चंदौली, उत्तर प्रदेश। देश में अमीर और गरीब के बीच अंतर को कम करने के लिए व हासिए पर पड़े गरीब-मजदूर वर्ग को गरीबी के कुचक्र से बाहर निकालने के लिए मनरेगा योजना चलाई जा रही है, बावजूद इसके देश के कई हिस्सों में लाखों की तादात में मजदूर गरीबी के चंगुल में अब भी फंसे हुए हैं।
केंद्र-राज्य सरकार द्वारा देशभर में व्यापक पैमाने पर चल रही मनरेगा योजना एक बार फिर आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) केवाईसी के कारण चर्चा में है। अब लाखों मनरेगा (जॉब कार्ड धारक) मजदूरों की केवाईसी किये जाने को लेकर सुदूर गांव के मजदूरों में उहापोह की स्थिति बनी हुई है।
कई क्षेत्रों में मनरेगा श्रमिकों का केवाईसी का काम आधा-अधूरा है। फिलहाल, श्रमिकों के मजदूरी का भुगतान आधार से लिंक बैंक खाते से काम चल जा रहा है, लेकिन सवाल जस का तस हैं।

इधर, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत चालू वित्त वर्ष में ग्रामीण श्रमिकों के भुगतान खातों में 39 लाख से ज्यादा की कमी आई है। भारत में सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के लिए काम कर रहे संगठन एसोसिएशन ऑफ अकेडेमिक एंड एक्टिविस्ट लिब टेक की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 39 लाख से ज्यादा ग्रामीण श्रमिक मनरेगा के तहत काम करने के अपने अधिकार से वंचित किए गए हैं। रिपोर्ट में एक और बड़ा खुलासा यह है कि 6.70 करोड़ श्रमिकों को भुगतान में देरी हुई है, जिन्हें इस साल अप्रैल से उनके श्रम के लिए कोई राशि नहीं मिली है।
हटाए गए खातों को आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के अंतर्गत अयोग्य माना गया। रिपोर्ट के आंकड़ों के आधार पर किसान-मजदूरों के लिए संघर्ष करने वाले श्रवण कुशवाहा कहते हैं कि ‘एबीपीएस यानी केवाईसी कराने के फरमान से सरकार मनरेगा योजना को कॉफिन में लिटाकर कील ठोक रही है।’
अपने हाल पर जी रहे हैं

चंदौली जनपद के सुगाई ग्रामसभा में शामिल लक्ष्मणपुर गांव की दलित बस्ती में नब्बे फीसदी मजदूर हैं। बस्ती की आबादी तकरीबन 1200 है। इसमें से 550 नागरिक सक्रिय मतदाता हैं। अव्यवस्था और उपेक्षा की शिकार बस्ती के लोग अपने हाल पर जी रहे हैं।
केवाईसी क्या होता है?
लक्ष्मणपुर गांव की दलित बस्ती के महिला-श्रमिकों का कहना है कि “उन्हें केवाईसी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। अंगूठा लगाकर बैंक खाते में आये रुपए निकल तो जाते हैं, लेकिन मनरेगा में काम बहुत कम मिल रहा है।”
अभी खाली हाथ बैठे हैं, कोई काम नहीं है
लक्ष्मपुर की पचास वर्षीय हीरामनी देवी मनरेगा मजदूर हैं। इनके द्वारा ज्येष्ठ माह में किये गए कार्य की मजदूरी का भुगतान दो-तीन दिन पहले आया है। हीरामनी “जनचौक” से कहती हैं “16 अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक मनरेगा में मजदूरी का काम मिला हुआ था।
मुझे केवाईसी की कोई जानकारी नहीं है। मनरेगा में पहले की तरह बराबर काम नहीं मिलता है। गरीबी के चलते दो लड़कों को पढ़ा भी नहीं सकी। इससे वह भी मजदूरी करते हैं। एक लड़की को बारहवीं तक पढ़ाया और उसकी शादी कर दी। इस समय हमारे पास कोई काम नहीं है।
मजदूरी से तो पेट ही नहीं पल रहा, उसकी शादी 2020-21 में किया, जिसके लिए हमलोगों पर तीन लाख रुपए का कर्ज हो गया। आज चार साल गुजरने को हैं, अब तक सिर्फ डेढ़ लाख रुपए ही कर्ज का चुका पाए हैं”।
“शेष कर्ज की राशि और बढ़ते ब्याज से नींद हराम हैं। यहां तो सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम मजदूरों को नियमित काम नहीं मिलता है। इसलिए हमारे लिए फांकापरस्ती आम बात है।”
मनरेगा में काम नहीं मिलने से घर बैठे हैं
मजदूर सुगाई के हरिप्रकाश, बीते आठ सालों से मनरेगा में मजदूरी करते आ रहे हैं। उनको तीन महीने पहले किये गए मनरेगा में मजदूरी का भुगतान अब जाकर मिला है। इससे वह नाराज और शिकायत करते हुए मिले। इनको भी केवाईसी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। मनरेगा में काम नहीं मिलने से घर बैठे हैं।

