बनारस के कबीर मठ की जमीनों का कौड़ियों के दाम पर सौदा, सवालों के घेरे में महंत विवेक दास और उत्तराधिकारी प्रमोद दास…?

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वाराणसी। उत्तर प्रदेश के बनारस में स्थित कबीर मठ के महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास पर मठ की कीमती जमीनों को कौड़ियों के दाम पर बेचने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। यह विवाद कबीरचौरा में स्थित मूलगादी कबीर मठ को लेकर बढ़ता जा रहा है, जहां धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की संपत्तियों के हेरफेर ने गंभीर चिंता का विषय बना दिया है।

कबीर मठ, जो संत कबीर दास की शिक्षाओं का प्रचार करता है, धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। बनारस, कबीर की कर्मस्थली रही है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है। कबीर की विरासत की हिफाजत नहीं होने से बनारस के लोग अवाक और अचंभित हैं।

सूत्रों के अनुसार, महंत विवेक दास और प्रमोद दास ने मठ की विभिन्न संपत्तियों को अवैध तरीके से बेचा है। सक्षम न्यायालय की अनुमति के बगैर किसी सोसाइटी की जमीनों की बिक्री नहीं की जा सकती है। आरोप है कि कोर्ट में सिर्फ अर्जी देकर ये जमीनें औने-पौने दाम पर बेच दी गई हैं अथवा उनका रजिस्टर्ड सट्टा कर दिया गया है।

चंदौली के सांसद वीरेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर कबीर मठ की जमीनों को कौड़ियों के दाम पर बेचे जाने पर कड़ा एतराज जताते हुए समूचे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग उठाई है। साथ ही उन प्रापर्टी डीलरों की भूमिका की सीबीआई जांच कराने को कहा है, जो कबीर की विरासत हड़पने की कोशिश कर रहे हैं।

वीरेंद्र कहते हैं, ” कितनी अचरज की बात है कि पीएम के संसदीय क्षेत्र में कबीर की विरासत पर डाका डाला जा रहा है और प्रशासन सोया हुआ है। इस मामले को हम संसद में भी उठाएंगे। बनारस और चंदौली ही नहीं, समूचे देश में कबीर के लाखों अनुयायी हैं। इस संत की विरासत की हिफाजत के लिए हर संभव लड़ाई लड़ी जाएगी।”

बनारस शहर भर में बिखरी हुई कबीरचौरा स्थित मूलगाधी कबीर मठ की संपत्तियों को बेचने का सिलसिला कोई नया नहीं है। कुछ महीने पहले कबीर मठ के महंत विवेक दास जब एक महिला के साथ छोड़छाड़ के मामले में जेल में बंद थे, उसी समय उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने शिवपुर के मौजा कादीपुर स्थित बेशकीमती जमीन को कौड़ियों के भाव एक प्रापर्टी डीलर के नाम रजिस्टर्ड सट्टा कर दिया।

यह रजिस्टर्ड सट्टा पाटलीपुत्र रियल स्टेट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक विवेक कुमार कुशवाहा के नाम किया गया है। विवेक मूलतः गाजीपुर के निवासी हैं। वो बनारस के अशोक विहार कालोनी में रहते हैं और बाउंसरों को साथ चलते हैं।

जमीन करोड़ों की, सौदा कौड़ियों में

शिवपुर परगना के कादीपुर मौजा में श्री सद्गुरु कबीर मंदिर की करोड़ों की संपत्ति है। बिक्री अनुबंध विलेख, जिसे कभी-कभी ‘संपत्ति बिक्री अनुबंध’ कहा जाता है, संपत्ति के हस्तांतरण की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज़ है। यह अनुबंध तब निष्पादित होता है जब विक्रेता और खरीदार के बीच संपत्ति के विक्रय संबंधी सभी शर्तों पर सहमति बन जाती है।

हालांकि, इस विशेष अनुबंध का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसमें संपत्ति का वास्तविक कब्जा तुरंत हस्तांतरित नहीं किया जाता, बल्कि कुछ कानूनी औपचारिकताएं और शर्तें पूरी होने के बाद यह प्रक्रिया पूरी होती है।

वाराणसी के उप-निबंधक कार्यालय में निष्पादित किए गए इस अनुबंध के विक्रेता पक्ष के रूप में प्रमुख धार्मिक संस्था, श्री सद्गुरु कबीर मंदिर, शामिल है। यह मंदिर आचार्य महंत विवेकदास और उनके उत्तराधिकारी महंत प्रमोद दास द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है।

विक्रेता के पते के रूप में दिल्ली और वाराणसी दोनों स्थानों का उल्लेख किया गया है, जो दर्शाता है कि मंदिर की गतिविधियां कई स्थानों पर फैली हुई हैं।

विक्रेता का स्थायी पता मकान नंबर 25 एल.एस.सी., कबीर भवन, मदन गिरी, दक्षिण दिल्ली है, जबकि उनका वाराणसी का वर्तमान पता सी. 23/5सी, कबीरचौरा, वाराणसी है। इसके अलावा, उनके पैन कार्ड नंबर AAFTS3722G और संपर्क के लिए मोबाइल नंबर 9711813589 का भी उल्लेख किया गया है, जिससे किसी भी कानूनी आवश्यकता के लिए उनकी पहचान सुनिश्चित की जा सके।

महत्वपूर्ण यह है कि इस अनुबंध में विक्रेता के रूप में उल्लेखित सद्गुरु कबीर मंदिर एक धार्मिक संस्था है, जो कबीरपंथ से जुड़ी हुई है। इस संस्था का प्रबंधन और प्रतिनिधित्व प्रमुख महंत द्वारा किया जाता है, जो मंदिर की संपत्तियों के देखरेख और प्रशासनिक कार्यों के लिए जिम्मेदार होते हैं।

