इंडिया गठबंधन: कांग्रेस पर हमले का हासिल क्या?

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नई दिल्ली। भाजपा को हराने और लोकतंत्र को बचाने के लिए कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने मुंबई में ‘इंडिया गठबंधन’ की बैठक में कई निर्णय लिए थे। उस बैठक में फैसला किया गया था कि गठबंधन में शामिल दलों के नेता एक दूसरे के विरोध में बयान नहीं देंगे। लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इंडिया गठबंधन में शामिल दल ‘दरार’ आने की बात से भले इनकार करे, लेकिन एक दूसरे के विरोध में दिए बयानों से कैसे इनकार कर सकते हैं। क्या उनके बयानों से यह अंदाजा नहीं लगाया जायेगा कि गठबंधन में शामिल दलों को एक दूसरे की नहीं सिर्फ अपनी चिंता है।

इंडिया गठबंधन में शामिल दलों की मुखरता की शुरुआत मध्य प्रदेश के राजनीतिक जोड़-घटाव से शुरू होती है। जहां पर कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को विधानसभा की चार सीटें देने से मना कर दिया। मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी को कुछ विधानसभा की सीटें न देने पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर धोखा देने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि जब सीट देना नहीं था, समझौता करना नहीं था तो हमारे नेताओं को कांग्रेस नेताओं ने आधी रात तक बैठाया क्यों। लेकिन पिछले दो दिनों में गठबंधन में शामिल- समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, जेडी(यू), सीपीआई और सीपीएम के नेताओं ने जिस तरह के बयान दिए है, उससे यह कहा जा सकता है कि गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।

सबसे बड़ी बात इंडिया गठबंधन में शामिल पांच दलों के नेताओं ने कोई बयान नहीं दिया है। बल्कि पांच दलों के प्रमुखों ने जिस तरह से कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस पर कटाक्ष किया है उससे गठबंधन अब दूर की कौड़ी लग रही है। सपा और आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सीटें न छोड़ने से खफा हैं तो सीपीएएम ने टीएमसी को अलोकतांत्रिक बताते हुए लोकसभा में उसके साथ समझौता करने से इनकार किया है।

सपा और आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव में समझौता न होने से नाराज चल रहे थे अब सीपीएम महासचिव ने लोकसभा चुनाव में बंगाल में टीएमसी से गठबंधन न करने को कह कर मामले को और गंभीर कर दिया है। जबकि पहले यह कह कर गठबंघन दलों को शांत करने की कोशिश की गई कि गठबंधन में शामिल दलों का विधानसभा नहीं लोकसभा चुनाव में समझौता होगा। क्योंकि अधिकांश दल राज्य स्तरीय पार्टियां है। कांग्रेस और सीपीएम को छोड़कर किसी भी दल का दूसरे राज्यों में कोई मजबूत जनाधार नहीं है। यह बात अलग है कि कुछ दलों का किसी राज्य में इक्का-दुक्का विधायक हैं।

नीतीश कुमार ने कांग्रेस पर साधा निशाना

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के शुरुआती और प्रमुख पैरोकारों में से एक हैं। लेकिन हाल ही में कांग्रेस पर हमला करने की शुरूआत उन्होंने नहीं की। 2 नवंबर को ‘भाजपा भगाओ देश बचाओ रैली’ में नीतीश कुमार ने कहा कि “पटना में हुई विपक्षी बैठक में INDIA गठबंधन का गठन हुआ था। लेकिन आजकल गठबंधन का कोई काम नहीं हो रहा है। कांग्रेस पार्टी इस पर ध्यान नहीं दे रही है। वो 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में व्यस्त है।”

अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को बताया भ्रष्टाचारी

उसके बाद आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी ने भी कांग्रेस पर अपने मन की भड़ास निकाली। आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने तो राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में अपने प्रत्याशी भी उतारे हैं। छत्तीसगढ़ में अपनी पार्टी के प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि “75 साल बहुत बड़ा समय होता है। इस दौरान कांग्रेस और बीजेपी ने इतनी लूट मचाई है कि इनकी सात पीढ़ियों का इंतजाम हो गया है।”

