ग्राउंड रिपोर्ट : विकास को आईना दिखाते पूर्वी यूपी के पहाड़ी गांव, यहां ठहर जाती है जिंदगी !

नौगढ़, चंदौली। एक ऐसा गांव जो आज यानी आजादी के 77 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। ग्रामीण, छात्र और महिलाएं बहुत ही विपरीत और जोखिम भरी परिस्थिति में आवागमन को विवश हैं।

गांव तक पहुंचने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है, लोग उबड़-खाबड़ पथरीले और बोल्डर बिखरे रास्ते से 4 से 5 किमी का सफर एक से दो घंटे में बड़ी मुश्किल से तय करते हैं। तब जाकर जंगल में स्थित गांव की मुख्य सड़क तक आ पाते हैं।

यहां स्वास्थ्य सेवा और पेयजल सेवा भगवान भरोसे है। गांव में स्वास्थ्य सेवा की बदहाली की वजह, यहां न तो स्वास्थ्य केंद्र और न ही उपकेंद्र है। यह बदहाल स्थिति चंदौली जनपद के नौगढ़ तहसील क्षेत्र में स्थित केल्हड़िया गांव और औरवाटांड (चिकनी) गांव की है। इन गांवों के नागरिकों का जीवन परेशानियों में गुजर रहा है।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार चंदौली ज़िले की आबादी 19,52,756 थी। इसमें 10,17,905 पुरुष और 9,34,851 महिलाएं शामिल थीं। 2001 में चंदौली ज़िले की जनसंख्या 16 लाख से अधिक थी। चंदौली में शहरी आबादी सिर्फ़ 12.42 फ़ीसदी है। 2541 वर्ग किलोमीटर में फैले चंदौली ज़िले में अनुसूचित वर्ग की आबादी 22.88 फ़ीसदी और जनजाति आबादी 2.14 फ़ीसदी है।

“गांव में संसाधनों का बहुत अभाव है। पक्की सड़क, अस्पताल, साफ पेयजल और बढ़िया स्कूल के लिए मैं और मेरी तरह ही कई छात्र-छात्राएं लंबे अरसे से तरस रहे हैं। अपने गांव में सबसे बड़ी दिक्कत पक्की सड़क और साफ पेयजल की है। पानी के चक्कर में पढ़ाई-लिखाई बहुत प्रभावित हो रही है”।

नौगढ़ तहसील क्षेत्र के एक गांव के कच्चे रस्ते पर बिखरे पत्थर व बोल्डर

“सुनसान रास्ते से हमारे अभिभावक स्कूल भेजने से मना करते हैं। शाम ढलते ही गांव अंधेरे में डूब जाता है। किसी तरह से काम-धंधे से समय चुराकर मैं थोड़ा-बहुत पढ़-लिख पाता हूं।” यह बातें नौगढ़ तहसील क्षेत्र के सातवें दर्जे छात्र रणजीत कोल ने “जनचौक” से कही। 

रामसिंह आजीविका चलाने के लिए आसपास के गांवों से दूध खरीदते हैं और उससे खोया तैयार कर मुगलसराय बेचने ले जाते हैं। इससे जो आमदनी होती है, उससे वे अपने परिवार के जरूरतों पर खर्च करते हैं।

स्थानीय पंडी गांव 4-5 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी पर बसे इन गांवों से उबड़-खाबड़ रास्ते से साइकिल से बाल्टे में दूध लेकर आना-जाना आसान नहीं है। तबीयत पस्त हो जाती है और नुकसान भी उठाना पड़ता है।

रामसिंह “जनचौक” से कहते हैं “मैं रोजाना पंडी व लौवरी गांव से आदिवासी-अनुसूचित जाति के किसानों के यहां दूध खरीदने जाता हूं। 40 रुपए प्रतिलीटर के हिसाब से रोजाना 12-15 लीटर दूध खरीदता हूं। उसे ख़राब रास्ते से अपने घर तक लाने में रास्ते में 1.5 – 2 लीटर दूध छलक जाता है, क्या करें ? इसका घाटा मुझे ही उठाना पड़ता है। यह रोज होता है।”

कच्चे-पथरीले रास्ते से दूध लेकर आता केल्हड़िया गाँव का दूधिया रामसिंह

रामसिंह आगे बताते हैं “रास्ता सही नहीं होने की वजह से ग्रामीण कई समस्याओं से घिरे हुए हैं। चुनाव में लोग आते हैं वोट मांगने तो कहते हैं कि तुरंत बन जाएगा। वे लोग वादे तो ऐसे करते हैं, जैसे गांव में अब कोई समस्या ही नहीं रहेगी, लेकिन चुनाव के गुजरते ही, सब कुछ भुला दिया जाता है।

