चंदौली। सूरज की पहली किरण जब चंदौली के नोनवट गांव की पहाड़ी पर गिरती हैं, तो उसके साथ ही एक नया संघर्ष भी जन्म लेता है। नौगढ़ प्रखंड के इस आदिवासी बहुल इलाके में हर सुबह उम्मीद और मायूसी के बीच झूलती हुई शुरू होती है। सरकार से मिलने वाले राशन के लिए बहुत से लोग हर रोज पहाड़ का लंबा रास्ता पार करके कोटेदारों के यहां पहुंचते हैं और नेटवर्क नहीं मिलने पर मायूस होकर लौटने पर मजबूर होते हैं। दरअसल, नौगढ़ के दर्जनों गांवों के आदिवासियों की ज़िंदगी, डिजिटल इंडिया के उस सुनहरे सपने से कोसों दूर है, जो सरकार के विज्ञापनों में चमकता है।
चंदौली जिले के नौगढ़ में नेटवर्क एक ख्वाब जैसा है-दिखता तो है, पर कभी पूरा नहीं होता। गांव के बच्चे, महिलाएं, और बुजुर्ग रोज़ की तरह पेड़ों पर चढ़कर अपने मोबाइल को आसमान की ओर उठाए खड़े रहते हैं, मानो हवा में बिखरे नेटवर्क को पकड़ने की कोशिश कर रहे हों। उनकी आवाज़ में कभी उम्मीद की चमक दिखती है, तो कभी बेबसी का दर्द। विजय कुमार, जो नोनवट गांव के ही एक निवासी हैं, कहते हैं, “वो जियो का सिम रिचार्ज तो करवा लेते हैं, पर कॉल नहीं लगती।” उनकी थकी हुई आवाज़ में सिर्फ उनका नहीं, बल्कि पूरे इलाके का दर्द झलकता है।

यह कहानी केवल मोबाइल नेटवर्क की समस्या तक सीमित नहीं है; यह उन हक़ और गरिमा की लड़ाई है, जो हर नागरिक को इस डिजिटल युग में मिलनी चाहिए। राशन की दुकानों पर लगी लंबी कतारें और ई-पॉश मशीन की धीमी गति, इस संघर्ष को और गहरा करती हैं। मंजू देवी, जो अपनी बेटी की शादी के लिए जाति प्रमाणपत्र बनवाने के लिए एक जनसेवा केंद्र पर कई दिलों से लगातार चक्कर काट रही हैं। उनकी थकी हुई आँखें और टूटी हुई आवाज़ बस इतना कहती है, “कुछ भी संभव नहीं हो पा रहा।”
उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के आदिवासी बहुल प्रखंड नौगढ़ में मोबाइल नेटवर्क की समस्या ने गरीबों को अजीब मुसीबत में डाल दिया है। सरकार की योजनाएं, जो गरीबों को मुफ्त राशन और अन्य सुविधाएं देने का वादा करती हैं, यहां आकर मज़ाक बन जाती हैं। नौगढ़ इलाके के कोटेदार मशीन को ठीक करने की कोशिश करते रहते हैं, लेकिन नेटवर्क के अभाव में राशन कार्ड धारकों को उनके हक़ का अनाज नहीं मिल पाता।

नेटवर्क की समस्या के चलते नौगढ़ के सुदूरवर्ती गांव नोनवट, औरवाटांड, शाहपुर जमसोत, होरिला, पंडी, केल्हड़िया ही नहीं, ग्राम सभा भैसौड़ा, बसौली, मझगाई आदि गांवों में राशन की दुकानों पर सबसे बड़ी दिक्कत नजर आती है। इन गांवों के लोग जब कोटेदारों के यहां पहुंचते हैं तो नेटवर्क की समस्या के चलते ई-पॉश मशीनों ठीक से काम नहीं करतीं। कई बार नेटवर्क के लिए महिलाओं को कोटेदारों के दरवाजे पर घंटों इंतजार करना पड़ता है। जंगली रास्ता होने की वजह से कई बार भालू और चीते आदि जानवरों से बचना पड़ता है। नौगढ़ के जंगली इलाकों में शाम ढलते ही ये जानवर सड़कों पर आ जाते हैं।
