ग्राउंड रिपोर्टः “हमने बहुत मौतें देखीं, लेकिन हमारे बच्चों की ये मौतें जीवन भर सताएंगी”

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सुल्तानपुर गावं, आज़मगढ़। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और उन्नाव में डिप्थीरिया (गलाघोंटू) से आठ बच्चों की मौत ने योगी सरकार और उसकी स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। आज़मगढ़ की नट बस्ती में गलाघोंटू ने पांच और उन्नाव में चार बच्चों की जान ले ली है। आज़मगढ़ की सीधा सुल्तानपुर नट बस्ती में गलाघोंटू से जान गंवाने वाले वो बच्चे हैं जिनकी उम्र डेढ़ से छह साल है। गलाघोंटू से नौनिहालों की मौत से आसपास के गांवों में दहशत और आतंक का माहौल है।

आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर है सीधा सुल्तानपुर गांव। लगभग 17 सौ की आबादी वाली नट बस्ती में बच्चों की मौत के बाद से सियापा छाया हुआ है। इस बस्ती के लोगों के पास अगर कुछ है तो सिर्फ बेचारगी और बदहाली। नट बस्ती में रहने वाले कुछ लोग मजूरी करते हैं तो महिलाएं और बच्चे भीख मांगते हैं। ज्यादातर लोगों के मकान कच्चे हैं। कुछ झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं। कुछ लोगों के पास सरकारी आवास है, पर बिजली नहीं है। नट बस्ती के लोगों को पीने का पानी मुश्किल से मिलता है। शौचालय तो मयस्सर है ही नहीं। सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती में चुपके से डिप्थीरिया ने दस्तक दी और कई बच्चों को अपनी चपेट में ले लिया।

सीधा सुल्तानपुर गांव की नट बस्ती की अख्तरून का पांच साल के पुत्र अलीराज की 12 अगस्त, 2024 को मौत हुई। अख्तरून कहती हैं, “अचानक मेरे बेटे अलीराज के गले में सूजन हुई। मैं और मेरे पति मिहनाज उसे लेकर लाहीडीह बाजार में एक प्राइवेट डॉक्टर के पास गए। बेटे की हालत कुछ ज्यादा गंभीर थी। इसलिए डॉक्टर ने इलाज करने से मना कर दिया। बाद में मैं बच्चे को लेकर आजमगढ़ गई और वहां एक निजी क्लिनिक में डा.एलडी यादव को दिखाया। उन्होंने भी इस बीमारी का इलाज करने से मना कर दिया। हमें आजमगढ़ के चक्रपानपुर में स्थित पीजीआई के डॉक्टरों को दिखाने का सुझाव दिया। पीजीआई में हमारे बेटे का इलाज शुरू हुआ, लेकिन हम उसे नहीं बचा सके। हमने बहुत मौतें देखीं, पर हमारे बस्ती के बच्चों की ये मौतें जीवन भर सताएंगी।”

नालियों ने तोड़ा गंदगी का रिकॉर्ड

आज़मगढ़ के मिर्जापुर प्रखंड के सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती में गलाघोंटू से पहली मौत दो अगस्त को कैश नामक व्यक्ति के छह साल के बच्चे आतिफ की हुई। इसके पिता मजूरी करते हैं और महिलाएं भीख मांगकर जीवनयापन करती हैं। कैश भी मजूरी करते हैं। इनके पास इलाज करने के लिए पैसे ही नहीं थे।

इलाज के लिए नहीं थे पैसे

 इसके बाद छह अगस्त को कश्मीरा की डेढ़ साल की बेटी रोजन की इलाज के अभाव में मौत हो गई। यह लड़की अपनी मां के साथ ननिहाल आई थी। इसके पिता रोजन कहते हैं, “हमारा नसीब ही खराब है। हम अपने बच्चों के लिए किसी तरह से दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सकते हैं। हम अपनी बेटी को लेकर मिर्जापुर ब्लाक स्थित सरकारी अस्पताल में पहुंचे, लेकिन वहां पहुंचने से कुछ मिनट पहले ही उसने दम तोड़ दिया। हम अपनी बेटी को जीवन भर नहीं भूल पाएंगे।”

