विकास के नाम पर जल, जंगल, जमीन से बेदखली का दुष्प्रभाव आदिवासियों की भाषा और संस्कृति पर

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झारखंड के गढ़वा जिला अंतर्गत बड़गड़ प्रखंड के गोठानी प्राथमिक विद्यालय में विश्व आदिवासी दिवस के ऐतिहासिक अवसर पर एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन अखिल भारतीय आदिवासी महासभा एवं आफ़िर के बैनर तले सम्पन्न किया गया।

स्वागत भाषण देते हुए अध्यक्ष जयप्रकाश मिंज ने अपने संबोधन में कहा जब दुनिया में सभ्यता का विकास नहीं हुआ था, तब भी हड़प्पा और मोहन जोदड़ो नदी घाटी में आदिवासियों ने आधुनिक सभ्यता का विकास कर लिया था। वहां विकसित नगर बसाये गए थे। लेकिन आक्रमणकारी आर्यों ने वहां से हमारे पूर्वजों को अपनी विकसित सभ्यता से बेदखल होने पर मजबूर कर दिया। आदिवासियों को हाशिये पर धकेले जाने का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ, बल्कि आधुनिक दुनिया में विश्व भर के राष्ट्र देशों ने इन समुदायों को भयंकर उत्पीड़न, बेकारी, गुलामी, प्राकृतिक संसाधनों से बेदखली जैसे अमानवीय यातनाओं से पीड़ित करते रहे। आदिवासियों को उनके नैसर्गिक संसाधनों पर हक दिलाने, सांस्कृतिक व सामुदायिकता का संरक्षण के प्रति अपनी भूमिका को रेखांकित करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के 192 देशों ने प्रस्ताव संख्या 49/214 पर 23 दिसम्बर 1994 को हस्ताक्षर किए, जिसमें भारत भी एक सदस्य है। तब से सम्पूर्ण विश्व में हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है।

कार्यक्रम में उपस्थित जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता फिलिप कुजूर ने कहा कि वर्त्तमान दौर में आदिवासियों पर चौतरफा हमला हो रहा है। आजाद भारत में राष्ट्रहित के नाम पर दर्जनों परियोजनाओं से आदिवासियों को विस्थापित किया गया। जिससे विस्थापित लोगों की जमीन, जंगल और पानी से उनको बेदखल होना पड़ा। जिसका दुष्प्रभाव उनकी भाषा और संस्कृति पर भी पड़ा। आज भी झारखण्ड अलग राज्य होने के बाद 200 से अधिक एमओयू सरकारों ने किए हैं, जिससे विस्थापित होने की तलवार आदिवासियों पर हमेशा लटकती दिख रही है। आदिवासियों की एकजुटता के संघर्ष ही आनेवाले समय में समुदायों की मुक्ति का रास्ता होगा।

बतौर मुख्य वक्ता झारखण्ड नरेगा वॉच के संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि पेसा के 25 सालों के बाद भी पेसा नियमावली सरकारों द्वारा अधिसूचित नहीं किया जाना अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है। खासकर गढ़वा का भंडारिया और बड़गड़ प्रखण्ड अनुसूचित क्षेत्र होने के बाद भी यहाँ जो भी जिले स्तर से निर्गत होते हैं, वे जिले के 18 सामान्य प्रखंड के लिए निर्गत होते हैं उसी उन्हीं पत्रों के आलोक में ये दोनों प्रखण्डों पर भी प्रशासनिक गतिविधि संपन्न की जाती है, जो कि एक जिले के वरिष्ठ अधिकारी के तौर संविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। उन्होंने माँग रखते हुए कहा कि जिस भाँति पंचायत और उससे ऊपर के तमाम अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के लिए कार्यालय और सचिवालय स्थापित हैं, उसी प्रकार झारखण्ड के समस्त 5वीं अनुसूची वाले गाँवों के ग्राम प्रधानों और स्थाई समितियों के दस्तावेजों को संधारित करने हेतु ग्राम सभा सचिवालयों को स्थापित किया जाना चाहिए। आदिवासी कवयित्री व लेखिका ज्योति लकड़ा ने कहा कि आज आदिवासी समुदाय की संस्कृति खतरे में है और इसे बचाने के लिए आदिवासी समुदाय को आगे आना होगा। उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज आदिवासी समुदाय की नयी पीढ़ी भाषा, गीत, नृत्य भूलते जा रही है, उसे बचाना जरूरी है, तभी आदिवासी समुदाय बचेगी।

कार्यक्रम में सुनील मिंज, मिलियानुस केरकेट्टा, बुधलाल केकट्टा, तगरेन केरकेट्टा, जितेंद्र सिंह, मिथिलेश कुमार, विश्राम बाखला, पूर्व मुखिया रामदास मिंज, अर्जुन मिंज, संजय कुजूर, अमोस मिंज, मोनिका लकड़ा , अग्रेन केरकेट्टा सहित सैकड़ों की संख्या आदिवासी समुदाय लोग उपस्थित थे।

(झारखण्ड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

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