Saturday, April 20, 2024

जैनुलअबीदीन: शाहीनबाग़ का वो पुरुष जो 34 दिनों से है आमरण अनशन पर

देश-विदेश हर तरफ सिर्फ़ शाहीन बाग़ की चर्चा है। शाहीन बाग़ के नवप्रसूता, गर्भवती, जवां बच्चियों और बूढ़ी स्त्रियों की चर्चा है। 30 दिन की सबसे छोटी प्रदर्शनकारी से लेकर 90 वर्षीय बूढ़ी स्त्री तक शाहीन बाग़ में सिर्फ़ स्त्रियां ही स्त्रियां हैं। लेकिन शाहीन बाग़ में एक पुरुष भी है जो पहले ही दिन से चुपचाप अपने विरोध प्रदर्शन को आगे बढ़ा रहा है। इनका नाम है जैनुलअबीदीन। नागरिकता संशोधन एक्ट-2019 के विरुद्ध आमरण अनशन फानने वाले जैनुलअबीदीन देश के इकलौते शख्स हैं।

गांधी की तरह सत्ता की अमानवीय बर्बरता के खिलाफ़ आमरण अनशन पर हैं जैनुलअबीदीन

जैनुलअबिदीन शाहीन बाग़ में पिछले 34 दिनों (15 दिसंबर से) से आमरण अनशन पर हैं। कल रात करीब एक बजे वो धरनास्थल से पेशाब के लिए उठे तो कमजोरी के चलते वहीं गश खाकर गिर पड़े। शरीर में असहनीय दर्द होने पर शाहीन बाग़ के साथियों ने उन्हें उठाकर नजदीकी अस्पताल पहुंचाया। जहां रात दो बजे से उनकी शरीर में ग्लूकोज दिया जा रहा है। 

जैनुलअबीदीन कहते हैं- “हम गांधीवादी लोग हैं। इस देश के आवाम की गांधी में पूरी आस्था है। यही कारण है देश भर में सीएए-एनआरसी के खिलाफ़ गांधीवादी तरीके से शांतिपूर्ण धरना दिया जा रहा है। पूरा विश्व देख रहा है कि शाहीन बाग़ के लोग गांधी के बताए रास्ते पर चलते हुए शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। चूंकि हमारा विरोध मनुष्य और मनुष्यता को बचाने के लिए है। मनुष्यों को बराबरी का अधिकार देने वाले संविधान के लिए है। इसलिए हमारी पूरी कोशिश है कि हमारे विरोध-प्रदर्शन पूरी तरह शांतिपूर्ण ही रहें। इसमें हिंसा के लिए कहीं कोई गुंजाइश नहीं हो। हम गांधी के रास्ते ही सरकार को मजबूर करेंगे। अपना मनुष्य-विरोधी संविधान-विरोधी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) वापस लेने के लिए।”

जैनुलअबीदीन आगे कहते हैं- “मैंने ये भूख हड़ताल मनुष्य विरोधी सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ़ शुरू किया है। जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों पर हुई पुलिसिया बर्बरता के खिलाफ़ मैंने आमरण अनशन शुरू किया है। जब तक ये काला कानून वापस नहीं होता और जब तक छात्रों को न्याय नहीं मिलता मैं अपना आमरण अनशन नहीं खत्म करुंगा भले ही मेरी जान चली जाए।

वर्तमान सत्ताधारी लोग इतने क्रूर और ड्रैकुला प्रवृत्ति के हैं कि जैनुलअबीदीन की जिद देखने के बाद एक जाना पहचाना भय घेर लेता है। इसी देश में गंगा को पनबिजली योजनाओं की भेंट चढ़ने से बचाने, नदियों में खनन रोकने, पेड़ों की अवैध कटाई की मुहिम में आमरण अनशन पर बैठकर 26 वर्षीय आत्मबोधानंद व पर्यावरणविद् स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद (जीडी अग्रवाल) और स्वामी साणंद भूख हड़ताल में अपने प्राण त्याग चुके हैं लेकिन ये सरकार नहीं झुकी। 