गरीब आदिवासियों को राहत देने के लिए सरकार, सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों से अंत्योदय, मनरेगा जॉब कार्ड और श्रम विभाग में पंजीकृत श्रमिकों को मुफ्त में राशन मुहैया करा रही है, लेकिन इन पहाड़ी इलाकों में नेटवर्क समस्या के चलते आदिवासियों को ई-पॉश मशीन काफी रुला रही थीं। एक-एक राशन कार्डधारक को उनके हिस्से का अनाज देने में कोटेदार को इस गर्मी में पसीने छूट जा रहे थे। रह-रहकर नेटवर्क छोड़ देने से कार्डधारकों को त्वरित राशन नहीं मिल पा रहा था।

नेटवर्क की समस्या से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है क्षेत्र में एयरटेल जियो और बीएसएनएल के नेटवर्क काम करते हैं, लेकिन विकास क्षेत्र के कई गांव ऐसे हैं, जहां पर कभी भी नेटवर्क ही नहीं रहता है। बीएसएनएल की स्थिति सबसे दयनीय है यहां पर नेटवर्क यदा कदा ही मिलता है व बिजली रहने पर ही नेटवर्क मिलता है। अन्यथा बीएसएनल का टावर हमेशा बंद रहता है।
नेटवर्क समस्या से पहाड़ बनी जिंदगी
उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के आदिवासी बहुल प्रखंड नौगढ़ में मोबाइल नेटवर्क की समस्या गरीबों की जिंदगी को बेहद मुश्किल बना रही है। नेटवर्क की समस्या ने यहां के गांवों की रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसा अवरोध खड़ा कर दिया है कि ग्राम सभा भैसौड़ा, बसौली और मझगाई जैसे इलाकों में राशन की दुकानों पर सबसे बड़ी दिक्कत ई-पॉश मशीनों के धीमी गति से चलने की है।
भाजपा नेता मुस्तकीम कहते हैं कि “भैसौड़ा, बरवाटांड, मजगाई, शमशेरपुर, देउरा, बसौली, विसेसरपुर, मजगांवा, लौवारी, जमसोती, नरकटी, शाहपुर जमसोत, गहिला, केसार-बैगाढ़, तिवारीपुर, सोनवार, भरदुआ, बरवाडीह, चकरघट्टा, परसिया से लगायत धनकुंवारी तक खाद्यान्न वितरण में मशीनी समस्या आदिवासियों के गले की फंस बनकर रह गई है। मंगरही के लोगों को दस किमी दूर नौगढ़ बाजार से राशन वितरित किया जाता है। मशीन के धोखा देने की वजह से लोगों को कई-कई चक्कर काटने पड़ रहे हैं। बेवजह की भागदौड़ और समय दोनों जाया हो रहा है।”

ग्राम भैसौड़ा की अंजू बेगम, बकरीद्दू, शाकीर, जियादी, पंखड़ू उर्फ उस्मान, सद्दीकू और बसौली के बांगुर, सीमा, मझगाई के जसवंत जैसे लोग अपनी समस्या बताते हुए कहते हैं कि उन्हें राशन पाने के लिए कई किलोमीटर दूर से आना पड़ता है, लेकिन नेटवर्क की समस्या के चलते ई-पॉश मशीन काम नहीं करती, और उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। हालांकि, इसके बावजूद उनके हिस्से का राशन मिल जाता है, लेकिन यह प्रक्रिया उन्हें बेहद थका देती है।
बसौली के कोटेदार के पुत्र प्रिंस और मझगाई के कोटेदार धर्मराज सिंह भी मानते हैं कि नेटवर्क की समस्या के कारण राशन वितरण में दिक्कत हो रही है। ई-पॉश मशीन के बार-बार नेटवर्क छोड़ने से कार्डधारकों को राशन देने में काफी परेशानी हो रही है। गर्मी के दिनों में यह समस्या और बढ़ जाती है, जब घंटों तक मशीन काम करने से इनकार कर देती है।