इस अनुबंध में महंत विवेक दास और उनके सहयोगी महंत प्रमोद दास को मंदिर के प्रतिनिधि के रूप में नामित किया गया है, जो मंदिर की संपत्ति को सीधे तौर पर बेचने के लिए सक्षम नहीं हैं। इसके लिए कोर्ट की अनुमति जरूरी है।

यह अनुबंध विलेख विशेष रूप से कब्जे के बिना है, जिसका अर्थ यह है कि इस अनुबंध के निष्पादन के तुरंत बाद संपत्ति का भौतिक कब्जा खरीदार को नहीं सौंपा जाएगा। यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जब विक्रेता और खरीदार के बीच कुछ शर्तें अभी पूरी होनी बाकी होती हैं।

ऐसे अनुबंध में आमतौर पर कब्जा तब सौंपा जाता है जब संबंधित कानूनी औपचारिकताएं पूरी हो जाती हैं या कोई वित्तीय देनदारी समाप्त हो जाती है।

अनुबंध के मुताबिक, खरीदार पक्ष के रूप में Patliputra Real Estate Pvt. Ltd. नामक एक रियल एस्टेट कंपनी शामिल है। यह कंपनी देश के विभिन्न हिस्सों में संपत्ति खरीदने और बेचने के व्यवसाय में संलग्न है। खरीदार के रूप में, यह संस्था विक्रेता की संपत्ति को अपनी कानूनी शर्तों के अनुसार खरीदने के लिए अनुबंधित है।

सिग्नेचर मैचर के रूप में पवन कुमार और इरफान अहमद के नाम उल्लेखित हैं, जिनकी जिम्मेदारी होती है कि अनुबंध पर किए गए हस्ताक्षर सही और कानूनी रूप से मान्य हों।

यह अनुबंध बिना कब्जे के है, यानी तुरंत संपत्ति का भौतिक हस्तांतरण नहीं होता। यह संपत्ति के हस्तांतरण की कानूनी प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है।

संत की जमीन के सट्टे की कहानी

दस्तावेज़ों के मुताबिक, श्री सद्गुरु कबीर मंदिर, कबीर चौरा, वाराणसी की संपत्ति से संबंधित है, जिसे प्रथम पक्ष के रूप में महंत विवेक दास द्वारा प्रबंधित किया जाता है।

दस्तावेज में संपत्ति की सीमाएं भी अंकित की गई हैं और कहा गया है कि यह संपत्ति महंत विवेक दास को उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है, और वे मंदिर के अध्यक्ष और न्यासी के रूप में इस संपत्ति के व्यवस्थापन, अनुबंध, और अंतरण का पूरा अधिकार रखते हैं।

न्यास की जरूरतों को पूरा करने के लिए संपत्ति को बेचने का निर्णय 24 फरवरी 2024 को संस्था के प्रस्ताव के आधार पर लिया गया है।

अनुबंध के अनुसार, संपत्ति की बिक्री का प्रतिफल 1,80,00,000 रुपये है, जिसमें 3,60,000 रुपये स्टाम्प शुल्क और 70,000 रुपये पंजीकरण शुल्क शामिल है। यह दस्तावेज़ 24 जून 2024 को दोपहर 04:02:51 बजे वाराणसी के उप निबंधक कार्यालय में निबंधित किया गया। इस पर निबंधक अधिकारी इरफान अहमद के हस्ताक्षर हैं।

यह अनुबंध श्री पाटलिपुत्र रियल एस्टेट प्रा. लि. के साथ संपत्ति के विक्रय से संबंधित है, जिसमें निदेशक विवेक कुमार कुशवाहा अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में शामिल हैं।

अनुबंध के तहत विक्रय की गई संपत्ति का कब्जा फिलहाल द्वितीय पक्ष (खरीदार) को नहीं दिया गया है। संपत्ति का स्वामित्व तभी हस्तांतरित किया जाएगा जब शेष धनराशि का भुगतान हो जाएगा। यदि प्रथम पक्ष (विक्रेता) इसमें चूक करता है, तो वह क्षति पूर्ति के लिए उत्तरदायी होगा।

संपत्ति एक ट्रस्ट की है, जिसके विक्रय के लिए जिला एवं सत्र न्यायालय, वाराणसी की स्वीकृति आवश्यक है, और वर्तमान में यह मामला विचाराधीन है। अभिलेख में दावा किया गया है कि संपत्ति से संबंधित पूर्व विवाद का समझौता हो चुका है, और विक्रेता ने 1.5 करोड़ रुपये की धनराशि द्वितीय पक्ष से प्राप्त कर समझौते के तहत भुगतान कर दिया है।

प्रथम पक्ष (श्री सद्गुरु कबीर मंदिर) ने अपनी 20 बिस्वा (27,200 वर्गफीट) संपत्ति को 1.8 करोड़ रुपये में बेचने का प्रस्ताव रखा। द्वितीय पक्ष (पाटलिपुत्र रियल एस्टेट) इस कीमत पर सहमत होकर संपत्ति खरीदने के लिए तैयार हो गया है।

संपत्ति पर न्यायालय में मामला विचाराधीन है और नाप-जोख की प्रक्रिया शेष है, दोनों पक्षों के बीच यह अनुबंध अस्थायी रूप से बिना कब्जा के किया गया है। द्वितीय पक्ष ने आंशिक राशि के बतौर बयाना भुगतान कर दिया है ताकि प्रथम पक्ष अपनी आवश्यकताएं आंशिक रूप से पूरी कर सके।

अनुबंध निष्पादन के समय प्रथम पक्ष ने द्वितीय पक्ष से 1,55,00,000 रुपये के बैंकर्स चेक के माध्यम से प्राप्त कर लिया है, जिसमें विभिन्न बैंकों के चेक शामिल हैं। शेष 25,00,000 रुपये के विक्रय पत्र निष्पादित करते समय प्राप्त किए जाएंगे।

