सोनभद्र। राज्य को सर्वाधिक राजस्व प्रदान करने वाले सोनभद्र जनपद की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है। आदिवासी बाहुल्य सोनभद्र जिले में ग़रीबी-बेबसी का भी आलम कम नहीं है। खनन क्षेत्रों से लगाए औद्योगिक प्रतिष्ठानों में अपना खून-पसीना बहाकर परिवार और खुद का पेट पालने के लिए श्रमिकों कामगारों को क्या-क्या नहीं करना पड़ता है? तब जाकर कहीं उनको दो वक्त की रोटी नसीब हो पाती है। ऊपर से खुद या परिवार का कोई व्यक्ति बीमार पड़ गया तो रोटी के लाले पड़ जाते हैं। वजह साफ है, श्रमिकों-कामगारों के लिए चलाई गई योजनाओं के ‘पिटारे’ में एक नाम है बीमाकृत मजदूरों और उनके परिवार को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं।

Hospital Building
इसके लिए बाकायदा कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय का संचालन किया जाता है। सोनभद्र में भी इस सुविधा के अस्पताल है। लेकिन एक कहावत है ना कि ‘चिराग तले अंधेरा’ यानी अस्पताल तो है पर उपचार (सुविधाएं/संसाधन) नहीं हैं। और जब सुविधाएं संसाधन एवं चिकित्सकों का ही अभाव बना हुआ हो तो भला कैसे उपचार संभव हो सकता है? यह आसानी से समझा जा सकता है।
आइये दिखाते हैं इस रिपोर्ट के जरिए कि कैसे श्रमिकों एवं कामगारों के स्वास्थ्य के लिए अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने जैसी घोषणाओं की हवा निकल जा रही हैं।
अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाता ईएसआई अस्पताल
27 हजार बीमाकृत मजदूर और उनके एक लाख परिजनों के इलाज के लिए पिपरी, रेनूकूट स्थित सोनभद्र जनपद का एक मात्र ईएसआई अस्पताल अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। सोनभद्र के राबर्टसगंज स्थित जिला मुख्यालय से 80 किमी दूर रेनूकूट में स्थित कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय (ईएसआई) को खुद उपचार की आवश्यकता है। चिकित्सक और सुविधाओं के अभाव तले संचालित होता आ रहा यह चिकित्सालय बीमाकृत मजदूरों को मुंह चिढ़ाते हुए अपनी बेबसी-लाचारी, उपेक्षा का रोना रोता आ रहा है। जहां सुधार समाधान की सारी कवायद विफल होती हुई नज़र आ रही है।

Hospital Campus
वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर बताते हैं कि “उन्होंने कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय (ईएसआई) पिपरी, रेनूकूट (सोनभद्र) की दुर्दशा को लेकर क्षेत्रीय निदेशक ईएसआई कानपुर को पत्र भेजा है। पत्र द्वारा उनसे मांग की गई है कि तत्काल इस अस्पताल में बीमाकृत मजदूर और उसके परिजनों के इलाज के लिए बुनियादी सुविधाओं, विशेषज्ञ डाक्टरों विशेषकर महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर व पदों के सापेक्ष स्टाफ की भर्ती करने और यहां से वाराणसी के लिए रेफर किए मरीजों को यात्रा भत्ता देने के सम्बंध में आवश्यक कार्यवाही करें।”
अस्पताल में न्यूनतम व्यवस्था का भी अभाव
पहाड़ी अंचल में स्थित कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय (ईएसआई) पिपरी, रेनूकूट (सोनभद्र) की बदहाली प्रवेश द्वार से ही देखी जा सकती है। 27 हजार बीमाकृत मजदूर और उनके तकरीबन एक लाख परिजनों के इलाज के लिए बने इस अस्पताल में न्यूनतम व्यवस्था भी नहीं है। यहां अल्ट्रासाउंड नहीं है, खून जांच के नाम पर महज मलेरिया, टाइफाइड, ब्लड शुगर और हिमोग्लोबिन की जांच होती है। वह भी बेहद पुरानी और आउटडेटेड मशीनों द्वारा की जाती है।
5 विशेषज्ञ डॉक्टरों के स्वीकृत पद खाली पड़े हुए है, सामान्य डॉक्टरों के 19 स्वीकृत पदों के सापेक्ष महज 9 डॉक्टर नियुक्त हैं। हालत इतनी बदतर है कि महिलाओं के इलाज के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर न होने से महिलाओं के प्रसूति एवं महिला रोग सम्बंधी बीमारियों का इलाज नहीं हो पाता है। ऐसे में महिला श्रमिकों को सर्वाधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

