क्या अब बांग्लादेश को अडानी की बिजली नहीं चाहिए?

Estimated read time 1 min read

बांग्लादेश संकट पर देश में भांति-भांति से सोचा जा रहा है, या कहें सोचने के लिए विवश किया जा रहा है। वैसे भी सोचने-समझने का काम आम भारतीय के जिम्मे है भी नहीं। यह काम तो सरकार और उसकी विदेश नीति का है, और अधिक से अधिक पूर्व राजनयिकों, विभिन्न मंचों का है, जो दिन-रात भू-राजनैतिक विषयों पर महीन से महीन बातचीत देश के सामने रखते रहते हैं। लेकिन बांग्लादेश-भारत के संबंधों, विशेषकर व्यावसायिक संबंधों में गुणात्मक मोड़ 2014 के बाद आता है, जिसमें दो सरकारों के साथ एक व्यावसायिक घराने की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, जिसका नाम अडानी ग्रुप है। लेकिन विदेशी मामलों के जानकार इस बारे में बात करने से बचना चाहते हैं।

जी हाँ, यह कोई छोटा-मोटा बदलाव नहीं था, जिसे कोई आजाद देश अनदेखा कर सके। लेकिन देश में हिंदुत्ववादी उभार की लहर पर सवार पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार दुनिया के विभिन्न देशों के साथ किस प्रकार के कूटनीतिक एवं व्यावसायिक समझौते कर रही थी, उसके बारे में बुरी तरह से पराजित विपक्ष के पास जूझने की ताकत नहीं बची थी। देश में मीडिया पहले से ही सरकार के कदमों तले बिछ चुका था, और विदेश नीति की बहसों में तब सार्क देशों के संगठन के स्थान पर लुक ईस्ट की जगह एक्ट ईस्ट के जुमले को चुभलाते रहने का समय था। लेकिन बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से अपदस्थ होते ही हर चीज को फिर से दुरुस्त किये जाने की कवायद शुरू हो चुकी है।

याद कीजिये, 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच की मुलाकातों का, जिसमें बांग्लादेश को बिजली आयात के सिलसिले में अडानी पॉवर की मध्यस्थता की जमीन तैयार की गई। 2017 में इसके लिए जमीन तैयार कर ली गई थी। इस करार के तहत भारत के झारखंड राज्य के गोड्डा जिले में अडानी समूह 1600 मेगावाट का पॉवर प्लांट खड़ा करने वाली थी, जिसके लिए आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी हासिल कर ली गई थी। केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार थी, और झारखंड में भी भाजपा की रघुबर दास वाली डबल इंजन सरकार काम कर रही थी। उधर बांग्लादेश में भी शेख हसीना की हुकुमत का बोलबाला था, जिसमें विपक्ष की दखलंदाजी न के बराबर थी।

देखते ही देखते एक ऐसे पॉवर प्लांट का निर्माण संभव हो सका, जिसके पक्ष में न झारखंड की जनता थी और न ही बांग्लादेश के लोग। आज भाजपा और अवामी लीग के डबल इंजन में एक इंजन पटरी पर उतरते ही, इस पॉवर प्लांट के भविष्य पर भी अँधेरे के बादल घिर आये थे, जिसके बारे में खबर आ रही है कि 12 अगस्त को भारत सरकार ने काफी हद तक दूर कर दिया है। इससे पहले तक, अडानी के गोड्डा पॉवर प्लांट से 100% बिजली की आपूर्ति सिर्फ बांग्लादेश को ही की जानी तय हुई थी। आज हसीना के देश से पलायन के बाद, जिन सबसे बड़े विवादास्पद मुद्दों पर मौजूदा अस्थाई सरकार को फैसला लेना था, उसमें से यह सबसे बड़ा मुद्दा था।

झारखंड के गोड्डा स्थित अडानी पॉवर प्लांट की कहानी

बता दें कि इस प्लांट की खासियत इसे देश के बाकी सभी बिजली संयंत्रों से अलग कर देती है। सबसे पहला, यह देश का पहला पॉवर प्लांट था, जिसके उत्पदान का शत प्रतिशत हिस्सा एक दूसरे देश को बेचा जाना था। दो देशों के प्रमुखों के बीच का फायदा या नुकसान दो देशों को नहीं, बल्कि एक निजी कंपनी को होना था, जिसका बोझ या लाभ बांग्लादेश के बिजली उपभोक्ताओं को मिलना तय पाया गया था।

