नई दिल्ली। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुरामन राजन ने अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति को बेहद चिंताजनक करार दिया है और इसको हल करने के लिए पावर और गैरबैंकिंग वित्तीय क्षेत्र की समस्याओं को तत्काल हल करने का सुझाव दिया है। इसके साथ ही सुधारों के नये चरण की शुरुआत करने के साथ ही निजी क्षेत्र में निवेश पर जोर देने की बात कही है।
राजन 2013 से 2016 तक रिजर्व बैंक के गवर्नर थे लेकिन उन्हें दूसरा कार्यकाल देने से सरकार ने इंकार कर दिया था। इन तमाम सुझावों के साथ ही राजन ने सरकार के जीडीपी गणना के मौजूदा तरीके को भी बदलने का सुझाव दिया है। उनका कहना है कि इस तरह से इसे और ज्यादा विश्वसनीय बनाया जा सकता है।
सीएनबीसी 18 को दिए अपने इंटरव्यू में राजन ने कहा कि “निजी क्षेत्र के विश्लेषणकर्ताओं द्वारा विकास दर संबंधी विभिन्न तरह के अनुमान पेश किए जा रहे हैं जिनमें ज्यादातर आंकड़े सरकार के अनुमानित विकास दर से बहुत कम हैं। और मैं भी सोचता हूं कि अर्थव्यवस्था में मंदी एक ऐसा मामला है जिस पर सोचने की जरूरत है।”
भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर 2018-19 में 6.8 फीसदी आ गयी थी जो 2014-15 के मुकाबले से सबसे कम थी। और निजी एक्सपर्ट समेत रिजर्व बैंक के हिसाब से भी मौजूदा साल में जीडीपी 7 फीसदी से कम होने वाली है।

इसके और गहरी होने की आशंका दिख रही है। पिछले दो दशकों में आटो सेक्टर सबसे बुरे संकट के दौर का सामना कर रहा है। आटोमोबाइल सेक्टर और उससे जुड़ी इकाइयों में हजारों नौकरियों के जाने की रिपोर्ट आ रही हैं। रीयल इस्टेट में ढेर सारे फ्लैट बगैर बिके खड़े हैं। जबकि उपभोक्ता सामानों में बड़े स्तर पर विकास की स्थितियों में गिरावट दिख रही है।
उन्होंने कहा कि “आप हर तरफ व्यवसायियों द्वारा चिंता जाहिर करने के साथ ही उन्हें किसी तरह के मदद की जरूरत की चिल्ला-चिल्ला कर शिकायत करते सुन रहे होंगे।”
राजन ने कहा कि अर्थव्यवस्था और विकास दर में उछाल लाने के लिए सुधारों के एक नये चरण की शुआत की अब जरूरत है।
उन्होंने कहा कि “हमें सुधारों के एक नये चरण की जरूरत है जो उस विचार के साथ खड़ा होगा जैसा हम भारत को बनाना चाहते हैं। और मैं इस बात को पसंद करूंगा कि वह विचार ऊपर से आए जिसमें यह बात शामिल हो कि यह कुछ ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसको हम चाहते हैं। इधर-उधर कुछ प्रोग्राम अर्थव्यवस्था में व्यापक स्तर पर रिफर्म के एजेंडे का स्थान नहीं ले सकते हैं”। इसके साथ ही आगे उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार से उधार लेना कोई सुधार नहीं बल्कि एक टैक्टिकल पहल भर है।
उन्होंने कहा कि हमें जिस चीज को सचमुच में समझने की जरूरत है वह यह कि विकास दर में दो-तीन फीसदी की बढ़त के साथ कैसे इस देश को आगे बढ़ाया जा सके। रियायतें और सहयोग दीर्घकालीन समय के लिए विकल्प नहीं हो सकते हैं। खास कर बेहद बुरे वित्तीय घाटे की स्थिति में। इसकी बजाय पूरा सोच-समझ कर लाया गया साहसिक सुधार जिसमें दायरे से बाहर कूदना उचित नहीं होगा लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में सोचा-समझा हुआ सुधार जो लोगों को उत्साहित कर सके, भारतीय बाजार में ऊर्जा भर सके और भारतीय व्यवसासियों में स्फूर्ति ला सके। यही वक्त की मांग है।
उन्होंने कहा कि “इसी चीज की हम लोगों को आज जरूरत है और मैं आशा करता हूं कि इस पर काम करने के लिए हम अपने बेहतरीन दिमागों को इसमें लगाएंगे। मेरे लिहाज से इसमें किसी भी तरह का गैप अच्छा नहीं होगा क्योंकि हम बेहद बुरे दौर से गुजर रहे हैं।”
पूर्व गवर्नर ने पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के जीडीपी विकास दर संबंधी रिसर्च की तरफ भी ध्यान दिलाया जिसमें 2011-12 के मुकाबले 2016-17 में 2.5 फीसदी की कृत्रिम रूप से बढ़त दिला दी गयी थी।
उन्होंने कहा कि “मैं यह भी सोचता हूं कि हमें पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के तर्कों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। वास्तव में हम नये जीडीपी डाटा में विकास दर संबंधी कुछ ज्यादा ही अनुमान लगा ले रहे हैं। इसके लिए मैं सुझाव दूंगा- मैं इसको बहुत समय से कह रहा हूं- हम जीडीपी की गणना जिस तरीके से करते हैं उसको विशेषज्ञों के स्वतंत्र समूह से जांच करा लेनी चाहिए। और इस बात को सुनिश्चित करने की जरूरत है कि जीडीपी आंकड़ों में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं हुई है। जिससे गलत तरीके के नीतिगत फैसले से बचा जा सके।”

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रही मंदी के बारे में राजन ने कहा कि 2008 के वित्तीय संकट के मुकाबले पूरी दुनिया के स्तर पर बैंकों में पर्याप्त धन है।
उन्होंने कहा कि इतिहास कभी नहीं दोहराता है। इसलिए मैं सोचता हूं कि 2008 के मुकाबले इस बार ज्यादा रास्ते हैं। लेकिन हर जगह पर ऐसा नहीं है।
राजन ने कहा कि वह एक और वित्तीय संकट की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं लेकिन अगर यह आता है तो उसका स्रोत बिल्कुल अलग होगा।
उन्होंने कहा कि “इस समय बड़ा मसला वित्तीय क्षेत्र की फ्रेंजी नहीं है यह कुछ हो भी सकता है लेकिन मुख्य मुद्दा व्यापार और निवेश है और चिंता इस बात की है कि हम इस पर ध्यान देते हैं या नहीं। पुरानी वैश्विक व्यवस्था अब खत्म हो रही है और उसको प्रतिस्थापित करने के लिए ऐसा कुछ नहीं है जो देशों को ऐसा करने की छूट दे जो वैश्विक हित की जगह उनके अपने हित में हो। इसलिए यह बिल्कुल अलग दुनिया है।”
यह पूछे जाने पर कि 2008 की गिरावट भी दोहरायी जाने वाली है उन्होंने कहा कि “क्या मैं एक बड़े संकट की भविष्यवाणी करूं? मैं नहीं जानता लेकिन मैं सोचता हूं कि यह विभिन्न स्रोतों से आने जा रहा है और केवल पुरानी समस्याओं को हल करने से नई समस्याएं नहीं खत्म होने जा रही हैं।”