ग्राउंड रिपोर्टः मोदी के गोद लिए गांव नागेपुर में दरकने लगे सुराज के सपने, फीकी पड़ी विकास की चमक

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नागेपुर, बनारसप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2016 में बनारस के नागेपुर गांव को आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लेने का ऐलान किया था तब इस गांव के लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। नागेपुर के लोगों को उम्मीद थी कि यहां विकास का ऐसा माडल खड़ा होगा, जिसे लोग सालों-साल याद करेंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कुछ ही सालों में ग्रामीणों के सुराज के सपने दरकने लगे और विकास की चमक में दरारें आ गईं।

अराजीलाइन प्रखंड में जयापुर के बाद नागेपुर ऐसा दूसरा गांव था जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 06 मार्च, 2016 को आदर्श ग्राम योजना के तहत अपने संसदीय क्षेत्र में गोद लिया था। सेवापुरी विधानसभा का यह गांव बनारस शहर से करीब 21 किमी दूर है। नागेपुर की दलित बस्ती की 26 वर्षीया पूजा ने समाजशास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएट तक पढ़ाई की है। इनके पति बनारस शहर में एक टाइल्स की दुकान में मजूरी करते हैं। पूजा कहती हैं, “हमारे पति पहले सूरत में रहते थे। साल 2020 में शादी के बाद लाकडाउन लगा तो फिर दोबारा परदेश में काम करने नहीं गए। वो चाहते हैं कि मैं और ज्यादा पढ़ाई करूं और नौकरी भी। हमारा नसीब अच्छा नहीं है, इसलिए हम पढ़-लिखकर भी बेरोजगार हैं। शादी के बाद हम ससुराल आए तब पता चला कि इस गांव को पीएम नरेंद्र मोदी ने गोद ले रखा है। शुरू में हमने नौकरी के लिए बहुत हाथ-पांव मारे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। महंगाई इतनी ज्यादा है कि घर चलाना मुश्किल हो गया है।”

पूजा बात जारी रखती हैं और कहती हैं, “हमारे ससुर बलिराम हथकरघा पर बनारसी साड़ियों की बुनाई करते हैं। मुश्किल से सौ-डेढ़ सौ रुपये ही कमा पाते  हैं। हमारे पति गोविंद की रोजाना की कमाई तीन-चार सौ रुपये से ज्यादा नहीं है। बीजेपी सरकार के लोगों ने बातें बहुत कीं, लेकिन हमें आवास मिला ही नहीं। व्यवसाय करने के लिए हमारे पास पूंजी नहीं है। मेरे पति इंटर पास हैं, लेकिन मोदी सरकार से कोई उम्मीद हम नहीं कर सकते। नागेपुर में बुनकरों की तादाद अच्छी खासी है, लेकिन किसी की माली हालत ठीक नहीं है। अखिलेश सरकार के समय बुनकरों को सस्ती बिजली मिलती थी। दो-ढाई सौ रुपये से ज्यादा बिजली का बिल नहीं आता था, लेकिन अब ढाई-तीन हजार तक हर महीने बिल भरना पड़ रहा है। लूम पर एक साड़ी की बुनाई पर सौ-पचास रुपये बचा पाना मुश्किल है।”

मोदी ने औरतों को क्या दिया?

पूजा को इस बात से रंज है कि पीएम मोदी सिर्फ वोट के हिसाब से बातें करते हैं। पिछले साल महिला आरक्षण के मुद्दे पर उन्होंने नारा दिया था, “लेडीज फस्ट, लेकिन औरतों को मिला क्या? किसी के पास सरकारी जॉब नहीं है। सरकार ने सेना की स्थायी नौकरी तक छीन ली। पुलिस की भर्तियां निकल रही है तो पेपर लीक हो जा रहा है। इस, चुनाव में बेरोजगारी ही नहीं, महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है। हरहराती लू चल रही है। जून जैसी गरमी है। बच्चों की छुट्टी नहीं हुई है। हर सामान में मिलावट हो रही, जिस सरकारें लगातार नजरंदाज कर रही हैं। रिश्वतखोरी चरम पर है। चुनाव में नफरती भाषणों से जनता की मुश्किलें हल होने वाली नहीं हैं। कहने को नागेपुर आदर्श गांव है, लेकिन पानी की टंकी के अलावा यहां कोई भी काम नहीं हुआ है। सड़कों हालत देख लीजिए। सब समझ में आ जाएगा। नागेपुर पहले से ही लोहिया गांव था। यहां जयापुर के मुकाबले दस फीसदी भी काम नहीं हुआ। नंदघर, पानी की टंकी और बस स्टैंड को छोड़ दें तो यहां कोई काम हुआ ही नहीं।”

