जस्टिस मुरलीधर के विदाई समारोह का आयोजन दिल्ली हाईकोर्ट परिसर में आयोजित किया गया था। यह वही जज हैं जिनसे डर कर सरकार ने रातों रात उनके तबादले का नोटिफिकेशन जारी कर दिया। जबकि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने कुछ जजों के तबादलों की सिफारिश भी उनके तबादले की सिफारिश के साथ ही की थी। उनके तबादले के बाद दिल्ली हाईकोर्ट की जिस पीठ ने उक्त मुक़दमे की सुनवाई की उसने एक महीने का समय सरकार और पुलिस को दे दिया। दिल्ली हाईकोर्ट का यह एक दुःखद कदम था कि जिस दंगे में 50 से अधिक लोग मर चुके हों, उसकी सुनवाई भी इतनी मंथर गति से चल रही है।
पर हैरान न हों, सीजेआई हुज़ूर खुद ही यह मान चुके हैं कि वे दबाव में हैं। लेकिन एक अच्छी खबर यह है कि, सुप्रीम कोर्ट ने ही, 4 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के इस निर्णय पर आपत्ति की और कहा कि 6 मार्च को ही यह मामला सुना जाए। लंबी तारीखें ऐसे मामलों में न दी जाएं। अब कल 6 मार्च को इस मामले की अग्रिम सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट में है। अब यह देखना है कल दिल्ली हिंसा और हेट स्पीच के मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट क्या निर्देश जारी करती है।
जस्टिस मुरलीधर ने, दिल्ली हाईकोर्ट के जज के तौर पर 27 फरवरी को आखिरी सुनवाई की थी। वह मुक़दमा रिहाइशी इलाके में चलायी जा रही वाणिज्यिक गतिविधियों से संबंधित एक मामले से जुड़ा था। उस मुक़दमे में फैसला देने के बाद, इसे उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में, अपना आखिरी न्यायिक कार्य बताया। जस्टिस मुरलीधर का तबादला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में किये जाने हेतु उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने 12 फरवरी को सिफारिश की थी।
लेकिन सरकार ने नोटिफिकेशन 26 फरवरी की रात 11 बजे अचानक जारी कर दिया था। उनके तबादले के समय को लेकर अलग अलग बातें कही गईं। कुछ लोगों ने इस तबादले को पुलिस और भाजपा के प्रति उनके सख्त रूख से जोड़कर देखा, जबकि सरकार की ओर से दलील दी गई कि उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम की 12 फरवरी की सिफारिश के अनुरूप तबादले की यह एकदम सामान्य प्रक्रिया थी।
जस्टिस मुरलीधर के इस तबादले के बाद 5 मार्च को हाईकोर्ट के बार और बेंच द्वारा औपचारिक फेयरवेल दिया गया। मुरलीधर को फेयरवेल देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के तमाम अधिवक्ताओं की भीड़ उमड़ आई। जस्टिस मुरलीधर को अलविदा कहने के लिए इतने लोग उस विदाई समारोह में पहुंच गए कि वहां बैठने की जगह तक नहीं बची और लोग सीढ़ियों पर खड़े हो गए। इस फेयरवेल प्रोग्राम की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब प्रसारित हो रही हैं। अनेक वकीलों, जो उस समारोह में थे ने, समारोह के कई चित्र अपने ट्विटर अकाउंट पर डाले हैं। तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि वकीलों का परिसर में जमावड़ा लगा हुआ है और यह भीड़ उनकी लोकप्रियता के साथ-साथ न्यायप्रियता का भी द्योतक है।
विदाई के मौके पर जस्टिस मुरलीधर ने सबसे पहले तबादले से संबंधित विवाद को साफ किया। उसके बाद उन्होंने कहा कि 26 फरवरी शायद उनके जीवन का सबसे लंबा काम करने वाला दिन रहा। उन्होंने बताया कि इसकी 12.30 रात से जस्टिस एजे भंभानी के साथ घर पर बैठक के साथ शुरुआत हुई। उन्होंने बताया कि राहुल राय की तरफ से दायर पीआईएल पर सुनवाई का यह आदेश जस्टिस जीएस सिस्तानी ने दिया था। जिसमें दंगे में घायल पीड़ितों को शिफ्ट करने के वास्ते एंबुलेंस के लिए सेफ पैसेज की मांग की गयी थी।
