों और प्रवासी वर्ग के पास उपलब्ध नहीं हैं। उत्तर बिहार में बाढ़ की स्थिति के चलते लोग पहले से ही परेशान हैं, ऐसे में उनसे कागज़ात लाने की उम्मीद करना अन्यायपूर्ण है।”
नेताओं ने कहा कि एक समय पर चुनाव आयोग ने मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का अभियान चलाया था, और आज उसी आधार कार्ड को स्वीकृत दस्तावेज़ के रूप में नहीं माना जा रहा है। मनरेगा जॉब कार्ड, मनरेगा मस्टर रोल, जाति प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों को अमान्य करार देना गरीबों और ग्रामीणों को सामूहिक रूप से वंचित करने की साजिश है। आयोग द्वारा घोषित 11 दस्तावेजों में से 3 तो बिहार में लागू ही नहीं हैं। इससे यह सवाल उठता है कि चुनाव आयोग किसके इशारे पर काम कर रहा है?
नेताओं ने एनडीए सरकार पर भी तीखा हमला करते हुए पूछा कि:
- बीजेपी और जदयू इस जनविरोधी प्रक्रिया का समर्थन क्यों कर रहे हैं?
- अपने को दलितों का नेता कहने वाले श्री जीतनराम मांझी और श्री चिराग पासवान गरीबों की वोटबंदी पर चुप क्यों हैं, जबकि सबसे बड़ा हमला इन्हीं समुदायों के वोटिंग अधिकार पर हो रहा है?
अब तक बिहार में महज 7 प्रतिशत मतदाताओं का ही फॉर्म भरा जा सका है। इस रफ्तार से करोड़ों मतदाता प्रपत्र भरने से वंचित रह जाएंगे और उनका नाम मतदाता सूची से काट दिया जाएगा। नेताओं ने मांग की कि:
1. इस पूरी प्रक्रिया को तत्काल वापस लिया जाए।
2. आगामी विधानसभा चुनाव पुरानी मतदाता सूची के आधार पर कराए जाएं।
भाकपा-माले ने चेतावनी दी कि यदि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को वापस नहीं लेता, तो आने वाले दिनों में और भी बड़ा जन आंदोलन खड़ा किया जाएगा। 9 जुलाई को INDIA गठबंधन के आह्वान पर राज्यव्यापी चक्का जाम में भी भाकपा-माले पूरी ताकत से शामिल होगी।
इस विरोध कार्यक्रम में माले के वरिष्ठ नेता के. डी. यादव, अभ्युदय, जितेन्द्र कुमार, प्रकाश कुमार, पन्नालाल, उमेश सिंह, राजेन्द्र पटेल, रामेश्वर पासवान, रामबली प्रसाद, विनय यादव, विनय कुमार, अनिल अंशुमन, पुनीत पाठक, प्रमोद यादव, मुर्तजा अली, ग़ालिब, तापेश्वर मांझी, विभा गुप्ता, शहजादे आलम आदि सहित सैकड़ों की संख्या में माले कार्यकर्ता शामिल हुए।
(प्रेस विज्ञप्ति)