क्या बनारसियों के चित से उतर गए हैं पीएम मोदी, काशी के डीएनए को क्यों नहीं समझ पा रहे बीजेपी नेता?

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बनारस। लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने के बाद 18 जून को बनारस आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गाड़ी के काफिले पर चप्पल फेंके जाने की घटना की भले ही कड़ी भर्त्सना की जा रही है, लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या वो बनारसियों के चित से उतर गए हैं। जिस मोदी के बनारस आने पर हर-हर मोदी के नारे लगा करते थे, अब वैसा नजारा आखिर क्यों नहीं दिखता। यह स्थिति तब है जब बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने शहर में बड़े पैमाने पर लोगों के घरों पर “मोदी का परिवार” का स्टीकर चस्पा कर रखा है। लोकसभा चुनाव में जहां मोदी का स्ट्राइक तेजी रेट गिरा है, वहीं उनकी जीत का फासला सिर्फ थोड़ा ही रह गया है। उनके खिलाफ कोई मजबूत प्रतिद्वंद्वी मैदान में होता तो इस बार देश की सियासत कुछ और ही होती?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव जीतने के बाद 18 जून 2024 को पहली बार उत्तर प्रदेश के संसदीय क्षेत्र बनारस पहुंचे थे। यह घटना उस समय की है जब प्रधानमंत्री किसान सम्मेलन को संबोधित करने के बाद सड़क मार्ग से दशाश्वमेध घाट जा रहे थे। वीडियो में दिख रहा है कि दशाश्वमेध घाट से कुछ दूर पहले डेढ़सीपुल के पास उनकी कार के बोनट पर एक चप्पल कहीं से आकर गिरी। प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात एसपीजी के एक अधिकारी ने उसे उठाकर दूर फेंक दिया। मेन स्ट्रीम की मीडिया में यह घटना भले ही सुर्खियां नहीं बनीं, लेकिन सोशल मीडिया पर चप्पल फेंके जाने का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है।

प्रधानमंत्री के काफिले की कार पर चप्पल फेंके जाने की घटना पुलिस प्रशासन के गले की फांस बन गई है। एसपीजी ने इस बाबत पुलिस प्रशासन से जवाब तलब किया है। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के तगड़ी सुरक्षा बंदोबस्त और रूफ टॉप फोर्स की तैनाती के बावजूद पीएम के काफिले की गाड़ी पर चप्पल फेंके जाने की घटना पर बनारस के पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल ने चुप्पी साध ली है। अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इस हरकत के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को पकड़ा गया है अथवा नहीं? कलेक्टर एस. राजलिंगम कहते हैं कि वायरल वीडियो की जांच की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि एसपीजी ने बनारस जिला और पुलिस प्रशासन से प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक पर जवाब तलब किया है।

मोदी से अब कोई नहीं डरता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले की गाड़ी पर चप्पल फेंके जाने की घटना के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने इस घटना की कड़ी भर्त्सना की। साथ ही चुटकी लेते हुए यह भी कहा, “पीएम नरेंद्र मोदी से अब कोई नहीं डरता है। पीएम मोदी का कॉन्सेप्ट हजारों करोड़ रुपये की मार्केटिंग और डर था। यह एजेंसी का डर, मीडिया का डर, सरकार का डर था। उनके काम करने का तरीका लोगों को डराने-धमकाने का है, लेकिन अब उनसे कोई नहीं डरता। आपने देखा होगा बनारस में किसी ने उन्हें चप्पल मार दी थी।”

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत समेत कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने इस वीडियो को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर शेयर किया। वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बुलेटप्रूफ गाड़ी पर वाराणसी में चप्पल फेंकी गई। वीडियो में एक सुरक्षाकर्मी उस चप्पल को बोनट से उठाकर फेंकते हुए नजर आ रहा है।

अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट करते सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि, “वाराणसी से नरेंद्र मोदी सांसद है। वहां उनके खिलाफ भारी असंतोष है सिर्फ डेढ़ लाख जीत की मार्जिन इसका प्रमाण भी है। वे देश में सबसे कम अंतर से जीतने वाले प्रधानमंत्री हैं। उनकी उनकी कार पर चप्पल फेंकना ग़लत है, इसका समर्थन कोई नहीं कर रहा, लेकिन लोगों के अंदर रोष और प्रतिकार को भी समझना होगा। बेबसी और बदहाली से उपजे इस गुस्से का समाधान करना काशी के सांसद का कर्तव्य है और यही लोकतंत्र की पहचान है।”

