अहं और प्रजातंत्र विरोधी रवैया शेख हसीना के अधःपतन का जिम्मेदार

संयोजक राष्ट्रीय सेक्युलर मंच बांग्लादेश में शेख हसीना और उनकी सरकार के अधःपतन के बाद शायद दुनिया में एक मात्र धर्म निरपेक्ष इस्लामिक देश का पतन हो गया है। शेख हसीना के पिता मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के निर्माता थे। उन्होंने यह सिद्ध किया था कि नागरिकों के लिए धर्म से ज्यादा महत्व भाषा का है।

जब पाकिस्तान के अधिनायकशाही शासकों ने बांग्लादेश पर उर्दू को लादने की कोशिश की थी तो उन्होंने इसे नामंजूर कर दिया था और यह कहा था कि बांग्ला भाषा ही हमारी मातृ भाषा है। इसके साथ ही पाकिस्तान के चुनाव में मुजीबुर्रहमान को बहुमत मिला था। इसके बावजूद पाकिस्तान के शासकों ने उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। इस सबका बांग्लादेश के नागरिकों ने जबरदस्त विरोध किया और उन्होंने पाकिस्तान से अलग होने का फैसला किया।

इस बीच मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई। बांग्लादेश का शासन दक्षिणपंथी इस्लामी ताकतों के हाथ में आ गया। परंतु कुछ समय के बाद मुजीबुर्रहमान की आवामी लीग फिर सत्ता में आ गई और शेख हसीना प्रधानमंत्री बनीं। उनके शासनकाल में बांग्लादेश ने काफी प्रगति की। वहां की आर्थिक व्यवस्था में भारी सुधार हुआ।

आर्थिक प्रगति के साथ ही शेख हसीना ने वहां अनेक संवैधानिक सुधार किए। इन सुधारों के जरिये उन्होंने बांग्लादेश को एक पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाया। वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों को जिनमें हिन्दू भी शामिल थे, पूरी सुरक्षा दी और दक्षिणपंथियों को सिर उठाने का अवसर नहीं दिया।

भारत से भी बांग्लादेश के संबंध अच्छे हो गये। जिन बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम पर भाजपा अपनी राजनीति करती थी, उसमें कुछ हद तक ब्रेक लग गया और नरेन्द्र मोदी ने भी बांग्लादेश से अपने संबंध सुधारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परंतु धीरे-धीरे शेख हसीना को सत्ता का नशा चढ़ने लगा। वहां उन्होंने अपने विरोधियों पर जबरदस्त ज्यादतियां कीं।

यहां तक कि उनकी सबसे बड़ी विरोधी पार्टी की नेता खालिदा जिया को जेल में डाल दिया। उनकी पार्टी को चुनाव लड़ने में तरह-तरह की बाधाएं उत्पन्न कीं और स्थिति इतनी खराब हो गई कि खालिदा जिया की पार्टी ने अभी पिछले चुनाव में भाग लेने से भी मना कर दिया।

इसी तरह वहां की एक और पार्टी जमाते इस्लामी को उन्होंने आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया, जबकि जमात का बांग्लादेश में प्रभाव था। उन्होंने हर तरह से लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला किया। नतीजे में उनकी लोकप्रियता घटती गई और एक मौका ऐसा आया कि लगभग पूरा बांग्लादेश उनके विरूद्ध हो गया।

जब उन्होंने उनके विरोधियों को आतंकवादी कहा और उन्हें रजाकार भी निरूपित किया, इससे पूरे बांग्लादेश में आक्रोश फैल गया। फिर इन्होंने एक और गलत फैसला किया कि उन लोगों को जो 1971 के पाकिस्तान विरोधी आंदोलन में शामिल हुए थे, उनको नौकरी देने का फैसला किया। नौकरी प्राथमिकता पर दी जाने लगी और सरकारी नौकरियों में उन्हें 30 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया।

इसका जबरदस्त विरोध बांग्लादेश में हुआ और इस विरोध ने शेख हसीना का व्यक्तिगत रूप टारगेट किया और मांग उठने लगी कि शेख हसीना इस्तीफा दो और बांग्लादेश छोड़ो। विरोध इतना बढ़ गया कि शेख हसीना को रात के अंधेरे में हेलिकॉप्टर से अपनी बहन के साथ, कुल दो सूटकेस और अपनी काम की चीजों के साथ, बांग्लादेश को छोड़ना पड़ा।

वहां की फौज ने उनको बांग्लादेश छोड़ने में मदद की। फौज ने उनकी मदद इसलिए की कि यदि वे बांग्लादेश से नहीं भागतीं तो शायद उनकी हत्या कर दी जाती। उन्होंने भारत में शरण ली और भारत सरकार ने उनके हवाई जहाज को फौजी हवाई अड्डे में उतरने की इजाज़त दी और उन्हें अस्थायी शरण दी। भारत पहुंचने के बाद हमारे सुरक्षा सलाहकार उनसे मिले और उन्हें सुरक्षा का आश्वासन दिया।

अब वे तय कर रही हैं कि वे किस देश में शरण लें। उनकी सरकार के पतन से हमारे सामने बहुत ही गंभीर समस्या खड़ी हो गई है, क्योंकि बांग्लादेश सही मायनों में हमारा मित्र देश है। वहां जो स्थिति बनी है उसका चीन और पाकिस्तान पूरा लाभ लेने की कोशिश करेंगे।

इन दोनों देशों की नीति का विरोध करना हमारे लिए कठिन हो जायेगा। शेख हसीना के पुत्र ने भी घोषणा कर दी है कि उनकी राजनीति समाप्त हो गई है और वे शायद ही बांग्लादेश जायेंगी। उनका अधःपतन इस बात का प्रतीक है कि भले ही आप धर्मनिरपेक्ष हों परंतु यदि आप डेमोक्रेटिक नहीं हैं तो आपकी धर्मनिरपेक्षता का कोई अर्थ नहीं होता।

शेख हसीना की धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता इस हद तक थी कि जिन रवीन्द्रनाथ टैगोर के गीत को हमने अपना राष्ट्रगान बनाया था, उन्हीं रवीन्द्रनाथ टैगौर के गीत को उन्होंने भी बांग्लादेश का राष्ट्रगान बनाया था। इसके साथ ही साड़ी यदि कहीं सबसे ज्यादा पहनी जाती थी, तो प्रायः बांग्लादेश में। वे स्वयं हमेशा साड़ी पहनती थीं।

वहां के रहन-सहन से उन्होंने हमेशा यह बताने की कोशिश की कि वे भारत की सच्ची मित्र हैं। परंतु उनके सत्ता के घमंड के सामने यह सब नहीं टिक सका और उन्हें अत्यधिक शर्मनाक स्थिति में अपनी मातृभूमि को छोड़ना पड़ा और अपने पिता की धरोहर को खोना पड़ा।

यहां यह बताना उचित होगा कि जब शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या की गई तो उस समय उनके परिवार में जितने लोग थे, सबकी हत्या कर दी गई थी। परंतु शेख हसीना इसलिए बच गई थीं कि वे उस समय जर्मनी में थीं। उसके बाद उन्होंने लम्बे समय तक अपने पिता के आदर्शों पर चलने का प्रयास किया परंतु वे बाद में भटक गईं। हम भारतवासियों को इसका हमेशा दुख रहेगा।

(एल एस हरदेनिया वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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