संपत्ति से संबंधित सभी कानूनी औपचारिकताएं और न्यायालय के मामले का निस्तारण होने के बाद, प्रथम पक्ष द्वितीय पक्ष को लिखित सूचना भेजेगा। द्वितीय पक्ष को तीन वर्षों के भीतर शेष राशि का भुगतान कर संपत्ति का बैनामा करवाना होगा।

अगर यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तो बयाना की राशि लौटाकर अनुबंध रद्द किया जाएगा। इस अनुबंध में उल्लेखित भू-संपत्ति का पहले किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में बैनामा नहीं किया गया है। यदि द्वितीय पक्ष के अधिकारों का उल्लंघन किया गया, तो वह शेष विक्रय राशि का भुगतान करके सक्षम न्यायालय के माध्यम से संपत्ति का बैनामा अपने नाम करा सकता है।

अभिलेख में यह भी कहा गया है कि जमीन का सट्टा कराने वाले भारतीय नागरिक हैं और अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य नहीं हैं। अनुबंध पत्र का निर्माण पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों के आधार पर किया गया है, और इस पर किसी भी अधिवक्ता, सब रजिस्ट्रार या कार्यालय के स्टाफ की जिम्मेदारी नहीं होगी।

दस्तावेज में गवाह के रूप में आकाश वर्मा का नाम शामिल है, जिनका पिता का नाम रमेशचंद्र मौर्य है। आकाश चिरईगांव, डोमनपुर के निवासी हैं।

इस दस्तावेज के मुख्य पक्ष में पार्टिपुत्र रियल एस्टेट (पी) लिमिटेड है, जिसका पता श्री सद्‌गुरु कबीर मंदिर (रजि), सी-23/5, कबीरचौरा मठ मुलगादी, वाराणसी-221001 है। दस्तावेज के अंत में ‘सत्य प्रतिलिपि’ की घोषणा की गई है, जिससे इसकी वैधता और प्रमाणिकता की पुष्टि होती है।

गुरु जेल में, चेले ने बेच दी जमीन

मजेदार बात यह है कि श्री सद्‌गुरु कबीर मंदिर के महंत विवेक दास जिस समय जेल में थे, उसी दौरान उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने करीब 20 बिस्वा जमीन बेचने के लिए सट्टा कर दिया।

खबर है कि प्रमोद दास ने शिवपुर में मौजूद संस्था की 157 बिस्वा जमीन को सिर्फ दस हजार रुपये महीने पर किराये पर महेंद्र कुमार मिश्र नामक व्यक्ति को दिया है, बरहीकला नेवादा के निवासी हैं। 24 जून 2024 को जिस 20 बीस बिस्वा जमीन का रजिस्टर्ड सट्टा कराया गया था उस में यह शख्स गवाह है।

आरोप है कि संत कबीर की कई अन्य कीमती संपत्तियों को बेचने की तैयारी है। खबर है कि कबीर की संपत्तियों की सौदे के पीछे बनारस के एक बड़े बिल्डर का हाथ है। जिस समय महंत विवेक दास पुलिस अभिरक्षा में बीएचयू अस्पताल में थे, तब वो बिल्डर गुलदस्ते लेकर पहुंचा करता था।

श्री सद्‌गुरु कबीर मंदिर कबीरचौरा मठ मुलगादी के महंत विवेक दास को इसी साल मई 2024 में एक दलित महिला के साथ अश्लील हरकत करने के मामले में जेल गया था। पीड़ित दलित महिला ने महंत विवेक दास के खिलाफ साल 2022 में कई संगीन आरोप लगाए थे।

महिला ने आरोप लगाते हुए कहा था कि कबीर मठ मूलगादी के महंत विवेक दास अपने साथियों के साथ मिलकर उन पर अश्लील टिप्पणियां की थी। इसके बाद एससी-एसटी कोर्ट ने वारंट जारी करते हुए महंत को तलब किया था। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और जेल भेज दिया गया था।

बनारस में संत कबीर दास की कई अन्य संपत्तियों को औने-पौने दाम पर बेचे जाने का खेल नया नहीं है। कबीर मठ से जुड़े 80 वर्षीय बाबा प्रह्लाद दास ने महंत विवेक दास के ऊपर मठ की 50 अरब की संपत्ति अवैध तरीके से अपने ट्रस्ट के नाम करने का आरोप लगाया था।

जिला मजिस्ट्रेट को दिए गए प्रार्थना प्रत्र में जिक्र किया था कि विवेक दास अरबों की संपत्ति हड़पने के बाद विदेश भागने की फिराक में है। कबीर मठ के बाबा प्रह्लाद दास के प्रार्थना पत्र पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नितेश कुमार ने कड़ा रुख अपनाते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।

कोर्ट के आदेश पर कबीरचौरा मूलगादी मठ के महंत विवेक दास सहित नौ लोगों के खिलाफ चेतगंज थाने में धोखाधड़ी सहित अन्य आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया है।

इस मुकदमे में महंत विवेक दास के अलावा अन्य आरोपियों में कबीर मठ के रामदास व प्रमोद दास, कबीरचौरा के डॉ दीपक मलिक, चेतगंज के त्रिभुवन प्रसाद, सीतापुर (रामनगर) के आनंद दास और नगर निगम के चेतगंज वार्ड के कर अधीक्षक, सर्किल क्लर्क व इंस्पेक्टर के नाम शामिल हैं।

बाबा प्रह्लाद दास के अनुसार, श्री सद्गुरु कबीर मंदिर सोसाइटी रजिस्टर्ड संस्था है। संस्था के 23वें आचार्य वर्ष 1993 में विवेक दास बनाए गए। उन्होंने वाराणसी के जिला जज की अनुमित के बगैर अलग-अलग स्थानों पर स्थित संस्था के कई मकान और जमीन बेच दी।

