मोदी सरकार की मिलीभगत से फिलिस्तीनियों को हटाकर भारत के एक लाख मजदूरों को रखने की इजराइल की तैयारी

नई दिल्ली। इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध के नाजुक समय में अमेरिका समेत सभी यूरोपीय देशों ने अपने नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकाल लिया, और कई देशों की सरकारों ने अपने नागरिकों को इजराइल और फिलिस्तीन से स्वदेश लौटने के लिए गाइडलाइन्स जारी किए थे। फिलिस्तीन में रोज बम के गोले गिर रहे हैं और सैन्य ठिकानों से लेकर स्कूल, अस्पताल और रिहायशी क्षेत्र तबाह हो रहे हैं। ऐसे समय में मोदी सरकार 1 लाख श्रमिकों को इजराइली कंपनियों में भेजने की योजना बना रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि किसी युद्धरत देश में अपने नागरिकों को भेजकर उनके जान को जोखिम में डालने के पीछे सरकार की क्या मजबूरी है?

दरअसल इजराइल सरकार निर्माण उद्योग में काम कर रहे फिलिस्तीनी और अरबी देशों के कर्मचारियों के स्थान पर भारतीय श्रमिकों को रखने की योजना बना रही है। इस सिलसिले में इज़राइली निर्माण उद्योग ने तेल अवीव में सरकार से कहा है कि कंपनियों को उन 90,000 फ़िलिस्तीनियों के स्थान पर 1 लाख भारतीय श्रमिकों को काम पर रखने की अनुमति दी जाए जिनके कार्य परमिट 7 अक्टूबर के हमास हमले के बाद रद्द कर दिए गए हैं।

भारतीय प्रोफेशनल्स और श्रमिक लंबे समय से दुनिया के विभिन्न देशों में जाकर रोजी-रोजगार करते रहे हैं। यूरोपीय देशों के साथ ही अमेरिका और खाड़ी देशों में भारत के डॉक्टर, इंजीनियर, नर्स के साथ-साथ ड्राइवर और मजदूर तक जाते हैं। इसके लिए भारत और उक्त देश के बीच एक समझौता भी होता है। लेकिन जब दो देशों के बीच युद्ध चल रहा हो तो क्या ऐसी परिस्थितियों में किसी सरकार को अपने नागरिकों की जान को जोखिम में डालना चाहिए?

वॉयस ऑफ अमेरिका के वेस्ट बैंक की रिपोर्ट में इज़राइल बिल्डर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष हैम फीग्लिन के हवाले से कहा गया है, “अभी हम भारत के साथ बातचीत कर रहे हैं। हम उसे मंजूरी देने के लिए इजराइली सरकार के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। और हम पूरे क्षेत्र को चलाने और इसे सामान्य स्थिति में लाने के लिए भारत से 50,000 से 100,000 श्रमिकों को शामिल करने की उम्मीद करते हैं।”

इस मुद्दे पर मोदी सरकार और इजराइल सरकार के बीच क्या बातचीत चल रही है, इस पर विदेश मंत्रालय मौन है। मंत्रालय यह नहीं बताना चाहता है कि सरकार लाखों श्रमिकों को इजराइल भेजने पर सहमत हो गई है या नहीं। लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इजराइल- फिलिस्तीन युद्ध शुरू होने के बाद भारत सरकार ने इजराइल-फिलिस्तीन में रह रहे भारतीयों को निकालने के लिए ‘ऑपरेशन अजय’ शुरू किया था। लेकिन इस ऑपरेशन के तहत अभी तक सभी भारतीयों को वापस नहीं लाया जा सका है।

फ़िग्लिन ने कहा कि “इज़रायली निर्माण उद्योग में नियोजित कार्यबल में फ़िलिस्तीनियों की संख्या लगभग 25 प्रतिशत है और 7 अक्टूबर से वे काम पर नहीं आ रहे हैं। अब इजराइल में उन्हें काम करने की अनुमति भी नहीं है। लगभग 10 प्रतिशत फिलिस्तीनी श्रमिक गाजा से हैं-जो संघर्ष का केंद्र है। और बाकी वेस्ट बैंक से हैं।”