पीड़िता।

11 अगस्त, 2024 को सुहैल के तीन साल के पुत्र मुहम्मद की मौत हो गई। सुहैल बेरोजगार हैं। मुहम्मद की मौत के अगले दिन 12 अगस्त को अलीराज नामक बच्चे की गलाघोंटू से मौत हुई। 13 अगस्त को सजमा नामक लड़की की मौत हुई। इसके पिता मीरू के पास इलाज कराने के लिए पैसे नहीं थे। यह लड़की भी अपने नाना के घर आई थी। इसके पिता मीरू मुहम्मदपुर ब्लॉक के कमरावा में रहते हैं। बच्चों की जानें जाती रहीं और स्वास्थ्य महकमा खामोश बैठा रहा। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने बच्चों को इस तरह से तड़प-तड़पकर मरते हुए पहले नहीं देखा था।

गांव की सफाई का आलम।

ग्रामीणों का आरोप है कि बच्चों की मौत की सूचना मिलने पर स्वास्थ्य महकमे की टीम आई और खानापूरी कर लौट गई। आजमगढ़ के कलेक्टर तक ने बच्चों की मौत को गंभीरता से नहीं लिया। आरोप है कि गलाघोंटू बारी-बारी से बच्चों की जिंदगियां लीलता रहा और न तो कलेक्टर उनका हाल देखने आए और न ही दूसरे प्रशासनिक अफसर। कई दिन बाद मुख्य चिकित्साधिकारी अशोक कुमार आए और दवाओं का वितरण कराकर लौट गए। बाद में नट बस्ती के 80 बच्चों का टीकाकरण कराया गया।

अपनी दास्तान सुनाती गांव की महिला।

आजमगढ़ के निजामाबाद के सीधा सुल्तानपुर में छह बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम मौके पर पहुंची तो पता चला कि इन बच्चों का टीकाकरण ही नहीं हुआ था। आनन- फानन में सभी का टीकाकरण कराया गया। बीमार 10 बच्चों के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। सीएमओ डॉ. अशोक कुमार ने इस बात की पुष्टि की कि जिन बच्चों की मौतें हुई हैं उनमें डिप्थीरिया के लक्षण थे। इन बच्चों ने टीकाकरण नहीं कराया था। टीम मौके पर है। स्थिति अब नियंत्रण में है।

गलाघोंटू से बच्चों की मौत से सीधा सुल्तानपुर के आसपास के गांवों में दहशत है। ज्यादातर तीन साल तक के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। स्वास्थ्य महकमा अभी तक सिर्फ दो बच्चों की डिप्थीरिया से मौत की पुष्टि कर रहा है। सीएमओ डा.अशोक कुमार कहते हैं, “सीधा सुल्तानपुर में स्वास्थ्य विभाग की टीम कैंप कर रही है। 

रास्ते की दयनीय स्थिति

गलाघोंटू की बीमारी इसलिए फैली, क्योंकि अशिक्षा के चलते ज्यादातर लोगों ने अपने बच्चों का टीकाकरण कराया ही नहीं था। सरकार का निर्देश है कि जो लोग अपने बच्चों का टीकाकरण नहीं कराते हैं, उनकी रिपोर्ट प्रशासन और शासन को भेजने का नियम है। क्षेत्रीय एएनएम ने टीकाकरण कराने वालों की सूचना हमें क्यों नहीं दी, इसकी जांच कराई जा रही है। अगर लापरवाही उजागर हुई तो दोषियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।”

प्रियंका का मार्मिक पोस्ट वायरल

आजमगढ़ में सरकारी मशीनरी तब हरकत में आई जब कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी ने वीडियो के साथ अपने फेसबुक पर एक मार्मिक पोस्ट लिखी। प्रियंका ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है, “उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में गलाघोंटू बीमारी से बड़ी संख्या में बच्चों की मौतें अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण व दुखद हैं। आजमगढ़ के सीधा सुल्तानपुर गांव में पूरी नट बस्ती संक्रमण की चपेट में है। खबरों में कहा गया है कि गांव में बच्चों का टीकाकरण ही नहीं हुआ था। पूरे गांव में नाली और गंदगी का साम्राज्य है। उन्नाव में भी कुछ बच्चों की मौतें हुई हैं। यह लापरवाही अक्षम्य है। क्या जिन बच्चों की जान चली गई, उन्हें वापस लाया जा सकता है? “

