झारखंड में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का आतंक, कर्जदार के बच्चे को बनाया दो हफ्ते तक बंधक

Estimated read time 2 min read


झारखंड के कई जिलों में आजकल माइक्रो फाइनेंस कंपनियों का आतंक इतना बढ़ गया है कि कंपनियों के स्टाफ किस्त जमा नहीं करने वाले या उनके परिवार के किसी भी सदस्य को घर से उठा ले जाते हैं। उनके साथ गाली-गलौज और अभद्र व्यवहार करते हैं। महिलाओं के गहने पायल, कानबाली तक छीन लेते हैं, घर के छत का खपड़ा तोड़ देते हैं, चौखट-किवाड़ भी उखाड़ कर ले जाते हैं, उज्ज्वला योजना में मिला गैस सिलिंडर और चूल्हा भी उठाकर ले जाते हैं, यहां तक कि उनके बच्चों को बंधक बनाकर अपने पास रखते हैं।

पहले तो इन कंपनियों के कर्मी भोले-भाले ग्रामीणों (ज्यादातर महिलाएं) को तरह-तरह के प्रलोभन देकर लोन देते हैं। जब समय पर लोन का किस्त जमा नहीं होता है, तो कंपनी के कर्मी लोगों को प्रताड़ित करते हैं।

इस तरह की खबरें बराबर सुर्खियों में रहने के बाद भी न तो प्रशासनिक स्तर से कोई कार्रवाई होती है न ही क्षेत्र के किसी जन प्रतिनिधि द्वारा इन मामलों पर कभी सवाल उठाया जाता है। यही वजह है कि इलाके के लोग इन फाइनेंस कंपनियों के दहशत से परेशान होने बाद भी कोई शिकायत कहीं दर्ज नहीं कराते। बता दें कि इन कंपनियों के आतंक के भुक्तभोगी मुख्यतः दलित और आदिवासी समुदाय होते हैं। दूसरी तरफ उनकी चुप्पी का मुख्य कारण उनकी गरीबी है।

इसी तरह का एक मामला हाल ही में गढ़वा जिला अंतर्गत भवनाथपुर थाना क्षेत्र के रोहिनिया गांव के बैगही टोला के निवासी संतोष राम की पत्नी आशा देवी के साथ हुया है। सेटिंग माइक्रो फाइनेंस कंपनी के कर्मियों ने आशा देवी के नाबालिग पुत्र अनीश कुमार को घर से अगवा कर लिया और बच्चे को कंपनी की शाखा में 14 दिनों तक बंधक बना कर रखा गया। इस दौरान बच्चे से नौकरों की तरह काम करवाया जाता था। वहीं, दूसरी तरफ कंपनी के कर्मचारी बच्चे को धमकी भी देते थे कि अगर उसकी मां ने कर्ज नहीं चुकाया, तो उसकी आंखें और किडनी निकाल कर बेच दिया जाएगा।

बताते चलें कि झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 200 किमी दूर गढ़वा जिला मुख्यालय से लगभग 55 किमी दूर भवनाथपुर थाना, थाना से लगभग 12 किमी दूर जंगल किनारे रोहिनिया गांव है। इस गांव में पिछड़ी जाति के यादवों का लगभग 150 परिवार, चंद्रवंशी का 15 परिवार, दलितों का 105 परिवार, आदिवासियों के लगभग 100 परिवार जिसमें उरांव, खेरवार और लोहरा शामिल हैं, वहीं 20 मुस्लिम परिवार बसते हैं। इस गांव एक टोला है बैगही, जहां एक यादव परिवार सहित दो उरांव आदिवासी परिवार और चार दलित परिवारों का निवास है।



गांव के ही दलित समुदाय के संतोष राम जो अपनी पत्नी आशा देवी, पुत्र-अनिश कुमार (14 वर्ष) व मनीष कुमार (12 वर्ष) और पुत्री बबिता कुमारी (17 वर्ष) व संध्या कुमारी (8 वर्ष) के साथ मजदूरी वगैरह करके अपना जीवन यापन करते हैं। संतोष राम दो भाई हैं, उस घर में छोटे भाई की पत्नी और मां पिता भी रहते हैं। उनके पास घर के अलावा कोई जमीन नहीं है। रोजगार के लिए दोनों भाई बंगलौर गये हैं।