22 किलोग्राम गिर गया है जैनुलअबीदीन का वजन

जैनुलअबीदीन 34 दिन से भूख हड़ताल पर हैं लेकिन उनसे प्रशासन या सरकार की ओर से कोई भी मिलने नहीं आया। न ही सरकार और प्रशासन की ओर से उनके हेल्थ की जांच के लिए कोई डॉक्टर की टीम नियुक्त की गई। जैनुलअबीदीन का वजन 22-25 किलोग्राम तक कम हो गया है। वे बेहद दुर्बल हो चुके हैं और दुर्बलता के चलते ही कल रात चक्कर खाकर गिर पड़े और अस्पताल में भर्ती होने को विवश भी।

अस्पताल में उनका इलाज कर रहे डॉक्टर ने बताया कि शरीर में ग्लूकोज की मात्रा कम होने के चलते वो बेहद कमजोर हो गए हैं। एक सप्ताह पहले भी जैनुलअबीदीन के शरीर में ग्लूकोज की मात्रा कम होने के चलते उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। तब शाहीन बाग़ में मेडिकल कैम्प लगाने वाले कुछ स्थानीय डॉक्टरों ने उन्हें धरनास्थल पर ग्लूकोज चढ़ाई थी। जिससे उनके शरीर में ग्लूकोज का स्तर समान्य स्तर तक आ गया था।

निर्दोष लोगों को प्रताड़ित करने वाली पुलिस से दुखी हैं

जैनुलअबीदीन बताते हैं, “दरअसल मॉब लिंचिंग, तीन तलाक़ बिल, धारा 370, और बाबरी मस्जिद जैसे मुद्दों पर ख़ामोश रहने के चलते सरकार को सीएए-एनआरसी पर इतने तीव्र विरोध की उम्मीद ही नहीं थी। देश भर में हो रहे विरोध के चलते इनके हौसले पस्त हैं। इसीलिए ये अपना गुस्सा पुलिस के जरिए आवाम पर उतार रहे हैं। ये मनुवादी लोग हैं। इनका लाया एनआरसी सिर्फ़ मुस्लिमों के ही नहीं दलितों, सिखों और स्त्रियों के भी खिलाफ़ है। ये दलितों, मुसलमानों, मजदूरों की नागरिकता छीनकर उन्हें घुसपैठिया घोषित करना चाहते हैं जबकि असली घुसपैठिए तो ख़ुद ये लोग हैं। उत्तर प्रदेश में पुलिस की वर्दी में आरएसएस के गुंडों ने मुसलमानों के घरों में घुसकर लूटपाट की।

उन्होंने लोगों के गहने जेवर रुपए पैसे सब लूट लिए और विरोध करने पर मार पीट कर रहे हैं। घर के कीमती सामान तोड़े। संविधान बचाने की इस लड़ाई में शामिल होने वाले भाई अखिल गोगोई समेत न्यायिक हिरासत में रखे गए सभी साथियों को फौरन रिहा किया जाय। जो लोग दोषी हैं जिन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में घुसकर हिंसा फैलाई उनके समेत दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ़ कार्रवाई की जाए। यूपी पुलिस छोटे-छोटे बच्चों को बर्बरतापूर्वक मार रही है। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं।”

अबीदीन के साथ जेएनयूएसयू अध्यक्ष आइषी घोष।

देश की आवाम को एनआरसी-सीएए की क्रोनोलॉजी समझाने वाले गृहमंत्री अमित शाह फिर डिटेंशन कैम्प पर सफेद झूठ बोलने वाले प्रधानमंत्री मोदी और यूपी पुलिस को मुसलमानों से बदला लेने की छूट देने वाले मुख्यमंत्री आदित्यनाथ पर पर टिप्पणी करते हुए जैनुलअबीदीन कहते हैं, “ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि तड़ीपार गृहमंत्री, गुजरात दंगों का अपराधी प्रधानमंत्री और बेअक्ल आदमी यूपी का मुख्यमंत्री है। ये नारा देते हैं बेटी बचाओ और बलात्कारी इनके ही सांसद, विधायक निकलते हैं। ऐसे लोग सत्ता में रहेंगे तो देश ऐसे ही अशांत रहेगा। ‘सबका साथ, सबका विकास, देश बर्बाद’ ये इनका पूरा नारा है। ये क्रांति की चिंगारी है अभी ये पूरे देश में फैलेगा और वो इसे डंडे से, गोली से, गिरफ़्तारी से नहीं रोक पाएंगे।