प्रियंका के फेसबुक पोस्ट के वायरल होने के बाद अफसरों की नींद उड़ी और वो नट बस्ती में दौड़ने लगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनिल यादव के नेतृत्व में पार्टी के कई नेता व कार्यकर्ता गांव में डेरा डाले हुए हैं। अनिल कहते हैं, “सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती में किसी व्यक्ति के पास पक्का मकान नहीं है। ज्यादतर लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं। इस गांव की आबादी करीब 17 सौ है। यहां ज्यादातर दलित और नट समुदाय के लोग रहते हैं। पेयजल की स्थिति बेहद खराब है। नट समुदाय के लोगों के लिए सरकार अभी तक शौचालय तक का इंतजाम नहीं करा पाई है। इस समुदाय के लोगों का कहना है कि उनके घरों की महिलाओं को इकलौते शौचालय की सुविधा नहीं मिलती। वहां लंबी लाइन लगानी पड़ती है। लाचारी में लोगों को खेत में शौच करने जाना पड़ता है।”

अनिल कहते हैं, “सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती एक ऐसी बस्ती है जहां ज्यादातर लोगों के पास न आधार कार्ड है और न ही राशन कार्ड। वोटर आईडी कार्ड भी नहीं। कई लोगों के नाम वोटर लिस्ट में भी नहीं हैं, जिसके चलते लोग मतदान भी नहीं कर पाते हैं। लगता है कि इस गांव में सरकार विकास करना ही भूल गई है। सड़कें हैं, लेकिन वो ठोकर मारती हैं। उनकी दशा ठीक नहीं है।”

कांग्रेस नेता अनिल यादव लोगों से दास्तान सुनते।

मौतों के लिए सरकार जिम्मेदार

आजमगढ़ में गलाघोटू से हुई पांच मौतों के लिए काग्रेस के प्रदेश महासचिव अनिल यादव ने प्रशासन ज़िम्मेदार ठहराया है। वह कहते हैं, “बच्चों का इलाज करने के बजाय सरकारी मशीनरी बीमारी को छिपाने में जुट गई है। सीधा सुल्तानपुर गांव में पिछले दस दिनों के अंदर गलाघोटू से पांच मासूम बच्चों की मौत अगर किसी अन्य इलाके में हुई होती तो योगी सरकार के मंत्री फर्राटे भर रहे होते। गलाघोंटू से मरने वाले सभी बच्चे घुमंतू नट समुदाय के थे, इसलिए इनकी मौत को गिनने की जरूरत तक नहीं समझी गई। मामूली साफ-सफाई और टीकाकरण के बाद सरकारी नुमाइंदे लौट गए।”

उन्नाव में तीन बच्चों की मौत

दूसरी ओर, उन्नाव जिले के नवाबगंज और असोहा प्रखंड के तीन गांवों में डिप्थीरिया (गला घोंटू) बीमारी से तीन बच्चों की मौत हो गई। छह बच्चे संक्रमण की चपेट में आ गए, जो इलाज के बाद अब स्वस्थ हैं। नवाबगंज ब्लॉक क्षेत्र के सतगुरखेड़ा गांव निवासी गोविंद की छह साल की बेटी शिवन्या को गले में खरास के साथ खांसी-बुखार हुआ। हालत में सुधार नहीं होने पर 12 अगस्त को लखनऊ के लोकबंधु अस्पताल में लेकर गए। बाद में डॉक्टरों ने गलाघोंटू की आशंका जताते हुए उसे लखनऊ मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया। जांच में डिप्थीरिया की पुष्टि हुई। इलाज के दौरान 15 अगस्त को शिवन्या की मौत हो गई। शिवन्या की बड़ी बहन सेजल (9 साल) में डिप्थीरिया के लक्षण दिखने पर मेडिकल टीम को मौके पर भेजा गया।

नवाबगंज प्रखंड के बजेहरा निवासी सुनील कुमार की 12 वर्षीया बेटी शगुन को सात अगस्त को बुखार व गले में दर्द होने पर परिजन सीएचसी लेकर गए थे। डॉक्टर ने जिला अस्पताल रेफर किया था। जांच में डिप्थीरिया की पुष्टि होने पर कानपुर ने हैलट भेजा था, जहां आठ अगस्त को इलाज के दौरान मौत हो गई।