संतोष राम की पत्नी आशा देवी ने बताया कि एक साल पहले उसने कंपनी से चापाकल लगाने के लिए 40,000 रुपये कर्ज लिए थे। क्योंकि पीने के पानी के लिए सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था आजतक नहीं बनी है। दूसरों के चापाकल से पानी लाने में काफी परेशानी होती थी। पानी के लिए घंटों उनके आदेश का इंतजार करना पड़ता था।

किसी ने बताया कि फाइनेंस कंपनी से कर्ज ले लो और चापाकल गाड़ लो। इसके बाद जब कंपनी से बात की तो वे लोग तैयार हो गए। कंपनी ने हर पंद्रह दिन पर 1,025 रुपये किस्त के तौर पर शर्त रखी। मैं लगातार हर पंद्रह दिन पर 1,025 रुपये का किस्त जमा करती रही। पिछले 21 फरवरी 2024 को किस्त के लिए कंपनी वाले आए तो मेरे पास घर में पैसा नहीं था, सो मैं कंपनी के आदमी को यह कहकर कि गांव के किसी से पैसा उधार लेकर आती हूं। लेकिन मुझे लोगों से पैसे मिलने में देर होने लगी, कई लोगों से मांगने पर पैसा नहीं मिल रहा था। मैं परेशान इधर उधर भटक रही थी। तभी कंपनी वालों ने मेरे छोटे बेटे अनीश कुमार को यह कहते हुए कि चलो तुम्हारी मां कहां है बताओ। उन्होंने मेरे बेटे को अपने साथ लेकर सीधे नगर ऊंंटारी हेन्हों मोड़ के पास स्थित कंपनी के ब्रांच लेकर चले गये और कहने लगे जबतक तुम्हारी मां पूरा पैसा नहीं चुकाएगी तुम्हें यहीं रहना होगा।

जब हमें पता चला और हम कंपनी के ब्रांच जाकर गिड़गिड़ाए कि बेटे को छोड़ दीजिए, हम पैसा जुगाड़ करके जल्द ही दे देंगे, लेकिन कंपनी वालों ने एक नहीं सुनी और बकाया पूरा पैसा 18,000 रुपये की मांग करने लगे। पैसा देने बाद ही बेटे को छोड़ने की बात कही। 40,000 रुपये में हमने 22,000 रुपये चुका दिया था।

मैं परेशान लौट आई। लेकिन लाख कोशिश के बाद भी पैसा का जुगाड़ नहीं हुआ और मेरे बच्चे को कंपनी की ऑफिस में 14 दिनों तक बंधक बना कर रखा गया। इस दौरान मेरे बेटे अनीश से नौकरों की तरह काम कराया जाता रहा। वहीं दूसरी तरफ कंपनी के कर्मचारी बेटे को धमकी देते रहे थे कि अगर मेरे तुम्हारी मां ने कर्ज नहीं चुकाया, तो तुम्हारी आंखें और किडनी निकाल कर हम बेच देंगे। इस बारे में आशा देवी ने किसी को कुछ नहीं बताया, वह परेशान पैसों के जुगाड़ में लोगों से गुहार लगाती रही।

आशा देवी ने बताया कि एक सप्ताह तक तो उसे ठीक से रखा गया। उसके बाद बैंक का कर्मचारी उमाशंकर तिवारी उसके साथ मारपीट करने लगा। कभी-कभी तो वह गला भी दबाने लगता था। उससे गंदे कपड़े और जूठे बर्तन साफ कराये जाते थे। शराब पीने के बाद उससे बोतलें भी फेंकवाते थे।

धीरे-धीरे मामले की भनक जब स्थानीय लोगों को लगी, तो वे 7 मार्च को कंपनी की शाखा में पहुंचे और बच्चे को मुक्त करने का दबाव बनाने लगे। इस दौरान कंपनी के कर्मियों ने आशा देवी से 3,000 रुपये भी लिये। लोगों ने इस बीच पुलिस को घटना की सूचना दी। तब जाकर एसडीपीओ सत्येंद्र नारायण सिंह के निर्देश पर भवनाथपुर के पुलिस इंस्पेक्टर रतन कुमार सिंह और थाना प्रभारी आदित्य कुमार नायक तुरंत कंपनी के कार्यालय में पहुंचे, बच्चे को मुक्त कराया और सेटिंग माइक्रो फाइनेंस कंपनी के शाखा प्रबंधक निगम यादव को थाने ले जाकर पूछताछ करने के बाद में उसे गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस ने आशा देवी के आवेदन पर दो नामजद और एक अज्ञात पर प्राथमिकी दर्ज की है। निगम यादव की गिरफ्तारी के बाद कर्मचारी उमाशंकर तिवारी फरार हो गया है, जिसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस द्वारा छापेमारी की जा रही है।

