झारखंड विधानसभा का समय पूरा होने के एक माह पूर्व ही नई विधानसभा का गठन होने जा रहा है। 13 नवंबर और 20 नवंबर को दो चरणों में वहां मतदान होगा और 23 नवंबर को महाराष्ट्र के साथ उसके भी नतीजे घोषित हो जाएंगे।
बताया जा रहा है कि नक्सलवाद की कमर टूट जाने के कारण पिछली बार के पांच चरण की बजाय इस बार दो चरणों में ही चुनाव करवाया जा रहा है ! हालांकि चुनाव आयोग का यह तर्क शायद ही किसी को डाइजेस्ट हो। पहले चरण में 43सीटों पर और दूसरे चरण में 38सीटों पर मतदान होना है।
यह चुनाव कई मायनों में पिछली बार से अलग है। पिछली बार भाजपा की सरकार थी लेकिन इस बार JMM गठबंधन की सरकार है, जिसके खिलाफ स्वाभाविक रूप से विभिन्न स्तरों पर एंटी इनकमबेंसी मौजूद है।
पिछली बार अकेले JMM ने 30 सीटें जीती थीं, कांग्रेस को 16 सीटें तथा cpiml, राजद और NCP को एक-एक सीट मिली थी। भाजपा को अकेले लड़कर 25सीटें, आजसू को 2 तथा बाबूलाल मरांडी की JVM को तीन सीटें मिली थीं।
जाहिर है अब की बार समीकरण अलग है।भाजपा आजसू का गठबंधन हो गया है जो पिछली बार नहीं था। मरांडी भाजपा में शामिल हो चुके हैं और उसके प्रदेश अध्यक्ष हैं। हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन भाजपा में शामिल हो चुकी हैं।
यहां तक कि कोल्हान के टाइगर कहे जाने वाले चंपई सोरेन भी मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद भाजपा में शामिल हो चुके हैं। और ये सारे लोग भाजपा से टिकट भी पा चुके हैं।
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद आदिवासियों में जो सहानुभुति की लहर थी, उसका फायदा उठाकर लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन सभी पांच रिजर्व आदिवासी सीटें जीतने में सफल रहा। लेकिन अब जबकि वे फिर मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो चुके हैं और नए समीकरण सामने आ चुके हैं, क्या गठबंधन अपने पुराने परफॉर्मेंस को दोहरा पाएगा?
खबरों के अनुसार NDA में जहां भाजपा को 68 सीटें मिली हैं, वहीं आजसू को 10 सीटें, तो जेडीयू को 2और चिराग पासवान को 1 सीट मिली है। वहीं इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे पर अभी विवाद जारी है। भाकपा माले बगोदर, कोडरमा बेल्ट में आंदोलन और जनाधार वाली एक ताकतवर पार्टी है।
पिछले दिनों मार्क्सवादी समन्वय समिति का माले में विलय झारखंड में वामपंथी आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना है। विलय के बाद जोश खरोश से भरी एक जबरदस्त रैली भी हुई जिसे दोनों दलों के नेताओं ने संबोधित किया। गौर तलब है कि MCC से कामरेड ए के राय धनबाद से सांसद होते थे और उनके विधायक भी जीतते थे।
जाहिरा तौर पर विलय के बाद माले की दावेदारी बढ़ गई है। बिहार का अनुभव भी गवाह है कि वहां के विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में माले का स्ट्राइक रेट सबसे अधिक था।
कहा तो यहां तक जाता है कि विधानसभा और लोकसभा दोनों में अगर माले को लड़ने के लिए अधिक सीटें मिली होतीं तो गठबंधन का प्रदर्शन और बेहतर हुआ होता। स्वाभाविक है झारखंड में भी अगर उसे अच्छी संख्या में सीटें मिलीं तो यह गठबंधन के हित में होगा।
ऐसा लगता है कि झारखंड में भी युवाओं के बीच रोजगार का सवाल बड़ा मुद्दा बना हुआ है। यह अनायास नहीं है कि पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने इसे एड्रेस करने की कोशिश की है। उन्होंने वायदा किया है कि उनकी अगर सरकार बनती है तो वे 2.87 लाख नौकरियां देंगे, साथ ही 5लाख स्वरोजगार पैदा करेंगे।
इस तरह कुल लगभग आठ लाख रोजगार का उन्होंने झारखंड के युवाओं से वायदा किया है। यह एक ऐसा सवाल है जिस पर इंडिया गठबंधन को भी ठोस वायदे के साथ सामने आना होगा क्योंकि यह इस दौर में युवाओं का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
CSDS के सर्वे के अनुसार बेरोजगारी और महंगाई पूरे देश में ही मतदाताओं के लिए सबसे बड़े मुद्दे बने हुए हैं। दूसरे चुनावी राज्य महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि वहां 24% लोग बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं तो 22% लोग महंगाई को।