उन्नाव के असोहा प्रखंड के दरियारखेड़ा निवासी रामेश्वर की सात वर्षीया बेटी आरती को चार अगस्त को बुखार आने के साथ गले में दर्द व सूजन की शिकायत हुई। इलाके के एक डॉक्टर ने इलाज किया। सुधार न होने पर उसे लखनऊ स्थति किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज भेजा था। सात अगस्त को वहां उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी। रामेश्वर का बड़ा बेटा मोहित (12 साल) और उनके पड़ोसी राजोले के दो बेटे शुभ (7 साल) और राजन (4 साल), सहरावां के लक्ष्मण के पुत्र शिवा (6 साल) को भी गले में खरास व दर्द की शिकायत होने पर जिला अस्पताल भेजा गया। हालत में सुधार होने पर परिजन उसे घर ले आए।

उमर्रा निवासी संदीप के पुत्र अंकित को डिप्थीरिया के चलते किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है। वहां उसका इलाज चल रहा है। हालत में थोड़ा सुधार है। गलाघोंटू बीमारी से तीन बच्चों की मौत और एक ही परिवार के तीन बच्चों को इस बीमारी के लक्षण दिखने पर डाक्टरों की टीम को सतगुरखेड़ा गांव भेजा गया है।

उन्नाव के सीएमओ डॉ सत्यप्रकाश ने बताया कि बजेहरा गांव की मरीज शगुन में डिप्थीरिया की पुष्टि होने पर उसे कानपुर हैलट भेजा गया था, जहां उसकी मौत हो गई। डाक्टरों की टीम को गांव भेजा गया है, ताकि बच्चों की जांच कराने के साथ उन्हें दवा दी जा सके।

सरकार का दावा

स्वास्थ्य विभाग की ओर से डिप्थीरिया सहित अन्य बीमारियों से बचाव के लिए 95 फीसदी टीकाकरण का दावा किया गया है।  सरकार का दावा है कि 49 जिले के 92 ब्लॉक में डिप्थीरिया रोकने के लिए विशेष टीकाकरण अभियान भी चलाया गया है, लेकिन आजमगढ़ और उन्नाव में बच्चों की मौत के बाद हकीकत कुछ और ही सामने आई। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के सामने ग्रामीणों ने बताया कि उनके बच्चों का टीकाकरण नहीं किया गया। बच्चों की मौत से फैली दहशत के बीच संबंधित गांवों में टीकाकरण कराया गया। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि दम तोड़ने वाले और बीमार बच्चों में डिप्थीरिया के लक्षण हैं।

चिकित्सा शिक्षा और चिकित्सा, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण विभाग के मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा के मुताबिक, “आजमगढ़ में सिर्फ एक बच्चे की डिप्थीरिया से मौत की पुष्टि हुई है। बाकी मामले संदिग्ध हैं। छह अन्य के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। उन्नाव में भी डिप्थीरिया से एक बच्चे की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि अन्य की मौत के कारण अभी स्पष्ट नहीं हैं। 14 के सैंपल भेजे गए हैं। स्वास्थ्य विभाग की टीम मौके पर है। प्रदेश के 86 ब्लॉकों में डिप्थीरिया के केस पाए गए हैं। इनमें उन्नाव के असोहा में सात, हसनगंज में तीन और नवाबगंज में दो बच्चों में डिप्थीरिया की पुष्टि हुई है।”

यूपी के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा है कि, “बच्चों की मौत दुखद है। पीड़ित परिवार के साथ पूरी सरकार खड़ी है। दोनों जिलों के स्वास्थ्य अधिकारी मौके पर हैं। बीमार बच्चों का उपचार कराया जा रहा है। सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। डिप्थीरिया की बीमारी है या कोई और बात, इसकी भी जांच चल रही है। बीमारी फैलने के कारणों की जानकारी जुटाकर इसे रोकने की योजना बनाई गई है। जरूरत पड़ी तो संबंधित गांवों में स्वास्थ्य अधिकारी कैंप करेंगे।”

क्या है डिप्थीरिया?