जहां भारत से श्रमिकों की मांग के पीछे युद्ध को कारण बताया जा रहा है, वहीं तेल अवीव पिछले कुछ महीनों से इस तरह की प्रक्रिया में लगा है। इजराइल का निर्माण क्षेत्र लंबे समय से श्रमिकों की कमी से जूझ रहा है। युद्ध ने इसे और बढ़ा दिया है। दरअसल, युद्ध शुरू होने के बाद इजराइली निर्माण कंपनियों में काम कर रहे फिलिस्तीनी श्रमिकों ने काम पर जाना बंद कर दिया है। दूसरी तरफ इजराइल सरकार ने भी फिलिस्तीनी और अरबी मजदूरों को काम पर रखने की अनुमति रद्द कर दिया है।

9 मई, 2023 को इजराइल के विदेश मंत्री एली कोहेन तीन दिवसीय यात्रा पर आए थे। इस दौरान उन्होंने भारत के साथ एक समझौता किया, जो 42,000 भारतीयों को इज़राइल में निर्माण क्षेत्र में काम करने की अनुमति को लेकर था। इस समझौते में नर्सिंग क्षेत्र शामिल नहीं था।

दरअसल, अभी तक इजराइल में नर्सिंग सेक्टर में भारतीयों को काम करने की अनुमति थी। लेकिन अब इजराइल सरकार ने निर्माण क्षेत्र में काम करने के लिए भारतीयों के लिए खोल दिया है। इज़राइल में विशिष्ट श्रम बाजार क्षेत्रों में श्रमिकों के अस्थायी रोजगार की सुविधा के लिए एक फ्रेमवर्क समझौता करना पड़ता है।

मई माह में इसी समझौते पर भारत ने हस्ताक्षर किए थे। इस रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर होने से पहले एक वर्ष से अधिक समय से तैयारी चल रही थी। एक बहु-मंत्रालयी इज़राइली टीम ने मार्च में भारत का दौरा किया था और देश भर के प्रशिक्षण केंद्रों का दौरा किया था।

यह पहली बार था कि इजराइली निर्माण क्षेत्र भारतीयों के लिए खुल गया था, जो पहले नर्सिंग स्टाफ तक ही सीमित था।

गौरतलब है कि मध्य एशिया में भारत के कर्माचारियों की भारी मांग है। एक रिपोर्ट में इज़राइल के जनसंख्या और आव्रजन प्राधिकरण के हवाले से कहा कि भारत से आने वाले कर्मचारी मेहनती, अनुभवी और अंग्रेजी में पारंगत होते हैं।

9 मई 2023 को हुए समझौते के मुताबिक जो 42,000 भारतीय श्रमिकों को इजराइल में निर्माण और नर्सिंग के क्षेत्र में काम करने की अनुमति मिली थी।

तब इजरायली विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस बयान जारी किया था कि “सीधी उड़ानें जोड़कर, कृषि और जल प्रबंधन में सहयोग जारी रखने और ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर रक्षा के क्षेत्र में सहयोग का विस्तार” करके भारत-इजराइल संबंधों को मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा हुई थी।

लेकिन असली सवाल यह है कि भारत और इजराइल के बीच श्रमिकों या सेवा क्षेत्र में प्रशिक्षितों को भेजने का जो समझौता हुआ वह शांतिकाल में हुआ था। लेकिन वर्तमान में इजराइल की तरफ से श्रमिकों की जो मांग हो रही है, वह रोजगार से ज्यादा फिलिस्तीनी श्रमिकों को सबक सिखाने के लिए है। फिलिस्तीनी श्रमिकों में से ज्यादातर काम पर लौटना चाहते हैं लेकिन इजराइल ने उनके वर्क परमिट को रद्द कर दिया है।

(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)

प्रदीप सिंह

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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One thought on “मोदी सरकार की मिलीभगत से फिलिस्तीनियों को हटाकर भारत के एक लाख मजदूरों को रखने की इजराइल की तैयारी

  1. यह खतरनाक कदम। पूर्ण शांति के बाद ही इस संबंध में सोचा जा सकता है
    वैसे गाज़ा भूमि पर भारतीयों या अन्य को बसाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं। इसमें भारत की बहुत बदनामी होगी।

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