वाराणसी। जी-20 को लेकर वाराणसी शहर के जर्रे-जर्रे को सजाया-संवारा जा रहा है। सभी प्रशासनिक अमले व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने में जुटे है, ताकि इस वैश्विक आयोजन से सत्ता को आनंद की अनुभूति कराई जा सके। इसके लिए कानूनी मानदंडों के अलावा जबरिया प्रयास भी किए जा रहे हैं। शहर को अतिक्रमणमुक्त करने की कार्रवाई में किसी नागरिक को अपना पक्ष रखने भर का मौका भी नहीं दिया जा रहा है।
गत दिनों प्रशासन पर आरोप लगा था इसी तरह की एक कार्रवाई में धक्का लगने से एक बुजुर्ग महिला की मौत हो गई थी। शहर, विशेषकर सड़कों और इसके आसपास के इलाकों को साफ-सुथरा कर और बिजली लाइटों-झालरों की रोशनी में नहा दिया गया है। इसके लिए सड़क के किनारे, चौराहे और आसपास के एरिया में ठेला, गुमटी, पटरी, रेहड़ी लगाने वाले हजारों लोगों को अपनी रोजी-रोटी से हाथ धोना पड़ा है। विदित हो कि वाराणसी में जी-20 की बैठक 17 अप्रैल से 19 अप्रैल तक होनी है।

गरीबों को दरकिनार कर शहर को आधुनिक लुक देने की मुहिम यहीं नहीं थमती दिख रही है। तकरीबन पांच दिन पहले आदमपुर चौकी स्थित राजघाट पानी टंकी के समीप किला कोहना की बस्ती में उत्तर रेलवे वाराणसी ने चुपके से एक नोटिस चस्पा कर दी। नोटिस में यहां रहने वाले 200 से ज्यादा परिवारों के घर-माकन और निवास को अवैध बताते हुए बस्ती छोड़कर जाने कहा गया है। अन्यथा, बुलडोजर से ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जाएगी। बस्ती के नागरिक सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से अत्यंत पिछड़े या यूं कहिये कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े जैसे-तैसे गृहस्थी की गाड़ी खींचने में लगा हैं। यह नोटिस देख बस्ती के हजारों नागरिक सहमे हुए हैं। नोटिस नुमाया करने वाली रेलवे पर आक्रोशित हैं।

वाराणसी जिला मुख्यालय से बमुश्किल 15 किमी दूर राजघाट पानी टंकी से लगे किला कोहना बस्ती है, जो नगर निगम के वार्ड नंबर पांच में आती है। बेदखली की नोटिस चस्पा होने के बाद से पीड़ितों में नाराजगी और चेहरे पर उदासी छाई हुई है। शहर में जी-20 की धूम और चकाचौंध पर गरीबों की बेबसी, उत्पीड़न और खुर्द-बुर्द होते जीवन के आहाट का दर्द एक सियाह धब्बे की तरह है। लोगों का कहना है कि गरीबों को उजाड़ कर या भगाकर शहर का विकास नहीं किया जा सकता है। संवैधानिक दायरे में हमलोगों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था कर विकास करें। सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है कि “गरीबों को बगैर पुनर्वास के उजाड़ा नहीं जाए। बहरहाल, शुक्रवार को जनचौक की टीम राजघाट स्थित किला कोहना पहुंची। पेश है रिपोर्ट….
रोटी को तरस जाएगा मेरा कुनबा

साठ वर्षीय रशीदा बेदखली की कार्रवाई को रोकने के लिए जिलाधिकारी को ज्ञापन देने वालों में से एक हैं। वह जनचौक को बताती हैं कि “शाम का समय था। मैं नमाज पढ़कर बाहर आई तो देखा कि कुछ लोग मोहल्ले में दीवार पर सफ़ेद कागज़ चिपका रहे थे। पास जाकर देखने पर पता चला कि बस्ती खाली करने की नोटिस है। जिसमें दावा किया गया कि यह जमीन उत्तर रेलवे की है, काशी स्टेशन के आसपास है। नौ अप्रैल को चस्पा नोटिस में 15 अप्रैल तक बस्ती खाली कर देने, अन्यथा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई जाएगी। नोटिस चस्पा कर रहे लोगों से हमलोगों ने पूछा ये क्या है और क्या हो रहा है? वे लोग बिना कुछ बोले जल्दी-जल्दी खिसक गए। मैं झाड़ू-बर्तन कर परिवार चलाती हूं। रोज कुआं खोदना है और रोज पानी पीना है। हम गरीब लोग यहां से कहां जाएंगे? मैं और बस्ती वाले बिजली के बिल, पानी का बिल और गृहकर समय से जमा करते आ रहे हैं। दो से ढाई सौ रुपए कमाने वाले लोग अपने और परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था करेगा या चार-पांच हजार रुपए प्रतिमाह किराए का घर लेगा। मैं यहां से बेदखल हुई तो मेरा कुनबा रोटी को तरस जाएगा और बर्बाद हो जाएगा।”

