76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कई ऐसी बातें कहीं जो भारतीयों को सोचने पर मजबूर करती है। राष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘आज के दिन, सबसे पहले, हम उन शूर-वीरों को याद करते हैं जिन्होंने मातृभूमि को विदेशी शासन की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानियां दीं। उनमें से कुछ स्वाधीनता सेनानियों के बारे में लोग जानते हैं, लेकिन बहुतों के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी।
इस वर्ष, हम भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मना रहे हैं। वे ऐसे अग्रणी स्वाधीनता सेनानियों में शामिल हैं जिनकी भूमिका को राष्ट्रीय इतिहास के संदर्भ में अब समुचित महत्व दिया जा रहा है।’’ बिरसा मुंडा को बहुत पहले से इतिहास में पढ़ाया जा रहा है। अब सरकार उनको भगवान बता कर नया इतिहास बताने कि कोशिश कर रही है। यह वैसा ही है जैसे किसी जगह का नाम बदलकर कहा जा रहा है कि यही इतिहास है।
स्वतंत्रता संग्राम के उद्देश्यों को दरकिनार कर और सेनानियों के बलिदानों के महत्व को ज्यादा या कम करके बताना, जैसा कि भगत सिंह और उनके साथियों के मूल विचारों को छुपाकर उनको गरम और नरम दल में बांट देना। ‘आजादी के बाद भी उनके विचारों का अनुसरण करने वालों को आज भी उसी तरह की यातनाएं और सजा दी जा रही हैं। आजादी के समय जिनके पूर्वजों ने अंग्रेजों का साथ दिया और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ गद्दारी की वे लोग सत्ता का अंग बने बैठे हैं और जनता पर आज भी शासन चला रहे हैं।
राष्ट्रपति महोदया कहती हैं- ‘‘हमारा संविधान एक जीवंत दस्तावेज इसलिए बन पाया है कि नागरिकों की निष्ठा, सदियों से हमारी नैतिकता-परक जीवन-दृष्टि का प्रमुख तत्व रही है। हमारा संविधान, भारतवासियों के रूप में, हमारी सामूहिक अस्मिता का मूल आधार है जो हमें एक परिवार की तरह एकता के सूत्र में पिरोता है।’’
महामहिम जी इस संविधान के रहते हुए कुछ खास समुदाय के लोगों को प्यार करने, खाने, मांस ले जाने तक पर मारा-पीटा जाता है। यहां तक कि कपड़े से पहचानने की बात प्रधानमंत्री तक कह चुके हैं। इस तरह की घटनाएं भी आ रही हैं कि घर खरीदने, बेचने तक पर कुछ तथाकथित ‘देशभक्त’ लोग शोर मचाने लगे हैं।
दुकानों को चिन्हित करने और धार्मिक पहचान बताने के लिए नेम प्लेट लगाने तक के आदेश देने का काम प्रशासन ने किया है। क्या हम आज इस देश को संविधान और आपकी भाषा में ‘विलक्षण ग्रंथ’ के माध्यम से चला रहे हैं?
