पाकिस्तान में अनेक ठिकानों पर सैनिक कार्रवाई के बाद भारत सरकार ने स्पष्ट किया था कि फिलहाल उसका उद्देश्य पूरा हो गया है। इन कार्रवाइयों के जरिए 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमलों का सख्त जवाब दे दिया गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी ब्रीफिंग में बताया कि सैनिक कार्रवाई को आतंकवाद से जुड़े ठिकानों तक निशाने सीमित रखा गया- मतलब यह कि किसी सैनिक या सामान्य असैनिक ठिकानों पर हमला नहीं किया गया।
संदेश साफ था कि अगर अब पाकिस्तान की ओर से भड़काने वाली कार्रवाई नहीं होती है, तो भारत फिलहाल कोई अन्य हमला नहीं करेगा। उधर पाकिस्तान ने नैरेटिव बनाया, जिसे वहां के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने संसद में भी दोहराया, कि 6-7 मई की रात हुई भारत की कार्रवाई के दौरान पाकिस्तानी सेना ने भारत के पांच लड़ाकू विमानों और एक ड्रोन को मार गिराया है। पाकिस्तान सरकार की तरफ से इन कार्रवाइयों के बारे में कोई साक्ष्य मुहैया नहीं कराया गया। उधर पाकिस्तान के सुरक्षा बलों ने सीमा पार से जम्मू के इलाके खास कर पुंछ में जोरदार गोलीबारी की, जिसमें पहले रोज ही 16 भारतीय नागरिक मारे गए।
इन कथानकों को लेकर पाकिस्तान के सरकारी हलकों और मीडिया में जैसी तसल्ली देखी गई, उससे संदेश मिला कि संभवतः पाकिस्तान अब आगे कोई सैन्य कार्रवाई करने की जरूरत महसूस नहीं करेगा। इस तरह बात सात मई से आगे नहीं बढ़ेगी।
मगर आज, नौ मई को, इन पंक्तियों के लिखते वक्त वह अनुमान काफी हद तक गलत साबित हो चुका है। भारत सरकार के मुताबिक सात मई की रात पाकिस्तान ने भारत के अनेक शहरों पर ड्रोन या मिसाइलों से हमले किए, जिन्हें नाकाम कर दिया गया। उसके बाद आठ मई को भारत ने जवाब दिया। लाहौर सहित कई शहरों पर ड्रोन दागे गए। भारतीय ड्रोन्स से वहां खास नुकसान होने की चर्चा है। यह सूचना बहुचर्चित है कि लाहौर में पाकिस्तानी सेना की रक्षा प्रणाली भारतीय ड्रोन्स के आगे विफल हो गई।
फिर आठ मई की रात जम्मू, पंजाब, राजस्थान आदि के कई इलाकों में पाकिस्तानी हमलों की चर्चा फैली। उससे बने माहौल का यहां तक असर हुआ कि हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के चल रहे मैच को बीच में ही रोक देना पड़ा। उन कथित हमलों के बारे में आधिकारिक प्रतिक्रियाओं का इंतजार है।
उपरोक्त कथित घटनाओं और उनसे बने माहौल ने पहलगाम हमले के बाद बनती गई स्थितियों के अनियंत्रित हो जाने की आशंका पैदा कर दी है। जैसा कि कहा जाता है, युद्ध या युद्ध जैसी कार्रवाइयों के शुरू होने के बाद उनका अपना गतिशास्त्र बन जाता है, जो किसी के काबू में नहीं रहता। इसलिए फिलहाल अनिश्चय का माहौल है। इसलिए अपेक्षित है कि इस माहौल से यथाशीघ्र देश को निकाला जाए।
अतीत में ऐसी परिस्थितियों में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता प्रमुख भूमिका निभाती थी। तब दुनिया में पश्चिम का वर्चस्व था, जिसकी कमान अमेरिका के हाथ में थी। इसलिए अमेरिका दुनिया में लगभग हर जगह घटनाओं को प्रभावित करने की स्थिति में रहता था। लेकिन अब सूरत बदल चुकी है। अमेरिका के प्रभाव में हुए क्षरण की मिसालें यूक्रेन से लेकर पश्चिम एशिया और यहां तक कि उसके व्यापार युद्ध में देखने को मिली हैं।
इसी नई स्थिति की मिसाल अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जे.डी. वांस का ताजा बयान है। उन्होंने दो टूक कहा है कि भारत या पाकिस्तान पर अमेरिका नियंत्रण नहीं है और ना ही इस युद्ध में अमेरिका अपनी कोई भूमिका समझता है।
(https://www.bing.com/videos/riverview/relatedvideo?q=jd%20vance%20on%20india&mid=12CBD7F25833692F959D12CBD7F25833692F959D&ajaxhist=0) तनाव घटाने की अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो या अन्य पश्चिमी नेताओं की अपील का भारत या पाकिस्तान पर कोई असर हुआ है, इसके संकेत भी नहीं हैं।
यह दुनिया के बदले हालात की ही मिसाल है कि जिन दो देशों ने मध्यस्थता से तनाव घटाने की सक्रिय कोशिश की है, वे ईरान और सऊदी अरब हैं। मगर उन दोनों देशों की कोशिश भारत और पाकिस्तान से अपने गहरे संबंधों के आधार पर है, ना कि शक्ति के प्रभाव के आधार पर। दुनिया की एक अन्य बड़ी ताकत चीन ने भी हालांकि तनाव घटाने की अपील की है, मगर पाकिस्तान के पक्ष में उसका झुकाव इतना स्पष्ट है कि उसकी बातों से भारत प्रभावित होगा, इसकी संभावना कम है। उधर रूस ने तटस्थ रुख बनाए रखा है। 6-7 मई की रात के बाद से उसकी तरफ से आए बयान औपचारिक ही माने जाएंगे।