हम लोग अपने रोजाना के जीवन में चुनौतियों से जूझते हुए जीवन की गाड़ी खींचने में लगे हैं। गांव में न पीने को साफ़ पानी है और न सड़क है व न ही अन्य जनकल्याणकारी सुविधाओं का लाभ हमलोगों को मिल पा रहा है।”

गौरतलब है कि विंध्य पहाड़ी और सदाबहार घने जंगलों से घिरे चकिया व नौगढ़ तहसील के तकरीबन आधा दर्जन गांव सड़क, स्वास्थ्य सुविधा, स्कूल, साफ पेयजल और अन्य कल्याकारी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। ये गांव पहाड़ी क्षेत्र में होने की वजह से सरकारी योजनाओं की पहुंच अपेक्षित दशा में नहीं हो पाती, जिसका दम सरकार भरती है।

हासिये पर पड़े जीवन की गवाही देता एक आदिवासी का जर्जर घर

आरोप है कि चंदौली जिला मुख्यालय से 70-80 किलोमीटर दूर दुर्गम क्षेत्र में होने की वजह से इन गांवों होने वाले सरकारी विकास कार्य और जन कल्याणकारी योजनाओं को भ्रष्टाचार का शिकार होना पड़ता है। ग्रामीणों की शिकायत के बावजूद गंभीरता से शिकायतों का निराकरण या कार्रवाई नहीं होती इससे समस्या जमीनी स्तर पर बनी हुई है।

सवारी साधनों की कमी भी पहाड़ी गांवों में रहने वाले हजारों नागरिकों का सफर कठिन बना देती है। अब झूरी खरवार की पीड़ा को समझने का प्रयास किया जाए, जो तकरीबन घने जंगलों और पहाड़ों से घिरे सुनसान 12-13 किलोमीटर सुनसान रास्ते पर अकेले चलकर अपने गांव आ रहे थे। 

झूरी, हांफते और दम लेते हुए अपनी आंखों से कभी जंगलों को निहारते हुए तो कभी गांव को जाने वाले सुनसान रास्ते को टटोलते हुए सूखे कंठ से से कहते हैं। “मैं सुबह का ही अपने एक रिश्तेदारी से नौगढ़ के पास वाले गांव से निकला हूं। शाम को चार बज गए हैं और मैं अभी घर नहीं पहुंच पाया हूं।

सवारी गाड़ी की दिक्कत से कई मील सुनसान जंगली रास्ते से आने वाले झूरी खरवार

नौगढ़ से पंडी गांव के मोड़ तक (जहां चकिया-नौगढ़ मार्ग पर जलप्रपात का बोर्ड लगा है।) सवारी गाड़ी तो मिली। इसके बाद में सुनसान जंगलों के बीच 12-13 किलोमीटर पैदल ही चलकर आ रहा हूं। इतने लम्बे रास्ते को पैदल और अकेले तय करने में तबीयत पसीने से तर-बतर हो जाती है। भालू व अन्य जंगली जानवरों का भय सदैव बना रहा है।”

“प्यास लगने पर रास्ते में पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। आपको बीच जंगल में प्यासे ही आगे बढ़ाना होगा। पहाड़ों की चढ़ाई-उतराई पर घुटने दर्द के मारे चरमरा जाते और सांस फूलने लगती है।

सुनसान रास्ते पर जाने कौन-कब आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता है। सरकार या जिला प्रशासन को चाहिए, पहाड़ी और दूर-दराज बसे ग्रामीणों की सहूलियत के लिए आवागमन के लिए दो-तीन सवारी गाड़ी की व्यवस्था करे।”  

स्वास्थ्य आपदा की स्थिति में केल्हड़िया गांव में मुश्किल से भी एम्बुलेंस को पहुंचने में काफी जद्दोजहद करना पड़ता है। रास्ता ऐसा दुर्गम और बेतरतीब कि एक बार वाहन का पहिया फिसला तो वाहन जंगल में फंस सकता है। फिर कई घंटों की मशक्कत के बाद भी निकलना मुश्किल।

नौगढ़ से पंडी गांव तक सभी प्रकार के वाहन आसानी से आ जाते हैं, भले से सार्वजनिक परिवहन का अभाव है। वहीं, पंडी से केल्हड़िया तकरीबन 4 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करने में वहां चालकों के पसीने छुड़ा देता है। पत्थरों व जंगलों में लड़-घिसकर गाड़ियों के पार्ट-पुर्जे ख़राब होते से सो अलग।

