पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से छह पर चुनाव हो चुके हैं। अभी 36 का होना बाकी है। इसी दौरान हाई कोर्ट के जस्टिस देवांशु बसाक के डिवीजन बेंच ने 25,753 नौकरियों को खारिज करके राज्य सरकार को एक करारा झटका दिया है। एक ही सवाल है कि बाकी 36 लोकसभा सीटों के चुनाव पर इसका कितना असर पड़ेगा और इसे भाजपा कितना भुना पाएगी।
नियुक्ति प्रक्रिया में फर्जीवाड़ा किए जाने के आरोप में अपर प्राइमरी के टीचरों और ग्रुप सी एवं डी के कर्मचारियों की नौकरी चली गई है। अब भाजपा के साथ ही कांग्रेस और वाम मोर्चा ने भी इसे प्रमुख चुनावी मुद्दा बना लिया है। यूं तो पश्चिम बंगाल की सभी 42 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है, पर सही मायने में 10-12 सीट ही ऐसी हैं जहां कांग्रेस और वाम मोर्चा अपनी मौजूदगी मजबूती से दर्ज करा रहे हैं। कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी और माकपा की मीनाक्षी भट्टाचार्य, मोहम्मद सलीम एवं सृजन चक्रवर्ती के कारण यह बदलाव आया है। जाहिर है कि बाकी 30-32 सीटों पर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18, तृणमूल कांग्रेस को 22 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थी। इन बाकी सीटों पर कांग्रेस और वाम मोर्चा के उम्मीदवार कितना और किसका वोट काटेंगे यह जीत हार तय करने में एक निर्णायक भूमिका निभाएगा। भ्रष्टाचार के सवाल पर तो कांग्रेस बीजेपी और माकपा के नेता एक ही सुर में बोल रहे हैं। अलबत्ता भाजपा की सांप्रदायिकता और धर्म के आधार पर मतों के विभाजन की कोशिश का कांग्रेस और माकपा के नेता पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
भाजपा नेताओं ने संदेशखाली को एक प्रमुख मुद्दा बनाया है। उत्पीड़न की शिकार महिलाओं में से एक रेखा पात्र को बसीरहाट लोकसभा का उम्मीदवार भी बनाया है। इसके साथ ही संदेशखाली के खलनायक शेख शाहजहां की तस्वीर लिए पूरे बसीरहाट लोकसभा केंद्र में प्रचार कर रहे हैं। जाहिर है कि इसका असर और बहुत सारी लोकसभा सीटों पर पड़ेगा। अब अगर कांग्रेस और वाम मोर्चा के उम्मीदवार मुस्लिम मतदाताओं को बांटने में कामयाब हो जाते हैं तो इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। इसलिए भाजपा नेताओं ने 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 30 का लक्ष्य तय कर रखा है। इसके अलावा जय श्री राम तो थे ही अब त्रिशूल का भी आगमन हो गया है। विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी हाल ही में बांकुड़ा के एक चुनावी सभा में भाषण देने गए थे। इस मौके पर स्थानीय भाजपा विधायक ने उन्हें त्रिशूल भेंट किया था। यानी अब त्रिशूल भी बंगाल की चुनावी राजनीति का हिस्सा बन गया है।
हालांकि पश्चिम बंगाल और केरल की राजनीति में धर्म और जाति कभी कोई मुद्दा ही नहीं रहा है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में भाजपा के पैर मजबूती से जम गए हैं पर केरल में लाख कोशिश के बावजूद अभी तक खाता नहीं खुल पाया है। केरल में वाम मोर्चा और कांग्रेस की सरकार आती जाती रही है। अगर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केरल की राजनीति को ही समझ लिया होता तो बंगाल में भाजपा को ठौर नहीं मिलता। या रहीम दास का दोहा ‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय’ पढ़ लिया होता और इसके अर्थ को समझ लिया होता तो भाजपा को पश्चिम बंगाल में पैर जमाने के मौका नहीं मिलता।
2011 के विधानसभा के चुनाव के बाद उन्होंने बंगाल को माकपा से मुक्त करने का फैसला लिया था। इसके बाद तो बंगाल को कांग्रेस से भी मुक्त कर दिया। कांग्रेस के जो भी विधायक थे उन्हें तोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल कर लिया। इसका नतीजा यह हुआ की 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 77 विधायक चुनकर आ गए थे और कांग्रेस और माकपा की झोली खाली रह गई थी। अब ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं भाजपा के 25 सांसद भी चुन कर आ गए और कांग्रेस व वाम मोर्चा पांच पर ही सिमट गए तो तृणमूल कांग्रेस कहां रह जाएगी। पश्चिम बंगाल की शिक्षा संस्कृति और कल से जुड़े लोगों को इस तरह की सांप्रदायिक राजनीति रास नहीं आ रही है पर वह इसे निहारते रहने को लाचार है।
(कोलकाता से जेके सिंह की रिपोर्ट)
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