सियासत के साहूकार बेच रहे जनादेश

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हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं। महाराष्ट्र में सरकार बनाने की खींचतान अभी भी जारी है। उधर हरियाणा में सियासी साहूकारों ने चुनाव और जनादेश को बेच कर सियासत के सिंहासन पर सत्तासीन हो चुके हैं। एक बार फिर तमाम विरोधों के वावजूद बीजेपी ने सत्ता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को डंके की चोट पर जगजाहिर कर दिया।

विधानसभा चुनाव के सियासी संग्राम में अपने प्रदर्शन में सुधार के वावजूद कांग्रेस को सांत्वना पुरस्कार से ही संतुष्ट होना पड़ा। खट्टर साहब के हाथ में ‘चुनावी कप’ भी आ गया, लेकिन सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं इस चुनावी संग्राम के ‘मैन ऑफ द मैच’ का पुरस्कार पाने वाले युवा राजनेता दुष्यंत चौटाला ने।

बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर ने लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली। ‘सत्ता की मास्टर की’ रखने वाले उदयीमान सियासी साहूकार दुष्यंत चौटाला को डिप्टी सीएम का पद मिला और मैन ऑफ़ द मैच पुरस्कार के साथ मिला जेल में बन्द पिता को जेल की चहारदीवारी से बाहर निकलने के लिए दो हफ्ते की फरलो।

दुष्यंत चौटाला के इस शानदार प्रदर्शन के ताजपोशी का प्रत्यक्ष गवाह बनने के लिए उनके पिता अजय चौटाला तिहाड़ जेल से सीधे अपने पुत्र के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हो गए। इस नाटकीय सियासी घटनाक्रम से भले ही जेजेपी के समर्थकों में मायूसी भर गई, जनादेश को लूट लिया गया, लेकिन पिता अजय चौटाला के चेहरे पर अपने श्रवण कुमार तुल्य पुत्र के लिए एक गर्वीली मुस्कान छा गई। शपथ ग्रहण के बाद अजय चौटाला ने सरकार के सफलतापूर्वक पांच साल तक चलने का एलान भी कर दिया।

चुनाव में खट्टर सरकार पर लगातार हमले करने वाले चौटाला युवराज अब डिप्टी सीएम के पद पर विराजमान होकर जाटों और गैर जाटों के बीच तारतम्य कैसे बिठाएंगे? बीजेपी के ‘संकल्प पत्र’ के वायदों से भी ज्यादा ऊंचे सपनों का महल खड़ा करने वाले दुष्यंत चौटाला ‘जनसेवा पत्र’ के लोकलुभावन वायदों को पूरा करेंगे या उसे राष्ट्रवादी जुमला में बदल देंगे ये तो वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल अपने पुत्र धर्म का पालन बखूबी कर दिया है।

‘कॉमन मिनिमम प्रोग्राम’ के अंतर्गत शिक्षक भर्ती घोटाले के कारण तिहाड़ जेल में बंद अजय चौटाला की रिहाई तथा डिप्टी सीएम के पद के आलावा जनता के लिए भी कुछ है या नहीं ये देखना महत्वपूर्ण होगा, लेकिन हरियाणा के इस सियासी षड्यन्त्रों की साज़िशों की शिकार जनमानस हतप्रभ जरूर है।

एक बात तो तय है, जब तक सुशासन बाबू कहलाने वाले नीतीश कुमार और दुष्यंत चौटाला जैसे षड्यंत्रकारी सियासी साहूकार हैं, तब तक चुनाव और जनादेश बिकते रहेंगे। ऐसे में विशाल लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव प्रक्रिया के बाद के प्रावधान पर प्रश्नचिन्ह उठते रहेंगे।

(दयानंद स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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