दुकान बंद अब घर की बारी
विजय की उम्र 27 वर्ष है, और कुछ दिन पहले तक चाय-पान की दुकान पानी टंकी के पास लगाकर अपना परिवार चला रहे थे। जी-20 बैठक को लेकर शहर में चलाये जा रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान की शिकार इनकी रोजी-रोटी भी हो गई है।
बस्ती की एक दुकान पर समय काट रहे विजय ने कहा “मेरे परिवार में नौ सदस्य हैं। इनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी मैं ही उठता हूं। मेरी चाय-पान की दुकान थी, प्रशासन ने पहले दुकान बंद कराया फिर उठाकर सड़क के किनारे पटक दिया। अब घर को छोड़ने की नोटिस भी चिपका दिए हैं। एक के बाद एक विपत्ति हमारे ऊपर पड़ रही है। मैं और परिवार के लोग सहमे हुए हैं। सभी दस्तावेज हमारे पास मौजूद हैं। आमदनी उतनी है नहीं है कि तुरंत किराए का माकन ले लूं। यहां से उजाड़कर मैं अपने परिवार के साथ कहां जाऊंगा? सरकार से मेरी मांग है कि, जिस जमीन पर कई दशकों से बसे हैं, उसको हमारे नाम करे या फिर उचित पुनर्वास की व्यवस्था कर पलायन कराए।”

जांच का मिला आश्वासन
किला कोहना बस्ती में साठ-सत्तर दशक से अधिक रहने वाली तकरीबन 900 की आबादी में महिलाएं घरों में झाड़ू-बर्तन और पुरुष ठेला-खोमचा और मजदूरी कर अपने गृहस्थी के दरकते बुनियाद को सहेजने में जुटे हुए हैं। इन मेहनकश गरीबों के पास किला कोहना के अलावा और कोई ठिकाना नहीं है। इनके पास आधार कार्ड, वोटर कार्ड है, और ये लोग जलकल के पानी का बिल और गृहकर भी दशकों से देते आ रहे हैं, जिसे बस्ती के लोग चुकाते आ रहे हैं। इस क्रम में 13 अप्रैल को सैकड़ों की तादात में पीड़ित बाशिंदे वाराणसी जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर रेलवे के उजाड़ने की कार्रवाई को रोकने की मांग की है। वाराणसी डीएम ने ज्ञापन लेने के बाद मामले की जांच करवाने की बात कही।

विपत्ति से आमना-सामना
अजय गोड़ भी साठ साल से रहते आ रहे हैं, यहां रहते हुए ये तीसरी पीढ़ी है। नोटिस मिलने के बाद नींद नहीं आ रही है। वह कहते हैं कि ‘जब से नोटिस छपी है, तबसे मेरे पूरे परिवार को नींद नहीं आ रही है। खाना खाने का भी मन नहीं कर रहा है। हमलोग तनाव में और सहमे हुए हैं। ये परेशानी सिर्फ मेरे साथ नहीं अपितु बस्ती के सैकड़ों लोगों के साथ है। अपनी जमा-पूंजी से ईंट की दीवार बनाकर उसपर टीनशेड डालकर परिवार के साथ रहते आ रहे हैं। ठेला लगाकर-मजदूरी करके से इनके पेट भरने की व्यवस्था करता हूं। ऐसे में यह नोटिस मेरे ऊपर विपत्ति से आमना-सामना होने के समान है। आदमी जाएगा तो कहां जाएगा? जी-20 हमलोगों के लेवल की बात नहीं है। गरीबों को उजाड़ा जा रहा है, मैं उजड़ने के मुहाने पर खड़ा हूं। जबरदस्ती बेदखल किया गया तो आत्महत्या कर लूंगा।”

पंद्रह दिन से बंद है ठेला दुकान
अंबा देवी, जी-20 के लिए हटाए जा रहे अतिक्रमण से दुखी हैं। वह अपनी पीड़ा कुछ यूं बयां करती हैं “बहन मायावती ने हम लोगों की मलिन बस्ती में बिजली पहुंचाने का काम किया। हमारे पास आजीविका का कोई ठोस और स्थायी विकल्प नहीं है। जो ठेला लगाते थे, उसे अतिक्रमण के चलते बंद हुए 15 दिन का समय हो चुका है। पड़ोस के एक दर्जन लोगों की ठेला-दुकानें बंद है। ठेला से सौदा बेचकर पेट पालते थे, वह ठप्प पड़ा हुआ है। छोटे-छोटे बच्चे हैं। सरकार को सोचना चाहिए कि गरीबों को उजाड़ने से पहले उसके रहने की व्यवस्था करें। हमलोग भी इंसान है। हमें भी भूख-प्यास लगती है, और हमारा भी परिवार है। सौ रुपए कमाने वाला आदमी चार-पांच हजार रुपए प्रति महीने का किराया-भाड़ा कैसे दे पाएगा? कुछ समझ नहीं आ रहा है कि हमलोग क्या करें।”