बैंक कर्मियों ने बहाने बनाकर लौटाए
समीप में स्थित बरहनी विकासखंड के मानिकपुर सानी के अस्सी फीसदी से अधिक के मजदूर भी केवाईसी के बारे में जानकारी ही नहीं है। एक-दो मनरेगा श्रमिकों का कहना है कि केवाईसी करने के लिए कहा गया था, लेकिन हमलोग कैसे और कहां जाकर कराएंगे ?
कई जागरूक मजदूर अपने खाते की केवाईसी कराने के लिए बैंक गए भी तो उन लोगों ने बैंककर्मियों द्वारा बहाने बनाकर लौटाए जाने पर फिर बैंक गए ही नहीं।
सौ दिन रोजगार का दावा भी फिसड्डी
रिपोर्ट से पता चलता है कि मनरेगा योजना कभी भी ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोजगार देने के करीब नहीं पहुंच पायी। वर्ष 2016-17 से वर्ष 2019-20 के केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय के अध्ययन से पता चलता है कि इस अवधि में औसतन 7.81 करोड़ सक्रिय जॉब कार्डधारी परिवारों में से केवल 40.7 लाख (5.2 प्रतिशत) को 100 दिन का रोजगार मिला।

बिहार में 54.12 लाख सक्रिय जाॅबकार्ड में से केवल 20 हज़ार (0.3 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश में 85.72 लाख सक्रिय जाॅबकार्ड्स में से औसतन 70 हजार (0.8 प्रतिशत), मध्यप्रदेश में 52.58 लाख सक्रिय जाॅबकार्ड धारियों में से केवल 1.1 लाख (2.1 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ में 33.41 लाख जाॅबकार्ड धारी परिवारों में से 2.9 लाख (8.8 प्रतिशत), कर्नाटक में 33.39 लाख सक्रिय जाॅबकार्ड धारियों में से1.6 लाख (4.7 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल में 83.48 लाख कार्ड धारियों में से 6.1 लाख (7.4 प्रतिशत) और राजस्थान में 69.88 लाख जाॅबकार्ड धारियों में से 5.2 लाख (7.5 प्रतिशत) परिवारों ने ही यह लक्ष्य हासिल किया।
मुझे अभी तक किसी केवाईसी के बारे जानकारी नहीं, कहते हैं चंदौली जनपद के कमला राम भूमिहीन मनरेगा श्रमिक। अब आये दिन तबियत ख़राब रहती हैं। कच्चे-मकान और सीमेंट टिनशेड के छप्पर में इनका परिवार गुजर को विवश हैं।

वह “जनचौक” से कहते हैं “हमारी पूरी उम्र मजदूरी में निकल गई। मजदूरी में इतने ही रुपए मिल पाते हैं, जिससे बमुश्किल पेट भरता है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई कहां से करवाता? इतनी मेरे सामर्थ्य और आर्थिक शक्ति नहीं है। इसके चलते मेरे बच्चे भी चार-पांच दर्जे से अधिक नहीं पढ़ सके”।
“गरीबी के कुचक्र में फंसकर वो भी मजदूर बन गए। मनरेगा में आये दिन रोज कुछ न कुछ सरकार हाकिम द्वारा नियम-कानून बनता रहता है। हम गरीब लोग क्या-क्या करते फिरेंगे। मुझे अभी तक किसी केवाईसी के बारे में कुछ नहीं बताया गया है।”
कमला आगे कहते हैं “केवाईसी को छोड़िये। मनरेगा में हमें नियमित रूप से काम भी नहीं मिलता है। अभी 13 दिन का काम कई महीनों बाद मिला था, अब जाने कब इस मजदूरी का भुगतान होगा और न जाने कब भविष्य में काम मिलेगा ?
दो साल पहले कर्ज लेकर बेटी की शादी करनी पड़ी। अब भी जैसे-तैसे गुजारा होता है। सरकार को मजदूरों-गरीबों की समस्या-तकलीफ दिखाई नहीं दे रही है क्या ?”
दोनों वक्त पेट भरने के लिए मजदूरी
उत्तर प्रदेश के वाराणसी मंडल में स्थित भारत के अति पिछड़े जिले में शामिल चंदौली जनपद में मनरेगा (जॉब कार्ड धारक) मजदूरों की केवाईसी जनपद के हालत की तरह बहुत पिछड़ी हुई है। अभी आधार से लिंक बैंक खाते से काम चल जा रहा है।
बरहनी विकासखंड के मानिकपुर सानी, सुगाई व लक्ष्मणपुर गांव के अस्सी फीसदी से अधिक के मजदूरों को केवाईसी के बारे में जानकारी ही नहीं है। कुछ मजदूरों ने बताया कि केवाईसी करने के लिए कहा गया था, लेकिन हमलोग कैसे और कहां जाकर कराएंगे ?