आपके गृह राज्य ओडिशा में आदिवासियों को अपनी जीविका के साधनों को बचाने के लिए झूठे केसों में जेल जाना पड़ रहा है, उन्हें अपना हक मांगने के लिए भी कुर्बानियां देनी पड़ रही हैं। उसी तरह जिस तरह से आजादी के समय शूर-वीरों को कुर्बानी देनी पड़ी थीं।
राष्ट्रपति महोदया कहती हैं- ‘‘हमारे किसान भाई-बहनों ने कड़ी मेहनत की और हमारे देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। हमारे मजदूर भाई-बहनों ने अथक परिश्रम करके हमारे infrastructure और manufacturing sector का कायाकल्प कर दिया।’’ मैं महामहिम जी से कहना चाहता हूं कि विगत वर्षों ये किसान 13 माह तक तीन काले कृषि कानून वापस लेने और एमएसपी की मांग को लेकर दिल्ली की सड़कों पर डटे रहे और 700 से अधिक शहादतें दीं।
इसके बाद केन्द्र सरकार ने उनकी कुछ मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया, उन तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया और एमएसपी पर कमेटी बनाने और बिजली बिल लाने से पहले किसानों से विचार विमर्श करने की बात कही थी। पर केन्द्र सरकार ने इन वादों को पूरा नहीं किया। नतीजतन दोबारा किसान सड़क पर 11 माह से बैठे हुए हैं और एक बुजुर्ग किसान नेता डल्लेवाल तकरीबन पचपन दिनों से केन्द्र सरकार की तरफ से वार्ता की बाट जोहते अनशन पर बैठे थे।
संयुक्त किसान मोर्चा ने आप से हस्तक्षेप करने का आग्रह करने के लिए आप से मिलने का समय मांगा तो आपके पास उन किसानों से मिलने के लिए समय नहीं था, जिन्होंने खाद्यान्न उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाया। आपके वाक्य काबिले योग्य हैं कि आपने मजदूर भाईयों-बहनों के परिश्रम को समझा लेकिन उन्हीं मजदूर भाई-बहनों की जान आये दिन फैक्ट्री में जाती रहती है।
माननीय आपके सम्बोधन के दिन ही (25 जनवरी, 2025) रायपुर के तिल्दा ब्लाक के बरतोली इलाके में पेंट बनाने वाली फैक्ट्री में नेतराम निर्मलकर नामक मजदूर जल गये। उन्हें अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एम्बुलेन्स तक नहीं मिली और उन्हें गांव वाले बाइक से अस्पताल ले गये।
देश की राजधानी सहित पूरे भारत में भी आये दिन फैक्ट्रियों में ऐसी दुर्घटनाओं का होना और मजदूरों की जान जाना आम बात हो गई है। आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि आज 90 प्रतिशत मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता। मजदूरों के इन अधिकारों को दिलाने की जगह 12 घंटे काम करने का कानून केन्द्र सरकार द्वारा लाया जा रहा है।
राष्ट्रपति महोदया ने कहा है- ‘‘हाल के वर्षों में, आर्थिक विकास की दर लगातार ऊंची रही है, जिससे हमारे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं, किसानों और मजदूरों के हाथों में अधिक पैसा आया है।’’ महामहिम जी अगर रोजगार के अवसर पैदा हुए होते तो बेरोजगारी दर क्यों बढ़ती जा रही है? किसान-मजदूरों के हाथों में पैसा अधिक आ रहा है तो मजदूर-किसान, बेरोजगार आत्महत्याएं क्यों कर रहे है?
एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया कि साल 2018, 2019 और 2020 के दौरान 25,000 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की है। इन आत्महत्याओं के पीछे दिवालियापन, बेरोजगारी और कर्ज जैसे बड़े कारण सामने आए हैं। साल 2021 में 5,318 किसान और 5,563 खेतिहर मजदूर तथा 42004 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है।
राष्ट्रपति महोदया कहती हैं- ‘‘एक बहुत महत्वपूर्ण बदलाव है कि सरकार ने जन-कल्याण की नई परिभाषा दी है, जिसके अनुसार आवास और पेयजल जैसी बुनियादी जरूरतों को अधिकार माना गया है।’’ यह स्वागत योग्य कदम है कि सरकार पेयजल जैसे मुद्दों पर ध्यान दे रही है। लेकिन महामहिम जी जन-कल्याण के नाम पर ही सरकार 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज फ्री दे रही है जो कि चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है। देश की 80 करोड़ जनता सरकार के रहमो करम पर है!
