भाजपा न तो गठबंधन धर्म निभा सकती है, न हिंदू धर्म और न ही राजधर्म: दीपंकर भट्टाचार्य

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पटना। भाकपा-माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने आज पटना में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि पहले चरण के चुनाव में महागठबंधन ने निर्णायक बढ़त हासिल कर ली है। शाहाबाद व मगध के इलाके से आने वाली खबरों ने बिहार से एनडीए की विदाई तय कर दी है। महागठबंधन ने रोजगार सहित जिन मसलों को अपना मुद्दा बनाया, उससे लोगों में भारी उम्मीद पैदा हुई है। बिहार के लोग आज सुरक्षित व सम्मानजनक रोजगार चाहते हैं। यही वजह है कि आज पहली बार भावनात्मक मुद्दों की जगह जनता के असली मुद्दे चुनाव के एजेंडे पर हैं। संवाददाता सम्मेलन में उनके साथ पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य व अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव काॅ. राजाराम सिंह व पोलित ब्यूरो की सदस्य कविता कृष्णन भी मौजूद थीं।

उन्होंने कहा कि एनडीए शासन में बिहार बेरोजगार के चरम पर पहुंचा। बिहार में आज 45 प्रतिशत से अधिक बेरोजगारी है। प्रवासी मजदूरों को न तो मनरेगा में काम मिला न ही कहीं और। नियोजित शिक्षकों, अतिथि शिक्षकों आदि तबकों की सबसे खराब स्थिति बिहार में ही है। कर्मचारियों, आशा-आंगनबाड़ी-रसोइया आदि तबकों के आंदोलनों को लेकर लगातार आंदोलन चला है और इस बार ये चुनाव के प्रमुख मुद्दे हैं। महागठबंधन के संकल्प पत्र से एक बेहतर शुरुआत हुई है। सोशल सिक्योरिटी के तहत वृद्धापेंशन में 1000 की बात की गई है। हालांकि यह बहुत कम है। नियोजित कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलना चाहिए। यही कारण है कि ये सारे तबके भाजपा-जदयू के खिलाफ महागठबंधन के पक्ष में गोलबंद हो रहे हैं।

माले महासचिव ने कहा कि एनडीए के चुनाव प्रचार व गिरते भाषाई स्तर से लोग दुखी हैं। एनडीए के नेताओं को अपने काम पर वोट मांगना चाहिए था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जी अथवा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस भाषा में बात कर रहे हैं, उसे लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। यहां तक कि भाजपा के लोग कह रहे हैं कि हमारे नेता इस कदर बात करेंगे, कभी सोचा भी नहीं था। चुनाव आयोग को भी देखना चाहिए कि आचार संहिता का ठीक से पालन हो। 28 अक्तूबर को प्रथम चरण के चुनाव के समय वेटनरी काॅलेज में प्रधानमंत्री की सभा हो रही थी। आयोग को देखना चाहिए कि चुनाव प्रक्रिया के साथ ऐसा मजाक नहीं होना चाहिए। वोट के लिए इस तरह से सारे नियम कानून को खत्म कर देना ठीक नहीं है।

दीपंकर के मुताबिक मोदी जी ने कहा कि कोरोना एक नंबर खतरा है। तो बिहार की जनता पूछ रही है कि फिर चुनाव क्यों करवाया? बिहार में चुनाव के पहले एक सतर्कता थी, अब जाहिर सी बात है कि ऐसे दौर में जब चुनाव होगा तो सतर्कता में कमी आएगी। संभव है कि बिहार की स्थिति बहुत खराब हो जाए। हमने पहले भी चुनाव टालने की बात कही थी, लेकिन सरकार व आयोग ने एक नहीं सुनी। अतः अब बिहार की स्थिति बिगड़ती है तो इसकी जिम्मेवारी सरकार व आयोग को लेनी होगी।

कोरोना बड़ा खतरा है, लेकिन प्रधानमंत्री केवल खतरा बतलाते हैं, उन्होंने क्या किया, इसे बताते ही नहीं। केंद्र व राज्य सरकार ने इसे हल्के ढंग से लिया। अब चुनाव में कह रहे हैं कि बिहार के लोगों को मुफ्त में टीका देंगे। यह भी लोगों को खराब लगा। लोग कह रहे हैं कि मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं, तो फिर वे जहां चुनाव है वहां टीका का लोभ देकर वोट लेने जैसा घटिया काम क्यों कर रहे हैं?

भाजपा के लोग जंगलराज खूब उछाल रहे हैं, लेकिन आज यूपी में तो सुपर जंगलराज है। जंगलराज का मतलब जहां कानून का राज नहीं होता है, हालांकि जंगल में भी कुछ नियम कानून होता ही है। योगी के राज में कोई कानून नहीं चल रहा है। वहां आज सुपर जंगल राज है। फर्जी मुठभेड़, पुलिस राज, माॅब लिंचिंग ही उसकी पहचान बनी हुई है। हाथरस की बर्बर घटना का उदाहरण हमारे सामने है। मोदी जी केवल सवाल दागते हैं, लेकिन जबावदेही नहीं लेते। कोरोना के खतरा का स्रोत भी वही हैं और जो जंगलराज बता रहे हैं, उसके भी। आज की तारीख में यूपी या बिहार में जो चल रहा है, वह सुपर जंगलराज से कम थोड़े है।

एनडीए गठबंधन टूट रहा है। इस बार बिहार में भाजपा ने सोचा था कि नीतीश कुमार के सर पर ठीकरा फोड़कर और लोजपा को आगे करके अपनी दाल गला लेंगे। लेकिन अकेले-अकेले ये दोनों दल बिहार में कुछ भी नहीं है। भाजपा न तो गठबंधन धर्म निभा सकती है, न हिंदू धर्म और न ही राजधर्म। बिहार की दुर्गति के लिए भाजपा व जदयू बराबर के जिम्मेवार हैं। कॉमरेड राजाराम ने बताया कि किसान विरोधी तीनों कानूनों के खिलाफ 26-27 नवंबर को किसानों का दिल्ली मार्च होगा।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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