बता दें कि राज्य के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में माइक्रो फाइनेंस कंपनियां अपना पैर पसार चुकी हैं, वे ग्रामीण महिलाओं को लोन देती हैं। लोन वितरण के लिए कंपनी के कर्मी गांव की किसी महिला का बतौर एजेंट सहारा लेते हैं। उसे कुछ पैसा देकर गांव की महिलाओं का एक समूह बनाकर उन्हें लोन दिया जाता है। कंपनी के कर्मी किस्त की वसूली के लिए एक साप्ताह, 15 दिन या एक महीने की अवधि तय करते हैं।

लोन लेने वाली ज्यादातर महिलाएं मजदूरी करती हैं। चूंकि इनके घर के पुरुष सदस्य कमाने के लिए दूसरे राज्यों या शहरों में रहते हैं, ऐसे में इन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। समय पर मजदूरी का पैसा नहीं मिलने की वजह से जब महिलाएं समय पर किस्त नहीं चुका पाती हैं, तो इन्हें कई तरह की यातनाओं से गुजरना पड़ता है। किस्त नहीं चुका पाने पर फाइनेंस कंपनी के कर्मी घर में खाना भी नहीं बनने देते हैं। कंपनी के कर्मी दरवाजा, घरेलू सामान, गैस सिलिंडर व चौकी आदि भी उठा ले जाते हैं। वे महिलाओं के जेवर तक उतरवा लेते हैं। पुलिस में शिकायत करने पर राशन बंद कर देने की धमकी दी जाती है। जिसके कारण शिकायत लेने पर वे मजबूर हो जाती हैं। कई महिलाएं फाइनेंस कर्मियों की दहशत के कारण घर छोड़कर भाग जाती हैं।

पिछले दिसम्बर 2023 में पलामू जिले के छतरपुर प्रखंड के तेनुडीह गांव में किस्त न चुका पानेवाली एक महिला को माइक्रो फाइनेंस कंपनी के एक कर्मी ने जबरन उठा कर बैंक तक ले गया और वहां उसे कई तरह से मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।

वहीं इसी क्षेत्र की कलावती देवी के घर के खपड़ा को फाइनेंस कंपनी के कर्मियों ने लाठी-डंडों से पीटकर तोड़ दिया। कर्मी चौखट-किवाड़ भी उखाड़ कर ले गये। पायल, कानबाली सहित उज्ज्वला योजना में मिला गैस सिलिंडर और चूल्हा भी उठाकर ले गये। गांव की सोना देवी को किस्त नहीं देने पर कर्मी जबरन बाइक पर बैठा कर ले जा रहे थे कि बाद में गांव वालों ने उसे छुड़ाया। रीता देवी, लिल्मी देवी, बिमली देवी, जगवा देवी, सीता देवी, राजपतिया देवी, सोनी देवी, चिंता देवी, कुंती देवी सभी की कहानी एक सी है। वहीं इसकी जानकारी पुलिस को होती है तो वे कार्रवाई का झुनझुना थमा कर निश्चित हो जाते हैं।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

2Comments

Add yours
  1. 1
    प्रदीप अग्रवाल

    इन कम्पनियों का लाइसेंस रद्द किया जाए और सभी को आर टी आई के अधिन लाया जाय। मैं भी इसका भुक्तभोगी हूं।आर टी आई करने पर भी ये किए गए गलति का जबाव नहीं देते हैं।

    • 2
      ANIL Kumar

      कंपनी के ऋण कार्ड में साफ़ साफ़ लिखा है कि किस्त वसूली में कोई जोर जबरदस्ती नहीं करना है । इसमें कंपनी के स्टाफ की गलती है।

+ Leave a Comment

You May Also Like

More From Author