जैनुलअबीदीन के लिए गांधी आश्रम से आया पेड़ा

जैनुलअबीदीन गांधी को पहले भी पढ़ते आए हैं और अनशन में भी लगातार पढ़ रहे हैं। वो कहते हैं गांधी को पढ़ने से बल मिलता है और प्रेरणा भी। जैनुलअबीदीन बताते हैं, “हम गांधी के जीवन पर बनी फिल्में देखकर बड़े हुए हैं। रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ से लेकर राजकुमार हिरानी की ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ तक गांधी पर बहुत सी फिल्में देखी हैं मैंने। उस समय गांधी पर बनी फिल्में देखते हुए प्रेरणा तो बहुत मिलती थी लेकिन कभी सोचा नहीं था कि इस तरह से कभी जीवन में गांधी को आत्मसात करते हुए उनके मार्ग पर चल पड़ूँगा।”

जैनुलअबीदीन बताते हैं, “4-5 दिन पहले अहमदाबाद के गांधी आश्रम से एक साहेब आए थे। वो वहां से हमारे लिए पेड़ा लेकर आए थे। वो कहने लगे कि ये आपके लिए है लेकिन चूंकि मैं भूख हड़ताल पर हूं तो मैं नहीं खा सका। मैंने उनसे क्षमा लेकर शाहीन बाग़ में धरनारत लोगों में वो पेड़ा बंटवा दिया।”

 जैनुलअबीदीन आगे कहते हैं – “पूरे हिंदुस्तान में आज लोग गांधी को मानने वाले हैं। सिर्फ़ गोडसे वंशियों को छोड़कर। ये कानून वो सिर्फ़ 15 प्रतिशत लोगों के लिए लाए हैं जो गोडसे को अपना बाप मानते हैं। आज गोडसे को मानने वाले लोग गांधी को मानने वालों पर हमला कर रहे हैं, उन्हें देशद्रोही बता रहे हैं। असली देशद्रोही गोडसे के मानने वाले हैं। कल जसोला में मेडी डायलिसिस सेंटर का उद्घाटन करने हेडगेवार स्मारक न्यास भवन में आरएसएस सरगना मोहन भागवत आया था लेकिन उनकी हिम्मत नहीं हुई की शाहीन बाग़ में धरना दे रहे गांधीवादियों के बीच कदम धर सके।”

वो आगे कहते हैं, “गांधी भी मनुष्य और मनुष्यता की फिक्र करते थे इसीलिए वो जिन सवालों का जवाब नहीं दे पाते थे उसके लिए खुद को दोषी मानकर खुद को तकलीफ़ देते थे इसलिए भूख हड़ताल पर बैठ जाते थे। हमारा हड़ताल 100 में से 84 लोगों की नागरिकता बचाने के लिए है। एनआरसी–सीएए दरअसल गांधी को मानने वाले 84 प्रतिशत लोगों के खिलाफ़ ही लाया गया है। मेरी भूख हड़ताल गांधी को मानने वाले उन 84 प्रतिशत लोगों के लिए है।”

शाहीन बाग़ में ‘जनता की अदालत’ क्यों नहीं लगाते रजत शर्मा

जैनुलअबीदीन आखिर में कहते हैं- “ स्टूडियो में जनता की अदालत लगाने वाले रजत शर्मा ‘जनता की अदालत’ शाहीन बाग़ में क्यों नहीं लगा रहा। यहां शाहीन बाग़ में जनता ही तो बैठी है ना? पटकथा वाली ‘जनता की अदालत’ तो बहुत लगा लिए, दम है तो यहां शाहीन बाग़ जनता के बीच आकर ‘जनता की अदालत’ लगाओ। मोदी शाह को भी बुलाओ, हम करेंगे सुनवाई, फैसला भी सुनाएंगे।”

(सुशील मानव पत्रकार और लेखक हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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