विवेक दास ने व्यक्तिगत ट्रस्ट सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मूलगादी बनाया। इसके बाद श्री सद्गुरु कबीर मंदिर सोसाइटी व मठ की संपत्ति पर अपने व्यक्तिगत ट्रस्ट के नाम दर्ज करा लिया। विवेक दास के इस फर्जीवाड़े में नगर निगम के कर्मियों के साथ ही अन्य लोग भी सहयोगी बने।

कबीर मठ के प्रह्लाद दास ने दाखिल प्रार्थना पत्र में बताया था कि साल 1999 में विवेक दास को श्रीसद्गुरु कबीर मंदिर सोसायटी का चार्ज दिया गया। वह अध्यक्ष बने और इस दौरान ट्रस्ट के पास तीन लाख रुपये बैक बैलेंस दिए गए।

साल 2005 में महंत विवेक दास ने ट्रस्टी की हैसियत से अवैध तरीके से बिना जिला जज से परमिशन लिए सोसायटी एक्ट की धारा-पांच का उल्लंघन करते हुए कतुआपुरा, बौलियाबाग और लहरतारा के मकान समेत दूसरे राज्यों की जमीनों को बेच दिया।

प्रह्लाद दास ने यह भी आरोप लगाया था कि महंत विवेक दास ने 14 अक्टूबर, 2010 में अपना एक व्यक्तिगत ट्रस्ट बनाया, जिसका नाम रखा-सिद्धपीठ कबीर चौरा मठ मूलगादी ट्रस्ट।

इसकी रजिस्ट्री कराकर सद्गुरु कबीर मंदिर सोसायटी ट्रस्ट और मठ की जमीनों को बेचते रहे। इसमें नगर निगम के कर्मचारी, क्लर्क, इंस्पेक्टर और टैक्स सुपरिटेंडेंट चेतगंज ने मिलकर मठ की संपत्ति का ट्रस्ट के नाम अंकित कर दिया गया।

प्रह्लाद दास का कहना था कि, “विवेक दास की ओर से बनाई गई अवैध कमेटी द्वारा संस्था के 50 अरब की संपत्ति कैसे ट्रस्ट को बिना वैध अंतरण किए नगर निगम के असेसमेंट रजिस्टर में अंकित कर दिया गया? विवेक दास ने अपराध से बचने के लिए ट्रस्ट के अध्यक्ष पद और ट्रस्टी पद से इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद प्रमोद दास को मंहत बना दिया। उन्होंने बताया, पूर्व महंत अब विदेश भागने की फिराक में है।” बाद में महंत विवेक दास ने मजिस्ट्रेट को जवाब दिया कि, “मुझे यह जानकारी नहीं थी सोसायटी की संपत्ति बेचने से पहले अनुमति लेनी पड़ती है। नहीं तो मैं जिला जज से अनुमति ले लेता। वर्तमान में मेरे शिष्य और उत्तराधिकारी प्रमोद दास कबीर मठ की देखभाल कर रहे हैं।”

जोधपुर में भी दर्ज हुआ मुकदमा

कुछ दिन पहले कबीर मठ के महंत विवेक दास के खिलाफ राजस्थान के जोधपुर में धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोपों में केस दर्ज हुआ है। उनके साथ उज्जैन के कबीर मठ के महंत चेतन दास का नाम भी इस मामले में शामिल है। यह केस जोधपुर के फतेहसागर स्थित कबीर आश्रम के महंत राजेंद्र दास की शिकायत पर दर्ज किया गया है।

महंत राजेंद्र दास ने बताया कि उनके गुरु प्रह्लाद दास, जो फतेहसागर कबीर आश्रम के महंत थे, कोविड के दौरान ब्रह्मलीन हो गए थे। गुरु की इच्छा के अनुसार, जुलाई 2021 में उन्हें आश्रम का नया महंत बना दिया गया।

इसके बाद से ही उज्जैन के चेतन दास की नीयत इस आश्रम की संपत्तियों पर खराब हो गई। राजेंद्र दास का कहना है कि चेतन दास तब से इस संपत्ति को हड़पने की कोशिश में लगा हुआ था।

अब चेतन दास ने काशी के महंत विवेक दास के साथ मिलकर एक फर्जी दस्तावेज बनवाया, जिसमें उनकी महंती को निरस्त करने का दावा किया गया है। राजेंद्र दास ने साफ किया कि जब विवेक दास ने उन्हें महंत घोषित ही नहीं किया, तो उन्हें हटाने का कोई अधिकार भी नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि न तो वे विवेक दास को उनके पद से हटा सकते हैं और न ही कोई ऐसा पत्र जारी कर सकते हैं। पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि महंत की शिकायत के आधार पर केस दर्ज किया गया है और जल्द ही उज्जैन से चेतन दास और बनारस से विवेक दास को पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा।

उत्तराधिकार की लड़ाई

कबीरमठ मूलगादी के उत्तराधिकार को लेकर इसी साल दो पक्ष आमने-सामने आ गए थे। बाद में चेतगंज थाना पुलिस ने दोनों पक्ष के अभिलेखों के अवलोकन के बाद समझा-बुझाकर मामला शांत कराया था। एक पक्ष के महंत विचार दास कुछ लोगों के साथ कबीरचौरा स्थित मठ में पहुंचे। खुद को सद्गुरु कबीर मंदिर ट्रस्ट द्वारा उत्तराधिकारी बनाए जाने की बात कहने लगे।

