तेज प्रताप यादव, लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे हैं और उनकी दो शादियां पुरुष वर्चस्ववाद (Male Chauvinism) को समझने का एक महत्वपूर्ण नजरिया देती हैं। यह नज़रिया खासतौर पर वंशवादी राजनीति, सामंती सामाजिक मानसिकता तथा बिहार की “सामाजिक न्याय” की राजनीति में मौजूद अंतर्विरोधों के संदर्भ में उभर कर सामने आता है।
तेज प्रताप के संदर्भ में पुरुष वर्चस्ववाद
पुरुष वर्चस्ववाद उस सोच और सामाजिक व्यवस्था को कहते हैं, जिसमें पुरुष को महिला से श्रेष्ठ माना जाता है। यह सोच महिलाओं की स्वतंत्रता, चुनाव और आत्मनिर्णय पर नियंत्रण के रूप में सामने आती है। तेज प्रताप यादव की दोनों शादियां इस मानसिकता को उजागर करती हैं, जो जातीय गौरव, राजनीतिक ज़रूरत और पारिवारिक प्रतिष्ठा की आड़ में महिलाओं को केवल एक साधन की तरह देखती है।
ऐश्वर्या राय से पहली शादी के नाम पर राजनीतिक सौदा
2018 में तेज प्रताप यादव और ऐश्वर्या राय (जेडीयू के वरिष्ठ नेता चंद्रिका राय की बेटी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा राय की पोती) की शादी सिर्फ एक निजी रिश्ता नहीं, बल्कि एक राजनीतिक समझौता थी।
पढ़ी-लिखी और आधुनिक सोच वाली ऐश्वर्या जल्द ही एक बेहद पितृसत्तात्मक और सामंती राजनीतिक परिवार में फंस गईं, जहाँ उनकी पहचान और आज़ादी दोनों इस राजनीतिक रसूख वाले परिवार के दबाव में दबा दी गईं।
बाद में उन्होंने तेज प्रताप पर घरेलू हिंसा, मानसिक उत्पीड़न और अस्वस्थ वैवाहिक व्यवहार के आरोप लगाए, जिन पर राजनीतिक तबके और समाज के बड़े हिस्से ने विश्वास करने की बजाय उनका मज़ाक उड़ाया या उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया।
मीडिया में उन्हें बदनाम किया गया, सामाजिक संस्थानों ने भी उनसे दूरी बनाई।इससे यह पता चलता है कि सशक्त पुरुष के खिलाफ बोलने पर महिला को कैसे चुप कराया जाता है।
यहां पुरुष वर्चस्व इस रूप में दिखता है कि महिला को जातिगत राजनीतिक जोड़तोड़ का मोहरा बना दिया गया, और जब उसने विरोध किया, तो उसे त्यागने में ज़रा भी देर नहीं लगायी गयी।
छुपाकर, बेशर्मी, और सार्वजनिक दबदबे के साथ अनुष्का यादव से दूसरी शादी
मई 2024 में तेज प्रताप ने कथित रूप से दूसरी शादी गुपचुप तरीके से कर ली, जबकि उनकी पहली शादी क़ानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई थी।
यह गुपचुप तरीक़ा और सार्वजनिक बेशर्मी सामंती सोच और क़ानून-सामाजिक मानदंडों के प्रति लापरवाही और ठेंगे पर रखने को उजागर करती है।
जहां महिलाओं को हर समय उनके ‘चरित्र’ और ‘आचरण’ के आधार पर आंका जाता है, वहीं तेज प्रताप को न तो राजनीतिक जवाबदेही देनी पड़ी, न सामाजिक। दरअसल यह उस व्यवस्था को मज़बूत करता है, जो पुरुष के अपराध को माफ़ करती है और महिला की स्वतंत्रता को दंडित।
सामाजिक न्याय की आड़ में राजनीतिक सामंतवाद
लालू प्रसाद यादव का परिवार,जो कभी पिछड़ा वर्ग सशक्तिकरण का प्रतीक था, अब अपने निजी जीवन में ऊँची जातियों जैसे पितृसत्तात्मक और सामंती व्यवहार की नकल कर रहा है।
जो राजनीति कभी ब्राह्मणवादी सामंतवाद से मुक्ति की बात करती थी, अब वंशवाद और पुरुष प्रभुत्व की सेवा में बदल चुकी है।
जब सामाजिक न्याय की राजनीति में लैंगिक न्याय की जगह नहीं होती, तब तेज प्रताप जैसे पुत्रों को निजी और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं पर निरंकुश नियंत्रण करने की छूट मिल जाती है।
पुरुष वर्चस्व, सामाजिक अन्याय और वंशवाद का जाल
तेज प्रताप यादव की शादियां सिर्फ़ निजी घटनायें नहीं हैं, बल्कि यह दिखाती हैं कि भारत की राजनीतिक वंश परंपराओं में पुरुष वर्चस्व किस तरह काम करता है। जब सत्ता पुरुषों के पास केंद्रित होती है, तो महिलायें अक्सर केवल रणनीतिक संपत्ति या सम्मान की वस्तु बन जाती हैं, उनके जीवन के फ़ैसलों में उनकी भूमिका नगण्य रह जाती है।
यह पुरुष वर्चस्ववाद ही है, जो ‘गौरव’, ‘जाति’ और ‘परंपरा’ की भाषा में लिपटा हुआ है, और यह दिखाता है कि कैसे “सामाजिक न्याय” के नेता भी स्त्रियों के साथ अन्याय करने से ज़रा नहीं चूकते।जब तक लैंगिक न्याय (gender justice) को सामाजिक न्याय के केंद्र में नहीं रखा जाएगा, तब तक तेज प्रताप जैसे लोग पितृसत्तात्मक छूट के उत्पाद और वाहक बने रहेंगे।
(उपेंद्र चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)