पूजा के साथ खड़ी मनतारा कहती हैं, “हमने लोन लेकर अपना घर बनवाया है। मोदी के आदर्श गांव के मुकाबले लोहिया ग्राम योजना से विकास हुआ। नागेपुर में ज्यादातर नौजवान खाली बैठे हैं। किसी के पास कोई काम नहीं है। फोकट का राशन मिल रहा है और खा-पीकर लोग घर में बैठे हैं। वैसे भी पांच किलो राशन से पूरे महीने किसी का पेट नहीं भर सकता है। हमें फोकट में कुछ भी मिल रहा है तो वह एक तरह की भीख ही है। हम चाहते हैं, हमें मुफ्त में राशन नहीं, काम दें। बेरोजगारी के चलते बच्चों के भविष्य बर्बाद हो रहा है। हमारे गांव में जुआ खेलने और दारू पीने वालों का जमावड़ा बढ़ रहा है। नतीजा, औरतें जुल्म और ज्यादती की शिकार हो रही हैं।” एक अन्य महिला जड़ावती ने जनचौक से कहा, “मोदी सरकार ने उज्जवला योजना का खूब ढोल पीटा, लेकिन हमें रसोई गैस नहीं मिल सकी। हमारे पास तो आय-जाति का प्रमाण-पत्र बनवाने तक के लिए पैसा नहीं है। “तीन बच्चों की मां रन्नो और उनके साथ खड़ी सन्नो कहा, “औरतें काम करना चाहती हैं, लेकिन करें क्या? क्या आदमी, क्या औरत, किसी के पास कोई काम नहीं है।”

खराब पड़ी हैं सोलर लाइटें

जिला मुख्यालय से 21 किलोमीटर दूर है नागेपुर गांव। इलाहाबाद-वाराणसी हाइवे स्थित रखौना से डेढ़ किलोमीटर दूर संपर्क मार्ग पर बसे नागेपुर जाने के लिए राजातालाब से चार किलोमीटर की दूर तय करनी होगी। ज्ञानपुर नहर मार्ग से होकर गांव तक जाना होगा। गांव की आबादी चार हजार है। कई साल पहले मुलायम सरकार ने नागेपुर को लोहिया समग्र ग्राम के तौर पर चुना था। तभी से इस गांव का काफी विकास हो गया था। मोदी के गोद लेने के तत्काल बाद नागेपुर में 15 स्ट्रीट सोलर लाइटें लगाई गईं, लेकिन ज्यादातर लाइटें खराब हैं अथवा उनकी बैटरी चोरी हो गई है।

नागेपुर की साक्षरता दर 95 फीसदी है। इस गांव में सर्वाधिक आबादी राजभर समुदाय के लोगों की है। इसके बाद पटेल, फिर यादव, मौर्य-कुशवाहा, दलित, बनिया, गोंड जाति के लोग रहते हैं। यहां धान गेहूं के अलावा सरसों और मौसमी सब्जियों की खेती होती है। नागेपुर में उप डाकघर, रेलवे टिकट बुकिंग खिड़की और बैंक तो बीजेपी के सत्ता में आने से पहले से ही है। इस गांव के लोगों का नजरिया यह है कि किसी महापुरुष की प्रतिमा लगा देने से गांव का विकास हो जाता है, ऐसा नहीं है।

नागेपुर में डा.भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा लगी है। वहां हमें मिले रामराज। उन्होंने जनचौक से कहा,  “बाबा साहेब की प्रतिमा अनावरण के वक्त केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी आई थीं। उन दिनों शोर मचा था कि वो गरीबों को गाय और ई-रिक्शा बांटेंगी। अंबेडकर प्रतिमा के सामने लगे कैंप में गाय और ई-रिक्शा पैसे लेकर बांटे गए। प्रधानमंत्री आदर्श गांव योजना में नागेपुर का चयन होने के बाद कई लोगों को उज्जवला योजना के तहत सिलेंडर बांटे गए, लेकिन गरीबों के पास इतना पैसा ही नहीं है कि वो उसमें रसोई गैस भरवा सकें। सभी के सामने रोजी-रोटी का संकट है। कभी किसी को काम मिल जाता है तो कभी वो भी नहीं मिलता। हजार रुपये में हम रसोई गैस भरवाएंगे तो खाएंगे क्या? इतने पैसे से तो कई महीने लिए उपले खरीद लेंगे।”