बनारस के लोगों को याद है कि साल 2014 में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता अरविंद केजरीवाल रोड शो करने बनारस आए थे तब उनके ऊपर स्याही फेंक गई थी। नरेंद्र मोदी को चुनावी टक्कर देने के लिए अरविंद केजरीवाल शिवगंगा एक्सप्रेस से वाराणसी पहुंचे थे। केजरीवाल बनारस के ऐतिहासिक बेनियाबाग़ मैदान में जनसभा करने वाले थे। उस समय पुलिस ने अम्बरीष सिंह नामक जिस व्यक्ति को हिरासत में लिया था वह इन दिनों बीजेपी का ताकतवर नेता है।

अगल है बनारस का डीएनए

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब बनारसियों के चित से उतर गए हैं। वह कहते हैं, “यह घटना निंदनीय है और बनारस की ऐसी रवायत भी नहीं रही है। इस घटना ने कुछ अहम बातों को उजागर किया है। पीएम की सुरक्षा में खामी इस बात की ओर संकेत देता है कि हालात अच्छे नहीं हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जो बनारस पहले पलक पांवड़े बिछाकर मोदी का स्वागत किया करता था वहीं अंदरखाने लोगों के मन में अब गुस्सा भी पनप रहा है। लोगों के अंदर एक गहरी नाराजगी है। इस पर बीजेपी को नए सिरे से विचार करना चाहिए। इस घटना को नए चश्मे से देखना चाहिए।”

“बनारस की सियासत में इस तरह की परंपरा नहीं थी। नेताओं के ऊपर जूते-चप्पल और स्याही फेंके जाने की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं। केजरीवाल पर किन लोगों ने स्याही फेंकी थी, यह सभी को अच्छी तरह से याद है कि इस तरह की घटनाएं किन लोगों ने की। चुनाव के समय ही अपना दल (कमेरावादी) के प्रत्याशी गगन यादव के नामांकन के समय बीजेपी के लोगों ने मारपीट और गुंडागर्दी की। उनके पर्चे फाड़ने की कोशिशें की गईं। तमाम लोगों को नामांकन करने ही नहीं दिया गया। धमकियां दी गईं और बदसलूकी भी की गई। जो लोग इन दिनों चप्पल फेंके जाने की घटना की निंदा कर रहे हैं वो कहां थे जब केजरीवाल पर स्याही की बौछार की गई थी और उनके साथ किन लोगों ने बदसलूकी की थी। इसीलिए कहा जाता है कि जो बोओगे, वही काटोगे।”

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप यह भी कहते हैं, “चप्पल प्रकरण के निहितार्थ बहुत कुछ हैं। मोदी के काफिले पर चप्पल फेंके जाने की घटना से आज जो लोग दुखी हैं हम उनके दुख में शामिल हैं, लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि उन्होंने किसके साथ क्या-क्या किया? यह अलार्म है कि चीजें अब दूसरी तरफ रिवर्स गीयर में जा रही हैं। कुछ ऐसा ही मिजाज समूचे बनारस का है। बनारस नान सीरियस शहर नहीं है। यहां बड़बोलापन नहीं चलता। बनारस के डीएनए को समझने की जरूरत है।”

“इस शहर का डीएनए लोगों का खुले मन से स्वागत करने वाला रहा है। मेला-ठेला करने वाला है। खिलखिलाकर हंसने वाला रहा है। भावना को ठेस लगने पर तनकर खड़ा होने वाला रहा है बनारस। अंग्रेजों का मुकाबला करने वाला रहा बनारस। आततायी अंग्रेजों का मुद्धा काटने वाला रहा है यह शहर। बनारसियों ने लाठी-डंडा और गड़ासा लेकर यहां से वारेन हेस्टिंग्स को भगा दिया था। बनारस के गुंडों और रंगबाजों के गौरवशाली किस्से इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं।”

बनारस की रवायत को समझाते हुए प्रदीप कहते हैं, “अंग्रेजों ने जब बनारस की जनता पर हाउस टैक्स थोपा था तब बनारस के लोगों ने अंग्रेजों को जवाब देने के लिए उनकी राजधानी कलकत्ता की ओर कूच कर दिया था। बाद में हुकूमत ने टैक्स वापस लिया। नेताओं को बनारस के मिजाज के मुताबिक अपना आचरण और सोच रखनी चाहिए। दुनिया जानती है कि बनारस शिव की नगरी है। इसे बहुत समझने की जरूरत है। आमतौर पर बनारस अक्सर बहुत सी बातों को नजरंदाज कर देता है। हर बनारसी की जुबान पर रहता है, “जाए दा यार, खुद ही भोगी। यह शहर क्षमा करने वाला है।”

