रांची। झारखंड के कई इलाकों में लाल और सफेद रंग का एक झंड़ा सामान्यत कई चौक चौराहे पर दिखाई देता है। यह झंडा है सरना धर्म का। वर्तमान में झारखंड के आदिवासी सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग कर रहे हैं।
जिसमें जनजाति समूह की प्रभावशाली जातियां मुंडा, उरांव, हूल अहम भूमिका निभाई है। जिसे आदिवासी अपने अस्तित्व की बात कह रहे हैं।
संदीप तिग्गा सरना धर्म को मानने वाले युवा है। वह हर बृहस्पतिवार को सरना प्रार्थना स्थल की प्रार्थना में भी शामिल होते हैं।
उनका कहना है कि ‘जैसे बाकी धर्मों का कोड है। वैसे ही आदिवासियों के लिए भी एक कोड होना चाहिए। जिससे हमारी धार्मिक पहचान हो’।

वह आगे कहते हैं ‘आज आदिवासी ईसाई और हिंदू बन रहे हैं। अगर हमारा अपना धर्म कोड होता तो लोग इधर-उधर भटकेंगे नहीं। यह हमारी अस्तित्व की लड़ाई है। जिसे हमलोग लंबे समय से लड़ रहे हैं’।
हमारे त्योहारों में कोई सरकारी छुट्टी नहीं मिलती
धर्म कोड की मांग को लेकर झारखंड के संगठन आदिवासी महासभा, आदिवासी सरना महासभा, अखिल आदिवासी विकास परिषद, आदिवासी जन परिषद, राजीव पहाड़ा प्रार्थना महासभा, मुंडा सभा, संथाल परगना समिति, हो महासभा, जय आदिवासी केंद्रीय परिषद, केंद्रीय सरना समिति समेत अन्य कई छोटे संगठनों ने मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन भी किया है।

अपनी पहचान को लेकर साल 2022 में आदिवासी झारखंड से दिल्ली के जंतर-मंतर गए थे। ताकि सरना धर्म कोड को लागू किया जाए।
राजकुमारी तिग्गा एक भगताईन है। जो अपने समाज की धार्मिक कामों को करती हैं। वह लंबे समय सरना के लिए लड़ाई लड़ रही हैं।
सरना आदिवासियों के लिए क्यों जरुरी है, इसके जवाब में वह कहती हैं ‘आज देश में सभी धर्मों के त्योहारों में स्कूल कॉलेजों में छुट्टी दी जाती है। लेकिन आदिवासियों के सिरहुल, करमा और बाकी त्यौहारों में किसी तरह की सरकारी छुट्टी नहीं होती है। ऐसे में हमारी पहचान कहां बच रही है कि हम आदिवासी है’।

वह आगे कहती हैं ‘हम प्रकृति के पूजक है। हमारी भी पहचान बने की हम आदिवासी है। इसलिए हम सरना चाहते हैं। ताकि अपनी आने वाली पीढ़ी को अपने धर्म के बारे में बता सकें कि हमारा क्या अस्तित्व रहा है’।
90 के दशक में शुरु हुई मांग
रवि तिग्गा राजीव पहाड़ा प्रार्थना सभा झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष हैं जो लंबे समय से सरना की लड़ाई लड़ रहे हैं।
वह बताते हैं कि सरना की मांग नई नहीं है। इसकी मांग 90 के दशक से ही शुरु हो गई थी। लेकिन लोगों तक इसकी पहुंच नहीं थी। अब सोशल मीडिया के दौर में बाहर के लोगों को भी सरना धर्म के बारे में पता चला है। यह हमारी एक सोशल मांग है। जो हमें मिलनी चाहिए।

वह कहते हैं सरना की मांग लेकर 30 सालों में संघर्ष किया जा रहा है। जिसके तहत सरना प्रार्थना सभा के द्वारा लोगों को जगाने की कोशिश की गई। धीरे-धीरे गांव घरों में लोग अपनी सरना, जात्रा, अखड़ा, मसना के प्राप्ति लोगों को लगाव बढ़ा। जिससे पुरानी व्यवस्था को बचाया जा सका।
रवि बताते हैं कि साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 86 लाख आदिवासी हैं। जिसमें से 50 लाख ने अन्य के कॉलम सरना लिखा था।
कुछ आदिवासी ऐसे भी हैं जो सरना को मानते हैं लेकिन उस वक्त ज्ञान के अभाव में हिंदू या अन्य के धर्म में निशान लगा दिए। हमारी इतनी जनसंख्या है कि सरना को धर्म कोड का दर्जा दिया जाना चाहिए।
जेएमएम और बीजेपी का राजनीतिक मुद्दा
लेकिन समय के साथ आदिवासियों की यह मांग अब पूरी तरह से राजनीतिक हो गई है। स्थिति यह है कि विधानसभा चुनाव के दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने अपने घोषणापत्र में ऐलान किया है कि अगर इंडिया गठबंधन की सरकार बनती है तो झारखंड में सरना धर्म कोड लागू किया जाएगा।
वहीं दूसरी तरफ तीन नवंबर को गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि ‘भाजपा सरना धार्मिक संहिता के मुद्दे पर विचार करेगी और उचित निर्णय लेगी’।
झारखंड में बीजेपी के प्रभारी असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्वा ने भी सरना की बढ़ती मांग और राजनीति को देखते हुए कहा कि ‘अगर भाजपा की सरकार बनती है तो सरना धर्म कोड को लागू किया जाएगा’।
इससे पहले सरना धर्म कोड की बढ़ती मांग को देखते हुए साल 2020 में, झारखंड सरकार ने विशेष एक दिवसीय विधानसभा सत्र के दौरान ‘सरना’ को एक अलग धर्म के रुप में शामिल करने का प्रस्ताव रखा और यह पारित होकर केंद्र सरकार के पास विधेयक के लिए भेज दिया गया।
जिसके बाद यह अभी तक यह लागू नहीं हुआ है। अब जनता के बीच यही बात प्रचारित है कि भाजपा ने केंद्र में रहते हुए आदिवासियों की मांग को पूरा नहीं किया।
इस पर कैलाश तिग्गा का कहना है कि ‘सभी पार्टियां कहती हैं कि आदिवासियों को सरना धर्म कोड दिया जाएगा। लेकिन आज तक मिला नहीं है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी कह रहे हैं कि मिल जाएगा, प्रस्ताव दिल्ली भी भेज दिया गया। लेकिन अभी तक हमें हमारी पहचान नहीं मिली है’।

