उच्चतम न्यायालय ने ओडिशा के पुरी में 23 जून से शुरू होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा पर गुरुवार को रोक लगा दी। 280 साल में यह दूसरा मौका है, जब रथ यात्रा रोकी गयी है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा- अगर कोरोना के बीच हमने इस साल रथयात्रा की इजाजत दी तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे।उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब महामारी फैली हो, तो ऐसी यात्रा की इजाजत नहीं दी जा सकती, जिसमें बड़ी तादाद में भीड़ आती हो।
लोगों की सेहत और उनकी हिफाजत के लिए इस साल यात्रा नहीं होनी चाहिए। चीफ जस्टिस की पीठ ने ओडिशा सरकार से कहा कि इस साल राज्य में कहीं भी रथयात्रा से जुड़े जुलूस या कार्यक्रमों की इजाजत न दी जाए। इसके साथ ही यह बहस भी चल पड़ी है कि जान बड़ी या भगव़ान बड़े क्योंकि उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय से स्पष्ट हो गया कि यदि जान रहेगी तभी भगवान भी रहेंगे।
गौरतलब है कि 280 साल में यह दूसरा मौका है, जब रथ यात्रा रोकी गई है। पिछली बार मुगलों के दौर में यात्रा रोकी गई थी। इस बार रथयात्रा पर पहले से असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। इस बीच, भुवनेश्वर के एनजीओ ओडिशा विकास परिषद ने सुप्रीम कोर्ट में पेटिशन दायर कर कहा था कि रथयात्रा से कोरोना फैलने का खतरा रहेगा। अगर लोगों की सेहत को ध्यान में रखकर कोर्ट दीपावली पर पटाखे जलाने पर रोक लगा सकता है तो रथयात्रा पर रोक क्यों नहीं लगाई जा सकती?
उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार 18 जून को आदेश दिया कि इस साल ओडिशा में भगवान जगन्नाथ मंदिर में किसी भी तरह की रथ यात्रा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि महामारी की स्थिति चल रही है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने ओडिशा विकास परिषद द्वारा राज्य में वार्षिक भगवान श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा को रोकने के लिए दायर एक याचिका पर आदेश पारित किया, जो 23 जून को होने वाली थी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने तर्क किया कि भुवनेश्वर में लगभग 10 लाख लोगों के एकत्रीकरण को COVID-19 प्रसार के खतरे के बीच यात्रा की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इससे सहमत होते हुए चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि हम इसकी अनुमति नहीं दे रहे हैं। यदि हम इसे जारी रखने की अनुमति देते हैं तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे। पीठ ने आदेश दिया, “हम यह उचित समझते हैं कि इस वर्ष रथयात्रा आयोजित करने से उत्तरदाताओं को रोकना सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिकों की सुरक्षा के हित में है। हम निर्देश देते हैं कि ओडिशा के मंदिर क्षेत्र में कोई रथ यात्रा आयोजित नहीं की जाएगी।
याचिका के अनुसार, धार्मिक मण्डली हर साल 10 लाख से अधिक लोगों को आकर्षित करती है, और यदि महोत्सव को निर्धारित तिथि पर होने की अनुमति दी जाती है, तो यह कोरोनावायरस के प्रसार को बढ़ा सकता है; जो हजारों लोगों के जीवन को खतरे में डाल देगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 30 मई, 2020 को जारी किए गए दिशानिर्देशों में सभी प्रकार के सामाजिक / राजनीतिक / खेल / मनोरंजन / शैक्षणिक / सांस्कृतिक / धार्मिक कार्यों और अन्य बड़ी सभाओं को भी प्रतिबंधित कर दिया है।
याचिकाकर्ता संगठन ने कहा कि ऐसी प्रकृति की एक धार्मिक मण्डली, जिसे विशेष रूप से राज्य सरकार द्वारा अपने दिशानिर्देश दिनांक 01 जून, 2020 और 07 जून, 2020 को प्रतिबंधित किया गया है और गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने अपने दिशानिर्देश दिनांक 30 मई, 2020 को रद्द कर दिया है, यदि अनुमति होगी तो उसके बाद वायरस के प्रसार को नियंत्रित करना अधिकारियों के लिए बहुत मुश्किल होगा।
दरअसल इसके पहले मंदिर समिति ने पहले रथयात्रा को बिना श्रद्धालुओं के निकालने का फैसला लिया था। रथ बनाने का काम भी तेज रफ्तार से चल रहा था। मंदिर समिति ने रथ खींचने के लिए कई विकल्पों को सामने रखा था। पुलिसकर्मियों, मशीनों या हाथियों से रथ को गुंडिचा मंदिर तक ले जाने पर विचार किया जा रहा था। मंदिर समिति के सदस्य और पुजारी पंडित श्याम महापात्रा ने भास्कर को बताया था कि चैनलों पर लाइव प्रसारण करके चुनिंदा लोगों के साथ रथयात्रा निकाली जा सकती है। रथों के शिखर भी बनकर तैयार हो चुके हैं। मंदिर समिति ने इस बार तय किया था कि रथों पर भी चुनिंदा पुजारियों को ही बैठने दिया जाएगा।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)
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