वे अपने पक्ष में अदालत का आदेश भी दिखा रहे थे। उनका कहना था कि वहीं रहकर मठ का संचालन करेंगे। यह देखकर आचार्य महंत विवेक दास के उत्तराधिकारी प्रमोद दास के समर्थक भी जमा हो गए। उन्होंने विचार दास का विरोध किया और उन पर मठ पर कब्जा करने की नीयत से आने का आरोप लगाते हुए पुलिस को सूचना दे दी।

मौके पर पहुंची पुलिस को विचार दास ने बताया कि आचार्य महंत अमृत साहब के देहांत के बाद ट्रस्ट के सदस्यों ने आचार्य गंगा शरण को अध्यक्ष उन्हें मंत्री, उत्तराधिकारी, अधिकारी तीन पद दिया।

इस मामले में एक मुकदमा भी वाराणसी कचहरी के सिविल जज सीनियर डिविजन अदालत में चला, जिसमें अदालत ने यथा स्थिति बनाए रखते हुए विचार दास को कार्य करने का आदेश दिया। इसके अनुपालन के लिए पुलिस को भी निर्देशित किया। इसे मठ के लोग मान नहीं रहे हैं।

वहीं, दूसरे पक्ष के महंत प्रमोद दास खुद को कबीरचौरा मठ मूलगादी के उत्तराधिकारी बताते रहे। उनका कहना था कि उन्हें आचार्य महंत विवेक दास ने उत्तराधिकारी बनाया है। उन्होंने विचार दास पर मठ की संपत्ति बेचने का आरोप लगाते हुए कहा कि मठ की सारनाथ स्थित कीमती जमीन को बेचने का साजिश की गई थी।

इस मामले में आचार्य महंत विवेक दास ने विचार दास के खिलाफ मुकदमा लिखवाया है। विचार दास मगहर मठ की व्यवस्था संभालते हैं और फर्जी तरीके से अपने को उत्तराधिकारी बता रहे हैं।

देश भर में कबीरचौरा मूलगादी मठ से जुड़ी सैकड़ों बीघा भूमि माफिया और साधुओं की मिलीभगत से विवादों में है। कबीरचौरा मूलगादी में जमीन, गद्दी और विरासत का विवाद साल 2010 में शुरू हुआ।

लहरतारा मठ के महंत गोविंददास शास्त्री के अनुसार, 2010 में महंत विवेकदास ने मठ से जुड़ी कुछ जमीन बेच दी थी। इस पर पूर्व महंत गंगाशरण शास्त्री ने नाराजगी जताई तो उनको षड्यंत्र के तहत जेल भिजवा दिया गया।

महंत विवेक दास ने 2022 में लहरतारा मठ से जुड़ी कुछ जमीनों का सट्टा कर दिया, जब महंत गोविंद शास्त्री ने आपत्ति जताई तो उनको भी कई मामलों में फंसाकर जेल भेज दिया गया।

महंत गोविंद शास्त्री ने बताया कि मूलगादी में कुछ साल पहले तक 70 से 80 साधु नियमित रहा करते थे, लेकिन विवाद बढ़ने के बाद आज महज 8-10 लोग ही रह गए हैं। कबीर के पांच से ज्यादा मठ हैं। मूलगादी मठ की देश भर में 365 शाखाएं स्थापित थीं, उनमें से दो सौ मठों के पास संपत्तियां है। इनका संचालन मूलगादी पीठ ही करती है।

इसके अलावा पांच सौ से ज्यादा मठ हैं जो मूलगादी से जुड़े हैं। इसकी शाखाएं पाकिस्तान में भी हैं। साल 1989 में मूलगादी के महंत अमृत साहब का देहांत होने के बाद गंगाशरण शास्त्री महंत बने और विचारदास को उत्तराधिकारी बनाया।

साल 1999 में महंत गंगा शरण शास्त्री ने विवेक दास को महंत बनाया तो साल 2023 में महंत विवेक दास ने प्रमोद दास को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। खास बात यह है कि सोसाइटी के बनारस के रजिस्ट्रार ने प्रमोद दास को महंत के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है और विवेक दास को ही महंत माना है।

ऐसे में संपत्तियों को बेचना का अधिकार प्रमोद दास को कैसे मिल गया गया, इस सवाल का जवाब अभी तक अनुत्तरित है।

लहरतारा कबीर प्राकट्य स्थल के महंत गोविद दास कहते हैं, “कबीर मठ के महंत विवेक दास और उनके कथित उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने मिलकर संस्था की अरबों की जमीनें बेची हैं और वह पैसा कहां गया, किसी को नहीं मालूम।

24 जून 2024 को शिवपुर में जिस जमीन को बेचने के लिए रजिस्टर्ड सट्टा कराया गया है, उसकी बाजार की कीमत करीब 20 करोड़ रुपये है। शिवपुर जैसे इलाके में करीब 157 बिस्वा जमीन सिर्फ दस हजार रुपये महीने पर किराये पर देने की कहानी बहुत कुछ कहती है।

सीधे तौर पर संस्था की संपत्ति बेचकर उसकी कमाई हड़पने की नाकाम कोशिश की जा रही है। गुरु-चेले मिलकर बनारस में संत कबीर के इतिहास को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों की भूमिका की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।”

“कबीर मठ और उसकी संपत्तियां संकट में हैं। शासन-प्रशासन को गंभीरता से लेना चाहिए। यह ऐतिहासिक मठ है। यह स्थान समूचे विश्व के लिए धरोहर है”।

“महंत विवेक दास ने लहरतारा में भी कई भूखंड बेच दिए थे और अब लगता है कि कबीरचौरा के कबीर मठ को ही बेच देंगे। कबीर ने समूची मावन जाति के उत्थान के लिए काम किया था। इस धरोहर को बचाने के लिए जनता को भी आगे आना चाहिए।”