क्षेत्र में एयरटेल, जियो और बीएसएनएल जैसे नेटवर्क तो हैं, लेकिन विकास क्षेत्र के कई गांव ऐसे हैं जहां पर कभी भी नेटवर्क नहीं रहता। बीएसएनएल की स्थिति सबसे दयनीय है। यह नेटवर्क कभी-कभार ही मिलता है और वह भी बिजली रहने पर। बिजली जाते ही बीएसएनएल का टावर बंद हो जाता है, जिससे लोगों को हर छोटी-बड़ी जरूरत के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
बीएसएनएल सर्विस स्टेशन पर किसी भी कर्मचारी के नहीं रहने से यह समस्या तीन सालों से बनी हुई है। अधिकारियों और कर्मचारियों के सीयूजी नंबर ऑन न होने के कारण स्थानीय लोगों को अपनी समस्याओं को दर्ज कराने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। बोझ गांव की मंजू देवी कहती हैं कि नेटवर्क नहीं होने की वजह से हमें कई-कई दिन लंबा और पहाड़ी रास्ता पार करके कोटेदार के यहां जाना पड़ता है और नेटवर्क न मिलने पर मशीनें जब काम नहीं करती हैं तो बैरंग लौटना पड़ता है।
बाधी गांव के विकास कहते हैं कि हम लोगों का आधा से अधिक कारोबार आनलाइन से ही होता है, लेकिन नेटवर्क की समस्या के चलते आनलाइन पेमेंट भी नहीं हो पा रहा है और ना ही फोन से ही बात हो पा रही है। लोगों ने कस्टमर केयर, मुख्यमंत्री पोर्टल पर कई बार की, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ। कंपनी रिचार्ज तो करवा ले रही है, लेकिन नेटवर्क नहीं मिल पा रहा है। बिजली जब रहती है तभी नेटवर्क मिलता है। दोपहर में बिजली कटती है, तो नेटवर्क नहीं रहता है जिससे हम लोगों को कार्य करने में काफी असुविधा हो रही है। आय, जाति और निवास व मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नेटवर्क के चलते नहीं हो पा रहा है।
अमृतपुर के मिल्लू चौहान कहते हैं कि मेरे पास बड़ा मोबाइल नहीं है, कीपैड मोबाइल है। जिसमें एयरटेल का सिम लगा है। एक महीने से नेटवर्क नहीं मिल पा रहा है। कभी कभार फोन लग भी जाता है तो आवाज कट-कट कर आती है। ठीक से बात नहीं हो पाती। रिचार्ज करवा देता हूं, लेकिन एक महीने रिचार्ज का पैसा व्यर्थ हो गया। नेटवर्क की समस्या तो सालों से बनी हुई है, लेकिन राशन का क्या करें, जब नेटवर्क समस्या के चलते ई-पॉश मशीन न चलने से राशन नहीं मिलता। इस समस्या के चलते आदिवासियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
मजाक बना डिजिटल इंडिया
नौगढ़ प्रखंड में विकास के नाम पर जहां हर जगह डिजिटल इंडिया की बातें हो रही हैं, वहीं चंदौली के नौगढ़ इलाके में लोग आज भी मोबाइल नेटवर्क के लिए पेड़ों पर चढ़ने को मजबूर हैं। बीएसएनएल, जियो और एयरटेल जैसे नेटवर्क्स के होने के बावजूद क्षेत्र में मोबाइल कनेक्टिविटी बेहद खराब है। खासकर, बीएसएनएल की स्थिति तो दयनीय है, जहां बिजली होने पर ही नेटवर्क आता है, अन्यथा टावर ठप रहता है।
बीएसएनएल सर्विस स्टेशन पर कर्मचारियों की अनुपस्थिति ने समस्या को और बढ़ा दिया है। अधिकारी और कर्मचारी दोनों ही स्थानीय समस्याओं की अनदेखी कर रहे हैं। तीन सालों से यह स्थिति बनी हुई है। स्थानीय लोग बार-बार शिकायत करने के बावजूद किसी समाधान का इंतजार कर रहे हैं। बीएसएनएल सर्विस स्टेशन पर किसी भी कर्मचारी के नहीं रहने से या समस्या तीन सालों से बनी हुई है। चूंकि अधिकारियों और कर्मचारियों के सीयूजी नंबर ऑन नहीं रहते इसलिए आम जनता को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। आदिवासी बहुल गांवों के लोग पेड़ों पर चढ़कर फोन करते हैं, इस उम्मीद में कि शायद कोई कॉल लग जाए। लेकिन उनकी आवाज़ न टावर तक पहुँचती है, न ही प्रशासन तक।
