किसान आंदोलन की एक बार फिर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। पंजाब के किसान शंभू बॉर्डर और खनौरी बॉर्डर पर अपनी लंबित मांगों को लेकर फिर आंदोलन की राह पर हैं। हरियाणा की खाप पंचायतों ने भी उनके समर्थन का ऐलान किया है। तय कार्यक्रम के अनुरूप 101 किसानों ने 6 दिसंबर को फिर शंभू बॉर्डर पर दिल्ली की ओर कूच किया।
कंटीले तारों को हटाकर पहला बेरिकेड तोड़कर किसान आगे बढ़े। हरियाणा पुलिस ने यह कहते हुए कि परमिशन नहीं है, उनके ऊपर आंसू गैस के गोले, रबर बुलेट और केमिकल स्प्रे बरसाने शुरू कर दिए जिससे किसान नेता सुरजीत सिंह फूल समेत कई किसान घायल हो गए।
किसानों का यह कहना था कि उच्चतम न्यायालय ने भी हमें ट्रैक्टर ट्रॉली के बिना पैदल जाने की परमिशन दी है तथा सरकार और उसके मंत्री भी यह कह रहे थे। फिर हमें पैदल भी क्यों नहीं जाने दिया जा रहा है।
कई किसानों के घायल होने के कारण उन्होंने फिलहाल अपना मार्च स्थगित कर दिया। लेकिन सरकार की ओर से कोई सकारात्मक पहल न हुई तो किसान 8 दिसंबर से फिर अपना मार्च शुरू करेंगे।
दरअसल SKM अराजनीतिक की चंडीगढ़ बैठक में दिल्ली कूच का ऐलान किया गया था। उधर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल 26 नवंबर से खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे हैं। किसानों ने ऐलान किया था कि इस बार वे ट्रैक्टर ट्रॉली से नहीं बल्कि पैदल ही मार्च करेंगे।
उधर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का कहना है कि “उनकी सरकार पहले से ही किसानों को MSP दे रही है, मोदी जी पहले से ही MSP बढ़ाकर दे रहे हैं। कांग्रेस किसानों को बरगलाने का काम कर रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि जनता ने हमें जिता कर भेजा है।
इस तरह अपनी चुनावी जीत से वे अपनी सरकार की नीतियों के लिए वैधता हासिल करने और किसान आंदोलन को अवैध (delegitimise) करने की कोशिश कर रहे हैं।
यूपी के किसान भी आंदोलन की राह पर हैं। वे अधिग्रहीत की गई अपनी जमीन के उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं। इसके तहत वे अपनी अधिग्रहीत जमीन के बदले जमीन की मांग कर रहे हैं।
भूमिहीन किसानों को आवासीय भूखंड और बेरोजगारों को नौकरी, स्थानीय स्कूलों और अस्पतालों में किसान परिवारों को प्राथमिकता दी जाय, भूमि अधिग्रहण कानून 2013 कानून के तहत उन्हें लाभ मिले।
यूपी के मुख्यमंत्री ने लोकसभा चुनाव के पहले किसानों की इन मांगों को लेकर उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। लेकिन समिति ने उनकी मुख्य मांगों को खारिज कर दिया। इसलिए किसान फिर से आंदोलन को मजबूर हुए।
सरकार ने पहले 5% विकसित भूखंड देने का वादा किया था, जिसे पूरा करने में वह विफल रही। बहरहाल अब किसान 20% विकसित भूखंड की मांग कर रहे हैं। प्रभावित किसानों की संख्या 23 हजार से ऊपर है।
किसान प्रेरणा स्थल पर धरने के लिए जमा थे, जहां से बल प्रयोग करके पुलिस ने उन्हें हटाया और 123 किसानों को हिरासत में ले लिया, बाद में उन्हें जनदबाव में रिहा किया गया। कई किसान प्राधिकरण भवन में घुस गए।
आंदोलन में शामिल होने जा रहे राकेश टिकैत को भी टप्पल में गिरफ्तार कर लिया गया। बहरहाल किसानों ने ऐलान किया है कि वे जीत कर, अपनी मांगे मनवा कर ही घर वापस जायेंगे।
उधर राज्य सभा में विपक्षी सांसदों ने MSP गारंटी कानून को लेकर जम कर नारेबाजी की। इसी बीच एक रोचक घटनाक्रम में मंगलवार को उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आईसीएआर-सीआईआरसीओटी के शताब्दी समारोह में बोलते हुए कहा, “मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है।
धनखड़ ने केंद्रीय कृषि और कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से कहा, हर पल आपके लिए महत्वपूर्ण है। कृपया मुझे बताइए, क्या किसान से कोई वादा किया गया था। वह वादा क्यों नहीं निभाया गया। हम क्या कर रहे हैं वादा पूरा करने के लिए। पिछले साल भी आंदोलन था, इस साल भी आंदोलन है। समय गुजरता जा रहा है, लेकिन हम कुछ नहीं कर रहे हैं।
