Sunday, April 28, 2024

मौसम की अनदेखी से घुटने लगी है मुंबई की सांस

आमतौर पर अक्टूबर-नवम्बर के महीने शहरों में बढ़ते प्रदूषण का महीने होते हैं। खासकर, दिल्ली और एनसीआर की सांस घुटने लगती है। आसमान धूल और धुंध से भर जाता है। दिन में ही अंधेरे जैसी स्थिति हो जाती है। इसका एक बड़ा कारण मानसूनी हवाओं का असर लगभग खत्म होना है और दूसरा कारण हिमालय से उतरने वाली ठंड से भरी हवा की शुरूआत भी मानी जाती है।

लेकिन, यदि पश्चिमी विक्षोभ अपना असर दिखा दे, या मानसून का असर थोड़ी और देर तक बना रह जाये तब स्थिति थोड़ी बेहतर हो जाती है। दीपावली के आसपास से हिमालय से उतरने वाली ठंडी हवाएं अक्सर प्रदूषण से ग्रस्त उत्तर भारत के शहरों के लिए एक राहत लेकर उतरती हैं और साथ ही ठंड के मौसम को मैदानों में उतार भी देती हैं।

लेकिन, मुंबई और समुद्र तटीय शहरों के लिए ऐसी स्थिति नहीं है। ये शहर एक खुले समुद्र में सांस लेने की स्थिति में होते हैं। यही कारण रहा है कि मुंबई एक उद्योगिक शहर होने के बाद भी उतना प्रदूषित कभी नहीं रहा जितना दिल्ली, फरीदाबाद, कानपुर या लुधियाना। लेकिन, इस बार ऐसा नहीं हुआ। मुंबई की सांस इस अक्टूबर में घुटने लगी।

17 अक्टूबर, 2023 को मुंबई की हवा गुणवत्ता सूचकांक 191 पहुंच गया। उस दिन दिल्ली का अंक 84 था। यह आने वाले दिनों में और भी बदतर स्थिति में गया। बांद्रा, मलाड जैसी जगहों पर तो यह 200 के सूचकांक को पार कर गया।

ऐसा हुआ क्यों? इंडियन एक्सप्रेस (20 अक्टूबर, 2023) को छपी प्रदीप आचार्या और रूप्सा चक्रवर्ती के रिपोर्ट के अनुसार ‘इसके कई सारे कारण हैं जिसमें स्थानीय, क्षेत्रीय और मौसमी के साथ-साथ पर्यावरण में होने वाले बदलाव भी हैं।’ इसमें क्षेत्रीय और स्थानीय कारक में ऐसे कोई गुणात्मक बदलाव के आंकड़े नहीं दिखते हैं जिससे प्रदूषण की स्थिति बदतरीन हो जाये।

ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली में प्रदूषण के स्थानीय और क्षेत्रीय कारकों में कोई खास बदलाव नहीं होने के बावजूद प्रदूषण की स्थितियां काफी बदतरीन हो जाती है। दरअसल, ये कारक मौसम में बदलाव के साथ घातक होते जाते हैं और पर्यावरण की नई स्थिति में इनमें गुणात्मक बदलाव आने लगता है।

यदि हम पिछले कुछ सालों के मौसम के आंकड़ों को देखें, तब मुंबई में ठंड का असर काफी बढ़ा हुआ दिखेगा। यह सिर्फ मौसमी बदलाव नहीं, बदलते पर्यावरण का भी नतीजा है। पिछले कुछ सालों से समुद्री हवाओं की वापसी के सिलसिले का आवर्तन 15 दिनों का हो गया है, जो पहले सिर्फ दो दिनों का ही होता था। यदि हवा की वापसी के सिलसिले का आवर्त जितना ही बढ़ेगा, हवा की गुणवत्ता में खराबी उतनी ही बढ़ती जाएगी।

इस बार, जैसा कि मौसम विज्ञानी बता रहे हैं, अलनीनो प्रभाव के चलते समुद्र की सतह ठंडी होने के चलते हवा का बहाव काफी प्रभावित हुआ है और इसके पैटर्न में बदलाव दिख रहा है। इसका सीधा असर यही हुआ कि हवा की गुणवत्ता तेजी से खराब हुई।

मौसम और पर्यावरण में हो रहे बदलाव और उससे आने वाले परिणामों से बेखबर मुंबई म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ने कोई प्रभावकारी कदम नहीं उठाया और न ही कोई नीति-निर्देश जारी किया। लेकिन, जब मुंबई की सांस घुटने लगी तब खुले में कूड़ा जलाने, निर्माण कार्यों पर रोक, एंटी-स्मोग गन्स का प्रयोग बढ़ाने, सड़कों पर पानी का छिड़काव जैसे उपाय लेने शुरू कर दिये। बीएमसी की ओर से उठाये गये कदम ज्यादातर दिल्ली से मिलते-जुलते हैं। हालांकि दिल्ली में और भी कई कदम उठाये गये हैं। लेकिन, मौसम का असर जैसे ही बढ़ता है, ये सारे प्रयास धराशायी होने लगते हैं।

ऐसा नहीं है कि मुंबई में आमतौर पर कोई प्रदूषण नहीं है। मुंबई की सांस पहले से ही घुट रही है और इस घुटन का रिकार्ड काफी डरावना है। 2016-2021 के बीच ब्रोंकाइटिस से 1,220 लोग मारे गये जबकि अस्थमा से मरने वालों की संख्या 6,757 है। 2021 में फेफड़े के कैंसर से मरने वालों की संख्या 933 थी। 2016-21 के बीच प्रतिदिन कम से 6 लोग सांस की बीमारियों की वजह से मरे। ये भयावह आंकड़े वे हैं जो शहरी विकास से पैदा हुए प्रदूषण की वहज से हैं।

विज्ञान और तकनीक ने आधुनिक समाज निर्माण में केंद्रीय भूमिका का निर्वाह किया है। इस आधुनिक समाज की नींव रखने वाला पूंजीवाद अपनी उत्पादक व्यवस्था में अनुशासन और अराजकता दोनों की ही अंतर्विरोधी स्थितियों के साथ काम करता है। मुनाफा उसे एक ऐसी अराजकता और गलाकाट प्रतियोगिता की ओर ले जाती है, जिसका सबसे पहला शिकार आम इंसान और मेहनतकश जनता ही होती है। वह उतनी ही ताकत के साथ इस अराजकता को प्रकृति पर भी ढाता है। प्रकृति और इंसान के प्रति विज्ञान की चेतना पर जब पूंजी की मुनाफा वाली अराजकता और एकधिकारी प्रवृत्ति प्रभावी हो उठे तब स्थिति और भी बदतर हो जाती है।

आज के समय में हम सिर्फ अपने ही नहीं, और भी देशों में प्रकृति की बरबादी और उससे होने वाली तबाहियों को देख रहे हैं। आज जरूरी हो गया है कि मौसम और पर्यावरण में हो रहे बदलाव और उसके दूरगामी असर का अध्ययन और उससे रोकने वाले उपायों पर गहराई के साथ काम करे जिससे कम से कम इतना ही हो कि हमारी सांस न घुट जाये।

(अंजनी कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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