राष्ट्रपति महोदया कहती हैं कि ‘‘वर्ष 1947 में हमने स्वाधीनता प्राप्त कर ली थी, लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता के कई अवशेष लंबे समय तक विद्यमान रहे। हाल के दौर में, उस मानसिकता को बदलने के ठोस प्रयास हमें दिखाई दे रहे हैं। ऐसे प्रयासों में – Indian Penal Code, Criminal Procedure Code, और Indian Evidence Act के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लागू करने का निर्णय सर्वाधिक उल्लेखनीय है।’’
महोदया नाम बदलने से मानसिकता नहीं बदलती है। आज भी भारत के कमजोर तबके से आने वाले दलितों और अल्पसंख्यकों की संख्या भारतीय जेलों में अधिक है। आज भी खबरें आती हैं कि दलितों को घोड़ी पर चढ़ने नहीं दिया गया। डायन के नाम पर आज भी महिलाओं की हत्याएं होती हैं। नाम बदलने से जरूरी है वैज्ञानिक शिक्षा देकर मानसिकता बदलने की।
राष्ट्रपति महोदया कहती हैं- ‘‘हमारी युवा पीढ़ी की प्रतिभा शिक्षा के द्वारा ही निखरती है। इसीलिए सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में निवेश को बढ़ाया है तथा शिक्षा से संबंधित प्रत्येक मानक में सुधार के लिए समग्र प्रयास किए हैं। अब तक के परिणाम उत्साहवर्धक रहे हैं। पिछले दशक में, शिक्षा की गुणवत्ता, भौतिक अवसंरचना तथा डिजिटल समावेशन के आयामों में व्यापक बदलाव आया है।’’
महामहिम जी आपने सही कहा कि शिक्षा से प्रतिभा निखरती है। हमारे देश की राजधानी में 12वीं पास छात्रों को कॉलेज में दाखिला नहीं मिलता उनको ओपन से पढ़ना पड़ता है जहां वे डिग्री तो हासिल कर लेते हैं लेकिन उनकी प्रतिभा में निखार नहीं आता। फ्री और वैज्ञानिक शिक्षा की जगह कॉलेज की फीस बढ़ा दी जा रही है जिससे कि निम्न आय वर्ग वालों के योग्य बच्चे शिक्षा से दूर कर दिए जाते हैं!
राष्ट्रपति जी कहती हैं कि- ‘‘विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय प्रगति के बल पर हम अपना सिर ऊंचा करके भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।’’ यह सही बात है कि कई क्षेत्रों में हमने प्रगति की है लेकिन हमारा सामाजिक ताना-बाना पिछड़ा है।
धार्मिक उन्माद इतना भर दिया गया है कि गोकशी के नाम पर कई बार निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई। एक बार प्रधानमंत्री ने ऐसे गऊ रक्षकों का डोजियर तैयार करने की बात कही थी लेकिन उसको कभी अमल में नहीं लाया गया। आज हमारे नौजवानों के अंदर प्रेम की जगह पर नफरत का जहर भरा जा रहा है जिससे हमारा सिर दुनिया में ऊंचा नहीं नीचा हो रहा है।
राष्ट्रपति ने अपने शुरूआती सम्बोधन में कहा है- ‘‘यह कहा जा सकता है कि किसी राष्ट्र के इतिहास में 75 साल का समय, पलक झपकने जैसा होता है। लेकिन मेरे विचार से, भारत के पिछले 75 वर्षों के संदर्भ में, ऐसा बिलकुल नहीं कहा जा सकता है।’’ संविधान के अनुच्घ्छेद 1 में भारत को ‘राज्यों का संघ’ बताया गया है। भारत के प्रस्तावना में भी गणराज्य का उल्लेख है। महोदया आप को इस तरह के उदाहरण से बचना चाहिए जहां गलतफहमी होने की संभवना हो।
भारत की राष्ट्रपति देश की प्रथम नागरिक हैं इसके लिए उन्हें महामहिम भी कहा जाता है। महामहिम को सरकार के बातों के अलवा जनता की सही दुःख दर्द को सुनने की जरूरत है। जनता की आवाजों को सुनना है सही गणतंत्र होता है और इससे ही महामहिम पद की गरिमा भी सुशोभित होगी। राष्ट्र के नाम संबोधन में गण की आवाज नहीं दिख रही है केवल तंत्र (सरकार) की बात को ही सुना गया है।
(सुनील कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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