तो साफ है कि लड़ाई को कहां तक ले जाना है, यह भारत और पाकिस्तान को ही तय करना है। इसी बिंदु पर सैन्य उद्देश्य (military objective) का प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो जाता है। पहलगाम हमले के बाद भारत को आतंक के ढांचे को दंडित करते हुए सख्ती का संदेश देना था, जो उसने 6-7 मई की रात दे दिया। मगर उसके बाद स्थिति ठहरी नहीं है। इसके भड़कने और बड़ी लड़ाई का रूप ले लेने की आशंकाएं वातावरण पर हावी होती जा रही हैं।
इसलिए यह अहम हो जाता है कि कूटनीतिक एवं सैन्य उद्देश्य के बारे में भारत में आम सहमति बनी रहे। यह अच्छी बात है कि भारत सरकार विपक्षी दलों के साथ संपर्क में है और दो सर्वदलीय बैठकें वह आयोजित कर चुकी है। बल्कि इससे आगे जाते हुए, बेहतर यह होगा कि आम जन को भी यथासंभव भरोसे में लिया जाए। इस सिलसिले में कुछ बिंदु विचारणीय हैः
- भारत ने पाकिस्तान के अंदर सैन्य कार्रवाई कर अपना फौरी मकसद हासिल कर लिया है।
- मगर भारत का मुख्य मकसद आतंकवाद के उस ढांचे को नष्ट करना है, जिसका निशाना भारत बनता रहा है। 6-7 मई की कार्रवाई से इस उद्देश्य को पाने में कितनी मदद मिली है, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
- इस संदर्भ में यह प्रश्न विचारणीय है कि आतंकवाद, उसके ढांचे, और उसके संरक्षण ढांचे को सैनिक कार्रवाइयों से किस हद तक नष्ट किया जा सकता है?
- इस लक्ष्य को पाने में कूटनीति या अंतरराष्ट्रीय माहौल को अपने पक्ष में करने का कितना महत्त्व है, ये सवाल भी अहम है।
- आज की बदली विश्व परिस्थितियों में, जब दुनिया एक-ध्रुवीय नहीं रह गई है, उस समय में अंतरराष्ट्रीय माहौल को कैसे अपने पक्ष में ढाला जाए और कैसे पाकिस्तान को अलग-थलग किया जाए, यह एक विचार-विमर्श का एक खास मुद्दा होना चाहिए। इस सिलसिले में यह प्रतिकूल तथ्य हमारे सामने है कि चीन और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) का समर्थन अभी तक पाकिस्तान के साथ बना हुआ है।
- सैन्य कार्रवाई के मामले में यह सवाल भी बार-बार आता है कि पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को मुक्त कराना भारत का लक्ष्य होना चाहिए। भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्री भी पहले यह लक्ष्य दोहराते रहे हैं। क्या ताजा सैन्य कार्रवाई के साथ इस उद्देश्य को शामिल किया जाना चाहिए, यह विचारणीय प्रश्न है।
विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने गुरुवार को प्रेस ब्रीफिंग में उचित ही इसका उल्लेख किया कि भारत में सभी तबकों और समुदायों ने एक स्वर से भारतीय सेना की कार्रवाई का समर्थन किया है। यह एक तथ्य है, जिसके उल्लेख से देश का आत्म-विश्वास बढ़ता है।
इसलिए जब देश आतंकवाद के साये को समाप्त करने के लक्ष्य पर एकमत है, तो उपरोक्त प्रश्नों पर सार्वजनिक चर्चा को प्रोत्साहित करने में कोई हर्ज नजर नहीं आता। उससे देश में भरोसे का माहौल और मजबूत होगा- इसलिए कि व्यापक जनमत में यह स्पष्टता बनेगी कि भारत जो कदम उठा रहा है, उसका तात्कालिक, मध्य-कालिक और अंतिम मकसद क्या है।
इसीलिए ये खबरें थोड़ी अटपटी लगी हैं कि अनेक यू-ट्यूब वीडियोज को सरकारी आदेश से डिसएबल कर दिया गया है। इसी तरह अनेक एक्स (ट्विटर) हैंडल्स तक पहुंच रोक दी गई है। एक्स ने बताया है कि उसे लगभग आठ हजार हैंडल्स तक पहुंच रोकने का निर्देश भारत सरकार से मिला है। अतीत का अनुभव यह है कि सूचनाओं और विमर्श के स्रोत खुले रहते हैं, तो उनसे देश में विश्वास का माहौल मजबूत होता है। जबकि सूचना प्रवाह रुकने पर संशय एवं अफवाहों के लिए अनुकूल स्थितियां बनती हैं।
करगिल की लड़ाई के समय सूचना प्रवाह को बनाए रखने की तत्कालीन सरकार की नीति फायदेमंद साबित हुई थी। इस बार उसके विपरीत नीति अपनाई गई है। मगर बेहतर होगा कि सरकार इस पर पुनर्विचार करे। उससे भारतीय सेना की कार्रवाई के प्रति समर्थन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बल्कि अपने सैन्य एवं अन्य उद्देश्यों के प्रति स्पष्टता प्रखर होगी और उससे भारत सरकार के पाकिस्तान संबंधी निर्णयों के प्रति भारतीय जन मानस का भावनात्मक समर्थन ठोस समझ पर भी आधारित हो सकेगा।
(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)