कबीर मठ के महंत विवेक दास के उत्तराधिकारी महंत प्रमोद दास अपना बचाव करते हुए जनचौक से कहते हैं कि, ” शिवपुर की जमीन पर अस्पताल बनाने का निर्णय लिया गया है। कुछ साल पहले दुबई के एक उद्यमी ने वहां अस्पताल बनाने का वादा किया था, बाद में उसने अपने हाथ खींच लिए थे”।

“अब हम इस दिशा में आगे कदम बढ़ा रहे हैं। कबीर मठ की जमीन बेची नहीं गई है। जिन जमीनों पर विवाद बढ़ गया है उसे अतिक्रमणकारियों से छुड़ाने के लिए नए सिरे से कवायद शुरू की गई है। यह आरोप गलत है कि कबीर मठ की संपत्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। हमारी संस्था पाई-पाई का हिसाब रखती है।”

औरंगजेब ने दी थी जमीन

मुगल शासक औरंगजेब ने संत कबीर की देह जगह मिले पुष्प से बनी मजार और समाधि के लिए गोरखपुर के सहजनवा में पांच-पांच सौ बीघा जमीन दी थी। मठ के स्वामित्व वाली समाधि के पास अब दो सौ बीघा भूमि और 100 बीघे का तालाब बचा है। काफी जमीन साधुओं ने बेच डाली हैं।

बिहार में पटना के सिकंदरपुर और नालंदा के बहादुरपुर में सिकंदर लोदी, समस्तीपुर के सतमलपुर में अकबर ने मठ को जमीन दी थी।

आरा, सहरसा, गया, बलिया के करनई, सारनाथ, अहमदाबाद, सूरत, बड़ौदा और उसके समीप के डामौर, उड़ीसा में पुरी सहित तमाम स्थानों पर कबीर धर्मशालाएं, मठ और कृषि भूमि है।

पूर्वांचल के मठ मंदिरों में गद्दी का विवाद कई पीढि़यों से चला आ रहा है। तीर्थ पुरोहितों और संत समाज के अनुसार पूर्वांचल में लगभग 300 मठ और मंदिर हैं, जहां गद्दी का विवाद चल रहा है। कुछ मामले कोर्ट में हैं तो कुछ संत समाज के पास भी लंबित हैं। इसे देखते हुए कई मंदिरों में पारी की व्यवस्था की गई है।

कबीर प्राकट्य स्थल लहरतारा के महंत गोविंद दास शास्त्री और कबीरचौरा मूलगादी के महंत विवेक दास में संपत्ति बंटवारे को लेकर विवाद हुआ था। महंत गोविंद दास शास्त्री कहते हैं कि जमीन पर भू-माफिया कब्जा करना चाहते हैं।

कबीर की संपत्तियों को बचाने के लिए फेसबुक पर “कबीरचौरा मठ बचाओ, विवेक दास हटाओ” के नाम से एक पेज बनाया गया है, जिसके करीब 1700 फालोवर्स हैं। इस फेसबुक पेज पर महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास की तमाम कारगुजारियों का सिलसिलेवार ब्योरा दिया गया है।

महिला के साथ छेड़छाड़ के मामले में गिरफ्तारी के बाद हवालात की वो तस्वीरें भी डाली गई हैं, जिसमें महंत विवेक दास सलाखों के पीछे खड़े नजर आ रहे हैं। फेसबुक पर महंत के ढेरों कच्चे चिट्ठे खोले गए हैं।

लहरतारा मंदिर के महंत गोविंद दास शास्त्री कहते हैं, “संत कबीर ने अपना जीवन बनारस के कबीरचौरा में बिताया, जो उनकी कर्मभूमि थी। यहीं से उन्होंने अपने विचार और शिक्षाएं फैलाईं, जिनसे लोग आज भी प्रेरित होते हैं। कबीर मठ उनकी शिक्षाओं और स्मृतियों का केंद्र है, जहां हर साल कबीर जयंती पर बड़ी संख्या में देश-विदेश से अनुयायी आते हैं।

कबीर मठ सिर्फ एक आध्यात्मिक स्थान नहीं है, बल्कि यहां आने वाले लोग कबीर के विचारों को आत्मसात करते हैं। कबीर की बातें आज भी लोगों को सिखाती हैं कि एक ऐसा समाज बनाना चाहिए जो भाईचारे, एकता और दुख-दर्द को समझने वाला हो।”

वह कहते हैं, “कबीर भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे, जिन्होंने निर्गुट विचारधारा का समर्थन किया। उनकी रचनाओं ने समाज पर गहरा प्रभाव डाला। कबीर के शिष्यों ने उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए कबीर पंथ की स्थापना की।

यही पंथ कबीरचौरा में मठ बनवाने का कारण बना, जो समय के साथ बड़ा होता गया। आज इस पंथ से करीब एक करोड़ लोग जुड़े हुए माने जाते हैं।”

महंत गोविंद दास यह भी कहते हैं, “संत कबीर ने अपने विचारों को फैलाने के लिए चार प्रमुख शिष्यों को चुना: चतुर्भुज, बंके जी, सहते जी और धर्मदास। इन शिष्यों ने देशभर में जाकर कबीर के विचारों को फैलाया और एक नए समाज की नींव रखने का प्रयास किया।

धर्मदास ने कबीर पंथ की ‘धर्मदासी’ शाखा की स्थापना की, जो आज देशभर में सबसे सशक्त मानी जाती है। कबीर ने हिंदू और इस्लामी दोनों परंपराओं की आलोचना की, जैसे कि यज्ञोपवीत और खतना की प्रथाओं को बेमतलब बताया।

हालांकि, उनके विचारों से उस समय के कई हिंदू और मुसलमान नाराज हो गए थे और उन्हें कई बार धमकियां भी मिलीं। बावजूद इसके, कबीर के विचार आज भी समाज को एकजुट करने और सही राह दिखाने का काम करते हैं।”