देवरीकला कला गांव में नोनवट, पंडी, केल्हड़िया, सपहर, कर्मठचुआ औरवाटांड गांव के लोगों को राशन मिलता है। इन गांवों के लोग कई मील का सफर तय करके राशन लेने देवरीकला पहुंचते हैं, लेकिन नेटवर्क नहीं होने की वजह से अक्सर लोगों को बैरंग लौटना पड़ता है। ये सभी गांव जंगलों में हैं। कुछ गांवों की देवरी से दूरी 20 किमी तक है। दरअसल, देवरी कला क्षेत्रफल के हिसाब से उत्तर प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है।

एक्टिविस्ट अनिल यादव कहते हैं, “इस समय में जहाँ दुनिया के अधिकतर कार्य विज्ञान और तकनीकी के सहारे ही संपन्न हो रहे हैं, ऐसे में हमारे गाँव में मोबाइल नेटवर्क की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हुआ। नौगढ़ से सिर्फ़ 10 किलोमीटर दूर हमारे गाँव देवरी कलाँ में सामान्य मोबाइल नेटवर्क भी नहीं उपलब्ध रहता है, इंटरनेट का प्रयोग तो बहुत दूर की बात है। इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण जनमानस में सूचनाओं की कमी, सरकारी योजनाओं से दूरी के साथ ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई आदि कार्य भी प्रभावित होते हैं…!”
“नौगढ़ प्रखंड के ज्यादार बीएसएनएल सर्विस स्टेशन पर कर्मचारियों की गैरमौजूदगी ने नेटवर्क की समस्या को और गंभीर बना दिया है। स्थानीय अधिकारी और कर्मचारी भी इस स्थिति को लेकर उदासीन नजर आते हैं। यह समस्या पिछले तीन सालों से बनी हुई है और स्थानीय लोग बार-बार शिकायत करने के बावजूद किसी ठोस समाधान की उम्मीद में ही जी रहे हैं। नेटवर्क की इस खराब स्थिति के चलते बैंक, ग्राहक सेवा केंद्र, जन सेवा केंद्र में आने वाले ग्रामीणों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र या शादी अनुदान जैसी ऑनलाइन सेवाएं नेटवर्क न होने के कारण बाधित हो रही हैं।”
महानंद यादव सरकार के डिजिटल इंडिया के नारे पर तंज करते हुए कहते हैं, “आज के समय में जहाँ दुनिया के अधिकतर कार्य विज्ञान और तकनीकी के सहारे ही संपन्न हो रहे हैं, ऐसे में हमारे गाँव में मोबाइल नेटवर्क की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हुआ। नौगढ़ से सिर्फ़ 10 किलोमीटर दूर हमारे गाँव देवरी कलाँ में सामान्य मोबाइल नेटवर्क भी नहीं उपलब्ध रहता है, इंटरनेट का प्रयोग तो बहुत दूर की बात है। आठ-दस किलोमीटर की दूरी में ही स्थित पास-पड़ोस के अन्य गाँवों नोनवट, औरवाटांड़, सेमर, धोबही, होरिला आदि में भी नेटवर्क नदारद है। इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण जनमानस में सूचनाओं की कमी, सरकारी योजनाओं से दूरी के साथ ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई आदि कार्य भी प्रभावित होते हैं…!”

