मोदी की घटती लोकप्रियता के ताबूत में अंतिम कील हो सकती है बनारस में हेमंत पटेल की हत्या

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में हेमंत पटेल की हत्या साधारण घटना नहीं है। इस घटना ने मोदी के करीब साढ़े तीन लाख कुर्मी मतदाताओं को अंदर तक झकझोर दिया है। क्योंकि हत्या का आरोप सीएम योगी आदित्यनाथ के सजातीयों पर लगा है। यदि पुलिस प्रशासन द्वारा इस हत्याकांड में निष्पक्ष तरीके से कार्रवाई नहीं की गई तो यह मुद्दा इतना बड़ा रूप लेता जा रहा है कि 2029 के चुनाव में मोदी की जीत की राह में कांटे बिछा सकता है।

मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अकेले कुर्मी मतदाताओं की संख्या साढ़े तीन लाख से ज्यादा है। इनमें सबसे अधिक रोहनिया तथा सेवापुरी विधानसभा में करीब दो लाख हैं। 2014 के चुनाव में मोदी की जीत करीब 3.70 लाख वोटों से हुई थी। 2019 के चुनाव के पहले पुलवामा आतंकी हमले को लेकर जो माहौल बनाया गया, उसके कारण उनकी जीत का अंतर काफी बढ़ गया था। करीब 4.79 लाख मतों से जीते थे। लेकिन, 2024 के चुनाव में यह अंतर घटकर 1.52 लाख पर आ गया। यह कहा जाए कि काशी में मोदी की स्वीकार्यता 2019 के मुकाबले 2024 में काफी घटी है तो कोई गलत नहीं होगा।

वाराणसी से मोदी की जीत में कुर्मी मतदाताओं की भारी संख्या की अहम भूमिका होती है। जब मोदी जी को पहली बार 2014 में गंगा मइया ने बनारस में बुलाया तो उनको जीत का पक्का भरोसा नहीं था। कुर्मी मतदाताओं को लेकर उनकी चिंता थी। लिहाजा रोहनिया से उस समय की विधायक अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल से समझौता करना पड़ा। मोदी की इस सीट के लिए भारतीय जनता पार्टी को त्याग भी करना पड़ा था। कुर्मी मतदाताओं को समेटने के लिए मिर्जापुर संसदीय सीट अपना दल को दे दी। मिर्जापुर के पार्टी नेताओं में इसको लेकर काफी नाराजगी भी दिखी, लेकिन इस नाराजगी को रणनीतिक तरीके से धीरे-धीरे दबा दिया गया।

बनारस का कुर्मी डॉ. सोनेलाल पटेल का अनुयायी रहा है। यह परंपरा अभी तक चली आ रही है। इसी के चलते अनुप्रिया पटेल समाजवादी पार्टी की 2012 की लहर में भी रोहनिया विधानसभा सीट से जीत हासिल कर पहली बार विधायक बनीं। इसके बाद से अनुप्रिया पटेल के सहारे मोदी और मोदी के सहारे अनुप्रिया पटेल सांसद बनती चली आ रही हैं। पूरे प्रदेश में भी इस समीकरण का लाभ अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल एस और मोदी की भाजपा को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मिलता चला आ रहा है। तभी तो तमाम मुद्दों पर अंतरविरोधों के बावजूद दोनों एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ रहे हैं। दावा किया जाता है कि यह गठबंधन फेविकोल का जोड़ है।

लेकिन, हेमंत पटेल की भाजपाई ठाकुर द्वारा गोली मारकर की गई हत्या और उसके बाद योगी की पुलिस द्वारा की जा रही एकतरफा कार्रवाई ने कुर्मियों को मोदी-योगी की सरकार के खिलाफ आक्रोशित किया है। अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बड़ी बहन अपना दल कमेरावादी नेता सिराथू की विधायक डॉ. पल्लवी पटेल और सामाजिक संगठन सरदार सेना के प्रमुख डॉ. आरएस पटेल इस मामले में न्याय की लड़ाई तेज कर भाजपा और उसके सहयोगी दलों को तनाव देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।

हालांकि अनुप्रिया पटेल के निर्देश पर उनकी पार्टी के विधायक डॉ. सुनील पटेल हेमंत पटेल के शव का पोस्टमार्टम होते समय पूरी टीम के साथ पहुंचे थे, लेकिन इस मामले को लेकर सत्ता विरोधी जो लहर बनी है, उसे थामने में असफल साबित हुए। इसका कारण पुलिस प्रशासन का रवैया है। घटना 22 अप्रैल की है। सरदार सेना द्वारा बहुत दबाव बनाने पर पुलिस मुख्य आरोपित राज विजेंद्र उर्फ रवि सिंह को पकड़ सकी। अभी तक दो आरोपी फरार बताए जा रहे हैं।

जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने का दावा करने वाले सीएम योगी के सजातीय आरोपियों को गिरफ्तार करने या फरारी की स्थिति में विकल्प के तौर पर अन्य कार्रवाई करने में पुलिस क्यों ढीली है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सरदार सेना के तत्वावधान में कुर्मी समाज की बैठक हुई। मार्च निकाला गया। डॉ. पल्लवी पटेल पीड़ित परिवार के घर सिंधोरा थाना के मरुई पहुंचीं। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके अपनी मांग रखी, लेकिन पुलिस अपनी ही चाल से चल रही है। अन्य मामलों की तरह एफआईआर दर्ज होते ही बुलडोजर कार्रवाई का न होना भी कुर्मियों में रोष बढ़ाने का कारण बन रहा है। अब तो यह कहा जा रहा है कि इस बार यदि आरोपितों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं करा सके तो अगला नंबर भी किसी का आ सकता है।

हेमंत पटेल की हत्या के मुद्दे पर कुर्मी समाज की यही एकजुटता आने वाले विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ जा सकती है। खासकर 2029 के चुनाव में तो मोदी के लिए योगी सरकार के खिलाफ यह आक्रोश काफी खतरनाक हो सकता है। क्योंकि 1.52 लाख से जीत को बड़ी जीत नहीं कहा जा सकता। साढ़े तीन लाख से ज्यादा कुर्मियों में से आधा भी इधर से उधर हुए तो लुटिया डूबनी तय है।

हेमंत पटेल तीन भाइयों में दूसरे नंबर का था। बड़े भाई का नाम विशाल पटेल तथा छोटे का नाम दुर्गेश है। दो बहनें भी हैं, एक डॉली पटेल तथा दूसरी परी। पिता अखिलेश चंद्र वर्मा एडवोकेट हैं और मां आशा देवी गृहिणी। सभी न्याय के इंतजार में हैं।

(लेखक राजेश पटेल दैनिक जागरण के चीफ सब एडिटर रहे हैं। इस समय स्वतंत्र लेखन करते हैं।)

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