कबीर से जुड़ गए थे हर धर्म के लोग

कबीरपंथियों में अधिकांश हिंदू हैं। हालांकि मुसलमान, बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों के लोग भी इस पंथ से जुड़े हुए हैं। कबीरपंथियों की खास पहचान उनकी कण्ठी (माला) होती है, जिसे वे पहनते हैं। साथ ही वे कबीर के बीजक, रमैनी और अन्य ग्रंथों का गहरा आदर करते हैं।

कबीर पंथियों के लिए गुरु का स्थान सबसे ऊंचा होता है, और वे गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्व देते हैं। शुरूआत में यह पंथ केवल दार्शनिक और नैतिक शिक्षा पर आधारित था, लेकिन समय के साथ यह एक धार्मिक संप्रदाय में तब्दील हो गया।

कबीर पंथ की दो प्रमुख शाखाएं मानी जाती हैं। पहली शाखा का केंद्र वाराणसी का ‘कबीरचौरा’ है, जिसकी एक उपशाखा मगहर में है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गए थे। दूसरी बड़ी शाखा छत्तीसगढ़ में स्थित है, जिसकी स्थापना कबीर के प्रमुख शिष्य धर्मदास ने की थी।

छत्तीसगढ़ी शाखा भी समय के साथ कई और उपशाखाओं में बंट गई, जिनमें ‘कबीरचौरा जगदीशपुरी’, ‘हरकेसर मठ’, ‘कबीर-निर्णय-मंदिर’ (बुरहानपुर) और ‘लक्ष्मीपुर मठ’ प्रमुख हैं।

गुजरात में प्रचलित ‘राम कबीर पंथ’ की शुरुआत कबीर के शिष्य पद्मनाभ ने की थी, जबकि पटना के ‘फतुहा मठ’ के प्रवर्तक तत्वाजीवा या गणेशदास माने जाते हैं। मुजफ्फरपुर में स्थित ‘बिद्दूरपुर मठवाली शाखा’ की स्थापना कबीर के शिष्य जागूदास ने की थी।

बिहार के सारन जिले के धनौती में स्थित ‘भगताही शाखा’ की नींव भागोदास ने रखी थी। इस शाखा में मुख्य रूप से भक्ति भावना पर जोर दिया जाता है, न कि बाहरी आडंबरों पर।

कबीरचौरा शाखा, जिसे सबसे पुरानी शाखा माना जाता है, कबीर के शिष्य सुरत गोपाल ने शुरू की थी। इसकी उपशाखाएं मगहर (बस्ती), काशी के लहरतारा और गया के कबीरबाग में हैं।

कबीर पंथ की छत्तीसगढ़ी शाखा सबसे व्यापक रूप से फैली हुई है, और इसके अनुयायी भी सबसे ज्यादा हैं। छत्तीसगढ़ी शाखा की उपशाखाएं मांडला, दामाखेड़ा और छतरपुर में स्थित हैं। इस शाखा ने कबीर के जीवन और उनके विचारों पर कई ग्रंथ और रचनाएं लिखी हैं।

हालांकि, इस प्रक्रिया में कबीर के असली विचार धीरे-धीरे कम हो गए और इस पंथ ने भी कर्मकांड और आडंबरों का सहारा ले लिया।

अब तक मूलगादी के आचार्य

भक्ति आंदोलन का केंद्र रहा है कबीरचौरा स्थित मूलगादी मठ कबीर पंथ का मुख्यालय (प्रधान पीठ) है। यही वह स्थान है जहां संत कबीर का पालन-पोषण हुआ था और यह उनकी कर्म और साधना स्थली भी रही है। इसी मठ से कबीर पंथ की नींव रखी गई थी।

मध्यकाल में जब कबीर ने भक्ति आंदोलन की शुरुआत की, तो इसी स्थान से यह आंदोलन शुरू हुआ था। धीरे-धीरे जो लोग उनके विचारों और शिक्षाओं से प्रभावित हुए, वे आगे चलकर कबीर पंथ के अनुयायी बन गए। इस भक्ति आंदोलन में करीब तीन सौ संत जुड़ गए थे, जो बाद में कबीर पंथ के अहम हिस्से बने।

कबीर मठ में समाधि मंदिर, कबीर झोंपड़ी, उनका चबूतरा, बीजक मंदिर, नीरू टीला, लाइब्रेरी और कई स्मारक मौजूद हैं। मठ के विशाल और हरे-भरे बाग में कई प्रतिमाएं लगी हुई हैं, जो यहां के माहौल को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव देती हैं।

यहां आने वाले लोग कबीर के संदेशों से रूबरू होते हैं और एक ऐसा इंसान बनने की कोशिश करते हैं, जो भाईचारे और इंसानियत को समझता है।

महात्मा गांधी, प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, रवींद्रनाथ टैगोर, शेख अब्दुल्ला जैसे कई प्रमुख हस्तियों ने इस स्थान का दौरा किया है।

कबीर पंथ के अनुयायियों के लिए विदेशों में पांच मठ स्थापित किए गए हैं। वहीं, भारत के विभिन्न प्रांतों में एक हजार से अधिक मठ इसी पीठ से संचालित होते हैं, जो कबीर की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करते हैं।

कबीरपंथ के प्रधान पीठ मूलगादी (कबीरचौरा) में कबीरदास के बाद आचार्य सुरती गोपाल, आचार्य श्रीज्ञान, आचार्य श्याम, आचार्य लाल, आचार्य हरि सुख, आचार्य शीतल, आचार्य सुख, आचार्य हुलास, आचार्य माधव, आचार्य कोकिल, आचार्य श्रीराम, आचार्य महा, आचार्य हरि, आचार्य शरण, आचार्य पूरण, आचार्य निर्मल, आचार्य रंगी, आचार्य गुरु प्रसाद, आचार्य प्रेम, आचार्य राम विलास, आचार्य अमृत, आचार्य गंगा शरण गद्दी संभाल चुके हैं। वर्तमान में आचार्य विवेक दास गद्दी पर हैं।

कबीर चौरा में क्या है?

