नौगढ़। जीवन में साफ़ पीने योग्य पानी की कीमत क्या होती है, इसकी कीमत पूर्वांचल में स्थित चंदौली जिले में दुर्गम पहाड़ी नौगढ़ क्षेत्र के बाशिन्दों से बेहतर कौन समझ सकता है। गर्मी के दिनों में आंच-लू से धधकती पहाड़ियों के नीचे का पानी, बंधी, हैंडपंप, बोरवेल और नल का पानी सूख जाता है।
कुछ महीनों बाद मानसून में बारिश से अधिकांश जलस्रोत में पानी तो आने लगता है, जो गंदला और पीने योग्य नहीं होता है। चूंकि, विकल्प नहीं होने से बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग समेत सभी को दूषित पेयजल का सेवन विवशता है।
इससे पेट दर्द, डायरिया, दस्त, पेचिश, पीलिया समेत संक्रामक बीमारी होना भी नौगढ़ तहसील के गांवों आम बात है।

हाल ही नौगढ़ में सोनभद्र की सीमा पर स्थित चुप्पेपर ग्राम पंचायत के उदितपुर सुर्रा गांव की कोल बस्ती में डायरिया फैल गया। गांव के 21 लोग बीमार होने के बाद सोनभद्र इलाज के लिए पहुंचे। डायरिया पीड़ित टेरू की हालत गंभीर है। चिकित्सकों ने ग्रामीणों की जांच कर साफ पानी पीने की सलाह दी है।
मसलन, जब पहाड़ी गांवों में पेयजल के पर्याप्त साधनों का अभाव है, जो आधे-अधूरे हैं, वे भी उनसे दूषित पानी निकलता है। साथ ही गर्मी के शुरू होते और जाड़े के मौसम के गुजरते ही इन जल साधनों से कम पानी आने लगता है, और कई बार तो पूरी तरह से बंद हो जाता है।
ऐसे में ग्रामीण पेयजल के लिए रोजाना घंटों समय खर्च कर सुबह-शाम पानी जुटाने में अपना कीमती जीवन जाया करते हैं।
पेयजल का संकट; एक गंभीर समस्या
चंदौली जिला मुख्यालय से नौगढ़ तकरीबन 70 किमी की दूरी पर स्थित है। नौगढ़ के पूर्व में बिहार राज्य, दक्षिण में सोनभद्र जनपद, पश्चिम में मिर्जापुर जनपद और थोड़ी ही मील की दूरी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी स्थित है।
प्रधानमंत्री मोदी और सीएम योगी के चहुंमुखी विकास के दावों से उलट नौगढ़ तहसील क्षेत्र के नागरिक अपनी बदहाली-बेबसी पर खुद को कोस रहे हैं, कि आखिर कब उनको मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा ?

”साफ पानी के लिए बहुत भागदौड़ करनी पड़ती है। आधा किलोमीटर दूर स्थित सरकारी स्कूल से पानी लाना पड़ता है। पीने के पानी की परेशानी कई वर्षों से पूरे गांव भर को है। पानी की सुविधा के लिए घर के पास ही हैंडपंप या नल से हो जाए तो हमें जंगल के बीच असुरक्षित माहौल में गांव से दूर अकेले जाना पड़ता है और इतनी दूर पानी से भरी बाल्टी को लाने में कमर और कलाई दर्द से फटने लगती है। कभी रात को जाएं, कभी आधी रात को जाएं, क्या करें दिनभर पानी जुटाने में लगे रहते हैं ?”

