झारखण्ड जनाधिकार महासभा: वन अधिकार कानून का खुला उल्लंघन

झारखण्ड सरकार ने मई 2024 में सभी उपायुक्तों (जिलाधिकारियों) और वन प्रमंडल पदाधिकारियों के लिए आयोजित एक कार्यशाला में घोषणा की थी कि 9 अगस्त 2024 को अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के अवसर पर सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) के तहत प्रत्येक जिले में 100-100 सामुदायिक वन अधिकार पत्र (पट्टे) वितरित किए जाएंगे। हालांकि, आज तक पूरे झारखण्ड में किसी भी जिले में एक भी CFRR पट्टा वितरित नहीं किया गया है। इसका मुख्य कारण संबंधित वन प्रमंडल पदाधिकारियों द्वारा अधिकार पत्रों पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना माना जा रहा है।

दूसरी ओर, 2019 में झारखण्ड सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा देकर लगभग 28,000 निरस्त दावों के पुनरीक्षण का वादा किया था। वर्तमान में झारखण्ड में निरस्त दावों की संख्या बढ़कर लगभग 40,000 हो गई है, लेकिन इनका पुनरीक्षण अब तक नहीं हुआ है। अधिकांश दावे अनुमंडल या जिला स्तरीय समितियों द्वारा वन अधिकार कानून के स्पष्ट प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए निरस्त किए गए हैं। इस मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में जल्द होने वाली है।

2010 से अब तक प्रत्येक जिले में हजारों दावा अभिलेख लंबित पड़े हैं, जिसके कारण लोग इस कानून के लाभों से वंचित हैं। इनमें से अधिकांश दावे अंचल कार्यालयों और वन विभाग के कार्यालयों में पड़े हुए हैं। वन अधिकार कानून के अनुसार, भौतिक सत्यापन के लिए उपस्थित होने के अलावा अंचल या राजस्व विभाग की कोई भूमिका नहीं है। साथ ही, ग्राम सभा और वन अधिकार समिति (FRC) को छोड़कर, वन विभाग के अधिकारियों सहित किसी भी अधिकारी को दावों का सत्यापन करने का अधिकार नहीं है। फिर भी, वन विभाग के अधिकारी अलग से जांच करते हैं और उनके प्रतिवेदन के आधार पर उपमंडल स्तरीय समिति (SDLC) और जिला स्तरीय समिति (DLC) द्वारा निर्णय लिए जाते हैं, जो कानून का स्पष्ट उल्लंघन है।

जिन वन अधिकार पत्रों (पट्टों) का वितरण हुआ है, उनमें से कम से कम 80 प्रतिशत में गैरकानूनी तरीके से रकबा में कटौती की गई है, जो वन अधिकार कानून के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है। कानून के अनुसार, बिना ग्राम सभा की सहमति के किसी भी अधिकारी को रकबा कटौती का अधिकार नहीं है। यही स्थिति सामुदायिक वन अधिकार पत्रों की भी है, जहां रकबा या अधिकारों में मनमाने ढंग से कटौती की गई है।

साथ ही, अनुमंडल और जिला स्तरीय वन अधिकार समितियों के गठन में भी कानून का उल्लंघन हो रहा है। इन समितियों में केवल 6-6 सदस्य होने चाहिए, लेकिन कुछ जिलों में 6 से अधिक सदस्यों को शामिल करके अधिसूचनाएं जारी की गई हैं। उदाहरण के लिए, लातेहार जिले के महुआडांड़ अनुमंडल स्तरीय समिति में वन विभाग के भार-साधक अधिकारी के स्थान पर निम्न-स्तरीय “वनपाल” SDLC की बैठकों में वन विभाग का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। कुछ जिलों में जनप्रतिनिधियों की अनुपस्थिति में SDLC और DLC की बैठकें आयोजित हो रही हैं, जो एक गंभीर मुद्दा है।

2012 में संशोधित “वन अधिकार नियम 2008” में वन अधिकारों के निपटान की प्रक्रिया के स्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं, लेकिन SDLC और DLC इनका उल्लंघन करते हुए दावों का निपटारा कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, वन-आश्रित समुदाय अपने कानूनी अधिकारों से वंचित हो रहे हैं।

वन अधिकारों के निपटान की प्रक्रिया में भौतिक सत्यापन सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। नियम 12(1) में स्पष्ट है कि वन और राजस्व विभाग को समुचित सूचना देकर ग्राम वन अधिकार समिति को भौतिक सत्यापन करना है। लेकिन पूरे झारखण्ड में वन और राजस्व विभाग के अधिकारी दावों के भौतिक सत्यापन में सहयोग नहीं कर रहे हैं।

झारखण्ड जनाधिकार महासभा की मांगें:

सामुदायिक वन अधिकार पत्र का निर्गमन: सरकार सुनिश्चित करे कि जिन ग्राम सभाओं ने सामुदायिक वन अधिकार (CFR) या CFRR के लिए दावे किए हैं, उन्हें तत्काल सामुदायिक वन अधिकार पत्र निर्गत किए जाएं।

निरस्त दावों का पुनरीक्षण: सभी निरस्त दावों का पुनरीक्षण ग्राम सभा और FRC स्तर पर समयबद्ध तरीके से किया जाए। इसके लिए राज्य स्तरीय निगरानी समिति (SLMC) से निर्देश जारी करवाए जाएं।

लंबित दावों का निपटारा: सभी विचाराधीन दावों को समयबद्ध तरीके से निपटाया जाए और राजस्व/वन विभाग के कार्यालयों में पड़े दावा अभिलेखों को निर्धारित समय-सीमा में संबंधित ग्राम सभाओं तक पहुंचाया जाए।

रकबा/अधिकार कटौती का सुधार: जिन व्यक्तिगत और सामुदायिक दावों में गैरकानूनी तरीके से रकबा या अधिकारों में कटौती की गई है, उनके लिए नीतिगत और कानून-सम्मत निर्णय लेकर शेष क्षेत्र के लिए भी अधिकार पत्र निर्गत किए जाएं।

SDLC और DLC की बैठकें: यह सुनिश्चित किया जाए कि SDLC और DLC की बैठकें प्रत्येक माह या कम-से-कम हर दो माह में आयोजित हों। केवल निर्धारित सदस्य ही बैठकों में भाग लें और जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति व सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो।

प्रशिक्षण की व्यवस्था: वन अधिकार कानून, दावा निपटान प्रक्रिया और ग्राम सभा के अधिकारों के बारे में सभी प्रशासनिक अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।

भौतिक सत्यापन में सहयोग: वन और राजस्व विभाग को नियम 12(1) के तहत भौतिक सत्यापन में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए निर्देशित किया जाए।

झारखण्ड जनाधिकार महासभा का प्रतिनिधिमंडल, जिसमें जॉर्ज मोनिप्पल्ली, एलिना होरो, सेलेस्टिन कुजूर, रोज मधु कुजूर और सिसिलिया लकड़ा शामिल थे, ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री चमरा लिंडा तथा विभाग के प्रधान सचिव कृपानंद झा से मुलाकात कर इन मुद्दों पर त्वरित कार्रवाई की मांग की। प्रधान सचिव कृपानंद झा ने प्रतिनिधिमंडल की बातों को गंभीरता से सुना और सकारात्मक कार्रवाई का आश्वासन दिया।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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