अखिलेश यादव ने कहा- कांग्रेस और भाजपा में नहीं है अंतर

मध्य प्रदेश के छतरपुर में समाजवादी पार्टी के समर्थन में सभा करने पहुंचे सपा प्रमुश अखिलेश यादव ने कहा कि “अगर आप गहराई से देखोगे तो कांग्रेस और बीजेपी में कोई फर्क नहीं है। दोनों के सिद्धांत में कोई अंतर नहीं है। जो कभी कांग्रेस में थे वे अब बीजेपी में हैं और जो बीजेपी में थे वे अब कांग्रेस में आ गए हैं।”

मध्य प्रदेश चुनाव में सीट बंटवारे से शुरू हुई कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच मतभेद के बाद सपा ने कहा है कि वह गठबंधन की स्थिति में यूपी की 80 में से 65 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। गठबंधन नहीं होने की स्थिति में पार्टी सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।

टीएमसी से बंगाल में समझौते से सीपीएम का इनकार

सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने आगामी लोकसभा चुनावों में बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ किसी भी सीट पर साझा गठबंधन की संभावना से इनकार किया है। हावड़ा में सीपीआई-एम बंगाल राज्य समिति के तीन दिवसीय सम्मेलन के दौरान पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि “तृणमूल अलोकतांत्रिक गतिविधियों वाली पार्टी है जिसकी जड़ों में भ्रष्टाचार है। वह भाजपा का विकल्प न तो कभी थी और न ही बन सकती है। हमें आरएसएस-बीजेपी की राजनीतिक-वैचारिक परियोजना का विकल्प ढूंढने की जरूरत महसूस हुई। यदि उस ताकत को हराना है तो लोगों को एक वैकल्पिक राजनीति और विचारधारा प्रदान करनी होगी जो टीएमसी में अनुपस्थित है। वह पहले भी एनडीए का हिस्सा रह चुकी है और बीजेपी के साथ केंद्रीय मंत्रालय भी साझा कर चुकी है। अगर बदली हुई परिस्थितियों में वे इंडिया गुट का हिस्सा बनना चाहते हैं और भाजपा को हराना चाहते हैं तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन बंगाल के लिए, हम सोचते हैं कि भाजपा का विकल्प वाम मोर्चा और उसके सहयोगी हैं न कि टीएमसी।”

सीपीएम महासचिव ने कहा कि “हम देखेंगे कि टीएमसी कब तक हमारे साथ रहती है। यदि वे साथ नहीं देंगे तो लोग अपना उत्तर देंगे और हमें टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है। वे कहते हैं कि वे लड़ना चाहते हैं। हम उनका स्वागत करते हैं। यदि वे बाद में भाजपा के साथ समझौता करना चुनते हैं, तो लोग जवाब देंगे। यह उन पर है कि वे इस लड़ाई में कहां तक रहना चाहते हैं।”

सीताराम येचुरी ने कहा कि “सभी दलों से हमारा स्पष्ट आह्वान है कि भारत, इसके संविधान और इसके धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक चरित्र को बचाने के लिए, भाजपा को सरकार और राज्य सत्ता से अलग करना होगा।

डी. राजा ने उठाए कांग्रेस की भूमिका पर सवाल

सीपीआई महासचिव डी. राजा ने शुक्रवार को इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका पर चिंता व्यक्त की और कहा कि उसने पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों में सहयोगियों के साथ सीट-बंटवारे का कोई समझौता नहीं किया है। उन्होंने कांग्रेस पर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा की गई टिप्पणियों पर सकारात्मक रूप से विचार करने की सलाह दी।

डी. राजा ने कहा कि “कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना या मिजोरम में आगामी विधानसभा चुनावों में भारत के सहयोगियों के साथ कोई सीट-बंटवारा नहीं किया है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।”

राजा ने यह भी कहा कि सीपीआई 2024 के लोकसभा चुनावों में उचित संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ेगी क्योंकि यह देश के कई राज्यों में एक मजबूत ताकत है। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि उनकी पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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