उत्तर प्रदेश के चंदौली ज़िले में स्थित नौगढ़ तहसील क्षेत्र के जमसोती गांव की रहने वाली प्रतिभा ये कहते हुए गंभीर हो जाती हैं। वो बताती हैं कि “घर के पास लगा हैंडपंप काम नहीं करता। वह झाड़ियों से घिर गया है।
कई बार कहने के बाद भी रिबोर नहीं किया गया। इसलिए वो घर से करीब आधा किलोमीटर दूर आकर पानी लेकर जाना पड़ता है।” पानी की दिक्कत से जूझने वाली प्रतिभा कोल इकलौती नहीं हैं। नौगढ़ तहसील क्षेत्र के सभी गांवों में लगभग साफ़ पेयजल का संकट एक गंभीर समस्या है।
नौगढ़ का भूगोल
नौगढ़ तहसील क्षेत्र 36 वर्ग किमी के एरिया में फैला हुआ है। यहां 43 ग्राम पंचायतों में 124 राजस्व गांव हैं। वहीं 15 नाचिरागी मौजों के साथ 8 न्याय पंचायतें भी मौजूद हैं।
विंध्य पर्वत मालाओं से घिरे नौगढ़ में प्रचुर प्राकृतिक संपदा युक्त नौगढ़ में एक पुलिस सर्किल के तहत नौगढ़ व चकरघट्टा थाना के अलावा कुल 7 पुलिस चौकियां स्थित है।
गर्मी के दिनों में इंसानों के अलावा जंगली जानवरों को पानी के लिए तरसना पड़ता है। पानी के साधनों के सूख जाने से खेती-किसानी में घाटा होने से किसानों की कमर टूट जाती है।
आधी आबादी की चिंता किसे है
नौगढ़ क्षेत्र में प्रत्येक साल विकास कार्य के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च किये गए। इनमें सबसे अधिक धन पेयजल संकट को स्थाई रूप से दूर करने के लिए किया।
ग्रामीणों का कहना है कि यहां पैसा तो पानी की तरह बहा लेकिन पेयजल की के लिए साफ और नियमित पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। आज भी कई गांवों में बूंद-बूंद पानी जुटाने के लिए आधी आबादी जूझ रही है।

जमसोती आठ किमी दूर नोनवट गांव में पेयजल के लिए एक महिला पानी लेने विद्यालय में लगे हैंडपंप पर आती दिखी। स्थानीय दीपक बताया कि “गर्मी के दिनों में पानी के लिए सभी को परेशान होना पड़ता है। अभी बारिश में पानी की कमी से फ़िलहाल राहत है।
फिर भी ग्रामसभा क्षेत्र में कई हैंडपंप ख़राब हैं। नौगढ़ प्रखंड में पेयजल संकट से प्रभावित 51 ग्राम सभाओं में जमसोती, लौवारी और देवरी कला। क्षेत्रफल के हिसाब से देवरी कला यूपी की दूसरी सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है, जहां सर्वाधिक आबादी खरवार, कोल, मुसहर और बैगा जन-जातियों की है।”
नहीं मिल पा रहा वन अधिकार कानून का लाभ
चंदौली और सोनभद्र के जंगलों में कोल, खरवार, भुइया, गोंड, ओरांव या धांगर, पनिका, धरकार, घसिया और बैगा ट्राइब्स का निवास है। साल 1996 में वाराणसी से टूटकर चंदौली जनपद बना। इस दौरान कोल, खरवार, पनिका, गोंड, भुइया, धांगर, धरकार, घसिया, बैगा आदि अनुसूचित जनजातियों को अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध कर दिया गया।
नौगढ़ इलाके को अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध किया गया है, इस वजह से इलाके का विकास, जीवन और भी पिछड़ गया, जबकि समीप के सोनभद्र व बिहार राज्य में खरवार आदि जनजातियां जन-जाति के रूप में सूचीबद्ध हैं।
चंदौली के आदिवासी, आदिवासी होकर भी आदिवासी नहीं हैं। अनुसूचित जाति में गिने जाने की वजह से इनको वन अधिकार कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