ग्रामीण विवेक यादव कहते हैं, “हमारे गांव में जीओ के कई उपभोक्ता है, लेकिन एक महीने से नेटवर्क की समस्या काफी बढ़ गई है। कई बार काल करने पर भी फोन नहीं जा पता है व इंटरनेट भी नहीं चल रहा है। कंपनी वाले रिचार्ज तो करवा ले रहे हैं, लेकिन मोबाइल में नेटवर्क ही नहीं है। शिकायत कस्टमर केयर को भी दर्ज कराई गई। नेटवर्क ध्वस्त चल रहे हैं जिससे बैंक, ग्राहक सेवा केंद्र जन सेवा केंद्र पर गांव से ग्रामीण आ रहे हैं लेकिन आज जात निवास हो शादी अनुदान के लिए नेटवर्क ना होने से आनलाइन कार्य नहीं हो पा रहा है।”
“विकास की तमाम योजनाओं और डिजिटल इंडिया के सपनों के बावजूद, नौगढ़ इलाके के लोग आज भी मोबाइल नेटवर्क पाने के लिए पेड़ों पर चढ़ने को मजबूर हैं। बीएसएनएल, जियो और एयरटेल जैसी बड़ी कंपनियों के नेटवर्क होने के बावजूद यहां की कनेक्टिविटी इतनी खराब है कि लोग सामान्य कॉल करने या इंटरनेट का उपयोग करने के लिए जूझ रहे हैं। बीएसएनएल की स्थिति तो और भी खराब है, जहां केवल बिजली होने पर ही नेटवर्क आता है। बिजली जाते ही टावर ठप हो जाते हैं।”

यह स्थिति केवल नौगढ़ तक सीमित नहीं है, चंदौली जिले के कई गावों में डिजिटल सेवाएं दुर्दशा का प्रतीक बन चुकी है। सरकार और टेलीकॉम कंपनियों की ओर से इस समस्या का शीघ्र समाधान न किया गया तो लोगों का विश्वास इन सेवाओं और योजनाओं से पूरी तरह खत्म हो सकता है। नौगढ़ के लोगों का सबसे बड़ा दर्द वह बायोमेट्रिक मशीनें हैं, जिन पर अंगूठा लगाने के बाद ही राशन मिलता है। इन मशीनों के लिए आवश्यक नेटवर्क की अनुपलब्धता आदिवासियों और गरीबों के लिए खून के आंसू रुलाने वाली बन गई है। कई बार मशीनें नेटवर्क न होने के कारण फेल हो जाती हैं, जिससे गरीबों को खाली हाथ लौटना पड़ता है।
बैंकिंग और सरकारी सेवाएं ठप
नेटवर्क की समस्या ने न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक और आर्थिक जीवन को भी गहरे रूप से प्रभावित किया है। बैंक, ग्राहक सेवा केंद्र और जन सेवा केंद्रों पर लोग आधार कार्ड, जाति प्रमाणपत्र, निवास प्रमाणपत्र और मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना जैसी योजनाओं के लिए रजिस्ट्रेशन कराने आते हैं। लेकिन नेटवर्क न होने के कारण यह सारे कार्य ठप पड़े हैं। बोझ गांव की मंजू देवी बताती हैं, “पांच दिन से अपनी पुत्री की शादी के लिए जरूरी प्रमाणपत्र बनवाने के लिए चक्कर लगा रही हूं। लेकिन नेटवर्क के बिना कुछ भी संभव नहीं हो पा रहा।”
जन सेवा केंद्र संचालक भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। लक्ष्मी नारायण, मंगल जायसवाल, सागर गुप्ता और अयोध्या प्रसाद का कहना है कि “हमारा अधिकांश काम ऑनलाइन आधारित है। लेकिन नेटवर्क की समस्या के चलते ऑनलाइन पेमेंट से लेकर अन्य सभी डिजिटल सेवाएं ठप हो चुकी हैं। कॉल और इंटरनेट दोनों ही पूरी तरह बंद हैं। कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।”
नौगढ़ के लोग डिजिटल युग में भी पेड़ों पर चढ़कर फोन करने को मजबूर हैं। गांव के मिल्लू चौहान कहते हैं, “मेरे पास कीपैड मोबाइल है जिसमें एयरटेल का सिम लगा है। लेकिन पिछले एक महीने से नेटवर्क नहीं मिल रहा। कभी-कभी फोन लग भी जाता है तो आवाज साफ नहीं आती, कट-कट कर आती है। रिचार्ज का पैसा पूरी तरह बर्बाद हो गया है।”
