DOGE: अमेरिकी लोकतंत्र की कब्र खोदती एलन मस्क की निजी सेना

एलन मस्क और उनके सहयोगियों द्वारा संचालित खौफनाक साजिश अब अमेरिकी लोकतंत्र की अंतर्चेतना को कुचलने के लिए अपने पांव पसार रही है। यह महज़ तकनीकी सुधार का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि अब इसे सरकारी नौकरशाही को चीरकर निजी सत्ता के हवाले करने का बर्बर हथियार बना दिया गया है।

इस पूरे प्रकरण में (DOGE) – ‘डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी’ की भूमिका ने साबित कर दिया है कि कैसे एक अरबपति बिना किसी कानूनी प्रक्रिया या पारदर्शिता के, संघीय एजेंसियों की रीढ़ तक में घुसपैठ कर रहा है।

एक समय जहां अमेरिकी सरकारी आईटी इकाई, टेक्नोलॉजी ट्रांसफॉर्मेशन सर्विसेज (TTS), को महज एक मामूली विभाग माना जाता था, वहीं अब इसे मस्क के कारपोरेट एजेंडे के मुख्य आधार के रूप में स्थापित कर दिया गया है।

TTS के कर्मचारियों से हाल ही में हुई एक बैठक में, जहां थॉमस शेड, जो कि एक टेस्ला एल्युम्नाई और अब इस टीम के निर्देशक बने हैं, ने कर्मचारियों को आश्वस्त किया कि प्रशासन ने उन्हें स्विस आर्मी नाइफ के समान माना है, जो किसी भी विभाग में काम करने के लिए तैयार हैं।

लेकिन इस दिखावे के पीछे असली मकसद यह था कि मस्क की टीम मौजूदा कर्मचारियों की दक्षता और वफादारी की जांच कर रही है ताकि तय किया जा सके कि किसे बचना है और किसे निकाल दिया जाना है।

मस्क की यह नीतिगत चाल सिर्फ TTS तक सीमित नहीं है। उनके समर्थक, जिन्होंने अमेरिकी व्हाइट हाउस के उस कार्यालय को भी अपने अधीन कर लिया है जिसे पहले यूएस डिजिटल सर्विस कहा जाता था, अब GSA (जनरल सर्विस एडमिनिस्ट्रेशन) और OPM (ऑफिस ऑफ़ पर्सनल मैनेजमेंट) जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं में भी अपनी पकड़ जमा रहे हैं।

इन संस्थाओं के जरिए वे सरकारी अचल संपत्ति, खरीद, आईटी, मानव संसाधन समेत सरकारी कार्यप्रणाली के हर महत्वपूर्ण हिस्से को अपने निजी एजेंडे के अनुरूप ढालने का प्रयास कर रहे हैं।

सरकारी तंत्र में यह जबरदस्त हस्तक्षेप सिर्फ नौकरशाही में सुधार के नाम पर नहीं किया जा रहा, बल्कि असल में यह अमेरिकी लोकतंत्र को निजी मुनाफाखोरी का गुलाम बनाने की ठोस कोशिश है। मस्क का दावा है कि वे संघीय खर्चों में कटौती करके $1 ट्रिलियन की बचत करेंगे, परंतु यह बचत असल में उन हजारों बेरोजगार कर्मचारियों की कीमत पर की जाएगी, जिन्हें जबरदस्ती खरीद-फरोख्त के माध्यम से निकाल फेंका जा रहा है।

इस साजिश के चलते, संघीय सरकार के 2.3 मिलियन कर्मचारियों में से करीब 40,000 ने पहले ही खरीददार ऑफर को स्वीकार कर लिया है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह कटौती तो महज़ शुरुआत ही है।

DOGE की टीम ने न केवल सरकारी आईटी प्रणालियों में बदलाव की शुरुआत की है, बल्कि उन्होंने सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) और सेंटर फॉर मेडिकेयर एंड मेडिकेड सर्विसेज (CMS) जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों में भी सेंध लगा ली है।

इन एजेंसियों में पहुंच कर वे स्वास्थ्य विभाग के भुगतान प्रणालियों, अस्पतालों, चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्यसेवा प्रदाताओं से संबंधित संवेदनशील डेटा तक पहुंचने लगे हैं। मस्क ने X पर यह दावा किया कि मेडिकेयर बड़े पैमाने पर धन का केंद्र है, हालांकि उन्होंने इसके पीछे ठोस सबूत पेश नहीं किए।

