वकीलों के हड़ताल से न्याय के शत्रु खुश होते हैं

मऊ, ‘‘तारीख पे तारीख…!” ‘लेकिन इंसाफ नहीं मिलता है।’  फिल्म ‘दामिनी’ का डायलॉग कोर्ट कचहरी को लेकर बहुत मशहूर है। जो सच है, बड़े आस के साथ लोग कोर्ट आते हैं। फिर लाचारी बेबसी से खाली हाथ लौट जाते हैं।

यूपी में सभी तहसीलों पर राजस्व न्यायालय होता है। जिसमें काश्तकारी भूमि की पैमाइश, उत्तराधिकार, नामांतरण, कुर्रा-बंटवारा, धारा 34/35 आदि राजस्व से संबंधित मुकदमे का निस्तारण होता है। न्यायालय के पीठासीन एसडीएम, तहसीलदार और नायब तहसीलदार होते हैं। इन न्यायालयों में लगभग 16 लाख मुकदमे लम्बित हैं।

बीते साल कोविड के कारण न्यायालय नहीं चलने से मुकदमे काफी बढ़े हैं। मुकदमा लम्बा खींचने से पक्षकारों में मारपीट, बलवा, हत्या जैसी कई घटनाएं हो चुकी हैं। जिससे राज्य सरकार ने इन मामलों के शीघ्र निस्तारण के लिए अक्टूबर 2023 में मुख्य सचिव के तरफ से आदेश जारी हुआ था। निस्तारण की धीमी प्रगति पर नवम्बर 2023 में 12 जिलाधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा गया। मऊ में सदर तहसील उपजिलाधिकारी (न्यायिक) को प्रतिकूल प्रविष्टि मिला था। इसके अलावा कई अधिकारियों पर गाज गिरी थी।

शीघ्र निस्तारण के दबाव के चलते पीठासीन अधिकारियों ने मुकदमे खारिज कर अपने कर्तव्य का इतिश्री कर लिया। जिसके कारण विगत दिसम्बर 2023 में ढाई माह में जैसे-तैसे 11.8 लाख वाद का निस्तारण हुआ। जो आश्चर्यचकित करने वाला है। सरकार ने इसका श्रेय लिया। लेकिन मामला ज्यों का त्यों रहा। इसके बाद ज्यादातर वाद में तजवीजसानी (पुर्नविलोकन) दाखिल कर फिर चालू हो गया।

मुकदमा निस्तारण न होने का दूसरा कारण अधिकारियों पर प्रशासनिक कार्य की भारी जिम्मेदारी है। जिसके कारण अधिकारी व्यस्त होने से कोर्ट के लिए पर्याप्त वक्त नहीं दे पाते हैं।

इसके इतर एक और कारण है वकीलों का हड़ताल। जनपद मऊ के तहसील मधुबन में न्यायालय उपजिलाधिकारी, तहसीलदार के बारे में आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार जनवरी से 22 अप्रैल 2024 तक उपजिलाधिकारी न्यायालय 7 दिन,  तहसीलदार न्यायालय 3 दिन चला है। जबकि हफ्ते में 3 दिन सोमवार, बृहस्पतिवार व शुक्रवार को न्यायालय चलना तय है। उपजिलाधिकारी का न्यायालय जनवरी में 2 दिन तथा फरवरी में पीठासीन अधिकारी के कार्यव्यस्तता व बार एसोसिएशन के प्रस्ताव के कारण चला ही नहीं। मार्च माह में 2 दिन चला है। अर्थात् 3 माह में ये न्यायालय 15 दिन चला है। अप्रैल माह में 1 से 22 तक में सिर्फ 3 दिन चला है।

इतना कम न्यायालय क्यों चला? जानकर आश्चर्य होगा वकीलों का हड़ताल। यहां का बार एसोसिएशन कोई न कोई समस्या बताकर न्यायिक कार्य न करने का प्रस्ताव करता रहा है। विगत 15 अप्रैल के प्रस्ताव का कारण अविवादित पत्रावली का निस्तारण न होना। भला बिना न्यायालय चले पत्रावली का निस्तारण कैसे होगा!

इसके अलावा वकील के पिता, माॅ, पत्नी, पुत्र, चाचा, चाची आदि की मृत्यु पर प्रस्ताव पास होता रहा है। एक शोक प्रस्ताव विगत 18 मार्च, सोमवार को बार सदस्य घनश्याम मल्ल की मां की मृत्यु का था। जिसके बारे में हैरतअंगेज कारनामा हुआ है। बताया जाता है कि उक्त वकील की मां की मृत्यु विगत कई वर्ष हो चुकी है। फिर तो मरने वाला कौन था? वो वकील घनश्याम मल्ल की पत्नी की मौसी विद्यावती देवी पत्नी सुरेन्द्र सिंह थीं। जो तेलियान कला जनपद देवरिया की रहने वाली थीं।

ये भी चर्चा है कि उस दिन ये वकील स्थानीय ग्रामीण न्यायालय में सक्रिय रहे और फिर तहसील में भी आये थे। फिर विगत 18 अप्रैल को अधिवक्ता योगेश चौबे के चाचा के निधन पर बार एसोसिएशन ने शोक प्रस्ताव दिया था। जिसके बारे में बताया जाता है कि निधन विगत 15 अप्रैल को हुआ था। मतलब 4 दिन बाद शोक प्रस्ताव दिया गया। किसी की मृत्यु का शोक प्रस्ताव उसी दिन दिया जाता है जिस दिन न्यायालय चलने का दिवस होता है। जो आश्चर्यजनक है।

ज्यादातर दिन न्यायालय वकीलों के प्रस्ताव के कारण नहीं चला। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के हड़ताल के बारे में 20 अप्रैल 2023 को सख्ती से कहा कि ‘कोई भी वकील हड़ताल पर नहीं जा सकता और न ही काम बंद कर सकते हैं।’

जनपद बलिया के रसड़ा तहसील में वकीलों के बार-बार हड़ताल के बारे में विगत 29 जनवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश एम के गुप्ता तथा क्षितिज शैलेन्द्र की खण्डपीठ ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए तल्ख टिप्पणी की कि ‘‘बिना उचित कारण वकीलों की हड़ताल समाज के हाशिए पर बैठे गरीब वादकारी के जीवन स्वतंत्रता को कठिनाई में डालती है। वकीलों की हड़ताल से न्याय के शत्रु खुश होते हैं।’’   

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