नौगढ़ के प्रबुद्ध नागरिक रामलाल केशरी कहते हैं, “हम ऐसी अभूतपूर्व स्थिति से गुजर रहे हैं, जिसे महायुद्ध की स्थिति कहा जा सकता है। राशन वितरण जैसे आधारभूत कार्यों में नेटवर्क की खराबी ने ग्रामीणों के लिए असहनीय कठिनाइयां खड़ी कर दी हैं। समस्या का मुख्य कारण टावरों का नियमित संचालन न होना है। बीएसएनएल के टावर बिजली पर निर्भर हैं, और बिजली कटने के साथ ही नेटवर्क भी गायब हो जाता है। लोगों ने कस्टमर केयर से लेकर मुख्यमंत्री पोर्टल तक शिकायतें दर्ज कराई हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।” वे आगे कहते हैं, “नौगढ़ के विकास की तस्वीर तब तक अधूरी रहेगी, जब तक संचार सेवाओं में सुधार नहीं किया जाएगा। डिजिटल इंडिया का सपना तभी साकार होगा, जब ग्रामीण भारत को बुनियादी डिजिटल सुविधाएं मिलेंगी।”
नौगढ़ के पत्रकार अशोक जायसवाल कहते हैं, “इस इलाके में दिहाड़ी पर जीने वाले गरीबों की संख्या अधिक है, जो जीवित रहने के लिए तत्काल अन्न-धन की मदद पर निर्भर हैं। यहां सस्ते गल्ले की दुकानों से गरीबों को मुफ्त राशन देने की शुरुआत हुई है, लेकिन नेकनीयती के बावजूद सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन अक्सर धीमा और जटिल साबित होता है। असली जरूरतमंदों तक यह मदद पहुंचने में कितनी कठिनाई होती है, यह किसी से छुपा नहीं है।”
रोमिंग फोटो जर्नलिस्ट मुकेश बेवफा कहते हैं, “नौगढ़ इलाके लोग केवल नेटवर्क की कमी से नहीं जूझ रहे, बल्कि अपनी पहचान, अधिकार और एक बेहतर जिंदगी की उम्मीद में हर दिन संघर्ष कर रहे हैं। जब तक नौगढ़ के पेड़ों पर खड़े होकर फोन करने वाले इन ग्रामीणों की आवाज प्रशासन और सरकार तक नहीं पहुंचेगी, तब तक डिजिटल इंडिया का सपना अधूरा रहेगा।”
“यह समस्या केवल तकनीकी सुविधा की कमी नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि हमारी प्राथमिकताएं आज भी कैसे असमानता से ग्रसित हैं। यह संघर्ष एक बड़े सवाल की ओर इशारा करता है-क्या डिजिटल इंडिया का सपना केवल महानगरों और शहरी इलाकों तक ही सीमित रहेगा, या फिर इन दूर-दराज के गांवों तक भी पहुंचेगा? क्या सरकार और टेलीकॉम कंपनियां इन इलाकों में नेटवर्क सुधारने के लिए ठोस कदम उठाएंगी, या फिर ये इलाके ऐसे ही उपेक्षित रहेंगे? “
कंप्यूटर से कोचिंग का सपना टूटा
नौगढ़ के औरवाटांड में स्थित श्री श्री ज्ञान मंदिर में जिन कंप्यूटरों ने कभी बच्चों के सपनों को निखारने का वादा किया था, आज वो बेकार पड़े हैं। एक दर्जन भर कंप्यूटर, जो कभी बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए ऑनलाइन कोचिंग का जरिया बनने वाले थे, अब सिर्फ शो-पीस बनकर रह गए हैं। उनका जीवन, जो एक समय उत्साह और उम्मीद से भरा हुआ था, अब डब्बों में बंद हो चुका है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मेडिकल और आईआईटी के स्टूडेंट्स ने आदिवासी बच्चों को मुफ्त में कोचिंग देने का संकल्प लिया था। वो बच्चे, जो अपनी पढ़ाई के लिए मीलों जंगली रास्ते पार करते हुए स्कूल आते हैं, उनकी आँखों में उस शिक्षा की एक नई चमक थी, जो उन्हें जीवन में आगे बढ़ने का मौका दे सकती थी। लेकिन नेटवर्क की समस्या ने उनकी उम्मीदों को तोड़ दिया है। अब वो बच्चे, जो उत्साह और विश्वास से भरे हुए थे, अपनी शिक्षा की राह में एक और बाधा से जूझ रहे हैं।
स्कूल के प्रबंधक जगदीश त्रिपाठी कहते हैं कि, “नेटवर्क की समस्या के चलते आदिवासी बच्चों की उपस्थिति की रिपोर्टिंग तक नहीं हो पा रही है। इन बच्चों की पढ़ाई में भारी दिक्कतें आ रही हैं, और यह समस्या केवल उनकी पढ़ाई तक सीमित नहीं है। मीड डे मील, ड्रेस और किताबें, जो उनके जीवन की सामान्य जरूरतें हैं, वो भी समय पर नहीं पहुँच पा रही हैं।”