“शिव को समझने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि वो बेलपत्र पर खुश होने वाले देवता हैं। शिव बिना आकांक्षा वाले देवता हैं। बिल्कुल निर्मोही, लेकिन जब वो क्रोध में आते हैं तो प्रलय की स्थिति आ जाती है। बनारस के मिजाज में शिव का अंश है। बनारस के लोगों में यह अंश झलकता है। ऐसा ही मिजाज समूचे बनारस का है। यह नान सीरियस शहर नहीं है। यहां बड़बोलापन नहीं चलता। अगर इसी तरह काशी का खिलवाड़ काशी के बनावट के साथ, इस शहर के मिजाज के साथ होता रहा तो इसका बड़ा खामियाजा उठाना पड़ सकता है। सिर्फ भाजपा ही नहीं, सभी दलों के नेताओं को बनारस के डीएनए को समझने की जरूरत है।”

‘मंदिर को क्यों बनाया माल’

राजेंद्र तिवारी बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के काफिले की गाड़ी पर बीजेपी के गढ़ में चप्पल फेंकी गई। जिस जगह चप्पल फेंकी गई, वहां बीजेपी के पन्ना प्रमुख का आवास है। राजेंद्र कहते हैं, “वो गंगा से झूठ बोलकर आए थे और खुद को भीष्म साबित करने का प्रयास कर रहे थे। गंगा पुत्र एक ही है, जिसे भीष्म के रूप में जाना जाता है। दूसरा कोई भीष्म बनने का प्रयास करेगा तो उसे गंगा के कोप का भाजन तो करना पड़ेगा। हर अहंकारी का अहंकार काशी की धरती पर जरूर चूर हो जाता है। इसका यह प्रत्यक्ष परिणाम है।”

“गंगा के अस्तित्व और बाबा विश्वनाथ के व्यक्तित्व के समक्ष करने का खिलवाड़ बनारस कभी स्वीकार नहीं कर सकता। बनारस की दो ही भाषा है-पान की और पनही की। अगर बनारसी स्वागत करता है तो पान से और उसके अहंकार को चूर करता है तो पनही से। बनारस की इस भाषा हर दल का, हर नेता समझने का प्रयास करे। महादेव और गंगा के प्रति दुर्भावना रखने वाले व्यक्ति का स्वागत-सत्कार बनारस में किस तरह से होता है।”

राजेंद्र यह भी कहते हैं, “क्रूज चलवाकर माई से कमाई का साधन बनाया और मंदिर को माल बनाकर। काशी सदियों से साधना की नगरी रही है, साधन की नगरी नहीं है। मोदी के धर्म के व्यावसायिक कृत्यों से काशी की मूल अवधरणा प्रभावित हुई है, चाहे वह बनारसी साड़ी के रूप में हो, चाहे वो लकड़ी के खिलौनों के रूप में हो या हाथ के किसी भी हुनर से संबंधित हो। जिस कारोबार के चलते काशी की अलग पहचान रही है, उसे इस अहंकारी सरकार ने बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है। काशी के नौजवान नीट और नेट परीक्षा में पेपर लीक व बड़े पैमाने पर नतीजों के घोटालों से कुंठित हैं।”

“बनारस के स्टूडेंट्स पिछले एक पखवाड़े से लगातार आंदोलन कर रहे हैं। खास बात यह है कि जो नौजवान अब तक भ्रमवश बीजेपी का समर्थन कर रहे थे, उनकी आंखें खुल गई और वो सड़क पर उतर आए। अपर कास्ट के नौजवानों का एक बड़ा तबका मोदी सरकार की नीतियों से खफा है और आने वाले दिनों में वह इस घटालों पर सरकार की चुप्पी का जवाब जरूर मांगेगा। परीक्षाओं का निजीकरण करने के पीछे सरकार की नीयत सरकारी नौकरियों को खत्म करना है और कारपोरेट घरानों मुनाफा पहुंचाना है। बनारस के लोगों ने जिस तरह से बीजेपी नेताओं को खारिज करना शुरू किया है उससे लगता है कि आने वाले दिनों सियासी खेल उनके हाथ से निकल जाएंगे। तब ज्ञानवापी का मुद्दा उछाले जाने पर भी उन्हें कोई फायदा नहीं होगा। “

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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