कई जागरूक मजदूर अपने खाते की केवाईसी कराने के लिए बैंक गए भी तो उन लोगों ने बैंककर्मियों द्वारा बहाने बनाकर लौटाए जाने पर फिर बैंक गए ही नहीं। मजदूरों ने बताया कि केवाईसी के लिए बैंक की भागदौड़ करनी पड़ेगी। बैंक वाले मजदूर समझकर एक के बाद कई दिन छोटे से काम के लिए बैंक बुलाते हैं।
अब मजदूर बैंक का चक्कर लगाए या अपनी दिहाड़ी करेगा। यहां मजदूरों के सामने दोनों वक्त पेट भरने के लिए मजदूरी जरूरी हैं अन्यथा भूखों भी रहना पड़ सकता है।
सीमित आय और बेकारी
स्थानीय ओमप्रकाश आठ-दस साल पहले मनरेगा में मजदूरी करते थे। अब भी वे मजदूर हैं। उन्होंने बताया कि “मनरेगा के तहत काम घर के पास मिल जाता है, लेकिन काम के एवज में मिलने वाली मजदूरी बहुत कम है। इस पैसे से परिवार का गुजारा नहीं हो पाता था।

फिर मैंने परिश्रम करके ईंट चिनाई का काम (मिस्त्री) सीख लिया। अब यही काम करता हूं। इस काम में भी दिक्कत यह कि हमेशा काम नहीं मिलता है। कई दिनों तक खाली बैठना पड़ता है। यह सिर्फ मेरी नहीं कई मजदूर और मिस्त्रियों की समस्या है।
राशन, तेल, दवाई, कपड़ा और बच्चों की फ़ीस का इंतजाम तो साल के बारह महीनों ही करना पड़ता है। इतनी सीमित आय और बेकारी से दलित-मजदूर कैसे गरीबी के कुचक्र से बाहर निकल पाएगा ?”
केवाईसी कराने का निर्देश
बेशक, देश में मनरेगा, दूरस्थ हासिए पर पड़े ग्रामीण जीवन आधार को श्रम के बदले आर्थिक रूप से रोजगार के अवसर उपलब्ध करने के एक दमदार विकल्प के रूप में लाया गया है। इसमें समय पर सुधार और बदलाव भी किये जाते रहे, लेकिन हालिया निर्देश कि, “मजदूरों की मजदूरी तब तक रोका जाए, जब तक की उनके बैंक खातों की केवाईसी नहीं हो जाती है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्य सरकारों से कहा था। मनरेगा लाभार्थियों भुगतान अनिवार्य रूप से आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) हो। अब मनरेगा जॉब कार्ड धारकों को उनके बैंक खाते को केवाईसी कराने का निर्देश दिया गया है।
केवाईसी के लिए गांव-गांव लगे कैंप
बहरहाल, मनरेगा मजदूर गुलाब राम के अनुसार कायदे से तो यह होना चाहिए कि “देश भर में मनरेगा जॉब कार्ड धारकों केवाईसी करने के लिए गांव-गांव कैंप लगाकर मजदूरों का केवाईसी कराया जाए। इस संबंध में सभी मजदूरों की स्वीकृति और मांग भी है।
क्योंकि, अनपढ़ मजदूर जब काम छोड़कर सिर्फ केवाईसी करने बैंक जाता है तो वह हैरान और परेशान होता है। इतना ही नहीं बैंककर्मी अपने काउंटर पर मजदूरों को खड़े देखते ही कहते हैं, फिर आ गए ! क्या है बताओ , केवाईसी कराना है कहने पर, बैंककर्मी कहते हैं, आज सर्वर डाउन है, कल आना और सभी दस्तावेज लेकर आना। आदि-आदि परेशानियां है मजदूरों।”