“इन बच्चों के लिए यह न केवल शिक्षा की समस्या है, बल्कि यह उनके सपनों और भविष्य से जुड़ा एक बड़ा सवाल है। हर दिन, हर घंटा, हर मिनट इन बच्चों के लिए संघर्ष है। शिक्षा, जो उनके लिए एक उम्मीद की किरण थी, आज उन तक नहीं पहुँच रही है। वो अपनी हसरतों और उम्मीदों के साथ हर दिन स्कूल आते हैं, लेकिन नेटवर्क की समस्या ने उनके रास्ते को एक और अंधेरे से भर दिया है।”
जगदीश कहते हैं, “यह केवल एक तकनीकी समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक संकट है। इन बच्चों के लिए यह सिर्फ एक नेटवर्क की समस्या नहीं, बल्कि उनके जीवन को बेहतर बनाने की संभावनाओं को छीनने का एक तरीका बन गया है। क्या हम इन बच्चों के सपनों को एक नेटवर्क की समस्या के कारण लुटने देंगे? क्या हम उनके भविष्य के लिए अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट जाएंगे? यह सवाल हमारे सामूहिक संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी को चुनौती देता है।”
औरवाटांड़ के एक कारोबारी राजकुमार सिंह ने “जनचौक” को बताया कि, “नौगढ़ के लोग इस सवाल का जवाब ढूंढते हुए हर दिन एक नई चुनौती का सामना करते हैं। यह समय है कि प्रशासन और सरकार इन समस्याओं को प्राथमिकता से हल करें, ताकि देश के हर कोने में विकास की रौशनी पहुंचे और हर व्यक्ति अपने अधिकारों और जरूरतों को पूरा कर सके। डिजिटल इंडिया का सपना तभी सार्थक होगा, जब इसका प्रकाश इन सुदूर इलाकों में भी फैलेगा।”
“ग्रामीणों की यह समस्या केवल उनके रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित नहीं कर रही, बल्कि उनकी बुनियादी जरूरतों को भी बाधित कर रही है। सरकार और संबंधित कंपनियों की उदासीनता ने आदिवासी इलाकों के इन लोगों को उन सुविधाओं से वंचित कर दिया है, जो उनके जीवन को थोड़ा आसान बना सकती थीं। नेटवर्क की समस्या का समाधान न होने पर इन पहाड़ी इलाकों के लोग विकास की मुख्यधारा से और भी दूर होते जा रहे हैं। यह समस्या सिर्फ नेटवर्क की नहीं, बल्कि उन लोगों की है जो हर दिन इस उम्मीद में जीते हैं कि उनकी आवाज कभी प्रशासन और टावर तक पहुंचेगी। लेकिन यह उम्मीद कब पूरी होगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।”
राजकुमार कहते हैं, “नौगढ़ के आदिवासी इलाकों के लोग अक्सर अपनी बुनियादी सेवाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जैसे राशन वितरण, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना। नेटवर्क की अनुपलब्धता के कारण इन सेवाओं तक पहुंचने में मुश्किलें और अधिक बढ़ जाती हैं। लोगों का कहना है कि सरकार और कंपनियां अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह से नाकाम रही हैं, और यह स्थिति उनके जीवन की गुणवत्ता को और खराब कर रही है।”
“नौगढ़ के ग्रामीणों के लिए यह संघर्ष केवल नेटवर्क की समस्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है, जो उनके अधिकारों और जीविका से जुड़ा हुआ है। जब तक प्रशासन और संबंधित कंपनियां इन समस्याओं का समाधान नहीं करतीं, तब तक इन ग्रामीण इलाकों में विकास की गति नहीं बढ़ेगी और डिजिटल इंडिया का सपना अधूरा रहेगा।”
चंदौली के नौगढ़ इलाके में नेटवर्क व्यवस्था दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी बीएसएनएल के वाराणसी अनुभाग की है। बीएसएनएल के पीआरओ अनीस से संपर्क करने की कई बार कोशिश की गई, लेकिन उनका पक्ष नहीं मिल सका।
(विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं। चंदौली के नौगढ़ से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)
+ There are no comments
Add yours