बारिश से तबाही और सरकार की बेपरवाही

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दिल्ली में शनिवार को हुई बारिश ने पिछले 40 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। लगभग 12 घंटे में कुल साल भर की बारिश का 15 प्रतिशत हिस्सा बरस गया। यह बारिश शनिवार से होते हुए रविवार को भी जारी रही है। इन दो दिनों में साल की कुल 34 प्रतिशत बारिश आसमान से जमीन पर उतर आई। कुल 258.8 मिमी बारिश हुई। मौसम विभाग ने बारिश को कम से कम 12 जुलाई तक जारी रहने का अनुमान पेश किया है।

मौसम विभाग के अनुसार इस बारिश ने हवा की दो धाराओं या दबावों के सम्मिलन से गंभीर रूप धारण कर लिया है। इस तरह की बारिश का सीधा असर पानी के बहाव के लिए बनी निकासी नालियों पर पड़ता है। कचरा, प्लास्टिक, टूट आदि कारणों से इन निकासी नालियों, नालों की क्षमता गिरी अवस्था में होती है। इसके कारण सामान्य बारिश में भी सड़कों पर पानी भर जाना एक आम बात है। एक साथ इतनी बारिश का सीधा अर्थ था पानी का बड़े पैमाने पर जमाव।

इसका नतीजा यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट परिसर से लेकर भगवानदास रोड, तिलक मार्ग और प्रगति मैदान की ओर जाने वाला रास्ता तालाब में बदल गया और बहुत से लोग गाड़ियों में फंस गये। दिल्ली का केंद्र माना जाने वाले कनॉट प्लेस की दुकानों में बारिश का पानी भरने लगा। आधुनिक तकनीक से बने प्रगति मैदान वाला अंडरपास पानी से भर गया। दिल्ली के केंद्रीय मंत्रियों से लेकर सांसदों के घरों के परिसर तालाब बन गये। एम्स का विशाल चैराहा पानी का विशाल तालाब में बदल गया।

तालाब बनीं दिल्ली की सड़कें।

भारी बारिश के चलते देशबंधु काॅलेज के एक तरफ की पूरी दीवार गिर गई। श्रीनिवासपुरी के सरकारी स्कूल की दीवार गिरने की खबर आई। इस बारिश की वजह से स्कूल में छुट्टी की घोषणा करनी पड़ी और सरकारी कर्मचारियों को रविवार को भी आने के लिए कहा गया। दिल्ली में घरों के गिरने और बारिश से हुई दूसरी तरह की दुर्घनाओं में 3 से ज्यादा लोगों के मरने की खबर आई।

यह स्थिति सिर्फ दिल्ली की नहीं थी। यदि सिर्फ रविवार को हुई बारिश का आंकड़ा देखें तो पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और हरियाणा में असामान्य बारिश को देखा जा सकता है। चंडीगढ़ में चौबीस घंटों में 302.2 मिमी बारिश का रिकॉर्ड बना। रोपड़ में 282.5 मिमी की बारिश हुई। पंजाब में साल की 67 प्रतिशत बारिश दो दिनों में ही हो गई। हिमाचल में लाहौल, स्फिति, कुल्लू, और मंडी में बादल फटने और तेज बारिश से सड़क, पुल, घर आदि बह गए, जिसमें कई लोगों की जान चली गईं।

कश्मीर के पुंछ में सेना के दो जवान ही बह गये। हिमाचल में 50 साल पुराना लोहे का पुल बह गया और हाइवे का बड़ा हिस्सा पानी के बहाव में खत्म हो गया। पूरा हिमाचल भारी बारिश से तबाही के दृश्यों से भर गया। 800 से अधिक रोड टूट गये और 6 राष्ट्रीय हाइवे के हिस्से बारिश के बहाव में या तो बह गये या बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गये। 13 जगहों पर बादल फटने या पानी के जमाव के अचानक टूट जाने से भूस्खलन की घटनाएं हुईं। कश्मीर में फिलहाल अमरनाथ यात्रा रोक दी गई है। हजारों यात्री बारिश की तबाही में फंसे हुए हैं।

हिमाचल में 50 साल पुराना लोहे का पुल बह गया।

वहीं बारिश को लेकर उत्तराखंड हाई अलर्ट पर है। हरियाणा के सोनीपत, पानीपत से लेकर गुड़गांव तक पानी के जमाव की खबरें आती रहीं। खासकर, गुड़गांव में राष्ट्रीय राजमार्ग से लेकर अपार्टमेंट तक पानी का जमाव और उसमें फंसी हुई गाड़ियों की खबरें और दृश्य सोशल मीडिया पर खूब शेयर किये गये साथ ही पानी की निकासी को लेकर प्रशासन की चौकसी पर सवाल खड़े किये गये।

भारत का मौसम विभाग और संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में काम करने वाले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मौसम की निगरानी वाले संगठन ने 2023 के अप्रैल महीने में ही चेतावनी देनी शुरू कर दिया था कि भारत के ऊपरी हिस्सों, खासकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में असामान्य बारिश की संभावना बढ़ती जा रही है। मई, 2023 में पश्चिमी विक्षोभ के असामान्य तरीके से सक्रिय होने का नतीजा हम इन्हीं इलाकों और साथ ही दिल्ली और उत्तर प्रदेश में हुई बारिश में देख सकते हैं।