Notice Board
इसी के साथ ही 12 स्टाफ नर्स के स्वीकृत पदों के सापेक्ष में मात्र 3 स्टाफ नर्स हैं। सुरक्षा के मद्देनजर अस्पताल में एक भी गार्ड नहीं है। यहीं नहीं अस्पताल में दर्जनों बेड होने के बावजूद भर्ती की कोई व्यवस्था नहीं है, गम्भीर मरीजों को रात में वापस घर भेज दिया जाता है।
दूसरी ओर ईएसआई पिपरी, रेनूकूट के चिकित्सा अधीक्षक डॉ आशुतोष दत्त त्रिपाठी अपना पक्ष रखते हुए अपनी लाचारी जताते हुए कहते हैं कि “सीमित संसाधनों के बीच यहां जो भी सुविधाएं प्राप्त है उसे आने वाले हर उस पीड़ित (बीमाकृत मजदूरों) को दिया जाता है। अन्य सुविधाओं और व्यवस्था को लेकर समय-समय पर उच्चाधिकारियों को भी अवगत कराया जाता है ताकि उन्हें दूर किया जा सके।”
सोनभद्र का हर ठेका मजदूर हो ईएसआई में पंजीकृत
साल 2017 में भारत सरकार ने सोनभद्र जनपद के श्रमिकों को कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) के तहत आच्छादित किया था। बावजूद इसके अभी भी अनपरा व ओबरा तापीय परियोजना, अल्ट्राटेक डाला सीमेन्ट फैक्ट्री व खनन में लगे हजारों मजदूरों को ईएसआई में आच्छादित नहीं किया गया है। बार-बार अनुरोध के बाद भी अनपरा और ओबरा औद्योगिक क्षेत्रों में ईएसआई अस्पताल निर्मित नहीं किए गए।
जिसका खामियाजा इन मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है। यूपी वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर “जनचौक” से मुखातिब होते हुए कहते हैं कि “प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था उन्नत करने की बड़ी-बड़ी बयानबाजी तो खूब होती हैं। परन्तु मजदूरों के इलाज के लिए बने इस अस्पताल की दुर्दशा, स्थिति को खुद-ब-खुद बयां कर देती है। सरकार को इसे दुरूस्त करने की कार्यवाही करनी चाहिए अन्यथा इस पर बड़े आंदोलन की तैयारी की जायेगी।”

मजदूरों से बात करते हुए
सोनभद्र के ठेका मजदूर एवं मजदूर किसान नेता कृपाशंकर पनिका भी मांग करते हुए कहते हैं कि “अनपरा और ओबरा औद्योगिक क्षेत्र में कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय निर्मित करने और जनपद सोनभद्र के सभी ठेका व खनन श्रमिकों को ईएसआई के तहत पंजीकृत करने के लिए कार्यवाही की जाए। ताकि जनपद के सभी श्रमिकों को ईएसआई का समुचित लाभ मिल सके। वह ईएसआई, रेनूकूट की बदतर व्यवस्था को कोसते हुए बताते हैं कि मजदूरों की जिंदगी बचानी है तो इनकी (ईएसआई) दशा सुधारनी होगी। वरना मजदूर जो कमजोर होता है लाचार शोषित होता है वह ऐसे ही समाप्त हो जायेगा।”
बेहतर के नाम वाराणसी होते हैं रेफर
ईएसआई रेनूकूट का दौरा करने पर देखा गया कि इतनी बड़ी संख्या में कामगारों, श्रमिकों की उपस्थिति के बाद भी इस अस्पताल में सुविधाजनक स्वास्थ्य उपकरणों का घोर अभाव बीमाकृत मजदूरों की परेशानियों पर बल प्रदान करता आ रहा है। ईएसआई अस्पताल की दुर्दशा पर निदेशक को भेजे गए पत्र के बाद भी जहां कोई सुधार और समाधान होता नहीं नजर आता है। तो वहीं अधिकांश मेहनतकश आदिवासी, वनवासी श्रमिकों को वाराणसी रेफर कर दिया जाता है।

Refer Information
इस तरह के कृत से अस्पताल की उपयोगिता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिरकार फिर इसकी उपयोगिता क्या ठहरी? गौरतलब हो कि पिपरी, रेनूकूट से वाराणसी की तकरीबन 185 किमी दूरी है। 185 किमी की दूरी तय कर वाराणसी जाना और उपचार कराकर फिर लौट पाना किस प्रकार से संभव हो सकता है इसकी कल्पना स्वत: ही की जा सकती है।
बताते चलें कि सोनभद्र जनपद अति पिछड़ा इलाका होने के साथ-साथ आदिवासी वनवासी बाहुल्य व जंगलों-पहाड़ों से आच्छादित है, ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं की मुकम्मल व्यवस्था जो होनी चाहिए वह आज भी यहां के लोगों से दूर बनी हुई हैं।
ईएसआई, वाराणसी का भी है बुराहाल
कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय (ईएसआई) वाराणसी का भी हाल बेहाल बना हुआ है। कहने को प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में यह अस्पताल स्थित जरूर है। लेकिन यहां भी दुर्दशा समाप्त होने का नाम नहीं ले रही हैं। वाराणसी स्थित कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय (ईएसआई) की व्यवस्थाओं पर खिन्नता प्रकट करते हुए कृपाशंकर पनिका कहते हैं “वहां भी स्थिति बद से बदतर होने से लेकर मनमानी का आलम व्याप्त है।”

अटल बीमित व्यक्ति कल्याण योजना
आपको बता दें कि पूर्वांचल के जनपदों के बीमाकृत मजदूरों का एक तरह का हब होने के बाद भी, कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय (ईएसआई) वाराणसी आने मात्र से बीमाकृत मजदूर नाक भौं सिकोड़ते लगते हैं। वजह बताया जाता है सुविधाओं के नाम पर मिलने वाली परेशानियां, बावजूद इसके बीमाकृत मजदूरों को इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।
ओबरा के एक बीमाकृत श्रमिक पहले तो नाम न छापने की शर्त रखते हैं, फिर बुझे हुए मन से बताते हैं कि “साहब हम मजदूरों की जिंदगी का कोई मोल नहीं है। सभी कोल्हू के बैल की भांति दौड़ाएं जा रहे हैं। ऐसे में कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय (ईएसआई) के लोग भला कैसे पीछे रह सकते हैं।” उनके इस उपेक्षा और दर्द भरे भाव को समझा जा सकता है कि वह क्या कहना चाहते हैं और क्यूं कहना चाहते हैं।
(सोनभद्र से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट।)
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