जब बात श्रम विभाग की आती है, तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। DOGE टीम ने श्रम विभाग के संवेदनशील डेटा, जैसे कि बेरोजगारी दावों, स्वास्थ्य बीमा योजनाओं, विकलांगता बीमा, कार्यस्थल सुरक्षा जांच, मजदूरी चोरी और बाल श्रम जैसी महत्वपूर्ण जानकारियों तक पहुंच बनाने की कोशिश की है।

श्रम विभाग में इन अनचाहे हस्तक्षेपों के चलते, संघीय कर्मचारियों और मजदूर संघों में भय की लहर दौड़ गई है। AFL-CIO जैसे प्रमुख मजदूर संगठन ने सार्वजनिक रूप से विरोध प्रदर्शन करते हुए मांग की है कि इन निजी हाथों से कर्मचारियों के डेटा को दूर रखा जाए और इस अनैतिक हस्तक्षेप को रोका जाए।

कई श्रम विभाग के कर्मचारी यह तर्क देते हैं कि ऐसे लोग, जिन्हें श्रम के मूल सिद्धांतों का ज्ञान नहीं है, सरकारी प्रणाली में आकर बिना किसी अनुभव के बड़े पैमाने पर कटौती करने की कोशिश कर रहे हैं।

इस सब के बीच, DOGE के निदेशक थॉमस शेड ने एक अन्य बैठक में यह खुलासा किया कि उनकी टीम सरकारी एजेंसियों में तकनीकी समस्याओं को हल करने के लिए तैनात है, परंतु उन्होंने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी कि कर्मचारियों को उनकी कार्यक्षमता के आधार पर हटा भी दिया जाएगा।

इस बैठक में, उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अगर यह एक निजी कंपनी होती, तो शेयरधारक तुरंत ही बजट में कटौती की मांग करते। ऐसा प्रतीत होता है कि मस्क का लक्ष्य अमेरिकी सरकारी तंत्र को किसी निजी कंपनी की तरह चलाना है, जहां कर्मचारियों की सुरक्षा और पारंपरिक सुरक्षा मानदंडों की कोई परवाह नहीं की जाती।

एक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि मस्क के सहयोगी अपनी पहचान छिपाते हुए काम कर रहे हैं। कई सलाहकार अपने अंतिम नाम छिपा रहे हैं और निजी ईमेल आईडी का उपयोग कर रहे हैं ताकि उनके नाम उजागर न हो सकें।

जब कर्मचारियों ने इस बात पर सवाल उठाया कि आखिर कौन हैं ये लोग जो उनके ऊपर नजर रखे हुए हैं, तो शेड ने बताया कि “हमें डर है कि अगर इन लोगों के नाम बाहर आ गए तो उनके निजी जीवन पर असर पड़ेगा, जैसा कि पिछले हफ्ते हुआ था।“ इस प्रकार की गुप्तता और भयावहता ने सरकारी कर्मचारियों में असुरक्षा की भावना को और बढ़ा दिया है, खासकर तब जब कुछ कर्मचारियों को ऑनलाइन निशाना भी बनाया गया है।

सरकारी तकनीकी विभाग की हालत पहले से ही खराब है। वर्षों से इस्तेमाल हो रही पुरानी तकनीक, धीमा इंटरनेट कनेक्शन और बार-बार वेबसाइट क्रैश होने जैसी समस्याएं आम हैं। हाल ही में, healthcare.gov के लॉन्च में आई असफलताओं ने यह स्पष्ट कर दिया था कि सरकारी आईटी ढांचा कितना लाचार है।

इन सभी खामियों के बीच, DOGE और TTS जैसी टीमों का आना सिर्फ तकनीकी सुधार की बात नहीं है, बल्कि यह व्यवस्थित हमला है-ऐसा हमला जो पूरे संघीय तंत्र को निजी प्रयोगशाला में तब्दील करने के लिए किया जा रहा है।

DOGE की रणनीति में केवल तकनीकी बदलाव नहीं है, बल्कि इसमें सरकारी डेटा, वित्तीय प्रणालियों और संवेदनशील कर्मचारियों की जानकारी तक अनधिकृत पहुंच शामिल है। ट्रेजरी विभाग में भी DOGE के एक सहयोगी को पहुंच दी गई है, जहां ट्रिलियन डॉलर की वार्षिक धनराशि के भुगतान प्रणाली पर निगरानी रखी जा रही है।

इसी के साथ, DOGE ने CMS के ग्रांट-मैनेजमेंट सिस्टम तक भी पहुंच बनाई है, जिससे यह पता चलता है कि इस पूरे अभियान का उद्देश्य सिर्फ लागत में कटौती करना नहीं, बल्कि सरकारी धन के लूटपाट को बढ़ावा देना भी है।

राजनीतिक स्तर पर, इस पूरी साजिश के खिलाफ कांग्रेस में जब सवाल उठे, तो रिपब्लिकन सांसदों ने डेमोक्रेट्स की निंदा करते हुए इस अभियान को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी। प्रतिनिधि जेरी कॉनली ने पूछा, “यह कौन है, यह अनचुने अरबपति, जो बिना किसी विधायी प्रक्रिया के सरकारी एजेंसियों की चीर-फाड़ कर सकते हैं, कर्मचारियों को निकाल सकते हैं और बिना किसी संसद के निरीक्षण के परिवर्तन कर सकते हैं?”