उत्तराखंड और हिमाचल में हुई बारिश ने वहां के तामपान को काफी प्रभावित किया और बड़े पैमाने पर नुकसान भी किया। इसके तुरंत बाद अरब सागर से बिपरजाॅय चक्रवात का उठना और लंबे समय तक बने रहना और फिर उसके जमीन पर उतरने से गुजरात से लेकर दिल्ली तक बारिश का कारण बना। इसका भी सर्वाधिक असर राजस्थान, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड  में देखा गया। इसके तुरंत बाद ही समुद्र की सतह के गर्म होने और मॉनसून के देरी से आने की भविष्यवाणी सच होती हुई दिखी।

हिमाचल में बारिश का कहर।

एक तरफ उत्तर पूर्व में बाढ़ ने हजारों लोगों को बेघर कर दिया वहीं केरल में जून के महीने में सबसे कम बारिश का रिकॉर्ड बना। बिहार और उत्तर प्रदेश के खेत सूखे का शिकार हो रहे थे और लू की वजह से मरने वालों की संख्या में तेज वृद्धि हो रही थी। जुलाई, 2023 में कुल बारिश के सामान्य रहने की घोषणा मौसम विभाग की ओर से आई। हालांकि उन्होंने चिन्हित किया कि कई जगहों पर असामान्य बारिश हो सकती है।

औसत के आधार पर की जाने वाली इस घोषणा में असामान्य बारिश से होने वाली तबाही की बात दबती हुई सी दिखती है। मौसम विभाग की अलर्ट वाली सूचनाएं अभी भी संभलने और तैयारी के लिए जरूरी समयावधि के अनुरूप नहीं दिखती हैं। और कई बार मौसम विभाग की सूचनाएं ऐसी हों, तब भी उस संदर्भ में तैयारियां कम ही दिखती हैं। इस बाबत दिल्ली की स्थिति और भी बदतर है।

यहां पर्यावरण के संदर्भ में दो बातें जरूरी हैं। पहला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक समाज के बनने और पूंजी की साम्राज्यवादी आंकाक्षाओं ने पूरी धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा दिया है। कार्बन उत्सर्जन में भी यूरोप और अमेरीका सर्वाधिक योगदान करते हैं। पूंजी के मुनाफे का केंद्र कथित राष्ट्रीय राज्य यानी ब्रिटेन, अमेरीका, फ्रांस, जर्मनी आदि देश हैं और वे बड़े पैमाने पर भारत जैसे एशियाई, अफ्रीकी और लातिनी देशों से कच्चा माल उगाहते हैं।

बारिश का कहर।

विश्व स्तर पर यह मांग उठ रही है कि विश्व पर्यावरण को तबाह करने वाले इस औद्योगिक संरचना के मुनाफे का एक हिस्सा उन देशों को जाना चाहिए, जो इस विश्व पर्यावरण संकट के शिकार हो रहे हैं। दूसरा, देश के भीतर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, नदियों और उससे जुड़े पानी के स्रोतों की तबाही और जंगलों के नुकसान का सीधा असर दैनिक जीवन और खेती पर पड़ रहा है।

भारत, जहां दुनिया के प्रथम भू-क्षेत्र बनने वाले हिस्से का अंग है और सर्वाधिक प्राचीन पठार से लेकर आधुनिकतम भौगोलिक निर्माण हिमालय क्षेत्र भी इसके अंतर्गत आता है। ऐसे में हमारे यहां पर्यावरण मानविकी परिस्थिति से लेकर आधुनिक जीवन के साथ जुड़ा हुआ है और यह मानव अस्तित्व की समस्या से भी जाकर मिलता है। इस संदर्भ में, सरकारी प्रयास महज खानापूर्ती करते हुए दिखते हैं जबकि इसके लिए आवंटित बजट न सिर्फ कम है, बल्कि इसका खर्च भी उपयुक्त जरूरतों के अनुरूप होता हुआ नहीं दिखता है।

इसका हम एक उदाहरण नदियों की सफाई के संदर्भ में देख सकते हैं, जिसमें अब तक हजारों करोड़ रुपये पानी की तरह बहा दिये गये, पहाड़ की तरह दावे किये गये लेकिन नतीजा दिखाने योग्य भी नहीं है। ऐसे में बारिश, सूखा, ठंड और पाला जैसी समस्या जितनी प्राकृतिक दिखती हैं, उतनी नहीं है। और इनका सीधा संबंध हम साम्राज्यवादी पूंजी की लूट और उससे जुड़ी नीतियों में देख सकते हैं। भारत में इस संदर्भ में राज्य की नीतियों पर भी नजर रखनी होगी और इस संदर्भ में सही परिप्रेक्ष्य के साथ काम करना होगा। तभी हम इन असामान्य बारिशों, ठंड और सूखें के सही संदर्भ को समझ सकेंगे और इससे निपटने के लिए रास्ता  ढूढ़ सकेंगे।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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