पानी की टंकी से आपूर्ति फेल
पिंटू कोल के घर व पड़ोस की महिलाओं का रोजाना दो से तीन घंटे दिन पानी जुटाने में गुजर जाता है। गांव में अधिकतर लोग मजदूरी करते हैं। इनके पास इतने पैसे नहीं हो पाते कि ये लोग ख़राब पड़े हैंडपंपों की मरम्मत करा सकें।
इनके घर पास लगी पानी की टंकी से आपूर्ति कई सालों से नहीं हो रही है। यह बनने के बाद कुछ महीनों में ही इसकी आपूर्ति बिगड़ गई।
पानी लाने में दुकानदारी होती चौपट
बीच जंगल में लौवारी गांव निवासी रामकृत पास के चौराहे पर छोटी सी पान दुकान चलाने के लिए दो किमी दूर गांव से पानी लाना पड़ता है। रामकृत के अनुसार गांव से बाल्टी में पानी भरकर दुकान तक लाने में एक घंटे का समय लगता है, जो रोजाना का काम है।
कई बार तो दिन में दो बार जाना पड़ता है। इससे दुकानदारी पर बुरा असर पड़ता है। दिनभर की दुकानदारी से बमुश्किल 100-150 रुपए बच पाते हैं।
इधर पास में न ही कोई स्वास्थ्य सुविधा और न ही इंटर कॉलेज या डिग्री कॉलेज। बीमार होने पर लोग 15-20 किलोमीटर दूर इलाज कराने जाना पड़ता है।

नहा लेते हैं, पी नहीं सकते
आतिश आज स्कूल नहीं जा सका है। वह उस कुएं पर नहाते हुए मिले, जहां गांव के लोग स्नान तो कर सकते हैं, लेकिन उसके पानी का सेवन नहीं किया जा सकता है।
उसने बताया कि कुएं में गंदगी व कचरा होने से इसके पानी को पीने से ग्रामीण परहेज करते हैं। कोई स्वास्थ्य कर्मचारी ब्लीचिंग पाउडर डालने की जहमत भी नहीं उठाते।
तीन से चार घंटे पानी जुटाने में खर्च
जमसोती की गंगेश्वरी बाल्टी लिए गांव से लगभग आधा किमी दूर स्थित सरकारी प्राथमिक स्कूल के प्रांगण से पानी भरने आ रही थीं, उन्होंने “जनचौक” को बताया कि “मैं सुबह पांच बजे पानी लेने के लिए यहां रोज आती हूं। तब भी हैंडपंप पर दर्जनों महिलाओं की भीड़ रहती है।
पानी लेकर वापस घर पहुंचने में छह बज जाते हैं। इससे रसोई और घर का काम निबटाने में नौ बज जाते हैं। देर होने से बच्चे भी रुखा-सूखा खाकर स्कूल जाते हैं। खाना देर से बनने पर खेत पर काम करने जाने और मजदूरी के लिए जाने में घंटे-डेढ़ घंटे की देर हो जाती है।
इतना ही नहीं सब काम कर चुकने के बाद थोड़ा सांस लेने की फुर्सत होती है, फिर पानी जुटाने की चिंता। इससे आराम करने का समय ही नहीं मिल पता। लिहाजा, रोजाना के तीन से चार घंटे पानी जुटाने में खर्च हो जाते हैं।”
लेकिन मजबूरी है
गंगेश्वरी आगे कहती हैं “रास्ता पथरीला और जगह-जगह उबड़-खाबड़ होने की वजह से कई ग्रामीण गिरते-गिरते बचते हैं। पहले से ही समस्याएं क्या कम थीं, जो अब पानी के लिए इतना दूर और कई घंटे नष्ट कर जाना पड़ता है”।
“घर-गृहस्थी का इतना सारा काम पड़ा हुआ है। अब दिन में कम से कम तीन बार पानी लेने के लिए परेशान होना पड़ता है। बहुत सारा पानी तो रास्ते में ही छलक जाता है। इतनी धूप में सिर पर पानी लेकर चलना किसी मुसीबत से कम नहीं है, लेकिन मजबूरी है।”