नागेपुर में अंबेडकर प्रतिमा के लोकार्पण के समय केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने ढेरों वादे किए थे

नागेपुर की दलित बस्ती के लोगों के दिमाग में यह बात गहराई से घर कर गई है कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो अगली बार शायद ही चुनाव हो। तब न बाबा साहेब का संविधान बचेगा और न ही आरक्षण का कोई लाभ मिल पाएगा। दलित बस्ती के बलिराम कहते हैं, “हमारे पास दवा और इलाज तक के पैसे नहीं हैं। हमने पिछली मर्तबा मोदी को वोट दिया था। उम्मीद थी कि वो हमारे बारे में सोचेंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। पांच किग्रा राशन से जिंदगी की गाड़ी पटरी पर नहीं आ सकती। जिस तरह से सरकारी संस्थाओं का निजीकरण किया जा रहा है और उन्हें उद्योगपतियों के हवाले किया जा रहा है उससे लगता है कुछ ही सालों में सरकारी नौकरियां पूरी तरह खत्म हो जाएंगी। फिर दलित और पिछड़े समुदाय के लोग आरक्षण की मांग किससे करेंगे? “

नागेपुर में स्वास्थ्य सुविधा का कोई इंतजाम नहीं है। एक मर्तबा अनुप्रिया पटेल यहां आई थीं, तब उन्होंने आंगनबाड़ी केंद्र के बगल में ही कुछ ईंटें रखकर सरकारी अस्पताल का शिलान्यास किया था। वो स्वास्थ्य केंद्र कहा हैं, किसी को नहीं मालूम। यहां पशुओं के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। प्रधानमंत्री ने जब नागेपुर को गोद लिया था तब उस समय वायदों की बारिश हुई थी। कितने वादे पूरे हुए, कितने नहीं, इसका कहीं कोई रिकार्ड नहीं है।

निराश हैं नागेपुर के नौजवान

नागेपुर में स्कूल तो है, लेकिन इंटर की पढ़ाई के लिए काफी दूर जाना पड़ता है। ऐसे में कई लड़कियों की पढ़ाई ही छूट जाया करती है। प्राथमिक विद्यालय से करीब सौ क़दम पर ही खुबसूरत पानी टंकी बनी हुई है। पानी टंकी भी बाउंड्री युक्त है। पता चला कि पानी की टंकी लोहिया ग्राम योजना के तहत निर्मित की गई थी। नागेपुर के सुरेंद्र पटेल की स्थिति और सवाल सिर्फ उन्हीं के लिए नहीं हैं, बल्कि उन सभी कामगारों के लिए है जो रोज कमाने के बाद दो वक्त की रोटी खा पाते हैं। शिक्षित और अशिक्षित लोगों की स्थिति अब एक जैसी हो गई है। इसी गांव के शुभम मौर्य कहते हैं, “योगी-मोदी सरकार में नौकरी का टोटा है। महंगाई बढ़ रही है। किसी तरह लोग पेट भर लें, यही काफी है। इस सरकार में हर चीज की किल्लत है।”

नागेपुर का आंगनबड़ी केंद्र

सांसद आदर्श ग्राम योजना का मकसद शहरों के साथ ग्रामीण भारत की बुनियादी एवं संस्थागत ढांचे को विकसित करना था। गांवों की तरक्की के साथ ही वहां शानदार बुनियादी सुविधाएं और रोज़गार के बेहतर अवसर उपलब्ध कराए जाने थे। कृषि, स्वास्थ्य, साफ-सफाई, आजीविका, पर्यावरण, शिक्षा आदि क्षेत्रों में ग्रामीणों को सशक्त बनाना था, लेकिन नागेपुर की हकीकत देखकर लगता है कि यह गांव दूसरे गांवों से अलग नहीं है। नागेपुर के मौजूदा ग्राम प्रधान मुकेश पटेल पहले मुखर होकर गांव की तरक्की के लिए आवाज उठाया करते थे। अब उनकी चुप्पी लोगों को साल रही है। वह कहते हैं, हमारा गांव अब बदल गया है। आप जहां भी देखें, वहां बदलाव दिखेगा। सारा विकास मोदीजी के चलते संभव हो पाया है।