इस पूरे अनुबंध को बाद में यह बता दिया गया कि यह करार बांग्लादेश सरकार और अडानी समूह के बीच हुआ है, इसमें भारत सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन भूमि अधिग्रहण से लेकर, पर्यावरणीय मंजूरी का काम फिर किसने किया? गोड्डा जिले में इस प्लांट के लिए एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग ज़ोन की घोषणा कर, सभी प्रकार के केंद्रीय या राजकीय करों से छूट की अनुमति किसने दी?

कहने का मतलब है कि पॉवर प्लांट जिस प्रदेश में लगाया गया, उस प्रदेश को इसके उत्पादन पर एक नया पैसा भी नहीं मिलने वाला था। देश को टैक्स के नाम पर धेले भर का नहीं मिलने वाला था। भारत देश को बांग्लादेश की जनता की सेवा करने में इतना अँधा हो चुका था कि उसे यह भी नहीं दिखा कि गोड्डा जिले में जिस जगह इस कोयला आधारित प्लांट का धुआं निकलेगा, उससे हजारों एकड़ खेत के किसानों की खेती का क्या होगा?

प्लांट से निकलने वाले प्रदूषित पानी से स्थानीय निवासियों और मवेशियों और जलवायु पर इसका क्या कुप्रभाव पड़ने वाला है? इस परियोजना का विरोध करने वाले स्थानीय लोगों को पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं। किसके लिए? जाहिर है, एक व्यवसायी समूह को ही झारखंड, वहां की जनता और यहाँ तक कि देश से ऊपर रखा गया।

बांग्लादेश में भी इस परियोजना का हो रहा था विरोध

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस परियोजना से बांग्लादेश के लोग खुश थे। बांग्लादेश की पत्रिका prothmo malo के 2 वर्ष पूर्व लेखों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि अडानी समूह ने गोड्डा संयंत्र में बिजली उत्पादन के लिए जिस कोयले के आयात को मंजूरी दी थी, उसके दाम में 60% का इजाफा कर दिया है।

पत्र के अनुसार, “बिजली विभाग के सूत्रों के अनुसार, अडानी समूह ने बिजली विकास बोर्ड (पीडीबी) को सूचित किया है कि वह बिजली संयंत्र के लिए कोयला आयात करने के लिए 400 अमेरिकी डॉलर प्रति टन की कीमत पर ऋण पत्र (एलसी) खोलने में रुचि रखता है। भारतीय व्यापार समूह अडानी समूह ने बांग्लादेश के लिए बिजली उत्पादन करने वाले बिजली संयंत्र के लिए आयातित कोयले के लिए उच्च मूल्य का प्रस्ताव दिया है। यदि प्रस्ताव को अंतिम मंजूरी मिल जाती है, तो बांग्लादेश को संयंत्र से बिजली आयात करने के लिए अधिक कीमत चुकानी होगी।”

जबकि भारत-बांग्लादेश संयुक्त उपक्रम रामपाल और बांग्लादेश-चीन के संयुक्त उपक्रम पायरा में आयातित कोयले की कीमत 250 डॉलर प्रति टन आ रही थी। इसका अर्थ था बांग्लादेश को अडानी पॉवर से बिजली खरीद पर लगभग 60% अधिक मूल्य चुकाना पड़ेगा। बता दें कि गोड्डा स्थित अडानी पॉवर प्लांट के लिए पहले ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका से कोयला आयात करने पर विचार किया गया। बाद में, अडानी समूह की ओर से तय पाया गया कि कोयला तो ऑस्ट्रेलिया के कर्मिकाइल खदान से ही आयेगा, जिसकी लागत ज्यादा ही नहीं है, बल्कि इसका स्वामित्व भी अडानी समूह के पास था।