चंदौली में विकास कार्यों पर खर्च होंगे 1.68 अरब
चंदौली जिले में नए वित्तीय वर्ष 2024-25 में 734 ग्राम पंचायतों में 1.68 अरब रुपये से विकास कार्य कराये जाने को लेकर योजना बनी है। इस विकास कार्य को कराने में मनरेगा जाब कार्डधारकों को 52 लाख से अधिक दिनों का रोजगार मिलेगा। कार्ययोजना में प्राथमिकता के कामों को शामिल किया गया है।
यह होगी मनरेगा की कार्ययोजना
अगले वित्तीय वर्ष 2024-25 में 52 लाख 17 हजार 391 मानव कार्य दिवस सृजित करते हुए एक अरब 19 करोड़ 99 लाख 99 हजार 930 रुपये खर्च का अनुमान है। सामग्री मद के लिए 47 करोड़ 79 लाख 99 हजार 998 रुपये का प्रविधान सुनिश्चित किया जाएगा। बताया कि चालू वित्तीय वर्ष में 1.12 अरब रुपये की कार्ययोजना स्वीकृत है। अधिकांश धनराशि खर्च कर दी गई है।
मजदूरी भुगतान में देरी
अखिल भारतीय किसान महासभा के चंदौली जिलाध्यक्ष श्रवण कुशवाहा “जनचौक” से कहते हैं कि “इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश और केंद्रीय वित्त मंत्रालय की पहल और जीओ (एक तरह का सरकारी आदेश) के बावजूद एमआईएस में अभी तक मजदूरों की मजदूरी के पैसे समय से देने को लेकर कोई प्रावधान नहीं बनाया है।

अब भी मनरेगा मजदूरों के भुगतान में काफी देरी की जाती है। इससे मजदूर परिवारों के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है”।
श्रवण आगे कहते हैं कि “मनरेगा श्रमिकों का मोबाइल से हाजिरी लेने की कवायद के बाद अब केवाईसी कराने के फरमान से सरकार मनरेगा योजना को कॉफिन में लिटाकर कील ठोंक रही है।
बहरहाल, इन सब बातों से ये साफ होता है कि मनरेगा योजना की कमर पहले से ही टूटी हुई है। अब जब सरकार ने बजट में कटौती कर दी है और अनपढ़, अकुशल मजदूरों को बैंक आदि की भागदौड़ में उलझाया जा रहा है, ताकि उसकी आजीविका प्रभावित हो और निराश भाव से स्वयं ही मनरेगा से दूर हो जाए।”
“इससे मजदूरों की परेशानियां बढ़ेंगी। सरकार द्वारा केवाईसी मुझे तो मनरेगा से श्रमिकों की छंटाई करने का एक टूल जान पड़ता है।”
2022-23 के आंकड़ों पर एक नजर :
देशभर में सत्र 2022-23 में लगभग 11.37 करोड़ परिवारों को रोज़गार मिला है। इसमें से 289.24 करोड़ व्यक्ति-दिवस रोज़गार उत्पन्न हुआ है, जिसमें:
56.19% महिलाएं
19.75% अनुसूचित जाति
17.47% अनुसूचित जनजाति
रोजगार के दायरे को सीमित करेगा सरकार का फैसला
नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्य देबमाल्य नंदी के अनुसार “सरकार की तरफ से जिस तरह मनरेगा में कम पैसे आंवटित किए गए हैं, उससे ये साफ होता है कि यह रोजगार के दायरे को सीमित करेगा। नतीजतन आने वाले साल में मजदूरों के भुगतान में भी देरी होगी।”
नरेगा संघर्ष मोर्चा के तहत काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने कहा कि “इस तरह के कम आवंटन का मकसद मनरेगा योजना को पूरी तरह से खत्म करने जैसा मालूम होता है।”
मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक निखिल डे का कहना है कि “बजट आवंटन में कमी, ऑनलाइन हाजिरी और अब केवाईसी का निर्देश मनरेगा योजना को कमजोर करने की दिशा में एक षड्यंत्र मालूम पड़ता है।”
जयराम रमेश ने की यह मांग
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए आधार आधारित भुगतान प्रणाली (केवाईसी) को अनिवार्य किए जाने को लेकर सवाल उठाए और कहा “इसका विनाशकारी असर योजना पर पड़ा रहा है।
उन्होंने सरकार से इस पर रोक लगाने की बात कही और यह आरोप भी लगाया कि करीब 85 लाख पंजीकृत श्रमिकों के नाम इस कार्यक्रम से हटा दिए गए हैं। जयराम रमेश ने यह भी कहा कि यह सरकार की निर्मित मानवीय, आर्थिक और संस्थागत त्रासदी है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय को तुरंत एबीपीएस और NMMS की इस जिद पर रोक लगानी चाहिए, साथ ही मनरेगा का बजट बढ़ाया जाना चाहिए और श्रमिकों की दैनिक मजदूरी में बढ़ोतरी होनी चाहिए।”
मनरेगा योजना क्या है?
मनरेगा, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2005 में शुरू किये गए विश्व के सबसे बड़े रोज़गार गारंटी कार्यक्रमों में से एक है। यह योजना न्यूनतम वेतन पर सार्वजनिक कार्यों से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम एक सौ दिनों के रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है। सक्रिय कर्मचारी: 14.32 करोड़ (सत्र 2023-24)।
(पवन कुमार मौर्य के चंदौली\वाराणसी के पत्रकार हैं।)
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