उजाड़ने की गैर-क़ानूनी कोशिश
वाराणसी के एक्टिविस्ट व कम्युनिस्ट फ्रंट के संयोजक मनीष शर्मा इस कार्रवाई को गरीबों, दलित, पसमांदा, वनवासी, नट, घुमन्तु और अल्पसंख्यक समाज के खिलाफ प्रशासन और सत्ता द्वारा सुनियोजित षडयंत्र मानते हैं। इनका कहना है कि “किला कोहना बस्ती के नागरिक पचास-साठ सालों से रहते आ रहे हैं। ये लोग कब्ज़ा नहीं किये हुए हैं। यही इनका अंतिम ठिकाना है। कायदे से अबतक ये जमीनें उनके नाम हो जानी चाहिए थी, जो अभी तक नहीं हो सका है। अभी के दौर में समूचे बनारस में वनवासी, नट, पसमांदा, घुमन्तु, मजदूर, ठेला-पटरी वाले और अन्य जातियों को क्रम से उजाड़ने की गैर क़ानूनी कोशिश की जा रही है।”

बढ़ सकते हैं मामले
मनीष आगे कहते हैं “मिसाल के तौर पर तिलमापुर में वनवासी के घर को जबरिया ढहा दिया गया। बदलते समय के लिहाज से, दिनों-दिन जमीनों की कीमतों के बढ़ने के बाद से अति गरीबों के घर-मकान और बस्तियां निशाने पर हैं। इस समाज का कोई संगठन, आवाज और जनप्रतिनिधि नहीं होने से इनकी कहीं निर्णायक सुनवाई नहीं हो पा रही हैं। इससे दबंगों के साथ हालिया नोटिस को भी जमीनों और बस्तियों से बेदखल करने की कुचेष्टा का प्रयास है। आने वाले दिनों में जनपद में उक्त जातियों के निवास स्थान को हड़पने के और मामले देखे जा सकते हैं। इस मामले से जिला प्रशासन को अवगत करा दिया गया है।”
दीवार खड़ी कर नहीं छुपाई जा सकती गरीबी
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि “बनारस शहर में जब भी बड़े इवेंट होते हैं। नालों, सीवर, गरीब, पसमांदा और मजदूरों के झुग्गी-झोपड़ी को टेंट के परदे और बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर गरीबी को छुपाने का असफल कोशिश की जाती है। उत्तर प्रदेश में सरकार के कथनी और करनी में बड़ा फर्क दिख रहा है। मीडिया से योगी जी कहते हैं कि गरीबों को विस्थापित करने से पहले पुनर्वास की व्यवस्था की जाए, लेकिन हकीकत में तस्वीर दूसरी है। रेलवे ने नोटिस दिया है। स्थानीय प्रशासन को हस्तक्षेप कर मानवीयता और संवैधानिक मूल्यों के आधार पर ठोस विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए। सरकार गरीबों और मजदूरों के घरों के सामने दीवार खड़ी कर उनकी लाचारी छिपाने में लगी है, बजाय उनके उत्थान के प्रयास किये। आसमान छूती महंगाई और परिवार के भरण-पोषण के बाद बचे जीतोड़ परिश्रम की कमाई से मजदूर या गरीब लोग जाने क्या क्या सहकर अपने सर पर छप्पर की व्यवस्था किये होंगे?”

वैभव आगे कहते हैं “बुलडोजर से किसी का घर ढहना आसान है, लेकिन अपने परिवार के घर बनाना कितना मुश्किल होता है। यह बात भला कोई उन तक पहुंचाए। बहरहाल, आज से चालीस-पचास साल पहले जमीन की वैल्यू कम थी। आज इनकी कीमतें आसमान छू रही है और अरबों रुपए की जमीन होगी। सरकार को चाहिए भी तो उसे पहले जमीन के लिए पैसे खर्च करने पड़ेंगे। यहां तो सबसे आसान शिकार गरीब हैं। इन्हें पुलिस और बुलडोजर से डरा दो। जरूरत पड़े तो डंडे मारकर भगा दो। बच गए करोड़ों रुपए। यह काम उनके पसंद के ठेकेदारों को मिलेगा यानि डबल मुनाफा। ये जो सरकार का चालबाजी और तानाशाही रवैया है। संविधान में सरकार की परिकल्पना ऐसी नहीं है। बस्ती के लोगों के हालत बहुत पीड़ादायक है। वाराणसी में पहले से ही दर-बदर की ठोकरें खा रहे गरीबों को उजाड़ कर जी-20 मेहमानों को विकास दिखाने की ये कैसी तैयारी है ?”
(वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट।)
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