चीफ जस्टिस की टिप्पणी पर महिलाओं में रोष, खत लिखकर जताया सख्त एतराज

Estimated read time 1 min read

ऐतिहासिक किसान आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी पर सर्वोच्च न्यायालय में की गई नकारात्मक टिप्पणियों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश का ध्यान आकर्षित करते हुए 800 से अधिक महिला किसानों और विद्यार्थियों ने एक खुला पत्र लिखा है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय जैसी पवित्र संस्था में महिलाओं की भागीदारी पर ऐसी टिप्पणी होने पर दुःख और गहरा आश्चर्य जाहिर किया है।

किसान आंदोलन से सम्बंधित मुकदमों पर सुनवाई के दौरान, 11 और 12 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं की भागीदारी पर टिप्पणी की गई। रिपोर्टों के अनुसार यह कहा गया कि महिलाओं और बूढ़ों को वापस भेज देना चाहिए और उन्हें आंदोलन में भाग नहीं लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में की गई यह टिपण्णी कृषि में महिलाओं की भागीदारी के प्रति अपमानजनक है। साथ ही, यह महिलाओं को किसान का दर्जा दिलाने के लिए लंबे समय से चल रहे संघर्ष का भी मजाक उड़ाती है।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप और आशा की सदस्या कविता कुरुंगनती, जो सरकार के साथ एमएसपी पर किसानों की ओर से वार्ता में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं, ने कहा, “कोर्ट की सुनवाई और कोर्ट का आदेश कई मायनों में विवादास्पद और अस्वीकार्य है। महिला किसानों के प्रति व्यक्त किए गए विचारों में पितृसत्ता की झलक बेहद चिंताजनक है। हम सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह करते हैं कि वो महिलाओं की एजेंसी को स्वीकार करे।”

एमए की विद्यार्थी और यूथ फॉर स्वराज की राष्ट्रीय काउंसिल की सदस्य अमनदीप कौर, जो पहले दिन से आंदोलन में शामिल हैं, ने कहा, “महिला इस आंदोलन में हर रूप और हर स्तर पर शामिल हैं। भाषण देना, व्यवस्था देखना, बैठकें, दवाई, रसोई, वापस गांव में खेतों की देखभाल, सामान की व्यवस्था से लेकर अलग-अलग हिस्सों में सैकड़ों धरना स्थलों का प्रबंधन महिलाएं कर रही हैं। वह इस किसान आंदोलन की आत्मा हैं। उनकी भूमिका को कम करना या उनकी एजेंसी को निरस्त करना बेहद निंदनीय है।”

यूथ फॉर स्वराज की राष्ट्रीय कैबिनेट की सदस्य जाह्नवी, जो ऑनलाइन इस आंदोलन का समर्थन जुटाने में लगी हुई हैं, ने कहा, “यह आंदोलन केवल तीन कानूनों का विरोध करने का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि महिला बराबरी और सशक्तिकरण के एक स्पेस का भी प्रतिनिधित्व करता है। महिलाओं के बारे में ऐसे वक्तव्य पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं। सर्वोच्च न्यायालय जैसी पवित्र संस्था का उपयोग ऐसी टिप्पणियों के लिए न हो तो बेहतर है।”

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author