विकास को जहां मात्र 9% लोग तो इन्फ्रास्ट्रक्चर को महज 7% लोग सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। 74% लोग मानते हैं कि पिछले 5 साल में महंगाई बढ़ गई है तो 51% लोग मानते हैं कि बेरोजगारी बढ़ी है। जो लोग बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं उनमें से 58% लोग विपक्ष के साथ जाना चाहते हैं, जबकि केवल 31%लोग सत्तारूढ़ दल के साथ।
हरियाणा में जहां बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है, वहां इसे सर्वप्रमुख मुद्दा बना पाने में विपक्ष विफल रहा। दरअसल यही वह सवाल था, जिसे विपक्ष अगर मुद्दा बना पाता तो संभवतः जाति और धर्म के सवाल पीछे जाते और पूरे समाज के युवाओं का आकर्षण इंडिया गठबंधन के पक्ष में होता।
लेकिन वह न हो सका और भाजपा सोशल इंजीनियरिंग का सीट वार माइक्रो मैनेजमेंट करते हुए चुनाव जीतने में सफल रही।
खबरों के अनुसार भाजपा JMM के दोनों स्टार प्रचारकों हेमंत और कल्पना सोरेन को अपनी ही कांस्टीट्यूएंसी में घेरने की रणनीति बना रही है। हेमंत सोरेन के खिलाफ कभी उनको पराजित करने वाले लुईस मरांडी को खड़ा किया जा सकता है तो कल्पना सोरेन के खिलाफ केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी या रवींद्र राय को खड़ा करने की चर्चा है।
इंडिया गठबंधन की ओर से हेमंत सोरेन ने केवल कांग्रेस से बात करके एकतरफा सीट बंटवारे की घोषणा कर दिया है। जाहिर है यह गठबंधन धर्म के खिलाफ है और इस पर RJD भाकपा माले ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भाकपा महासचिव डी राजा ने भी इसकी आलोचना की है।
दरअसल हेमंत सोरेन की घोषणा के अनुसार कुल 70 सीटें JMM और कांग्रेस ने आपस में बांट ली है। 11सीटें राजद और लेफ्ट के लिए छोड़ी हैं। बगोदर से माले के पहले से ही विधायक विनोद सिंह हैं। खबरों के अनुसार माले बगोदर, धनबाद, सिंदरी, निरसा, जमुआ समेत 7 सीटों पर दावेदारी की तैयारी में है।
राजद नेता मनोज झा ने भी कहा है कि एक सीट जीतने के अलावा पिछली बार उनका दल 5 सीटों पर रनर अप था। इस अनुपात में कोई भी दल रनर अप नहीं था, इसलिए हमारा दावा अधिक सीटों का बनता है।
झारखंड चुनाव में जिस तरह हिमांता शर्मा और शिवराज चौहान को प्रभारी बनाया गया है, वह काबिले गौर है। हिमांता शर्मा अपने राज्य में धुर सांप्रदायिक नीतियों के लिए जाने जा रहे हैं। उन्हें झारखंड लाकर भाजपा जोर-शोर से बांग्लादेशी घुसपैठियों का सवाल उठा रही है।
उनका आरोप है कि ये घुसपैठिए वहां आकर धर्मांतरण करवा रहे हैं। वे बड़े पैमाने पर आदिवासियों को मुसलमान बना रहे हैं। ज्ञातव्य है कि असम में हिंदुओं को डराने और ध्रुवीकृत करने के लिए यह तक अफवाह फैलाई जा रही है कि कुछ दिनों में मुसलमान वहां बहुसंख्यक हो जायेंगे और हिंदू अल्पमत में आ जाएंगे !
ठीक इसी तरह लाडली बहना fame वाले शिवराज चौहान को वहां लाकर एक तो पिछड़ों का वोट साधने की कवायद है, दूसरे इस बीच हेमंत सोरेन सरकार महिलाओं को एक हजार रूपये दे रही थी, इस पर भाजपा ने ऐलान कर दिया कि वह 2100रू देगी।
अब इस पर हेमंत सोरेन ने कहा है कि हम 2500देंगे। विश्लेषकों के अनुसार महिला मतदाताओं के लिए यह योजना मध्य प्रदेश की तरह झारखंड में भी गेम चेंजर साबित हो सकती है।
झारखंड में भाजपा की पहली लिस्ट आने के बाद से बगावत की खबरें आ रही हैं। दरअसल टिकट बंटवारे में दूसरे दलों से आए नेताओं और बड़े नेताओं के परिजनों को प्राथमिकता दी गई है। यह वह पार्टी कर रही है जो परिवारवाद के विरोध का दम भरती है। जाहिर है इसके खिलाफ पार्टी के पुराने नेताओं में असंतोष है।
जाहिर है महाराष्ट्र और झारखंड दोनों ही राज्यों में विपक्ष के लिए बेहतरीन संभावनाएं हैं। लेकिन जिस तरह सीटों को लेकर झारखंड में खुली तकरार हो रही है, वह कोई शुभ संकेत नहीं है।
उम्मीद है इंडिया गठबंधन के दल एक सर्वस्वीकार्य सीट बंटवारे के साथ एकजुट होकर मैदान में उतरेंगे और भाजपा गठबंधन को पटकनी देंगे।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)
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