देहरादून: युवा फिर उतरे जंगल बचाने, बाधा डालने के लिए ‘देशभक्त टोला’ भी पहुंचा खलंगा

देहरादून। क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में जब पूरी दुनिया में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने और जंगलों को बचाने की मुहिम चलाई जा रही है तो उत्तराखंड की सरकार ने शहर से लगते एक और जंगल का सफाया करने की योजना बना दी है। इस बार निशाने पर है खलंगा की पहाड़ी का घना साल वृक्षों का जंगल। यहां सौंग नदी पेयजल योजना के लिए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना बनाई गई है। इसके लिए साल के दो हजार पेड़ काटने की तैयारी पूरी कर दी गई है। पिछले दिनों काटे जाने वाले पेड़ों का छपान भी कर दिया गया। छपान का अर्थ है काटे जाने वाले पेड़ों को चिन्हित करने के लिए कुल्हाड़ी से उनके एक हिस्से को छील देना।

देहरादून के पर्यावरण से जुड़े संगठनों और पर्यावरण संरक्षण के लिए सजग युवाओं को इसकी जानकारी मिली तो वे विरोध में उतर आये। रविवार को बड़ी संख्या में सामाजिक संगठनों के लोग, युवा और छात्र खलंगा पहुंचे और पेड़ों को काटने का विरोध किया। यहां एक और खास बात हुई। 25-30 लोगों का एक टोला भी हर हर महादेव और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए वहां पहुंचा और पेड़ बचाने के लिए जुटे लोगों की बैठक को बाधित करने का प्रयास किया।

देहरादून में जब भी विकास के नाम पर जंगलों को काटने की योजना बनाई जाती है तो यहां के लोग विरोध के लिए एकजुट हो जाते हैं। इससे पहले चाय बागान, सहस्रधारा रोड, आशारोड़ी और थानो के जंगलों को बचाने के लिए देहरादून में बड़े आंदोलन हो चुके हैं, हालांकि इसमें केवल चाय बागान को बचाने में ही लोग सफल हो पाये हैं। तीव्र विरोध के बावजूद सरकार ने आशारोड़ी और सहस्रधारा रोड के हजारों पेड़ काट दिये।

थानो का जंगल देहरादून एयरपोर्ट एक्सटेंशन योजना के कारण अब भी संकट में है। फिलहाल यहां के सामाजिक संगठन, युवा और छात्र खलंगा के जंगल बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। हालांकि विरोध को देखते हुए सरकार ने फिलहाल पेड़ न काटने और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए कोई और जगह तलाशने की बात कही है। लेकिन बताया जाता है कि पेयजल विभाग के अधिकारियों ने इस योजना को लेकर सामाजिक संगठनों के साथ हुई एक बैठक में साफ कहा है कि वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए खलंगा से बेहतर कोई जगह नहीं है।

खलंगा की पहाड़ी देहरादून का एक ऐतिहासिक स्थल है। यह गोरखा सेनापति बलभद्र थापा और अंग्रेज सेना की लड़ाई में बलभद्र थापा की बहादुरी का प्रतीक है और इस पहाड़ी की चोटी पर बलभद्र थापा का एक स्मारक भी बनाया गया है। स्मारक के निचले इलाके में नालापानी नामक जगह तक साल के घने जंगल हैं। इसी जंगल के बीचोबीच खलंगा स्मारक से करीब एक किमी नीचे वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की योजना तैयार की गई है। इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए पेड़ काटने की तैयारी शुरू कर दी गई है। आधिकारिक रूप से दो हजार पेड़ काटने की बात कही गई है। इन पेड़ों का छपान कर उन्हें चिन्हित भी कर दिया है।

खलंगा का जंगल बचाने के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सिटीजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा कहते हैं कि जब उन्होंने अधिकारियों के सामने पेड़ काटने का विरोध दर्ज किया तो उनसे कहा गया कि अभी तो केवल पेड़ों की गिनती ही हो रही है। हिमांशु के अनुसार गिनती करने के लिए पेड़ों का छपान नहीं किया जाता। छपान तभी होता है, जब पेड़ को काटना पूरी तरह से निश्चित कर दिया गया गया हो। इसका अर्थ यह है जल्दी की खलंगा के पेड़ों पर आरी चलाने की तैयार कर दी गई है।

ट्रेड यूनियन नेता जगमोहन मेहंदीरत्ता ने कहा कि देहरादून के चारों तरफ के जंगलों को काटकर यहां की स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है। उनका कहना था कि वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को लेकर हुई बैठक में अधिकारी जबरन अपनी बात थोपने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन उन्होंने अधिकारियों की बात मानने से इंकार कर दिया। भारत ज्ञान विज्ञान समिति के विजय भट्ट ने कहा कि देहरादून अपने चारों तरफ बहने वाली 12 नदियों और घने साल के जंगलों के कारण भीषण गर्मी के मौसम में भी ठंडा रहता था। लेकिन विकास के नाम पर पहले यहां की नदियों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया और अब जंगलों को एक-एक करके कत्ल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और हर हाल में इसका विरोध किया जाएगा।

