जल-जंगल-जमीन पर अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे लोग आएं साथ, मछुआरों को मिले समाजिक सुरक्षा: पीवी राजगोपाल

Estimated read time 1 min read

पटना। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर आजीविका वाले जन-समूह गहरे संकट में पड़ गए हैं। आधुनिक विकास की अंधी दौड़ में इन समूहों की परवाह कोई नहीं कर रहा। इसलिए जल-जंगल-जमीन पर अधिकार के लिए संघर्षशील समूहों के एकसाथ आने की अतिशय आवश्यकता है। यह बात जाने-माने गांधीवादी नेता पीवी राजगोपाल ने कही। वे पटना में जल श्रमिक संघ व गंगा मुक्ति आंदोलन के साझा सम्मेलन में बोल रहे थे। सम्मेलन में जल-श्रमिक अर्थात मछुआरों की समस्याओं की खासतौर से चर्चा हुई।

बिहार में मछुआरों की चर्चा गंगा मुक्ति आंदोलन से शुरू हुई जो गंगा नदी में मछली पकड़ने पर मुगल काल से चल रही जमींदारी के खिलाफ हुआ था। आंदोलन के फलस्वरूप जमींदारी तो खत्म हुई ही, सभी नदियों में निशुल्क मछली पकड़ने की छूट मिल गई। लेकिन पारंपरिक मछुआरों को 1991 में मिली निशुल्क शिकारमाही की छूट को सरकारी अधिकारियों ने विभिन्न बहानों से सीमित कर दिया है।

सम्मेलन में विभिन्न जिलों से आए मछुआरों ने मांग की कि 1991 में पारंपरिक शिकारमाही की घोषित नीति को कानून बनाकर सशक्त व कारगर बनाया जाए। कानून के तहत नदी में बाड़ लगाने, विस्फोटक, करंट या जहर देकर मछली पकड़ने, छोटी मछली पकड़ने के लिए मसहरी जाल लगाने आदि को संज्ञेय अपराध करार दिया जाए।

पारंपरिक मछुआरे पुरुष-महिला जो भी मछली पकड़ना चाहते हैं, उन्हें पहचान पत्र दिया जाए। निशुल्क शिकारमाही के लिए जारी यह पहचानपत्र व्यक्तिगत हो और इसे किसी संस्था या कॉपरेटिव से नहीं जोड़ा जाए। वर्तमान परिचय पत्रों में सीमांकन की विसंगतियां हैं, इसे संपूर्ण जिला और नदी क्षेत्र में प्रभावी बनाया जाए। नदी क्षेत्र में घोषित किसी अभयारण्य आदि से निशुल्क शिकारमाही का अधिकार बाधित नहीं हो, ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए।

जल श्रमिक सम्मेलन

जलकरों के क्षेत्र में अपराधियों का प्रकोप बढ़ा है और नए किस्म का अपराध शुरू हुआ है, इसलिए बड़ी संख्या में नदी थाना खोले जाएं, चलंत थाना की व्यवस्था भी की जाए। नदी में गश्ती की व्यवस्था हो। नगर निकाय या कोई व्यक्ति नदी में मैला जल नहीं गिराए। नदी में कचरा व मैला जल डालने पर कड़ी सजा का प्रावधान हो। जलवायु परिवर्तन का मछली, पानी व मछुआरों की आजीविका पर असर पड़ा है। इसका अध्ययन कराकर मछुआरों की सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की जाए।

सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजवादी रामशरण जी ने की जो गंगा मुक्ति आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं। विषय प्रवेश योगेन्द्र साहनी ने किया जो जल श्रमिक संघ के प्रांतीय संयोजक हैं। सम्मेलन में अत्यंत पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य अरविंद निषाद खासतौर से उपस्थित थे। सम्मेलन ऐतिहासिक ब्रजकिशोर स्मारक भवन में संपन्न हुआ।

(अमरनाथ झा वरिष्ठ पत्रकार हैं)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author