उपराष्ट्रपति यहीं पर नहीं रूके, उन्होंने कहा, हम किसान को उसका सही हक भी नहीं दे रहे हैं। किसान आंदोलन का आकलन सीमित रूप से करना एक बड़ी गलतफहमी है। हम यह विचारधारा नहीं रख सकते, कि किसान अपने आप थक जाएगा। किसान आज भी अपनी उपज की उचित कीमत के लिए तरस रहा है।
बतौर धनखड़, क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा रेखा बना सकते हैं। यदि कोई राष्ट्र किसान की सहनशीलता को परखने की कोशिश करेगा, तो उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह बहुत संकीर्ण आकलन है कि किसान आंदोलन का मतलब केवल वे लोग हैं जो सड़कों पर हैं।
किसान का बेटा आज अधिकारी है, किसान का बेटा सरकारी कर्मचारी है। पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने क्यों कहा था, जय जवान, जय किसान।
कृषि क्षेत्र के मुद्दों का समाधान शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। किसानों की पीड़ा और आंदोलन देश की समग्र भलाई के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। उपराष्ट्रपति बोले, हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि अगर हम किसान को यह कीमत देंगे तो इसके नकारात्मक परिणाम होंगे। जो भी कीमत हम किसान को देंगे, देश को उसका पांच गुना फायदा होगा।”
अब धनखड़ जी के अंदर अचानक किसानों के लिए क्यों प्रेम उमड़ पड़ा है, यह अनुमान का विषय है। कई लोगों का यह अनुमान है कि ऐसे समय जब एक बार फिर किसान आंदोलन की सुगबुगाहट है, धनखड़ का यह किसान प्रेम सरकार की ही किसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
क्योंकि इस भाषण में, जो मीडिया में वायरल हो चुका है, वे मोदी की बार बार तारीफ करते हैं लेकिन कृषि मंत्री और सरकार की घेरेबंदी करते हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि सेवा निवृत्ति की ओर बढ़ते वे सत्यपाल मलिक के रास्ते पर चल रहे हैं। बहरहाल कारण जो भी हो, मोदी सरकार के किसानों के प्रति रुख को, उसकी संवेदनहीनता को उन्होंने अपने वक्तव्य द्वारा बेनकाब करके रख दिया है और सरकार को आईना दिखाने का काम किया है।
यह साफ है कि किसान संगठनों और नेताओं, कार्यकर्ताओं में एक मंथन चल रहा है। 2020 का आंदोलन 378 दिन चला।सरकार ने किसानों से लिखित वायदे किए थे। लेकिन उन पर कोई अमल नहीं हुआ। अब किसान उन्हीं मांगों को लेकर, जिनमें MSP की कानूनी गारंटी और कर्जमाफी प्रमुख हैं, फिर आंदोलन की राह पर हैं।
दरअसल ये मांगें किसानों के किसी संकीर्ण हित में नहीं, वरन राष्ट्रीय विकास की अनिवार्य पूर्व शर्त हैं। कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि देश के 28 लाख करोड़ बजट में मात्र 3% कृषि पर खर्च हो रहा है। वे कहते हैं कि अगर बड़े पैमाने पर यह बजट बढ़ाया जाय तो उससे ग्रामीण क्षेत्र में मांग तेजी से बढ़ेगी, फलस्वरूप पूरी अर्थव्यवस्था को आवेग मिलेगा।
आज दुनिया में केवल तीन ऐसे देश हैं जहां किसानों को खेती में घाटा होता है अर्जेंटीना, वियतनाम और भारत, अन्य देशों में सरकार से मिलने वाली तरह-तरह की सब्सिडी के कारण किसानों को कोई घाटा नहीं होता।
अर्जेंटीना और वियतनाम में भी सरकार किसी न किसी तरह किसानों के घाटे की क्षतिपूर्ति कर देती है। ऐसी स्थिति में यह केवल भारत है जहां किसान साल दर साल घाटे में खेती कर रहे हैं। जाहिर है किसानों के पास लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लेकिन उनके रास्ते में सबसे बड़ी बाधा उनका बिखराव है।
आज जरूरत है कि सारे किसान संगठन एक बार फिर एक मंच पर आएं और MSP की कानूनी गारंटी, पूर्ण कर्जमाफी, किसानों को पेंशन जैसे अहम मुद्दों को लेकर एकताबद्ध राष्ट्रव्यापी आंदोलन में उतरें।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)
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