विरोध प्रदर्शन में मौजूद एथलीट और पर्वतारोही ज्योत्सना रावत के साथ जनचौक ने बातचीत की। उनका कहना था कि खलंगा के जंगल न होते तो आज वह इस मुकाम पर नहीं होती। उनका कहना था कि उन्होंने अपनी प्रैक्टिस नालापानी से लेकर खलंगा स्मारक तक की। दिन में वे कई बार नालापानी से खलंगा स्मारक तक चढ़ती थी और कई बार नीचे उतरती थी। भीषण गर्मी के मौसम में भी साल के घने पेड़ों को बीच ऐसा करना संभव हो जाता था। वे कहती हैं कि उत्तराखंड हिमालय के पास होने के कारण ग्लोबल वार्मिंग की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है, ऐसे में इस क्षेत्र में जीवन को बचाना है तो जंगलों को बचाना जरूरी है।

डीएवी कॉलेज छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष सोनाली नेगी का कहना था कि देहरादून साल दर साल गर्म होता जा रहा है। एक दिन पहले ही देहरादून का मैक्सिमम टेंपरेचर 41 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। देहरादून और दिल्ली के मौसम में अब बहुत ज्यादा अंतर नहीं रह गया है और यह इसीलिए हुआ कि विकास के नाम पर देहरादून का विनाश कर दिया गया। जंगल काट दिये गये, नहरें पाट दी गई और नदियों को नाला बना दिया गया।

दून यूनिवर्सिटी के शोध छात्र पीयूष शर्मा ने कहा कि पहाड़ों से लगातार पलायन के कारण देहरादून में जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ रहा है। इतनी बड़ी जनसंख्या को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए देहरादून में संसाधन कम पड़ रहे हैं। उन्होंने इसके इस समस्या का समाधान करने के लिए नये रास्ते बनाने की जरूरत बताई। बैठक का संचालन नितिन मलेठा ने किया। हिमांशु चौहान ने जनगीत प्रस्तुत किया। प्रदर्शन में एक दर्जन से ज्यादा संगठनों के साथ ही बड़ी संख्या में युवाओं और कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने भी हिस्सा लिया। प्रमुख रूप से जिन संगठनों ने हिस्सा लिया उनमें सिटीजन फॉर ग्रीन दून, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, एसएफआई, उत्तराखंड इंसानियत मंच, प्राउड पहाड़ी सोसायटी, सीएफजीडी, डीपीपीसी, नेचर्सबडी आदि संगठनों ने इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

हर रविवार जुटेंगे

खलंगा में हुई बैठक में तय किया कि जब तक सरकार खलंगा के जंगलों को न काटने का अंतिम रूप से फैसला नहीं ले लेती, तब तक हर रविवार की सुबह ज्यादा से ज्यादा लोग खलंगा पहुंचेंगे और विरोध दर्ज करेंगे। हालांकि आज के कार्यक्रम को विरोध प्रदर्शन के बजाय नॉलेज शेयरिंग कार्यक्रम नाम दिया गया था। बैठक में कहा गया कि हर बार यह प्रयास हो कि पहले से ज्यादा लोग खलंगा पहुंचें, ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके। आशारोड़ी और सहस्रधारा का उदाहरण देकर बताया गया कि जब तक इन दोनों जगहों पर धरने-प्रदर्शन होते रहे, तब तक सरकार चुप रही, लेकिन धरने प्रदर्शन का जोर कम होते ही पेड़ों पर आरियां चला दी गई। खलंगा के मामले में इस तरह की गुंजाइश न छोड़ने की बात कही गई।

बाधा डालने पहुंचा टोला

खलंगा में रविवार को होने वाले प्रदर्शन को लेकर सोशल मीडिया में कई पोस्ट लिखे जा रहे थे। इसका नतीजा यह हुआ कि हर हर महादेव और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए 25-30 लोगों का एक टोला वहां पहुंच गया। जिस जगह पेड़ काटने का विरोध करने वाले लोगों की सभा हो रही थी, टोले के सदस्य उसी के साथ बने एक छोटे से मंदिर के बाहर बैठ गये और भजन-कीर्तन करने लगे। इस टोले के कुछ सदस्य बैठक में बाधा डालने का प्रयास करने लगे। लेकिन पर्यावरण समर्थकों ने उनसे कोई बहस करने के बजाय अपनी मीटिंग की जगह बदल दी और वहां से कुछ दूर जाकर मीटिंग की।

(त्रिलोचन भट्ट वरिष्ठ पत्रकार हैं और देहरादून में रहते हैं)

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