जबकि रिपब्लिकन चेयरमैन जेम्स कॉमर ने इस मुद्दे को चर्चा के अयोग्य बताते हुए कहा कि यह चर्चा ही नहीं की जानी चाहिए। इस प्रकार, अमेरिकी लोकतंत्र में सत्ता के असली स्वामियों को चुनने के बजाय, अब यह कुछ अरबपतियों के हाथों में सौंप दिया जा रहा है।

यह सब कुछ सिर्फ सरकारी खर्चों में कटौती के नाम पर किया जा रहा है, परंतु असली खेल का मकसद सरकारी संस्थाओं को कमजोर कर निजी कंपनियों को सत्ता में लाना है। ट्रंप प्रशासन ने इस पूरे अभियान को वैधता देने के लिए कहा कि यह फेडरल कानून के अनुरूप किया जा रहा है, लेकिन जिस हद तक संवैधानिक मर्यादाओं को दरकिनार किया जा रहा है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह पॉवर का तख्तापलट है।

इस साजिश के तहत, DOGE की टीम न केवल सरकारी आईटी प्रणालियों की जांच कर रही है, बल्कि उन्होंने सरकारी कर्मचारियों से उनके तकनीकी कौशल, उनके द्वारा हल किए गए कठिन मुद्दों और उनकी उपलब्धियों की जानकारी लेने के लिए सवाल-जवाब सत्र भी आयोजित किए हैं।

उन्हें स्क्रीनशॉट्स, प्रश्नावली भरने और अपने कोड की समीक्षा के जरिए यह साबित करना पड़ रहा है कि वे अभी भी अपने पद के योग्य हैं। इस प्रक्रिया से यह स्पष्ट होता है कि सरकारी कर्मचारियों पर भारी दबाव बनाया जा रहा है, ताकि वे मस्क के द्वारा निर्धारित कठोर मानदंडों पर खरे उतरें, अन्यथा उन्हें निकाला जा सकता है।

DOGE के इस अतिक्रमण में स्लीप पॉड्स का भी उपयोग किया जा रहा है, जिससे कर्मचारी 120 घंटे प्रति सप्ताह काम करने के लिए मजबूर हो रहे हैं, जबकि पारंपरिक सरकारी कर्मचारी सिर्फ 40 घंटे का काम करते हैं। जब कर्मचारियों ने इस बात पर सवाल उठाया कि क्या 40 घंटे से अधिक काम करना कानूनी है, तो उन्हें बस मानव संसाधन विभाग से संपर्क करने की सलाह दी गई। यह स्थिति एक तरफ जहां कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रही है, वहीं दूसरी ओर यह लोकतांत्रिक मूल्यों और श्रम अधिकारों पर भी वार करने जैसी है।

इसके अलावा, DOGE के सहयोगियों ने हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज (HHS) के भुगतान और अनुबंध प्रणालियों तक पहुंच बना ली है, जिनके माध्यम से सालाना सैकड़ों अरब डॉलर स्वास्थ्य सेवाओं के भुगतान होते हैं।

HHS पर खर्च की जाने वाली धनराशि को नियंत्रित करने का दावा करते हुए, DOGE ने CMS के दो वरिष्ठ एजेंसी अधिकारियों के साथ सहयोग शुरू किया है, जिनमें से एक नीति पर ध्यान केंद्रित करता है और दूसरा संचालन पर। हालांकि मस्क ने X पर कहा कि मेडिकेयर में सबसे बड़ा पैसा घूम रहा है, लेकिन इस दावे के पीछे ठोस सबूत पेश नहीं किए गए।

इस पूरे अभियान के दौरान, DOGE ने ट्रेजरी विभाग, OPM और अन्य महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों में अपने प्रतिनिधियों को नियुक्त कर लिया है। ट्रेजरी सचिव ने DOGE के एक सहयोगी को एक महत्वपूर्ण भुगतान प्रणाली तक “रीड-ओनली” पहुंच प्रदान की, जिससे यह साबित होता है कि यह अभियान सिर्फ खर्चों में कटौती तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकारी धन के वितरण के तरीकों में भी हस्तक्षेप कर रहा है।