बनारस के नागेपुर गांव में हैंडलूम कारीगर के पास रोटी के सिवा कुछ भी नहीं

नागेपुर के शीतला प्रसाद मौर्य साड़ी की बुनाई करते हैं। वह कहते हैं, बीजेपी सरकार में बुनकरों की स्थिति बहुत दयनीय है। पिछली सरकार में बिजली के बिल दो-ढाई सौ रुपये महीने देने पड़ते थे, लेकिन अब ढाई-तीन हजार रुपये महीना देना पड़ता है। साड़ियां बिक नहीं पा रही हैं। बनारस से सस्ती साड़ियां सूरत वाले बना रहे हैं। यहां तो मजदूरी निकाल पाना मुश्किल हो गया है। बुनकरी का धंधा तो कोरोना के समय से ही पटरी से उतर चुका है। सरकार की नीतियों और नियमों ने इस धंधे को चौपट कर दिया है। हम बुनकरी के साथ ही सब्जी की खेती भी करते हैं। हमारी सब्जियां सस्ती बिकती हैं, जबकि हाईब्रिड बीज बेचने वाली कंपनियां मनमाना मुनाफा कूट रही हैं। ऐसे हम कैसे कह दें कि हमारे जैसे किसानों के अच्छे वाले दिन आ गए हैं? हमारी जिंदगी में कोई रंग नहीं है। हम तो सिर्फ सांसद के गांव का नाम ढो रहे हैं।”


ककरहिया में खूब खर्च हुआ धन

पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2017-18 में सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) के तहत ककरहिया को गोद लिया था। अक्टूबर 2014 में एसएजीवाई योजना शुरु हुई थी तो पीएम मोदी ने सबसे पहले जयापुर को गोद लिया था। इसके बाद ककरहिया नागेपुर, परमपुर, पूरे बरियार, डोमरी और कुरुहुआ को इस योजना में शामिल किया गया। मोदी के गोद लिए गांवों में खूबसूरती से चित्रित स्कूल की इमारतें, चमचमाते पंचायत भवन, आंगनवाड़ी केंद्र और कंक्रीट वाली सड़कें दिखती हैं। इन गांवों के विकास के लिए में निजी कंपनियों ने मोटी रकम खर्च की है। इनमें रिलायंस फाउंडेशन, वेदांता और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेट लिमिटेड (एचपीसीएल) जैसी कंपनियों का योगदान है।  

ककरहिया का पूर्व माध्यमिक विद्यालय

नागेपुर की स्थिति ककरहिया से अलग नहीं है। ककरहिया में ग्रामीण अनियमित जलापूर्ति की शिकायत करते-करते लोग थक चुके हैं। पानी की टंकी के काम नहीं करने से हर कोई परेशान है। इस गांव की महिला छाया कहती हैं, “पानी की टंकी तो है, लेकिन वो काम नहीं करती? ” ऐसा क्यों है, यह सवाल वह ककरहिया आने वाले हर शख्स से करती हैं। साल 2019 में 1.45 करोड़ की लागत से यहां ओवर हेड टैंक बनाया गया था। निर्माण के बाद से ही पानी की टंकी सफेद हाथी बनी हुई है। ग्रामीण हैंडपंप और कुओं के भरोसे अपनी प्यास बुझा रहे हैं। लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद कोई यह जिम्मेदारी ओढ़ने के लिए तैयार नहीं है कि आखिर लोगों को पानी क्यों नसीब नहीं हो पा रहा है। ककरहिया की निर्मला देवी कहती हैं, “पीएम मोदी ने हमारे गांव को गोद लिया है, लेकिन यहां कुछ भी नहीं बदला है। यह गांव अभी भी वैसा ही है, जैसा पहले था।”

ककरहिया में पीने के पानी की किल्लत तो है ही, ज्यादातर गलियों में रात में अंधेरा रहता है। ककरहिया में एक सौर स्ट्रीटलाइट है, जिसमें एक छोटा सा बोर्ड है, जिस पर उसे लगवाने का श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी को दिया गया है। ग्रामीण बताते हैं कि सोलर स्ट्रीट लाइट की बैटरी चोरी हो गई है। इस वजह से वह काम नहीं कर रही है। ककरहिया में खुले नाले और गंदगी से ग्रामीण दुखी है। काकरिया के पूर्व प्रधान रंजीत पटेल कहते हैं, “प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिए जाने के पहले वर्ष तक काकरहिया में सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं और गैर सरकारी संगठनों के पदाधिकारियों ने दौरों की झड़ी लगा दी थी। लेकिन जब पीएम ने जब दूसरे गांवों को गोद लिया तो सभी का ध्यान उधर चला गया। अब यहां कोई नहीं आता है। इस गांव की आबादी 2,500 है, जिनमें से ज्यादातर ओबीसी हैं, जो काफी हद तक आजीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं।”