कबीर मठ कबीरचौरा, वाराणसी में स्थित है और यह संत कबीर का मुख्यालय है। यह 15वीं शताब्दी के महान संत कबीर की शाश्वत यादों का संग्रह स्थल है, जहां समाधि मंदिर, कबीर झोपड़ी, चबूतरा, बीजक मंदिर, नीरू टीला, पुस्तकालय और बगीचे के साथ अन्य मूर्तियां हैं। कबीरचौरा का मठ कबीर के अनुयायियों और संतों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है।

संत कबीर का चबूतरा उस समय बनाया गया था जब उनके प्रवचनों के लिए आने वाली भीड़ को नियंत्रित करना कठिन हो गया था। इसके बाद एक बड़ा मंडप बनाया गया, जिसे अब बीजक मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह उपदेश स्थल है जहां संत कबीर ने अपने अनुयायियों को शिक्षा दी।

समाधि मंदिर का निर्माण काशी नरेश वीरदेव सिंह ने 1578 में करवाया था। यह मंदिर उसी स्थान पर स्थित है, जहां संत कबीर ध्यान और ईश्वर की आराधना करते थे। संत कबीर की खड़ाऊ मठ के स्मृति कक्ष में रखी गई है।

महात्मा गांधी ने 1934 में मठ का दौरा किया और खड़ाऊ की दयनीय स्थिति पर दुःख व्यक्त किया। इसके बाद इसे सुरक्षित रखने के लिए कांच के बक्से में रखा गया।

कबीर के पीने के पानी का पात्र, जिसे काष्ठ पात्र कहा जाता है, भी स्मृति कक्ष में रखा गया है। यह माना जाता है कि यह पात्र 600 साल पुराना है। यह त्रिशूल गोरख पंथ के एक संत के साथ हुई बहस में संत कबीर द्वारा जीता गया था। इसे मठ में एक सम्माननीय स्थान दिया गया है।

नीरू टीला वह स्थान है, जहां कबीर के माता-पिता नीरू और नीमा रहते थे। यह वह पवित्र स्थल है, जहां संत कबीर का पालन-पोषण हुआ।

नीरू टीला कबीर मठ का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यहां संत कबीर का जीवन प्रारंभ हुआ था। मठ का पुस्तकालय, जिसे सद्गुरु कबीर पुस्तकालय कहा जाता है, में करीब 700 हस्तलिखित पांडुलिपियां और संत कबीर के साथ अन्य संतों की रचनाएं संग्रहीत हैं। यह पुस्तकालय कबीर की शिक्षाओं का अद्वितीय केंद्र है।

कबीर मठ का अपना एक प्रकाशन गृह भी है, जिसे कबीरवाणी प्रकाशन केंद्र कहा जाता है। यह कबीर और उनकी रचनाओं पर आधारित पुस्तकों का प्रकाशन करता है। इनमें प्रमुख रूप से “कबीर बीजक”, “सत्य कबीर की साखी”, और “कबीर ग्रंथावली” शामिल हैं।

लहरतारा का कबीर मठ संत कबीर के प्रकट होने और उनके बचपन से जुड़ा स्थल है। यह स्थान शांतिपूर्ण और हरे-भरे वातावरण से घिरा हुआ है, जहां लोग ध्यान और साधना करने आते हैं।

कबीर मठ में मानवता की सीख

कबीर मठ में संतों द्वारा अपने वाद्ययंत्रों का उपयोग कर कबीर के दोहे गाए जाते हैं, जो न केवल संगीत की सुंदरता को दर्शाते हैं, बल्कि शांति और जीवन की वास्तविकता का संदेश भी फैलाते हैं। यह स्थान हर इंसान को सच्ची मानवता का पाठ सिखाता है।

एक समय काशी नरेश और उनकी पत्नी संत कबीर से अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगने के उद्देश्य से मठ आए थे। वे लकड़ियों का गट्ठर लेकर आए थे, यह सोचते हुए कि अगर संत कबीर ने उन्हें क्षमा नहीं किया, तो वे आत्मदाह कर लेंगे।

महान स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी भी एक बार कबीर मठ आए थे, जहां पहले से ही भारी भीड़ थी। मठ के महंत रामविलासदास जी ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।

दक्षिण भारत से आए पंडित सर्वानंद ने कबीर मठ के कुएं से पानी पिया। वे कबीर से शास्त्रार्थ करने आए थे, लेकिन लंबे सफर और अनुभव ने उन्हें जीवन की वास्तविकता का अहसास कराया।

संत कबीर जब अपने घर से किसी कार्य के लिए निकले, उनके हाथ में कमंडल था। उनकी समाधि स्थली का वातावरण अत्यंत स्वच्छ और शांतिपूर्ण है, जो उनके आध्यात्मिक जीवन का प्रतीक है।

संत कबीर ने मानवता के लिए बीजक नामक महान रचना दी, जिसका मठ में आज भी महत्व है। रामविलास साहब ने कबीर मठ का नवीनीकरण कर इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया। कबीर मठ में पानी पीते पंडित सर्वानंद कबीर से शास्त्रार्थ के लिए आए थे, लेकिन उन्हें जीवन की सादगी और सच्चाई से परिचय हुआ।

संत कबीर मठ में स्थित ऐतिहासिक कुआं, शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए प्रसिद्ध है। कई महान साधु-संतों ने इस कुएं के पानी का सेवन किया है, जो आज भी आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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