राजनीतिक क्षेत्रों में भी यह हमले खुलकर जारी हैं। कांग्रेस में, विशेष रूप से रिपब्लिकन सांसदों ने इस पूरे मामले को समर्थन दिया है, जबकि डेमोक्रेट्स ने लगातार सवाल उठाए कि बिना किसी विधायी निरीक्षण के एक अनिर्वाचित अरबपति को सरकार को चीर-फाड़ करने की अनुमति कैसे दी जा सकती है। इस शक्ति के असली स्वामियों को चुनने की प्रक्रिया के बजाय, अमेरिकी जनता का भविष्य कुछ ऐसे हाथों में सौंप दिया जा रहा है, जिनके इरादे केवल मुनाफाखोरी और निजी लाभ कमाने तक सीमित हैं।

यह पूरा दृश्य खुला नाटक है, जहां नाटककार एलन मस्क और उनके सहयोगी ट्रंप प्रशासन की छवि में बदलाव कर, अमेरिकी लोकतंत्र की नींव को जड़ से हिला रहे हैं। कर्मचारियों से लेकर साधारण नागरिक तक, हर कोई अब इस अनैतिक और असंवैधानिक हस्तक्षेप के भय में जी रहा है। सरकारी एजेंसियां, जो कभी जनता की भलाई के लिए बनी थीं, अब निजी कंपनियों के खिलौनों में तब्दील हो रही हैं।

अगर आज इस अतिक्रमण को रोका नहीं गया, तो कल के दिन में अमेरिकी लोकतंत्र इतिहास के पन्नों में दर्ज एक शर्मनाक प्रकरण बनकर रह जाएगा, जहां सरकार सिर्फ नाम मात्र की रहेगी और असली सत्ता कुछ अरबपतियों के हाथों में चली जाएगी। यह सिर्फ अमेरिकी समस्या नहीं है; यह वह मॉडल है जिसे अब दुनिया भर में फैलाने की तैयारी की जा रही है, जहां सरकारें निजी स्वार्थों और पूंजीपतियों की लालच के अधीन हो जाएंगी।

यह घोर हमले का दौर हमें चेतावनी देता है कि लोकतंत्र को बचाने के लिए हमें जागरूक होना होगा, आवाज उठानी होगी और ऐसी अनैतिक योजनाओं के खिलाफ एकजुट होकर विरोध करना होगा। जब तक आम नागरिक, श्रमिक संघ और लोकतांत्रिक संस्थाएं इस साजिश के खिलाफ खड़ी नहीं होतीं, तब तक यह तकनीकी क्रांति, जो सरकारी तंत्र को निजी मुनाफाखोरी के अधीन कर रही है, जारी रहेगी।

मस्क और उनके सहयोगी, जिनका दावा है कि वे सरकारी खर्चों में कटौती और अपव्यय को खत्म कर रहे हैं, असल में सरकारी संस्थानों को अपने निजी एजेंडे के अनुसार मोड़ने का काम कर रहे हैं। वे कर्मचारियों से पूछ रहे हैं कि “आपने कितनी कठिन समस्याओं को हल किया?” ताकि उनके तकनीकी कौशल की जांच की जा सके।

इस प्रक्रिया में कर्मचारियों को उनकी मेहनत के लिए उनके अनुभव और उपलब्धियों का प्रमाण प्रस्तुत करना पड़ रहा है, और यदि वे इन कठोर मानदंडों पर खरे नहीं उतरते, तो उन्हें निकाल दिया जाएगा।

इस पूरे प्रकरण में न केवल सरकारी डेटा और वित्तीय प्रणालियां खतरे में हैं, बल्कि लाखों आम नागरिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण भी दांव पर लगा दिए गए हैं। सरकारी संस्थानों का उद्देश्य जनता की सेवा करना होना चाहिए, न कि किसी अरबपति के निजी स्वार्थों का साधन बनना। अगर इस दिशा में सुधार नहीं किया गया तो भविष्य में अमेरिका में और भी व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता फैलेगी।

यह संकट अब न केवल अमेरिकी लोकतंत्र की बुनियादी संरचना पर आघात है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए चेतावनी भी है।

दुनिया भर के देश, जो लोकतंत्र की छाप को बरकरार रखने के लिए संघर्षरत हैं, उनके लिए यह कड़ा संदेश है कि अगर निजी स्वार्थों को सरकारी तंत्र में हावी होने दिया जाए तो लोकतंत्र की बुनियाद ही गिर सकती है।

(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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