कॉरपोरेट पर सम्पत्ति कर लगा कर संसाधन जुटाए सरकार: वर्कर्स फ्रंट

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लखनऊ। कोरोना के खिलाफ जमीनी स्तर पर युद्ध लड़ रहे कर्मचारियों के डीए व भत्तों में कटौती कर उनका मनोबल तोड़ने और काम के घंटे बढ़ाने, छंटनी करने जैसे मजदूर विरोधी फैसलों को सरकार को तत्काल प्रभाव से वापस लेना चाहिए और संसाधन जुटाने के लिए कारपोरेट घरानों पर सम्पत्ति कर लगाकर कोरोना संक्रमण के विरूद्ध कार्य करना चाहिए। यह प्रतिक्रिया वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष व स्वराज अभियान नेता दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी अपने बयान में व्यक्त की।

उन्होंने कहा कि कल प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात में और आरएसएस के प्रमुख ने स्वदेशी अपनाने पर जोर दिया है। लेकिन सच्चाई यह है कि कोरोना संक्रमण के इस संकट काल में भी बर्बाद होते स्वदेशी कुटीर, मध्यम उद्योगों के लिए एक पैसा सरकार ने नहीं दिया। जिस खेती किसानी पर सत्तर प्रतिशत से ज्यादा आबादी निर्भर है वह तबाह हो गयी है। किसानों की गेंहू और तिलहन को खरीदने की व्यवस्था कोरा मजाक बनकर रह गयी है। सप्लाई चेन तबाह होने से किसानों की सब्जियां बर्बाद हो रही है। सार्वजनिक उद्योगों को बंद करने और उनका निजीकरण करने का खेल जारी है। वास्तव में पूरी अर्थव्यवस्था को देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए बर्बाद किया जा रहा है।

वित्तीय घाटा के बढ़ने की वजह से विदेशी पूंजी देश से भाग न जाए इस डर से हर प्रकार से तबाह हो रही है नागरिकों की जिंदगी को बचाने के लिए मोदी सरकार अपना खजाना खोलने के लिए तैयार नहीं है। हालत यह है कि देश के महज 63 कारपोरेट परिवारों के पास देश के कुल बजट 27 लाख करोड़ से ज्यादा सम्पत्ति है। लेकिन सरकार इन कारपोरेट घरानों पर सम्पत्ति कर लगाकर संसाधन जुटाने की जगह जमीनी स्तर पर काम कर रहे कोरोना योद्धा सरकारी कर्मचारियों पर ही कहर ढाने में लगी है। स्वास्थ्य कर्मियों, कुपोषण दूर करने वाले आईसीडीएस कर्मचारियों यहां तक कि पुलिस के सिपाहियों तक को मिलने वाले भत्तों पर रोक लगा दी गयी।

इतना ही नहीं कम कर्मियों को रखने के जारी हो रहे सरकारी आदेशों के कारण बड़े पैमाने पर पूंजीपतियों को छटंनी करने की खुली छूट मिल गयी है। बातें चाहे जितनी की जाएं प्रवासी मजदूरों का हाल बेहाल है उनके खाने तक का इंतजाम नहीं किया गया है। वहीं काम के घंटे बढ़ाने, ट्रेड यूनियनों पर प्रतिबंध लगाने और हड़ताल को अपराध बनाने पर सरकार तेजी से काम कर रही है। गुजरात और मध्य प्रदेश में भाजपा सरकारों ने तो काम के घंटे 12 करने का आदेश भी जारी कर दिया है। 

वर्कर्स फ्रंट नेता ने कहा कि जिस आरएसएस की विचारधारा ही विदेशी हो उसके द्वारा स्वदेशी की बातें कोरी लफ्फाजी है। उसने तो अपने स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठनों तक को खत्म कर दिया। वह आत्मनिर्भर भारत नहीं बना सकती। आज जरूरत है अर्थव्यवस्था को नए सिरे से पुनर्गठित कर आत्मनिर्भर सम्प्रभु अर्थव्यवस्था बनाने की। इसके लिए सरकार को जो विदेशी पूंजी देश में है उसके बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाना होगा, कारपोरेट घरानों पर सम्पत्ति कर लगाना होगा और आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने वाले मंत्रियों व नौकरशाहों की सम्पत्ति जब्त करनी होगी। यह करने का साहस आरएसएस-भाजपा की सरकारों में नहीं है। 

उन्होंने कहा कि देश में एक जन पक्षधर लोकतांत्रिक राजनीति ही इसे कर सकती है। यह राजनीति ही सरकारी स्वास्थ्य व शिक्षा को मजबूत बनायेगी, हर नागरिक की आजीविका की गारंटी के लिए सहकारी खेती, छोटे मझोले उद्योगों के विकास के लिए मदद देगी, मनरेगा में साल भर रोजगार देगी और इसे शहरी क्षेत्रों में लागू करेगी, हर परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी व नौकरी न मिलने पर बेकारी भत्ता देने, किसानों व छोटे मझोले उद्योगों को कर्ज से मुक्ति व बेहद कम ब्याज दर पर कर्ज की गारंटी करेगी, हर व्यक्ति  को जिंदा रखने के लिए राशन जिसमें गेहूं, चावल के साथ दाल, तेल समेत अन्य आवश्यक सामग्री मुफ्त देगी, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को मजबूत करेगी, बैंक, बीमा व बिजली, कोयला जैसी राष्ट्रीय सम्पत्ति के निजीकरण पर रोक लगाने और लोकतांत्रिक अधिकार व संस्कृति को सुनिश्चित करने जैसे आवश्यक सवालों को हल करेगी।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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