मसलन, आजादी के 77 सालों के बाद भी स्वास्थ्य सुविधाओं की देरी से पहुंच पर केल्हड़िया के नागरिकों का स्वास्थ्य और उनकी अपेक्षाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं। 

अपने उम्र के पड़ाव में तकरीबन पांच दशक तक सफर पूरी कर लेने वाली नौरंगी कोल का जीवन कई कठिन स्मृतियों और पीड़ादाई अनुभवों से भरा है। गांव तक पहुंच मार्ग तो है ही नहीं। इसकी दिक्कत महिलाओं से बेहतर कौन समझ सकता है।

खराब सड़क की वजह से गर्भवती महिलाओं की जांच और प्रसव के लिए अस्पताल ले जाने के दौरान, परिजन का मन घर में आने वाली खुशखबरी से ज्यादा पथरीले और ऊंचे-नीचे मार्ग को लेकर आशंका-अनहोनी से भर उठता है। यह पीड़ा न अफसर समझते और न ही जनप्रतिनिधि गंभीरता से लेते हैं। 

नौरंगी कहती हैं “हमलोगों का गांव दो चीजों (साफ़ पेयजल और पक्की सड़क) की कमी से एकदम पिछड़ गया है। या फिर ऐसा समस्याग्रस्त गांव पूरे जिले में नहीं होगा। जब बुजुर्ग और बच्चों की तबीयत ख़राब होती है, तो जान पर बन आती है।

महिलाओं के स्वास्थ्य चुनौतियों की पीड़ा बताने वालीं नौरंगी देवी

जब से मैं इस गांव में आई हूं तब से आदिम व्यवस्था जैसे हालात से सभी गांव वालों को देखती आ रही हूं। इस तीन दशकों में भी कुछ बदलाव नहीं हो पाया है। गर्भवती महिला को प्रसव के लिए ले जाने के दौरान औरतों को क्या दर्द-तकलीफ होती हैं। इसको बताने से नहीं महसूस करने इस तकलीफ को समझा जा सकता है।

रात-बिरात तबीयत ख़राब होने पर सुबह का इंतजार करना पड़ता है। जब बारिश के दिनों में चुआड़ का पानी पीने की वजह से ग्रामीणों की तबीयत ज्यादा बिगड़ जाती है, तब स्वास्थ्य महकमे के एक-दो आते हैं और दवा देकर चले जाते हैं। बाकी दिनों में कोई हाल लेने नहीं आता है।”

औरवाटाड़ (चिकनी) का कच्चा व बदहाल रास्ता

गौरतलब है कि चंदौली और सोनभद्र के जंगलों में आदिवासियों की आठ जातियां रहती हैं। इनमें मुख्यरूप से कोल, खरवार, भुइया, गोंड, ओरांव या धांगर, पनिका, धरकार, घसिया और बैगा हैं। साल 1996 में वाराणसी से टूटकर चंदौली जनपद बना।

इस दौरान कोल, खरवार, पनिका, गोंड, भुइया, धांगर, धरकार, घसिया, बैगा आदि अनुसूचित जनजातियों को अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध कर दिया गया।

अध्यापक वीरेंद्र खरवार को सभी समस्याओं से बड़ी पक्की सड़क की कमी लगती है। वह बताते हैं कि “मैं रोजाना पंडी से केल्हड़िया साइकिल से बच्चों की पढ़ाने जाता हूं। पक्की सड़क न होने से 22 से अधिक लड़के-लड़कियां सुनसान जंगली रास्तों से स्कूल नहीं जाते हैं”।

अध्यापक विरेन्द्र खरवार

“जब मैं (एक एनजीओ की मदद से) इन्हें पढ़ाने जाता हूं तो विकास से छिटके गांव को लेकर कई प्रश्न और विचार में जेहन में उभरते हैं। मसलन, बुनियादी सुविधाओं में शामिल पक्की या बारहमासी सड़क गांव, कस्बे और ग्रामीणों के जीवन में रफ़्तार व कई सहूलियतें लेकर आती है”।

वीरेन्द्र कहते हैं “जब सड़क ही नहीं होगी तो कई सुविधाएं और जरूरत-आवश्यकताओं की पूर्ति मुश्किल में पड़ जाता है। इन सुविधाओं की पहुंच न के बराबर होती है। और भ्रष्टाचार खुले तौर पर सामने आते हैं। जैसे इनको मालूम है कि जंगल में जांच करने कोई जाने वाला नहीं है।”  

(पवन कुमार मौर्य पत्रकार हैं। नौगढ़ क्षेत्र से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट।)

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