जाहिर है, इस पूरे उपक्रम में भारत-बांग्लादेश की सरकार को कोई फायदा नहीं हो रहा था, हाँ, भारत और बांग्लादेश की जनता अवश्य शुद्ध घाटे में थी। लेकिन, एक व्यावसायिक समूह को तो निश्चित तौर पर फायदा हो रहा था, और संभवतः भारत और बांग्लादेश के सत्तारूढ़ दलों से जुड़े लोगों, वरिष्ठ नौकरशाहों को इसका लाभ संभव है, मिल रहा हो।

हम ठीक-ठीक नहीं कह सकते कि शेख हसीना ने अपने शासनकाल के दौरान और भी ऐसे न जाने कितने करार किये हों, जिसके चलते आज उनके तानाशाही का अंत हो चुका है। देश अराजकता से अब धीरे-धीरे शांति बहाली की प्रकिया में लौट रहा है। बांग्लादेश के नौजवान अभी भी आश्वस्त नहीं हैं, वे देश में दो दलों की तानाशाही में खुद को महफूज नहीं पा रहे हैं, और जल्द ही युवा अपनी एक अलग पार्टी का ऐलान कर सकते हैं। लेकिन भारत में क्या?

जी, भारत में बांग्लादेश की बदली परिस्थितियों के मद्देनजर, चुपके से केंद्र सरकार ने इस करार में एक बदलाव कर दिया है। अब अडानी समूह के लिए जरुरी नहीं है कि वह अपने पॉवर प्लांट का शत प्रतिशत उत्पादन बांग्लादेश को ही बेचे। अब वह इस उत्पादन के बड़े हिस्से को, या समूचे हिस्से को भारतीय ग्रिड में भी बेचने के लिए स्वतंत्र है।

इसका मतलब हुआ कि ऑस्ट्रेलिया से अडानी के कोयला खदान से जो कोयला ओड़िसा के समुद्री तट पर उतरता था, जिसे रेल की मदद से उस झारखंड राज्य में लाया जाता था, जहां कोयले के विशाल भंडार आज भी मौजूद हैं, उसकी बिजली को राष्ट्रीय ग्रिड में अब उन्हीं भारतीयों को दिया जा सकता है, जो अभी तक इसके उपभोग के लिए वांछनीय नहीं थे।

एक निजी पॉवर प्लांट के बिजली उत्पादन को खपाने की मजबूरी

लेकिन ये प्लांट तो 100% EOU अर्थात निर्यात वाले क्षेत्र में स्थापित किया गया था। भारत में बिजली बेचने के लिए किसी भी अन्य संयंत्र (वो चाहे सरकारी हो या निजी क्षेत्र की कंपनी), सबके लिए जीएसटी, उत्पाद कर लागू हैं। फिर, इस परियोजना के लिए भारतीय जरूरतों को तो देखा ही नहीं गया था। पलक झपकते ही अडानी समूह की एक कंपनी को होने वाले संभावित नुकसान के लिए रातोंरात केंद्र सरकार अपने नियमों में फेरबदल कर सकती है तो पिछले 10 वर्षों से वह अपने ही स्वामित्व वाली बीएसएनएल को 4जी सेवा प्रदाता आखिर क्यों नहीं बना पा रही है?

सवाल कोई एक हों तो फिर भी कोई बात हो। यहां तो जहां हाथ डालेंगे, वहीं पायेंगे कि दाल में काला ही काला है। इसी खबर को हिंदी के अख़बार कुछ ऐसी हेडिंग लगाकर छाप रहे हैं, जैसे अडानी पॉवर खुद अपनी बिजली को अब बांग्लादेश को न बेचकर भारतवासियों पर बड़ा अहसान करने जा रहा है।

एक अखबार की हेडिंग है, “शेख हसीना के देश छोड़ते ही, बांग्लादेश अँधेरे में डूबा। अडानी से है इसका कनेक्शन।” 12 अगस्त को सरकार की ओर से किये गये नियमों में हेरफेर के बावजूद अडानी पॉवर का कहना है कि वह बांग्लादेश पॉवर डेवलपमेंट बोर्ड के साथ किये गये अपने करार को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। साफ़ है, अडानी पॉवर को बांग्लादेश के साथ बिजली के सौदे में जो फायदा नजर आता है, वह उसे अभी भी हाथ से जाने नहीं देना चाहता, लेकिन भारत सरकार अभी से अडानी समूह की सेवा के लिए रास्ता तैयार कर रही है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author