अब चुनाव के दौरान भाजपा कह रही है सरना धर्म कोड लागू कर दिया जाएगा। जबकि पिछले साल चार से प्रस्ताव लंबित पड़ा है और केंद्र में भाजपा की सरकार है।
इस पर आदिवासी मामलों के जानकार पत्रकार आशीष तिग्गा का कहना है ‘सरना इस चुनाव का बड़ा मुद्दा है। जिसे जेएमएम और उसकी सहयोगी संगठनों द्वारा ग्रामीण के बीच में प्रचारित किया है कि राज्य सरकार ने प्रस्ताव पारित करके दिल्ली भेज दिया है।
लेकिन केंद्र की मोदी सरकार इसे लागू नहीं कर रही है। इसके कारण ग्रामीण आदिवासी भाजपा से दूरी बना रहे हैं। जिसका सीधा फायदा हेमंत सोरेन की छवि पर जेएमएम को मिलेगा।
जेएमएम की घोषणा स्वागतयोग्य
चुनाव के दौरान अब सरना की मांग को लेकर एनडीए और इंडिया गठबंधन लागू करने की बात कर रही है। इस पर रवि तिग्गा का कहना है कि ‘इंडिया गठबंधन में हमारी मांग को अपने घोषणापत्र में शामिल किया है यह स्वागत योग्य है।
वहीं दूसरी ओर बीजेपी हमें यह पहचान दे सकती थी। लेकिन अभी तक नहीं दी है।
वह आगे कहते हैं ‘हमने धर्म कोड के लिए सारे मापदंडों को पूरा किया है। अगर केंद्र सरकार अभी भी नहीं देती हैं तो यह सीधे तौर पर उसके नीयत पर सवाल उठाता है। भाजपा चुनाव के सभी मुद्दों पर बात कर रही है। लेकिन आदिवासियों की पहचान के लिए कुछ नहीं कह रही’।
हमें हमारे हक अधिकार के साथ हमारी पहचान भी दी जाए। इसलिए हमने सोचा है ‘सरना नहीं तो वोट नहीं’।

सरना के कारण वोटों पर पड़ने वाले असर के बारे में आशीष तिग्गा कहते हैं, संथाल परगना में संथाल जनजाति की आबादी ज्यादा है। वह भी इस मांग का समर्थन कर रहे हैं।
इसके अलावा मुंडा, उरांव और हो मुखर होकर इस बात कर रहे हैं। जिसके कारण कोल्हान, संथाल परगना, गुमला, लोहरदगा, खूंटी की अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटों पर साफ असर देखने को मिलेगा।
राजनीतिक समीकरणों को देखें तो कोल्हान में हो जनजाति के लोग रहते हैं। कोल्हान प्रमंडल की 14 सीटों में नौ अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीट है। जिस पर पिछले चुनाव में जेएमएम ने सभी पर जीत दर्ज की थी।
दक्षिण छोटानागपुर पठार वाले इलाके में रांची, खूंटी, गुमला में इसका प्रभाव साफ दिखाई देता है।
आदिवासी वोटों पर बीजेपी की नजर
संथाल परगना पर भाजपा ने लोकसभा चुनाव में हार के बाद सरना के मामले को बांग्लादेशी घुसपैठियों से ढकने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री समेत बीजेपी के अन्य नेता यहां इसी मुद्दे पर प्रचार कर रहे हैं।
यहां 18 सीटें है। जिसमें सात सीटें आरक्षित हैं। जो साल 2019 के विधानसभा में जेएमएम ने जीती थी। इस बार भी जेएमएम का इन्हीं सीटों पर नजर है।
पहाड़ा प्रार्थना सभा के केंद्रीय प्रवक्ता संजय पाहन संथाल परगना में रहते हैं और लगातार इस पर काम कर रहे हैं।
चुनाव के दौरान सरना पर होती राजनीति के बारे में संजय कहते हैं कि ‘वोटिंग पैटर्न के अनुसार आदिवासी हमेशा से ही भाजपा के खिलाफ वोट करते आए हैं। बाकी समाज भाजपा के वोटर्स रहे हैं।
वह आगे कहते हैं ‘भाजपा आदिवासियों के 20 प्रतिशत वोट को अपने तरफ करना चाहती है। इस कारण वह संथाल परगना में घुसपैठियों का मामला उठी रही है। आदिवासियों बेटियों की अंर्तजातीय विवाह पर भी सवाल उठी रही है। आरएसएस आदिवासियों को हिंदू बताकर उनका वोट बीजेपी की तरफ शिफ्ट करना चाहता है। इसलिए सरना पर कोई बात नहीं कर रहे हैं।
(झारखंड से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)
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