आंकड़ों में नौगढ़
साल 2011 की जनगणना के अनुसार चंदौली ज़िले की आबादी 19,52,756 थी, जिसमें 10,17,905 पुरुष और 9,34,851 महिलाएं शामिल थीं। 2001 में चंदौली ज़िले की जनसंख्या 16 लाख से अधिक थी।
चंदौली में शहरी आबादी सिर्फ़ 12.42 फ़ीसदी है। 2541 वर्ग किलोमीटर में फैले चंदौली ज़िले में अनुसूचित वर्ग की आबादी 22.88 फ़ीसदी और जनजाति आबादी 2.14 फ़ीसदी है।
यहां खेती-मजदूरी के अलावा कोई दूसरा रोज़गार नहीं है। पेट पालने और परिवार जिलाने के लिए इस क्षेत्र की युवा आबादी बड़े पैमाने पर महानगरों को पलायन करती है।
दूषित पानी से फैलाती बीमारी
नौगढ़ में स्थित चुप्पेपुर गांव के उदितपुर सुर्रा गांव में हाल ही में ग्रामीणों को उल्टी-दस्त होने की समस्या हुई। देखते ही देखते गांव के बीस से अधिक लोग बीमार हो गए।
टिरू (88), सूरज (20), दिव्यांशु), नेहा (7), आशीष (12), हिमांशु (8), ज्योति (13) मंजू (28), चंद्रकांता (38), प्रभावती (2), मोहनलाल (45) बुधई 65, अनुष्का (2), पूनम (2), प्रति (8), शिवम (3), सरोज देवी (40), सरिता कोल (35), समलावती (35), कृष्णावती (38),ज्योति (25) आदि डायरिया से पीड़ित रहे।
कुछ लोगों को सोनभद्र के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जांच के दौरान 20 लोगों में डायरिया के लक्षण पाए गए।

चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अवधेश पटेल ने बताया कि “टीम ने गांव के लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण कर दवाएं उपलब्ध कराई है। दो घरों के हैंडपंप के पानी के सैंपल लिए गए हैं। बस्ती में ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव कराने के साथ लोगों को क्लोरीन की गोली और ओआरएस दिया गया है। ग्रामीणों को साफ व पानी उबालकर पीने की सलाह है।”
बहरहाल, कई जगहों पर रेज़रवॉयर बनाए जा रहे हैं, पाइपलाइन बिछ रही हैं लेकिन फिलहाल पीने के पानी का संकट दूर होता नज़र नहीं आता।
कब मिलेगा हर घर जल योजना का पानी
सूबे की योगी सरकार ने जून 2020 में हर घर जल योजना की शुरुआत की थी। जून 2022 के बाद में भी इसकी अवधि बढ़ाकर 2024 कर दी गई। जानकारी के अनुसार ‘हर घर जल’ योजना के तहत पेयजल का इंतजाम करने के लिए नौगढ़ के लिए 250 करोड़ की योजना को मंजूरी दी गई है।
इस योजना के तहत भैसोढ़ा बांध के पानी को शोधित करने के बाद करीब छह सौ किलोमीटर पाइप लाइन से सभी घरों में पहुंचाया जाना है। मियाद बीतती जा रही है, लेकिन ‘हर घर जल’ योजना का कहीं अता-पता नहीं है।
नौगढ़ के उप ज़िलाधिकारी कुंदन राज के अनुसार सरकार व प्रशासन की कोशिश है कि जल जीवन मिशन के तहत नौगढ़ क्षेत्र में हर घर तक पेयजल की उपलब्धता जल्द सुनिश्चित हो।

नौगढ़ के कई गांवों में पेयजल के लिए गरीब, दलित और आदिवासी लोगों द्वारा होने वाले दैनिक संघर्ष से यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि, इन इलाकों में सरकार द्वारा साफ पानी के लिए लाखों-करोड़ों रुपए प्रतिवर्ष खर्च करने के बावजूद जमीनी स्तर पर हालात जस के तस है।
ग्रामीणों का आरोप है कि जंगल में होने की वजह से हमारी समस्याओं को अधिकारी-कर्मचारी गंभीरता से नहीं लेते हैं।
(पवन कुमार मौर्य चंदौली\वाराणसी के पत्रकार हैं )
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