ककरहिया की ग्राम प्रधान 25 वर्षीय पूजा गोंड कामर्स से ग्रेजुएट हैं। वह कहती हैं, मेरे पति सूरज कुमार गोंड हमारी मदद करते हैं। इस गांव को जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है, वह है एक सरकारी अस्पताल, जो वर्तमान 20 किमी दूर है। हालांकि गांव में पिछले कुछ सालों में पक्की सड़क भी बन गई है। वहीं गांव में सीवरेज की पाइपलाइन बिछाई गई थीं, लेकिन गांव के निवासियों की शिकायत है कि यहां हमेशा जाम की स्थिति बनी रहती है।”

कई सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने विद्यालय के कमरों में फर्श की टाइलें, कंप्यूटर, प्रोजेक्टर के लिए पैसे से स्कूल की मदद की है। पहले, यहां के छात्र जमीन पर टाट-पट्टी बिछाकर पढ़ाई करते थे।  नागेपुर के बैजनाथ मौर्य कहते हैं, “मोदीजी जब हमारे गांव को गोद लिया तो दुनिया भर के अखबारों में यह खबर सुर्खियां बनीं। यहां हुआ कुछ भी नहीं। अधिकारी आते हैं और बिना कुछ किए चले जाते हैं।शिक्षा के मामले में इस गांव ने कोई खास तरक्की नहीं की है।”  

गोद लिए गांवों में सपना है सुराज

नागेपुर और ककरहिया से मिलती-जुलती तस्वीर पीएम के गोद लिए गांव पूरे बरियार गांव की भी है। इन गावों में सुराज सपना है। निजी कंपनियों ने इस गांव में विकास के लिए खूब पैसा दिया है। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक, साल 2021-22 में गोद लिए गए पूरे बरियार गांव में सड़कों की इंटरलॉकिंग, बारात घर, पंचायत भवन की चारदीवारी, स्वास्थ्य केंद्र और सौर स्ट्रीट लाइट के लिए एचपीसीएल से 4.05 करोड़ रुपये मिले थे। इनमें से कुछ काम पूरे हो गए हैं। ओएनजीसी ने पीएम के गोद लिए गांवों में विकास के लिए 25 करोड़ रुपये देने का वादा किया है, जिसकी पहली किस्त भेजी जा चुकी है।

इसी तरह, साल 2020-21 में पीएम मोदी द्वारा गोद लिए गए गांव परमपुर के लिए राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) से 7.02 करोड़ रुपये मिले हैं। इस धनराशि से खेल का मैदान, उसकी चारदीवारी, बुनकरों के लिए प्रशिक्षण केंद्र, पावरलूम, सौर स्ट्रीट लाइट और खुला जिम का निर्माण कराया जाना है। इसी तरह कुरुहुआ गांव में जल निकासी प्रणाली, पार्क, अमृत सरोवर, सोलर स्ट्रीट लाइट और खेल के मैदान के लिए 4.31 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

उद्घाटन का शिलापट्ट

पीएम नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांवों में विकास के काम दिखते तो हैं, लेकिन उनकी गुणवत्ता ठीक नहीं है। नौजवानों के सामने नौकरी का संकट है। महंगी बिजली के चलते बुनकर परेशान है। कामगारों के हाथ खाली हैं। ज्यादातर लोगों को दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुश्किल है। महंगाई और बेरोजगारी सबसे बड़ा सवाल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गांव लिए गांवों की स्थिति दूसरे गांवों से ज्यादा अलग नहीं है, जबकि इन गांवों को माडल विलेज के रूप में विकसित किया जाना था।

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, ” पीएम मोदी के गोद लिए गांवों में विकास के जिस माडल का ढिंढोरा पीटा जा रहा है, उसकी कलई खुलती जा रही है। कमोबेश यही स्थिति पूरे देश की है। लोग कहने लगे हैं कि जब पीएम के गोद लिए गांवों में ही विकास नहीं हो पा रहा है तो फिर बाकी जगहों की बात ही बेमानी है। गोद लिए गांवों के प्रति मोदी की विकास की पहली प्राथमिकता थी। ऐसे में उन गांवों की स्थिति दूसरे गांवों से अलग नहीं होना सरकार की नीति और नीयत दोनों पर गंभीर सवाल खड़ा करती है।”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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