पूरे घटनाक्रम का खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि “जब मेरी याचिकाकर्ता के वकील से बात हुई तो सबसे पहले मैंने चीफ जस्टिस के छुट्टी पर होने के चलते जस्टिस सिस्तानी को यह जानने के लिए फोन किया कि मुझे क्या करना चाहिए। जस्टिस सिस्तानी ने कहा कि वह खुद भी आधिकारिक तौर पर पूरी 26 फरवरी को छुट्टी पर हैं। और यह कि मुझे मामले की सुनवाई करनी चाहिए।”
उन्होंने बताया कि इस तथ्य को पारित किए गए आदेश में दर्ज किया गया है। इसके पहले बार एसोसिएशन की ओर से आयोजित एक और विदाई समारोह में जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि “जब न्याय को जीतना होगा तो वह जीत जाएगा….सत्य के साथ रहिए- न्याय होगा”।
चेन्नई में 1984 में वकालत शुरू करने वाले मुरलीधर करीब तीन साल बाद बेहतर भविष्य की आशा में दिल्ली आये और उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में वकालत शुरू की। वे पूर्व अटार्नी जनरल जी रामास्वामी (1990-1992 ) के जूनियर भी रहे हैं । राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने 29 मई 2006 को डॉ. एस मुरलीधर को दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया था। इस पद पर नियुक्ति से पहले वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और निर्वाचन आयोग के वकील भी रह चुके थे। बाद में वह दिसंबर, 2002 से विधि आयोग के अंशकालिक सदस्य भी रहे।
इसी दौरान, 2003 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यलाय से पीएचडी भी कर ली। डॉ. मुरलीधर की पत्नी ऊषा रामनाथन भी एक अधिवक्ता और मानव अधिकार कार्यकर्ता हैं जो आधार योजना के खिलाफ आन्दोलन में काफी सक्रिय थीं। बतौर वकील डॉ. मुरलीधर और उनकी पत्नी ऊषा रामनाथन ने भोपाल गैस त्रासदी में गैस पीड़ितों और नर्मदा बांध के विस्थापितों के पुनर्वास के लिये काफी काम किया था।
मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर बेहद संवेदनशील न्यायमूर्ति डॉ. एस मुरलीधर निजी जीवन में एक सादगी पसंद व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर 23-24 फरवरी को दिल्ली के कुछ हिस्सों में हिंसा की घटनाओं के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति डा. मुरलीधर ने कड़ा रूख अपनाते हुए पुलिस और भाजपा के कुछ नेताओं को आड़े हाथ लिया था। उन्होंने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के ट्रांजिट रिमांड पर 2018 में रोक लगाने वाली पीठ के सदस्य के रूप में सरकार और व्यवस्था को खरी खरी सुनाई थी।
1986 के हाशिमपुरा नरसंहार के मामले में उप्र पीएसी के 16 कर्मियों और 1984 के सिख विरोधी दंगों से संबंधित एक मामले में कांग्रेस के पूर्व नेता सज्जन कुमार को सजा जस्टिस मुरलीधर ने ही सुनाई थी। ये उच्च न्यायालय की उस पीठ के भी एक सदस्य थे, जिसने 2009 में दो वयस्कों में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर रखने की ऐतिहासिक व्यवस्था दी थी।
हर वह अफसर जनता से स्वाभाविक सम्मान पाता है जो कायदे कानून से अपना काम करता है और पक्षपात रहित रहता और दिखता है। अफसर की रैंक कुछ भी हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैंने बेहद काबिल और निष्ठावान थानाध्यक्ष को भी बहुत ही सम्मान के साथ विदा होते देखा है और चुपके से सरक कर जाते कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को भी देखा है। यहां भी जस्टिस मुरलीधर के प्रति लोगों में क्या सम्मान है दिख रहा है। जालसाज, आपराधिक मानसिकता और अहंकारी लोग यह समझ नहीं पाएंगे। जस्टिस मुरलीधर के नए पद के लिये शुभकामनाएं और आशा है वे अपनी न्यायप्रियता ऐसे ही बनाये रखेंगे।
( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)
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