यूपी के पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. बद्री विशाल कहते हैं, “डिप्थीरिया एक जीवाणु संक्रमण है। यह कोरिनेबैक्टीरियम प्रजातियों के कारण होती है। यह नाक और गले को प्रभावित करता है। यह त्वचा में किसी दरार के माध्यम से भी प्रवेश कर सकता है। यह खांसने या छींकने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। बैक्टीरिया के संपर्क में आने के बाद, लक्षण विकसित होने में आमतौर पर दो से चार दिन लगते हैं। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, गले और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचाता है, जिसके परिणामस्वरूप दम घुटने से मृत्यु हो जाती है।”

“डिप्थीरिया से बचाव के लिए डीटीएपी और टीडीएपी का टीका लगता है। इसका लक्षण होने पर बुखार और ठंड लगना, गले में खराश, आवाज बैठना, भोजन-पानी निगलने में दर्द, लार टपकना, त्वचा का रंग नीला होना, सांस लेने में दिक्कत, सांस तेज चलना, सांस लेने में तेज आवाज होना आदि है। टीकाकरण के चक्र के टूटने से ही यह बीमारी फैलती है। जिन इलाकों में डिप्थीरिया फैल रहा है, वहां टीकाकरण में लापरवाह स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने दुनिया भर में तेजी से फैल रही डिप्थीरिया की बीमारी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। यह एक संक्रामक बीमारी है, जिसमें मरीज को समय पर इलाज न मिलने पर जान भी जा सकती है। इसे आम भाषा में लोग गलाघोंटू कहते हैं। यह एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है, जो गले और नाक की भीतरी परत को नुकसान पहुंचाता है। अगर यह इंफेक्शन ज्यादा पॉवरफुल है और समय पर इलाज नहीं मिला तो इससे खतरनाक टॉक्सिन्स (जहरीले पदार्थ) निकलने लगते हैं, जो किडनी, लिवर और नर्वस सिस्टम को भी डैमेज कर सकता है। पांच साल से कम उम्र के बच्चे और गर्भवती महिलाओं को इससे इंफेक्शन होने का खतरा ज्यादा होता है।

क्या कहते हैं आंकड़े

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े कहते हैं कि भारत में साल 2005 से 2014 के बीच प्रतिवर्ष औसतन 4167 केस दर्ज किए गए, जिसमें 92 लोगों की मौत हो गई थी। इस दौरान दुनिया भर में मिल रहे डिप्थीरिया के कुल केस के आधे तो भारत में ही मिल रहे थे। साल 2018 में तेज स्पाइक आया और 8,788 केस दर्ज किए गए। इस साल 52 मौतें तो सिर्फ दिल्ली में हो गईं।

बनारस के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डा.राममूर्ति सिंह कहते हैं, “डिप्थीरिया का असर किसी के हृदय पर भी हुआ है तो उसे किसी भी तरह की फिजिकल एक्टिविटी से बचना चाहिए। इससे सबसे अधिक नुकसान गले को होता है इसलिए लंबे समय तक लिक्विड या नरम खाना ही खाना चाहिए। अगर घर में कोई एक व्यक्ति संक्रमित है तो उसे कोरेंटाइन कर सकते हैं, बाकी लोग नियमित रूप से हाथ धुलते रहें। हर 10 साल में टीके की बूस्टर खुराक की आवश्यकता हो सकती है। इससे आपकी आने वाली पीढ़ियां भी सुरक्षित रहेंगी।”

“एक बार डिप्थीरिया ठीक हो जाने के बाद इसके वैक्सीनेशन की सीरीज पूरी कर लेनी चाहिए, क्योंकि दूसरे इंफेक्शंस की तरह इसमें ऐसा नहीं कि जिंदगी भर के लिए इम्यूनिटी विकसित हो जाएगी। अगर टीके की सीरीज पूरी नहीं हुई है तो कभी भी फिर से डिप्थीरिया हो सकता है। इसके टीके का असर सिर्फ 10 साल तक ही रहता है। इसलिए 12 साल की उम्र के आसपास फिर से इसका टीका लगवाने की जरूरत पड़ती है। इसके बाद की उम्र में भी बूस्टर शॉट लिए जा सकते हैं। डिप्थीरिया से पीड़ित बच्चों का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है, इसलिए इससे उबरने के लिए ज्यादा से ज्यादा आराम की जरूरत होती है।”

 (विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।) 

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